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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंडोनेशिया के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप

  • 02 Apr 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

नाइन-डैश लाइन, 

मेन्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर विवाद, भारतीय एक्ट ईस्ट नीति की चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर में स्थित अन्य देशों की समुद्री सीमाओं में चीनी मछुआरों और तटरक्षकों की गतिविधियों में वृद्धि हुई है। चीन का बढ़ता हस्तक्षेप इस क्षेत्र में मछुआरों के साथ-साथ देशों की संप्रभु सरकारों के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है। 

Indonesia

मुख्य बिंदु:   

  • पिछले कुछ वर्षों में तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में विकास के साथ ही चीन ने अपनी सैन्य शक्ति में भी महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है और इसके प्रयोग से वह क्षेत्र में अपनी सीमा के विस्तार के लिये करता रहा है।
  • फरवरी 2020 में चीनी तटरक्षकों के सहयोग से चीन के मछुआरों ने इंडोनेशिया के नातुना सागर क्षेत्र में प्रवेश किया जिसके कारण स्थानीय मछुआरों को पीछे हटना पड़ा।
  • हालाँकि चीन स्वयं नातुना सागर क्षेत्र पर इंडोनेशिया के अधिकार को स्वीकार करता है परंतु चीनी विदेश मंत्रालय इसे ‘ट्रेडिशनल फिशिंग ग्राउंड (Traditional Fishing Ground) बताता है।
  • इंडोनेशिया की समुद्री सीमा में प्रवेश कर चीन के मछुआरे अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन तो करते ही हैं साथ ही चीनी मछुआरों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले स्टील उपकरण समुद्री जैव प्रणाली को भी नष्ट कर देते हैं।

इंडोनेशिया की प्रतिक्रिया: 

  • जनवरी 2020, में नातुना द्वीपसमूह की यात्रा के दौरान इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने क्षेत्र में अपने अधिकार और इंडोनेशिया की संप्रभुता की बात को दोहराया था।
  • इस दौरान इंडोनेशिया की वायु सेना और नौसेना ने क्षेत्र में अपनी उपस्थिति के माध्यम से चीन को कड़ा संदेश देने का प्रयास किया।
  • स्थानीय लोगों के अनुसार, इंडोनेशियाई राष्ट्रपति के दौरे के अगले ही दिन चीनी मछुआरे और चीनी तट रक्षक पुनः क्षेत्र में वापस आ गए और वे यहाँ कई दिनों तक रहे।
  • हालाँकि इंडोनेशिया के मत्स्य मंत्री (Fisheries Minister) ने इंडोनेशिया की समुद्री सीमा में किसी भी प्रकार के चीनी हस्तक्षेप से इनकार किया है।         

दक्षिण चीन सागर और इन-डैश लाइन विवाद

(South China Sea and Nine-Dash Line Dispute):

  • एक अनुमान के अनुसार, विश्व के कुल समुद्री व्यापार का 30% दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है।
  • वर्ष 2017 में इस समुद्री मार्ग से प्रतिवर्ष होने वाले व्यापार की कीमत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक बताई गई थी। 
  • मलक्का जलसंधि (Malacca Strait) से होते हुए यह क्षेत्र हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाला सबसे संक्षिप्त मार्ग प्रदान करता है।  
  • दक्षिण चीन सागर को समुद्री जैव-विविधता के साथ ही खनिज तेल और प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार के रूप में देखा जाता है।  
  • वर्ष 1949 से ही चीन ‘नाइन-डैश लाइन’ (क्षेत्र के मानचित्र पर चीन द्वारा खींची गई 9 आभासी रेखाएँ) के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के अधिकांश भाग (लगभग 80%) पर अपने अधिकार का दावा करता रहा है। 

वैश्विक प्रतिक्रिया:  

  • इंडोनेशिया के अलावा क्षेत्र के अन्य देशों जैसे- वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस आदि ने दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक हस्तक्षेप का विरोध किया है।  
  • वर्ष 2013 में फिलीपींस ने अपने समुद्री क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS), 1982 के तहत स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) में चुनौती दी।
  • PCA ने जुलाई 2016 के अपने फैसले में दक्षिण चीन सागर में चीन के हस्तक्षेप को गलत बताया।

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय

(Permanent Court of Arbitration- PCA):

  • स्थायी मध्यस्थता न्यायालय एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • इसकी स्थापना प्रथम ‘हेग शांति सम्मेलन’ (Hague Peace Conference) के दौरान वर्ष 1899 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य राष्ट्रों के बीच विवादों के निपटारे के लिये मध्यस्थता व अन्य सेवाएँ प्रदान करना था।
  • वर्तमान में विश्व के 122 देश इस संस्था से जुड़े हुए हैं।
  • भारत वर्ष 1950 में इस संस्था में शामिल हुआ था।  
  • इसका मुख्यालय हेग (Hague), नीदरलैंड में स्थित है।      
  • न्यायालय के अनुसार, फिलीपींस के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन है, साथ ही ऐसी गतिविधियाँ ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के भी खिलाफ हैं।  
  • PCA के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन इन निर्णय का विरोध करता है और वह इस निर्णय के आधार पर किसी भी दावे या कार्रवाई को स्वीकार नहीं करेगा।
  • क्षेत्र के देशों के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य देशों (जैसे-अमेरिका) ने दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक नीति का विरोध किया है।

भारत पर प्रभाव: 

  • हालाँकि भारत अन्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का समर्थन करता है, परंतु दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की कार्रवाई का प्रभाव भारत के व्यापारिक एवं सामरिक हितों पर पड़ सकता है।   
  • हाल के वर्षों में भारत ने अपनी एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत करने का प्रयास तेज़ किया है।  
  • इस पहल के तहत भारत ने क्षेत्र के कई देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया है।
  • उदाहरण के लिये वियतनाम ने दक्षिण चीन सागर के अपने अधिकार क्षेत्र में भारत को 7 तेल ब्लॉक (Oil Block) देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
  • इसके अतिरिक्त भारत ने ब्रूनेई के साथ भी ऊर्जा संधि पर हस्ताक्षर किये हैं।

आगे की राह:  

  • दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (United Nation) और आसियान (ASEAN) जैसे मंचों पर सामूहिक वैश्विक प्रयासों में में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • दक्षिण चीन सागर में चीनी मछुआरों द्वारा प्राकृतिक संपदा का अनियंत्रित दोहन और चीन सरकार द्वारा कृत्रिम द्वीपों के निर्माण आदि से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी क्षति हो रही है, अतः ऐसे मुद्दों को वैश्विक मंचों पर उठाया जाना चाहिये।
  • क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने के लिए भारत को क्वाड (QUAD) जैसे बहु-राष्ट्रीय समूहों के माध्यम से निरंतर संयुक्त नौ-सैनिक अभ्यासों का आयोजन करना चाहिये।          

स्रोत: द हिंदू

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