पर्सपेक्टिव : भारतीय कार्यबल का कौशल उन्नयन | 24 Jan 2024

प्रिलिम्स के लिये:

जनसांख्यिकीय लाभांश, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), व्हाइट कॉलर श्रमिक, ग्रे कॉलर श्रमिक, ब्लू कॉलर श्रमिक, विश्व कौशल प्रतियोगिता, राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, कौशल विकास और उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, कौशल भारत पोर्टल, राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, हाई-स्पीड इंटरनेट, आर्थिक उदारीकरण, खुला बाज़ार  

मेन्स के लिये:

दुनिया भर में कुशल कार्यबल की उपलब्धता को सहज बनाने के लिये भारत की कौशल विकास पहल का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने विश्व भर में कुशल कार्यबल के अग्रणी आपूर्तिकर्त्ता के रूप में उभरने की भारत की क्षमता पर ज़ोर दिया है।

  • वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में भारत की यात्रा इसकी कुशल जनशक्ति की क्षमता के दोहन पर निर्भर है।
  • इससे न केवल भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठा सकेगा बल्कि इसकी आर्थिक वृद्धि में भी तेज़ी आएगी क्योंकि यह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर होगा।

जनसांख्यिकीय लाभांश क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ है, "आर्थिक विकास की क्षमता जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप हो सकती है, मुख्य रूप से उस स्थिति में जब कार्यशील आबादी (15 से 64) का हिस्सा जनसंख्या की गैर-कार्यशील आबादी (14 और उससे कम, और 65 और उससे अधिक) से  अधिक होता है"।
  • भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश: 
    • UNFPA के अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2020 तक भारत तेज़ी से बूढ़े हो रहे विश्व में सबसे कम उम्र की आबादी वाले देशों में से एक था, जिसकी औसत आयु लगभग 28 वर्ष थी, तुलनात्मक रूप से चीन तथा अमेरिका में औसत आयु 37 वर्षपश्चिमी यूरोप में 45 वर्ष और जापान में 49 वर्ष थी ।
      • वर्ष 2018 के बाद से, भारत की कार्यशील आबादी (15 से 64 वर्ष की आयु के बीच के लोग) आश्रित आबादी (14 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों के साथ-साथ 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग) से अधिक हो गई है।
      • कार्यशील जनसंख्या में यह वृद्धि वर्ष 2055 तक, यानी इसकी शुरुआत से 37 वर्ष बाद तक बनी रहेगी।
    • यह परिवर्तन मुख्यतः जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के स्थिर होने के बाद कुल प्रजनन दर (TFR, उन किसी महिला द्वारा उसके जीवनकाल में जन्म दिये गए बच्चों की कुल संख्या) में कमी के कारण होता है।

भारत क्यों बन जाएगा विश्व का कौशल केंद्र? 

  • वर्तमान समय में सर्वाधिक युवा आबादी भारत में है, जिसके लिये नौकरियों, उद्यमशीलता या अन्य अवसरों के सृजन की आवश्यकता है।
  • विकासशील देशों की जनसंख्या की आयु बढ़ रही है।
  • भारतीय कार्यबल में निहित कौशल उच्च गुणवत्ता वाला और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी है, और इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व कौशल प्रतिस्पर्द्धा (World Skills Competition) में भारत ने 11वीं रैंक हासिल की है। 
    • विश्व कौशल प्रतिस्पर्द्धा/वर्ल्ड स्किल्स प्रतिस्पर्द्धा एक वैश्विक कार्यक्रम है जहाँ अलग-अलग देशों के कौशलपूर्ण व्यक्ति विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक एवं तकनीकी कौशल में अपनी प्रतिभा व दक्षता प्रदर्शित करते हैं।
  • भाषा के प्रति सशक्त ग्रहणशीलता/अनुकूलनशीलता, जो भारतीयों को किसी भी देश में प्रभावी ढंग से काम करने में सक्षम बनाती है, के चलते विश्व भर भारतीय कार्यबल को महत्त्व दिया जाता है।

क्या हो सकता है संपूर्ण कार्यबल का संभावित वर्गीकरण?

  • संपूर्ण कार्यबल को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: व्हाइट कॉलर, ग्रे कॉलर और ब्लू कॉलर श्रमिक।
    • व्हाइट कॉलर श्रमिक: "व्हाइट कॉलर श्रमिक" शब्द को आंशिक रूप से अमेरिकी लेखक अप्टन सिंक्लेयर द्वारा प्रचलन में लाया गया था, जिन्होंने इसे प्रशासनिक कार्यों से जोड़ा था।
      • ये कर्मचारी सामान्यतः कार्यालय में कार्य करते हैं, जो अक्सर सफेद कॉलर वाली शर्ट के साथ सूट और टाई पहनते हैं।
      • उनकी भूमिकाओं में प्रायः लिपिकीय, प्रशासनिक या प्रबंधकीय समायोजन में डेस्क वर्क शामिल होता है, जो शारीरिक श्रम की मांग वाले कार्यों की अनुपस्थिति के कारण उन्हें ब्लू-कॉलर श्रमिकों से अलग बनाता है।
    • ग्रे कॉलर श्रमिक: "ग्रे-कॉलर श्रमिक" पद का प्रयोग उन व्यवसायों में कार्य करने वाले श्रमिकों को दर्शाने के लिये किया जाता है जहाँ कार्य करने के लिये उच्च कौशल की आवश्यकता होती है और ये अच्छा मुआवज़ा भी प्रदान करते हैं लेकिन इनके लिये कॉलेज की डिग्री होना अनिवार्य नहीं होता। 
      • समकालीन संदर्भ में, इन नौकरियों में प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल और सेवा या आतिथ्य जैसे विभिन्न उद्योगों को शामिल किया जा सकता है।
      • अनुभवी ग्रे-कॉलर पेशेवर अक्सर व्यावहारिक अनुभव, व्यावसायिक या तकनीकी शिक्षा एवं प्रमाण-पत्र तथा लाइसेंस के रूप में प्राप्त विशेषज्ञता का उपयोग करते हैं।
    • ब्लू कॉलर श्रमिक: ब्लू-कॉलर श्रमिक पद का प्रयोग प्रायः कृषि, विनिर्माण, निर्माण, खनन या रखरखाव/मेंटेनेंस जैसे क्षेत्रों में शारीरिक श्रम की मांग करने वाले व्यक्तियों का वर्णन करने के लिये किया जाता है। 
      • सामान्य ब्लू-कॉलर श्रमिकों में वेल्डर, मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन और निर्माण श्रमिक शामिल हैं।
      • इसमें कुछ भूमिकाएँ अत्यधिक विशिष्ट हैं, जैसे विद्युत संयंत्र संचालक, विद्युत वितरक और परमाणु ऊर्जा संयंत्र संचालक
      • ब्लू-कॉलर श्रमिक वर्ग में कुशल और अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिक शामिल हैं, जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

गिग इकोनॉमी क्या है?

  • गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें आम रूप से अस्थायी कार्य अवसर मौजूद होते हैं और विभिन्न संगठन अल्पकालिक संलग्नताओं के लिये स्वतंत्र कर्मियों के साथ अनुबंध करते हैं।
  • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में 1.5 मिलियन कर्मचारी कार्यरत हैं।
  • इंडिया स्टाफिंग फेडरेशन की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, चीन, ब्राज़ील और जापान के बाद भारत वैश्विक स्तर पर फ्लेक्सी-स्टाफिंग में पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है।

भारत में गिग इकॉनमी के विकास चालक कौन-से हैं?

  • इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकी का उदय: स्मार्टफोन का व्यापक इस्तेमाल और हाई-स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता ने कर्मियों एवं व्यवसायों के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ना आसान बना दिया है, जिससे गिग इकॉनमी के विकास में मदद मिली है।
  • आर्थिक उदारीकरण: भारत सरकार की आर्थिक उदारीकरण संबंधी नीतियों ने प्रतिस्पर्द्धा एवं अधिक खुले बाज़ार को बढ़ावा दिया है, जिसने गिग इकॉनमी के विकास को प्रोत्साहित किया है।
  • लचीले कार्य की बढ़ती मांग: गिग इकॉनमी भारतीय कामगारों के लिये विशेष रूप से आकर्षक है जो लचीली कार्य व्यवस्था (Flexible Work Arrangements) की मांग रखते हैं जहाँ उन्हें अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करने का अवसर मिलता है।
  • जनसांख्यिकी संबंधी कारक: गिग इकॉनमी युवा, शिक्षित एवं महत्त्वाकांक्षी भारतीयों की बड़ी और बढ़ती संख्या से भी प्रेरित है, जो अतिरिक्त आय सृजन के साथ अपनी आजीविका में सुधार की इच्छा रखते हैं।

विभिन्न पहलों के माध्यम से कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को किस प्रकार विकसित किया गया है?

  • कौशल विकास के प्रति भारत का दृष्टिकोण कई सरकारी निकायों वाले विखंडित मॉडल से हटकर कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship- MSDE) के नेतृत्व में अधिक एकीकृत और एकीकृत फ्रेमवर्क में परिवर्तित हो गया है।
    • MSDE ने राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, कौशल विकास और उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, कौशल भारत पोर्टल सहित कई पहलें शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य पूरे देश में कौशल विकास प्रयासों को सुसंगत और अनुकूलित बनाना है।
      • कौशल विकास और उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति भारत को कौशल प्रदान करने के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये ग्यारह प्रमुख प्रतिमानों और सक्षमताओं की रूपरेखा तैयार करती है, जैसे महत्त्वाकांक्षा और समर्थन, क्षमता, गुणवत्ता, सहक्रियता, आवागमन और भागीदारी, वैश्विक साझेदारी आदि।
  • यह नीति औपचारिक शिक्षा प्रणाली और उद्योग की आवश्यकताओं के साथ कौशल मानकों को संरेखित करने के लिये राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) नामक एक फ्रेमवर्क का भी प्रस्ताव करती है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 एक क्रेडिट प्रणाली पर ज़ोर देती है, जिसमें 40% क्रेडिट कौशल विकास के लिये समर्पित है।
  • सक्रिय कौशल विकास के लिये शिक्षा जगत, उद्योग और प्रशिक्षण प्रदाताओं के बीच सहयोग महत्त्वपूर्ण है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) क्या है?

  • परिचय: 
    • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation- NSDC) को भारतीय कार्यबल के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवास हेतु एक पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने का कार्य सौंपा गया है।
    • NSDC एक गैर-लाभान्वित सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी है और इसे वित्त मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के रूप में स्थापित किया गया है।
    • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के माध्यम से भारत सरकार के पास NSDC की 49% शेयर पूंजी है, जबकि निजी क्षेत्र के पास शेष 51% शेयर पूंजी है।
  • उद्देश्य:
    • NSDC का लक्ष्य बड़े, गुणवत्तापूर्ण और लाभकारी व्यावसायिक संस्थानों के निर्माण को प्रेरित करके कौशल विकास को बढ़ावा देना है।
    • संगठन मापनीय और लाभदायक व्यावसायिक प्रशिक्षण पहलों हेतु निधि उपलब्ध कराता है।

भारत में कौशल पारिस्थितिकी तंत्र की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता:
    • उद्योग जगत की आवश्यकताओं के अनुरूप न होने के कारण भारत में कई कौशल विकास कार्यक्रमों की आलोचना की गई  है।
    • पुराने पाठ्यक्रम और अपर्याप्त व्यावहारिक प्रशिक्षण के कारण प्रायः अर्जित कौशल और नियोक्ताओं द्वारा अपेक्षित कौशल के बीच अंतर उत्पन्न हो जाता है।
  • अवसंरचना तक पहुँच:
    • विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण संबंधी अवसंरचना का असमान वितरण एक चुनौती है, प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास के अवसरों तक पहुँच सीमित होती है।
  • प्रौद्योगिकी सन्निवेश:
    • कौशल विकास कार्यक्रमों में प्रौद्योगिकी का सन्निवेश एक समान नहीं है। डिजिटल संसाधनों तक पहुँच की कमी और अपर्याप्त प्रौद्योगिकीय अवसंरचना ने ऑनलाइन प्रशिक्षण एवं ई-कौशल पहल के अभिग्रहण को बाधित किया है।
  • नीतिगत एवं नियामक चुनौतियाँ:
    • कौशल विकास के लिये विनियामक ढाँचे को उद्योग जगत की बदलती आवश्यकताओं एवं तकनीकी प्रगति के अनुकूल बनाने के लिये विभिन्न सुधारों की आवश्यकता है।
    • प्रत्यायन व प्रमाणन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित एवं सरल बनाना भी ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान दिया जाने चाहिये।
  • निगरानी व मूल्यांकन:
    • प्रभावी निगरानी व मूल्यांकन तंत्र का अभाव हमेशा से बना हुआ है जिससे कौशल कार्यक्रमों के प्रभाव का आकलन करना तथा सुधार के क्षेत्रों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण प्रतीत होता है।

आगे की राह

  • गुणवत्ता आश्वासन और मानकीकरण:
    • यह सुनिश्चित करने के लिये गुणवत्ता आश्वासन तंत्र लागू किया जाना चाहिये कि कौशल विकास कार्यक्रम उद्योग संबंधी मानकों का पालन कर रहे हैं अथवा नहीं। प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता को प्रमाणित करने के लिये प्रत्यायन निकायों की स्थापना की जानी चाहिये।
  • उद्योग तथा शिक्षा जगत के बीच सहयोग:
    • शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच सहयोग को मज़बूत किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शैक्षणिक संस्थानों द्वारा लागू पाठ्यक्रम, उद्योग जगत की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप हो। कौशल कार्यक्रमों के विकास का मार्गदर्शन करने के लिये उद्योग सलाहकार बोर्ड की स्थापित की जानी चाहिये
  • लचीले और मॉड्यूलर कार्यक्रम:
    • लचीले और मॉड्यूलर कौशल कार्यक्रम विकसित किये जाने चाहिये ताकि शिक्षार्थी चरणबद्ध तरीके से कौशल हासिल कर सकें। यह दृष्टिकोण विभिन्न शैक्षिक पृष्ठभूमि और कॅरियर आकांक्षी व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।
  • वित्तीय समावेशन:
    • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि कौशल विकास तक पहुँच में कोई वित्तीय बाधा न आए। कौशल कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में व्यक्तियों का समर्थन करने के लिये वित्तीय सहायता, छात्रवृत्ति, या कम ब्याज वाले लोन मॉडल पर विचार किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. यह श्रम और रोज़गार मंत्रालय की प्रमुख योजना है। 
  2. यह अन्य बातों के अलावा सॉफ्ट स्किल्स, उद्यमिता, वित्तीय और डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा। 
  3. इसका उद्देश्य देश के अनियमित कार्यबल की दक्षताओं को राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे के अनुरूप बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या: 

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के माध्यम से कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित युवाओं के कौशल प्रशिक्षण के लिये एक प्रमुख योजना है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • पूर्व शिक्षण अनुभव या कौशल वाले व्यक्तियों का मूल्यांकन एवं प्रमाणन योजना के पूर्व शिक्षण को मान्यता (Recognition of Prior Learning- RPL) घटक के तहत किया जाएगा। RPL का लक्ष्य देश के अनियमित कार्यबल की दक्षताओं को NSQF के साथ जोड़ना है।
  • कौशल प्रशिक्षण, राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) और उद्योग-आधारित मानकों पर आधारित है। अतः कथन 3 सही है।
  • NSQF के अनुसार प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा, प्रशिक्षण केंद्र सॉफ्ट स्किल, उद्यमिता एवं वित्तीय और डिजिटल साक्षरता में भी प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। अतः कथन 2 सही है। 

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।


मेन्स: 

प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकोनॉमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न. क्या प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार की प्रोन्नति करने में सहायक हो सकती है? (2019)

प्रश्न. “व्यावसायिक शिक्षा और कौशल को सार्थक बनाने के लिये ‘सीखते हुए कमाना (अर्न व्हाइल यू लर्न)’ की योजना को सशक्त करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2021)