पर्सपेक्टिव: छाप छोड़ते भारतीय पेटेंट | 27 Nov 2023

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO), पेटेंट, ट्रेडमार्क, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)

मेन्स के लिये:

नवप्रवर्तन संस्कृति का उद्भव, आर्थिक विकास में बढ़ते पेटेंट की भूमिका

प्रसंग क्या है?

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) ने भारतीय आवेदकों द्वारा पेटेंट फाइलर्स में महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है, जो वर्ष 2022 में उल्लेखनीय 32% की वृद्धि को दर्शाता है।

  • यह उपलब्धि भारत के 11 वर्ष के प्रभावशाली सफर को आगे बढ़ाती है और नवाचार को बढ़ावा देने में देश के कौशल को रेखांकित करती है।

बौद्धिक संपदा अधिकार:

  • WIPO, बौद्धिक संपदा के आविष्कारकों या रचनाकारों को विशेष अधिकार प्रदान करने के लिये नियम स्थापित करता है।
  • इससे उन्हें अपने रचनात्मक प्रयासों या प्रतिष्ठा से व्यावसायिक लाभ प्राप्त करने में सुविधा होती है, जो बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) के रूप में ज्ञात कानूनी संरक्षण का एक रूप है।

प्रकार:

  • IP ​​के मुख्य प्रकारों में आविष्कारों के लिये पेटेंट, ब्रांडिंग के लिये ट्रेडमार्क, कलात्मक और साहित्यिक कार्यों के लिये कॉपीराइट, गुप्त व्यावसायिक सूचनाओं के लिये व्यापारिक गोपनीयता तथा उत्पाद की प्रस्तुति के लिये औद्योगिक डिज़ाइन शामिल हैं।

भारतीय पेटेंट फाइलिंग में अभूतपूर्व वृद्धि में कौन-से कारक योगदान करते हैं?

  • नीति सुधार:
    • हाल के नीतिगत सुधारों ने भारत में पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज़ कर दिया है।
    • राष्ट्रीय IPR नीति और IP मित्र जैसी पहलों ने नवाचार एवं बौद्धिक संपदा संरक्षण के लिये अनुकूल वातावरण का सृजन किया है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:
    • ऑनलाइन फाइलिंग सिस्टम और नौकरशाही बाधाओं को कम करने सहित ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार ने व्यक्तियों तथा कंपनियों के लिये भारत में पेटेंट दाखिल करना अधिक आकर्षक बना दिया है।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म और सरलीकृत प्रक्रियाओं ने पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने में योगदान दिया है।
  • उन्नत नवाचार, अनुसंधान एवं विकास और प्रौद्योगिकी:
    • इन्क्यूबेटरों, एक्सेलेरेटर और अनुसंधान संस्थानों द्वारा समर्थित एक बढ़ते नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र ने आविष्कारशील गतिविधियों में वृद्धि को बढ़ावा दिया है।
    • प्रौद्योगिकी में तेज़ी से प्रगति से, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में, पेटेंट फाइलिंग में बढ़ोतरी हुई है।
  • वैश्विक मान्यता और कनेक्टिविटी:
    • नवाचार के केंद्र के रूप में भारत की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता ने वैश्विक कंपनियों और अन्वेषकों को देश के भीतर पेटेंट दाखिल करने के लिये प्रोत्साहित किया है तथा भारतीय नवप्रवर्तकों को अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं एवं मानकों से अवगत कराया है।
  • व्यवसायीकरण के अवसर:
    • बौद्धिक संपदा के वाणिज्यिक मूल्य के बारे में बढ़ती जागरूकता ने व्यवसायों और व्यक्तियों को पेटेंट के माध्यम से अपने नवाचारों की रक्षा करने के लिये प्रेरित किया है।
  • न्यायिक कार्यान्वयन:
    • हाल के वर्षों में भारत में संपूर्ण न्यायिक प्रणाली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। वर्तमान में जब IPR उल्लंघन के संबंध में प्रवर्तन की मांग की जाती है या मामले को अदालत में लाया जाता है, तो कुछ ही हफ्तों या दिनों के भीतर निर्णय प्राप्त किया जा सकता है।

भारत के संदर्भ में पेटेंट फाइलिंग की गतिशीलता कैसे बदल गई है?

  • भारत वैश्विक स्तर पर पेटेंट आवेदनों की छठी सबसे बड़ी संख्या रखता है, जो अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा परिदृश्य में इसकी उपस्थिति और महत्त्व को दर्शाता है।
  • वैश्विक रैंकिंग का संदर्भ अन्य प्रमुख देशों के सापेक्ष भारत की स्थिति पर एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।
    • अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के बाद चीन का नेतृत्व, वैश्विक नवाचार परिदृश्य की प्रतिस्पर्द्धी प्रकृति पर ज़ोर देता है।
    • हाल ही में एक उल्लेखनीय बदलाव देखा गया है और अधिक भारतीय निवासियों ने पहली बार विदेशी संस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए पेटेंट दाखिल किया है।
  • वर्ष 2022 में भारतीय पेटेंट कार्यालय के साथ निवासी पेटेंट फाइलिंग में 47% की पर्याप्त वृद्धि हुई है, जो भारतीय निवासियों के बीच अपने नवाचारों की रक्षा करने के लिये एक मज़बूत और बढ़ती रुचि का संकेत देता है।
    • भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इस उछाल की स्वीकृति भारत के भविष्य के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है। यह राष्ट्रीय विकास में बौद्धिक संपदा की भूमिका की सरकार की मान्यता को इंगित करता है।

पेटेंट आवेदन में सुधार हेतु अग्रणी कारक क्या हैं?

  • सरकारी पहल:
  • नवप्रवर्तकों की भूमिका:
    • विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण कोविड-19 अवधि के दौरान भारतीय शोधकर्त्ताओं के योगदान की मान्यता, संकट के समय में नवाचार के महत्त्व को रेखांकित करती है।
  • नवप्रवर्तन के लिये उत्प्रेरक:
    • "नवाचार के लिये उत्प्रेरक" की अवधारणा नवाचार को बढ़ावा देने और आगे बढ़ाने में शिक्षा तथा उद्योग के बीच सहयोगात्मक प्रयासों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।
    • जैसे- सहयोगात्मक पारिस्थितिकी तंत्र, ज्ञान हस्तांतरण, अंतःविषय दृष्टिकोण, संसाधन पूलिंग, त्वरित अनुसंधान और विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा व्यावसायीकरण, नवाचार संस्कृति, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता आदि।
  • प्रमुख योगदानकर्त्ता क्षेत्र:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स, संचार, फार्मास्यूटिकल्स, जैव-प्रौद्योगिकी, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर विज्ञान और सॉफ्टवेयर, ऑटोमोटिव, रसायन तथा सामग्री विज्ञान एवं चिकित्सा उपकरणों सहित विभिन्न क्षेत्र, अपने संबंधित क्षेत्रों में नवाचारों का प्रदर्शन करते हुए, भारत में पेटेंट फाइलिंग में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

नोट:

  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) द्वारा प्रकाशित वैश्विक नवाचार सूचकांक, 2023 रैंकिंग में भारत ने 132 देशों में से 40 वाँ स्थान प्राप्त किया है। यह वर्ष 2021 में 46वाँ और वर्ष 2015 में 81वाँ स्थान प्राप्त किये गये रैंक में सुधार का प्रतीक है।

आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में बौद्धिक संपदा की क्या भूमिका है?

  • नवाचार और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना:
    • एक मज़बूत IPR पारिस्थितिकी तंत्र निर्माताओं के नवाचार को विधिक संरक्षण प्रदान करता है। यह व्यक्तियों एवं व्यवसायों को अनुसंधान और विकास में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करता है तथा निरंतर नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देता है। नतीजतन, राष्ट्र तकनीकी एवं आर्थिक रूप से उन्नति करता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करना:
    • मज़बूत बौद्धिक संपदा संरक्षण व्यवस्था वाले देश अधिक FDI आकर्षित करते हैं। एक अच्छी तरह से संरक्षित IP वातावरण विदेशी निवेशकों को विश्वास दिलाता है कि उनके नवाचारों को सुरक्षित रखा जाएगा, जिससे उन्हें भारत में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • उद्यमिता और स्टार्टअप को बढ़ावा देना:
    • बौद्धिक संपदा अधिकार स्टार्टअप और उद्यमियों को अपने अद्वितीय विचारों तथा उत्पादों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाते हैं। यह सुरक्षा निवेशकों को आकर्षित करने एवं स्टार्टअप के विकास के लिये अनुकूल माहौल बनाने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना:
    • IP अधिकार लाइसेंसिंग समझौतों और सहयोग के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करते हैं। यह व्यवसायों को नई प्रौद्योगिकियों तथा ज्ञान तक पहुँचने की अनुमति देता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार के प्रसार को बढ़ावा मिलता है।
  • ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था बनाना:
    • कॉपीराइट और ट्रेडमार्क का संरक्षण साहित्य, कला, संगीत तथा ब्रांडिंग जैसे क्षेत्रों में बौद्धिक संपदा के निर्माण एवं व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित करता है। यह ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देता है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि:
    • ब्रांडिंग और ट्रेडमार्क: बौद्धिक संपदा, विशेष रूप से ट्रेडमार्क, वैश्विक बाज़ार में ब्रांड की पहचान और विश्वास बनाने में मदद करते हैं। यह बदले में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय उत्पादों और सेवाओं की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है।
  • पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत का समर्थन करना:
    • भौगोलिक संकेतों (GI) का संरक्षण विशिष्ट क्षेत्रों के लिये अद्वितीय पारंपरिक ज्ञान और उत्पादों को सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने तथा पारंपरिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • अमूर्त संपत्तियों के मूल्य में वृद्धि:
    • बौद्धिक संपदा परिसंपत्तियाँ किसी कंपनी के समग्र मूल्य में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। उचित रूप से प्रबंधित IP पोर्टफोलियो का उपयोग लाइसेंसिंग, फ्रेंचाईज़िंग या यहाँ तक कि ऋण प्राप्त करने के लिये संपार्श्विक के रूप में किया जा सकता है, इस प्रकार व्यवसायों के आर्थिक मूल्य में योगदान मिलता है।
  • रोज़गार सृजन और आर्थिक प्रभाव:
    • एक मज़बूत IP ढाँचा एक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है जो बदले में नए उद्योगों और नौकरी के अवसरों के निर्माण की ओर ले जाता है।
  • वैश्विक मानकों को पूरा करना:
    • वैश्विक व्यापार के लिये अंतर्राष्ट्रीय IP मानकों का पालन करना आवश्यक है। वैश्विक IP मानकों के साथ समन्वय बनाकर भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों और साझेदारियों में अधिक प्रभावी ढंग से भाग ले सकता है।
  • हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना:
    • पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों के लिये पेटेंट को प्रोत्साहित करने से टिकाऊ प्रथाओं के विकास और उन्हें अपनाने के लिये प्रोत्साहन मिलता है, जो आर्थिक विकास तथा पर्यावरणीय स्थिरता दोनों में योगदान देता है।

पेटेंटिंग प्रक्रिया में नवप्रवर्तकों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  • प्रक्रियात्मक जटिलता:
    • पेटेंट आवेदन प्रक्रिया में जटिल दस्तावेज़ीकरण और फाइलिंग प्रक्रियाएँ शामिल हैं। नवप्रवर्तकों को व्यापक कागज़ी कार्रवाई को पूरा करना तथा प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
  • लंबी अनुमोदन प्रक्रिया:
    • भारत में पेटेंट अनुमोदन प्रक्रिया समय लेने वाली हो सकती है। पेटेंट की जाँच और अनुदान में देरी नवप्रवर्तकों को हतोत्साहित कर सकती है, विशेष रूप से तेज़ गति वाले उद्योगों में, क्योंकि इससे उनके अधिकारों को तुरंत लागू करने की उनकी क्षमता बाधित होती है।
  • पेटेंट आवेदनों का बैकलॉग:
    • भारत ने परीक्षण की प्रतीक्षा में पेटेंट आवेदनों के एक बैकलॉग (विशेष रूप से उत्पादों या सेवाओं के लिये ग्राहकों के अधूरे ऑर्डर) का अनुभव किया है। इस बैकलॉग के कारण पेटेंट आवेदनों के प्रसंस्करण में विलंब हो सकता है, जिससे समय पर नवाचारों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
  • सीमित जागरूकता और शिक्षा:
    • कई नवप्रवर्तकों, विशेष रूप से व्यक्तियों और छोटे व्यवसायों को बौद्धिक संपदा अधिकारों एवं पेटेंट प्रक्रिया के महत्त्व के बारे में सीमित जागरूकता हो सकती है। शिक्षा की कमी के परिणामस्वरूप सुरक्षा के अवसर चूक सकते हैं।
  • संसाधनों की कमी:
    • रखरखाव शुल्क के साथ-साथ पेटेंट आवेदन तैयार करने और दाखिल करने से जुड़ी लागत, व्यक्तिगत आविष्कारकों तथा छोटे व्यवसायों के लिये एक बड़ा बोझ हो सकती है। संसाधन की कमी उनके नवाचारों की रक्षा करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है।
  • कठोर पेटेंट योग्यता मानदंड:
    • कठोर पेटेंट योग्यता मानदंड, विशेष रूप से विषय वस्तु पात्रता के संबंध में चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं। कुछ नवाचारों, विशेष रूप से सॉफ्टवेयर और व्यावसायिक क्षेत्रों में पेटेंट योग्यता के मानदंडों को पूरा करने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • प्रवर्तन मुद्दे:
    • पेटेंट प्राप्त करने के बाद भी बौद्धिक संपदा अधिकारों को लागू करना एक महँगी और समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है। संबंधित कानूनी लागतों के कारण नवप्रवर्तकों को उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • बायोपाइरेसी और पारंपरिक ज्ञान से संबंधित मुद्दे:
    • पारंपरिक ज्ञान या जैव-विविधता से संबंधित कार्य करने वाले नवप्रवर्तकों को बायोपाइरेसी से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जहाँ उनके आविष्कारों का उचित सहमति या लाभ-साझाकरण समझौता किये बिना शोषण किया जाता है।

भारतीय पेटेंट फाइलिंग के भविष्य की राह क्या है?

  • भारतीय पेटेंट फाइलिंग के भविष्य की राह आशाजनक प्रतीत होती है, जो विभिन्न कारकों द्वारा संचालित निरंतर वृद्धि से चिह्नित है। बौद्धिक संपदा-अनुकूल नीतियों और आर्थिक सुधारों पर ज़ोर देने वाली सरकारी पहल से नवाचार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • तेज़ी से विस्तृत हो रहा प्रौद्योगिकी परिदृश्य, विशेष रूप से AI, जैव-प्रौद्योगिकी और हरित प्रौद्योगिकियों में पेटेंट संरक्षण की बढ़ती मांग में योगदान देगा। बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों के साथ-साथ संपन्न स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र से पेटेंट फाइलिंग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • वैश्विक सहयोग और सरकारी सहायता कार्यक्रम, अनुसंधान एवं विकास के लिये वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश, ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान कर सकते हैं तथा पेटेंट आवेदनों की वृद्धि में योगदान कर सकते हैं।
  • भारतीय नवप्रवर्तनों को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिलने से वैश्विक पेटेंट आवेदनों में वृद्धि हो सकती है। भारतीय पेटेंट नीतियों को वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करना भारतीय पेटेंट प्रणाली की विश्वसनीयता और आकर्षण को बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है। कुल मिलाकर इन कारकों का संयोजन भारतीय पेटेंट फाइलिंग के भविष्य हेतु एक सकारात्मक राह का सुझाव देता है।
  • वैश्विक पेटेंट अनुप्रयोगों में लैंगिक असमानता को दूर करने के प्रयास किये जा रहे हैं, जहाँ वर्ष 2022 में केवल 16.2% आविष्कारक महिलाएँ थीं, इन अनुप्रयागों में STEM शिक्षा को बढ़ावा देना, मेंटरशिप कार्यक्रम स्थापित करना, नेटवर्किंग प्लेटफार्मों को सुविधाजनक बनाना, फंडिंग के अवसर प्रदान करना, विशेष IP प्रशिक्षण की पेशकश करना तथा नवाचार एवं बौद्धिक संपदा में समावेशिता व समान अवसरों की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा देना शामिल है।

निष्कर्ष:

भारतीय पेटेंट फाइलिंग में वृद्धि एक उल्लेखनीय उपलब्धि का प्रतीक है, जो नवाचार और बौद्धिक संपदा संरक्षण के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह प्रमुख क्षेत्रों पर रणनीतिक फोकस, सहयोगात्मक प्रयासों तथा सरकार-अनुकूल नीतियों के साथ, भारत पेटेंट फाइलिंग में निरंतर वृद्धि के लिये तैयार है, साथ ही यह चुनौतियों का समाधान करने तथा नवाचार एवं आर्थिक विकास के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने हेतु एक सक्रिय दृष्टिकोण के साथ भविष्य की संभावना है।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. विनिर्माण क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की हालिया नीतिगत पहल क्या है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2. 'सिंगल विंडो क्लीयरेंस' का लाभ प्रदान करना 
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D


प्रश्न 2. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और ट्रिप्स समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है।
  2. औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों को विनियमित करने के लिये नोडल एजेंसी है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (C)


प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है। 
  2. भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है। 
  3. पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने की पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (C)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

प्रश्न: वैश्वीकृत दुनिया में बौद्धिक संपदा अधिकार महत्त्व रखते हैं और मुकदमेबाज़ी का एक स्रोत है। कॉपीराइट, पेटेंट तथा ट्रेड सीक्रेट्स के बीच व्यापक रूप से अंतर कीजिये। (2014)