वन्यजीव ट्रैंक्विलाइज़ेशन | 08 Jan 2025

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में जीनत नामक तीन वर्ष की बाघिन को पश्चिम बंगाल के बांकुरा के जंगलों से बेहोश करके पकड़ लिया गया और उसे ओडिशा के सिमलीपाल बाघ अभयारण्य में स्थानांतरित किया गया। 

  • ट्रैंक्विलाइज़ेशन न केवल संरक्षण प्रयासों के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है बल्कि जीवों तथा मानव आबादी की सुरक्षा हेतु भी निर्णायक है। 

वन्यजीव ट्रैंक्विलाइज़ेशन क्या है?

  • परिचय:
    • वन्यजीव ट्रैंक्विलाइज़ेशन विभिन्न संरक्षण, अनुसंधान या बचाव उद्देश्यों हेतु सुरक्षित रूप से पकड़ने, नियंत्रित करने या स्थानांतरित करने हेतु जंगली जानवरों को विशिष्ट प्रशामक दवाओं का उपयोग करके बेहोश करने की प्रक्रिया है।
  • विनियमन:
  • विधियाँ और उपकरण:
    • डार्ट को दूर से ही चलाया जाता है, आमतौर पर डार्ट को आगे बढ़ाने के लिये संपीड़ित CO2 गैस का उपयोग किया जाता है।
    • उड़ान के दौरान सटीकता में सुधार करने के लिये डार्ट पर पंखों का एक गुच्छा या अन्य स्थिरीकरण सामग्री लगाई जाती है।
    • ट्रैंक्विलाइज़र गन और डार्ट: वन्यजीवों को बेहोश करने के लिये प्राथमिक उपकरण डार्ट गन है, जिसकी सहायता से प्रशामक औषधियों से भरी एक सिरिंज को लक्षित जानवर पर छोड़ा जाता है। 
    • डार्ट में अक्सर एक हाइपोडर्मिक सुई और एक बार्ब (काँटे या दाँत जैसी संरचना) लगा होता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि औषधि लक्षित जानवर की त्वचा के भीतर प्रभावी रूप से पहुँच जाए। 
  • औषधियों के प्रकार:
    • ओपिओइड (Opioids): M99 (एटॉर्फिन) जैसी दवाएँ, जिनका उपयोग हाथी और बाघ जैसे बड़े स्तनधारियों को स्थिर करने के लिये किया जाता है।
    • वन्यजीवों को प्रशान्त/बेहोश करने के लिये, मॉर्फिन का उपयोग कभी-कभी अन्य औषधियों के साथ संयोजन में किया जा सकता है। 
  • अल्फा-एड्रेनर्जिक ट्रैंक्विलाइज़र: ज़ाइलाज़िन (Xylazine) और केटामाइन (Ketamine) जैसी औषधियों का उपयोग आमतौर पर हिरण तथा बाघ जैसे जानवरों को प्रशान्त करने हेतु किया जाता है।
    • ज़ाइलाज़िन एक प्रशामक और मांसपेशी शिथिलक के रूप में कार्य करता है, जबकि केटामाइन असाहचर्य को प्रेरित करने तथा निश्चलता की अवधि को बढ़ाने में मदद करता है।
    • ये औषधियाँ अधिक नियंत्रित प्रशामक के रूप में कार्य करती हैं तथा इनमें प्रतिविष/एंटीडोट का उपयोग करके प्रभावों को विपरीत स्थिति में लाने की क्षमता भी होती है।
  • प्रतिवर्ती/रिवर्सल एजेंट: नालोक्सोन (Naloxone) जैसे विशिष्ट एंटीडोट का उपयोग ट्रैंक्विलाइज़ेशन (बेहोशी की अवस्था) के प्रभावों को समाप्त करने हेतु किया जाता है।
  • अनुप्रयोग:
    • संरक्षण एवं पुनर्वास: इसका उपयोग मानव-वन्यजीव संघर्ष क्षेत्रों से जानवरों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने या लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित अभ्यारण्यों में स्थानांतरित करने हेतु किया जाता है।
    • अनुसंधान एवं निगरानी: स्वास्थ्य आकलन, टैगिंग और प्रवासन प्रतिरूप/पैटर्न का अध्ययन करने हेतु जानवरों को पकड़ने के लिये प्रयुक्त किया जाता है।
    • बचाव कार्य/अभियान: घायल या फँसे हुए पशुओं को बचाने, पशु चिकित्सा देखभाल या पुनर्वास केंद्रों तक उनके परिवहन हेतु इसका उपयोग आवश्यक हो जाता है।

वन्यजीव संरक्षण के लिये भारत के प्रयास

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)    

प्रश्न. यदि किसी पौधे की विशिष्ट जाति को वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI में रखा गया है, तो इसका क्या तात्पर्य है? (2020)

(a) उस पौधे की खेती करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता है।
(b) ऐसे पौधे की खेती किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकती।
(c) यह एक आनुवंशिकतः रूपांतरित फसली पौधा है।
(d) ऐसा पौधा आक्रामक होता है और पारितंत्र के लिये हानिकारक होता है।

उत्तर: (a)