भारत-जापान सहयोग | 16 Jul 2020
संदर्भ:
हाल ही में भारत और जापान की नौ-सेनाओं द्वारा हिंद महासागर में संयुक्त युद्धाभ्यास का आयोजन किया गया। जापान समुद्री आत्मरक्षा बल (Japan Maritime Self Defense Force) द्वारा इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की नौ-सेनाओं के बीच परस्पर समन्वय बढ़ाना था। इस युद्धाभ्यास में दोनों पक्षों की तरफ से दो-दो युद्धपोतों ने हिस्सा लिया था। भारत और जापान के बीच नौसैनिक अभ्यास अब नियमित हो गया है परंतु इस युद्धाभ्यास को लद्दाख में भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध से जोड़कर देखा जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- इस संयुक्त युद्धाभ्यास में भारत की तरफ से आईएनएस राणा (INS Rana) और आईएनएस कुलिश (INS Kulish) तथा जापान की तरफ से जेएस काशिमा (JS Kashima)और जेएस शिमायुकि (JS Shimayuki) ने भाग लिया।
- नई दिल्ली स्थित जापानी दूतावास के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में दोनों देशों के बीच आयोजित यह 15वाँ संयुक्त सैन्य अभ्यास था।
- हाल के वर्षों में भारत और जापान की नौ-सेनाएँ प्रमुख साझीदार बनकर उभरी हैं, दोनों देशों के बीच समय-समय द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास का आयोजन किया जाता है और ‘मालाबार नौसैनिक युद्धाभ्यास’ के तहत अमेरिका के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास में शामिल होती हैं।
- जापान ने चीन के साथ डोकलाम विवाद के समय भारत का समर्थन किया था
भारत-जापान संबंधों में प्रगति:
- भारत को पोखरण-II (वर्ष 1998) परमाणु परीक्षण के समय जापान से काफी विरोध का सामना करना पड़ा और जापान इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र तक ले जाने के लिये भी तैयार था।
- परंतु पिछले 22 वर्षों में भारत-जापान संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है और विशेष रूप से रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग में भी वृद्धि हुई है।
- जापान और भारत के संबंधों की मज़बूती का मुख्य कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के प्रति दोनों का साझा दृष्टिकोण तथा क्षेत्र की समान सुरक्षा चुनौतियाँ हैं।
- भारत और जापान दोनों ही देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य है। साथ ही दोनों देश G-4 समूह (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) के सदस्य हैं, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ( United Nations Security Council-UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिये एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं।
- मई 2019 में भारत और जापान दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और फिलीपींस के साथ संयुक्त नौसैनिक युद्धाभ्यास में भी शामिल हुए थे।
- इसके अतिरिक्त दोनों देशों की वायु सेनाओं के द्वारा “शिन्यु मैत्री” (Shinyuu Maitri) और थल सेनाओं द्वारा ‘धर्म गार्जियन’ (DHARMA GUARDIAN) नामक संयुक्त सैन्य अभ्यास का आयोजन किया जाता है।
भारत-जापान द्विपक्षीय सहयोग:
- भारत-जापान एसोसिएशन की स्थापना वर्ष 1903 में की गई थी और वर्तमान में यह जापान में सबसे पुराना अंतरराष्ट्रीय मैत्री निकाय है।
- भारत की स्वतंत्रता के पश्चात वर्ष 1957 में जापानी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा और इसी वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री की जापान यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को नई मज़बूती प्रदान की गई।
- वर्तमान में भारत और जापान के बीच विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री स्तर की ‘2+2’ बैठकों का आयोजन किया जाता है।
- जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (Japan Bank for International Cooperation-JBIC) द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, अधिकांश जापानी विनिर्माण कंपनियों ने भारत को निवेश के लिये पहले या दूसरे स्थान पर रखा।
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में जापानी कंपनियों द्वारा भारत में किया गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2.965 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था।
- साथ ही जापान में भारत का निवेश लगभग 1 बिलियन तक पहुँच गया है।
- वर्ष 1958 से ही जापान द्वारा भारत को ऋण और अनुदान के माध्यम के माध्यम से आर्थिक सहयोग देता रहा है, वित्तीय वर्ष 2018-19 में विभिन्न योजनाओं के लिये जापान द्वारा भारत को लगभग 266 बिलियन अमेरिकी डॉलर ऋण उपलब्ध कराया गया।
- अगस्त 2011 में दोनों देशों के बीच ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
- ‘मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल’ (Mumbai to Ahmedabad High Speed Rail - MAHSR) परियोजना भारत-जापान संबंधों की मज़बूती का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों का महत्त्व:
- पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अन्य देशों का अनुसरण करने के बजाय सामान विचारधारा वाले देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने पर विशेष ज़ोर दिया हैं।
- वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की यात्राओं और कई महत्त्वपूर्ण समझौतों के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को नई उर्जा प्रदान की गई है।
- हाल के वर्षों में साझा प्रयासों के परिणामस्वरूप जापान भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशकर्त्ता देश बन गया है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों द्वारा भारत के समर्थन में अपने हित निहित हो सकते हैं, ऐसे में एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में जापान का सहयोग भारत के लिये एक बड़ी सामरिक उपलब्धि है।
- भारत-जापान की नौसेनाओं के साझा सैन्य अभ्यास बहुत ही लंबे समय से होता रहा है परंतु अब इस सहयोग को तकनीकी रूप से आगे जाते हुए दोनों देशों के बीच निगरानी पनडुब्बियों और समुद्री निगरानी विमानों से प्राप्त महत्त्वपूर्ण जानकारियों को साझा करने जैसे प्रयासों से क्षेत्र को सुरक्षा को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है।
चीन समस्या:
- भारत और जापान दोनों के लिये चीन एक साझा चुनौती रहा है, पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता क्षेत्र के अन्य देशों के लिये चिंता का विषय रही है।
- दक्षिण चीन सागर में चीन ने ‘नाइन डैश लाइन’ (Nine Dash Line) के माध्यम से अपने अधिकार क्षेत्र में विस्तार के दावे से मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों की समुद्री सीमाओं में प्रवेश करने का प्रयास किया है। अतः भारत और जापान को अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इससे सीख लेते हुए समय रहते सक्रियता बढ़ानी होगी।
‘मलक्का जलडमरूमध्य’ (Malacca Strait):
- जापान के सहयोग ने ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ (Malacca Strait) में भारत की उपस्थिति चीन के खिलाफ भारत के एक मज़बूत रणनीतिक बढ़त प्रदान कर सकती है।
- मलक्का जलडमरूमध्य की संवेदनशीलता को देखते हुए चीन ने तेल पाइपलाइनों का निर्माण, पाकिस्तान के ‘ग्वादर बंदरगाह’ का विकास और ‘चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे’ (China-Myanmar Economic Corridor- CMEC) जैसे प्रयासों को तेज़ किया है।
- एक अध्ययन के अनुसार, चीन द्वारा इन सभी परियोजनाओं के विकास के बावज़ूद भी वर्ष 2053 तक चीन के लगभग 50% तेल की ढुलाई हिंद महासागर क्षेत्र से होगी, ऐसे में मलक्का जलडमरूमध्य चीन के लिये एक संवेदनशील क्षेत्र बना रहेगा।
क्वाड (Quad):
- पिछले कुछ वर्षों में चीन की आक्रामकता की वृद्धि के परिणामस्वरूप क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) अधिक सक्रिय हुए है।
- ‘क्वाड प्लस’ (Quad Plus) में भी इंडोनेशिया, वियतनाम और फ्राँस जैसे देशों की रूचि बढ़ी है, जो क्षेत्र में भारत के लिये एक बड़ी रणनीतिक बढ़त है।
चुनौतियाँ:
- जापान, भारतीय बाज़ार को जापानी उद्योगों के लिये अधिक खोले जाने की मांग करता रहा है।
- भारत द्वारा ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से अलग होने का निर्णय पर जापान ने निराशा व्यक्त की थी।
- पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के कई प्रयासों के बाद भी जापान महत्त्वपूर्ण हथियारों और पनडुब्बियों की तकनीकी साझा करने या इन्हें साझा उपक्रमों के माध्यम से भारत में बनाए जाने के लिये सहमत नहीं हुआ है।
समाधान:
- भारत महत्त्वपूर्ण तकनीकों और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता को कम कर ‘स्किल इंडिया प्रोग्राम' (Skill India Program) तथा ‘मेक इन इंडिया’ (Make In India) जैसे कार्यक्रमों के तहत जापान के सहयोग से द्विपक्षीय संबंधों को अधिक मज़बूत किया जा सकता है।
- अमेरिका और चीन की तुलना में भारत-जापान द्विपक्षीय व्यापार बहुत कम है, ऐसे में दोनों देशों को मिलकर एक दूसरे की क्षमता के अनुरूप इस दिशा में भी आवश्यक सुधार करने चाहिये।
- जापान भारत में ऑटोमोबाइल, दवा और इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, परंतु सरकार को जापान में भारतीय कंपनियों की सक्रियता को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।
आगे की राह:
- भारत और जापान द्वारा चौथी औद्योगिक क्रांति का लाभ उठाने के लिये उच्च तकनीकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता को बनाए रखने और इस क्षेत्र में दोनों देशों के साझा हितों की रक्षा के लिये भारत तथा जापान के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना बहुत अधिक आवश्यक है।
- भारत सरकार को जापान से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाने के लिये पनडुब्बियों और अन्य रणनीतिक तकनीकों के आयात के लिये प्रयासों को तेज़ करना चाहिये।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता नियंत्रित के लिये क्षेत्र के प्रभावित देशों द्वारा साझा सहयोग में वृद्धि की जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
जापान विश्व के उन कुछ देशों में शामिल है जिनके साथ भारत का कोई बड़ा विवाद नहीं रहा है। भारत-जापान संबंधों के इतिहास को छठी शताब्दी में जापान में बौद्ध धर्म की शुरुआत के साथ जोड़ा जाता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों निरंतर रूप से प्रगति हुई है। हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता को देखते हुए दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। भारत-जापान सैन्य सहयोग में वृद्धि से क्षेत्र में चीन के बढ़ती चुनौती को नियंत्रित करने के लिये बहुत आवश्यक है। साथ ही दवा उद्योग, तकनीकी और अन्य महत्त्वपूर्ण तथा रणनीतिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ा कर चीन पर निर्भरता को कम करने एवं भारत के आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होगी।
अभ्यास प्रश्न: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को नियंत्रित करने में भारत-जापान द्विपक्षीय सहयोग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।