असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला | 09 Apr 2024
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
हाल ही में दिल्ली वन विभाग ने दुर्लभ देशी वृक्षों के संरक्षण हेतु असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में एक टिशू कल्चर लैब (ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला) की स्थापना के लिये पहल की है।
- लैब का प्राथमिक उद्देश्य दिल्ली के नियंत्रित वातावरण में लुप्तप्राय देशी वृक्षों को उगाना और आक्रामक प्रजातियों के कारण पुनर्जनन संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाली प्रजातियों के पौधों को पुनर्जीवित करना है।
ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला के बारे में जानने योग्य तथ्य:
- ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला:
- प्रयोगशाला इन-विट्रो पूर्ण विकसित पौधे (in-vitro fully grown plant) से पौधे के ऊतकों को निकालने में सक्षम होगी, जिससे एक ही वृक्ष से कई वृक्ष तैयार किये जा सकेंगे।
- इसके लिये वन विभाग, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) और वन अनुसंधान संस्थान (FRI) के वनस्पति विज्ञानियों तथा वैज्ञानिकों से सहायता लेगा।
- अन्य समान प्रयोगशालाएँ:
- नेशनल फैसिलिटी फॉर प्लांट टिशू कल्चर रिपोज़िटरी (NFPTCR) की स्थापना वर्ष 1986 में दिल्ली में नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज़ (NBPGR) में की गई थी।
- ये पाँच प्रकार के पौधों - कंद, शल्क कंद, मसाले, वृक्षारोपण फसलें, बागवानी फसलें और औषधीय तथा सुगंधित पौधों - पर टिशू कल्चर प्रयोग एवं शोध करते हैं।
- नेशनल फैसिलिटी फॉर प्लांट टिशू कल्चर रिपोज़िटरी (NFPTCR) की स्थापना वर्ष 1986 में दिल्ली में नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज़ (NBPGR) में की गई थी।
- अनुप्रयोग:
- अरावली योजना:
- कुल्लू (बाहरी वृक्ष), पलाश, दूधी और धौ जैसी ऊँचे तने वाले पौधों का पुनर्जनन आक्रामक प्रजातियों द्वारा बाधित होता है, जिसके परिणामस्वरूप जीवित रहने की दर कम होती है, बड़े पैमाने पर इसे केवल टिशू कल्चर विशेष रूप से शूट कल्चर (shoot culture) के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- यह प्रयोगशाला लुप्तप्राय औषधीय पौधों के संवर्द्धन में भी उपयोगी होगी।
- सफलता की कहानियाँ:
- टिशू कल्चर कृषि में अत्यधिक प्रभावी साबित हुआ है, विशेष रूप से केले, सेब, अनार और जेट्रोफा जैसी फसलों के साथ, जो पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में अधिक उपज प्रदान करता है।
- अरावली योजना:
- मुद्दे:
- जैवविविधता विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि आनुवंशिक एकरूपता और विशिष्ट रोगों की चपेट में आने से बचने के लिये क्लोनिंग को "अत्यंत दुर्लभ वृक्षों" तक सीमित किया जाना चाहिये।
- क्लोनिंग के परिणामस्वरूप प्रतिबंधित आनुवंशिक विविधता हो सकती है और एक ही पेड़ या पौधे के क्लोन बन सकते हैं।
- इससे बचने के लिये, किसी को अपने आप को एक ही बीज किस्म तक सीमित नहीं रखना चाहिये, इसके बजाय, कई पेड़ों के क्लोन को रोकने के लिये विभिन्न मूल बीज या बीज किस्मों का उपयोग करना चाहिये।
- क्लोनिंग के परिणामस्वरूप प्रतिबंधित आनुवंशिक विविधता हो सकती है और एक ही पेड़ या पौधे के क्लोन बन सकते हैं।
- विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली में आमतौर पर पाई जाने वाली खैर, ढाक और देसी बबूल जैसी प्रजातियाँ लुप्तप्राय या लगभग विलुप्त प्रजातियों के लिये संभावित लाभ के बावजूद, सार्वजनिक धन की बर्बादी कर सकती हैं।
- जैवविविधता विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि आनुवंशिक एकरूपता और विशिष्ट रोगों की चपेट में आने से बचने के लिये क्लोनिंग को "अत्यंत दुर्लभ वृक्षों" तक सीमित किया जाना चाहिये।
ऊतक संवर्द्धन क्या है?
- टिशू कल्चर को सूक्ष्म-प्रसार (micro-propagation) के रूप में भी जाना जाता है, इन-विट्रो टिशू का उपयोग करके एक मूल पौधे से कई पौधों का उत्पादन करने की अनुमति देता है जो एक नियंत्रित वातावरण के तहत ऊष्मायन किया जाता है।
- पादप ऊतक संवर्द्धन के प्रकार:
- कैलस कल्चर: इसमें एक्सप्लांट से कोशिकाओं (कैलस) के अविभेदित द्रव्यमान का विकास शामिल है।
- सेल सस्पेंशन कल्चर: एक तरल माध्यम में विशिष्ट कोशिकाओं या कोशिकाओं के निम्न समुच्चय का संवर्द्धन ।
- परागकोश/माइक्रोस्पोर कल्चर: परागकणों या परागकोषों से अगुणित पौधों के उत्पादन के लिये उपयोग किया जाता है।
- प्रोटोप्लास्ट कल्चर: इसने कोशिका भित्ति के बिना पादप कोशिकाओं को पृथक किया।
- पादप ऊतक संवर्द्धन के अनुप्रयोग
- सूक्ष्म प्रसार (Micropropagation): पौधों के ऊतकों के छोटे-छोटे टुकड़ों को संवर्द्धित करके पौधों में तेज़ी से क्लोनल वृद्धि करना।
- सोमा-क्लोनल विविधता (Soma-clonal Variation): इसमें पौधों की कोशिकाओं के बीच आनुवंशिक भिन्नता का अध्ययन होता है।
- ट्राँसज़ेनिक पौधे: पौधों की कोशिकाओं में विदेशी जीन (ट्रांसजेन) का परिचय और अभिव्यक्ति।
- उत्परिवर्तनों का प्रेरण और चयन: विशिष्ट लक्षणों हेतु उत्परिवर्तजन को प्रेरित करने के लिये उत्परिवर्तनों का उपयोग करना।
पशु ऊतक संवर्द्धन:
- पशु ऊतक संवर्द्धन एक उपयुक्त कृत्रिम वातावरण में जानवरों से पृथक कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों का इन-विट्रो रखरखाव और प्रसार है।
- पशु ऊतक संवर्द्धन में प्रयुक्त कोशिकाएँ आमतौर पर बहुकोशिकीय यूकेरियोट्स और उनकी स्थापित कोशिका रेखाओं से प्राप्त की जाती हैं।
- यह तकनीक कोशिका कार्यों, तंत्रों और अनुप्रयोगों के अध्ययन की अनुमति देती है।
- पशु ऊतक संवर्द्धन ने अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जो विभिन्न क्षेत्रों में कोशिका व्यवहार एवं अनुप्रयोगों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
असोला वन्यजीव अभ्यारण्य:
- असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य एक महत्त्वपूर्ण वन्यजीव गलियारे के अंत में स्थित है जो अलवर में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान से शुरू होता है और हरियाणा के मेवात, फरीदाबाद तथा गुरुग्राम ज़िलों से होकर गुजरता है।
- इस क्षेत्र में उल्लेखनीय दैनिक तापमान भिन्नता के साथ अर्धशुष्क जलवायु भी शामिल है।
- वन्यजीव अभयारण्य में वनस्पति मुख्य रूप से खुली काँटेदार झाड़ियाँ हैं। देशी पौधों में जेरोफाइटिक अनुकूलन जैसे काँटेदार उपांग, तथा मोम-लेपित, रसीले एवं टोमेंटोज़ पत्ते होते हैं।
- प्रमुख वन्यजीव प्रजातियों में मोर, कॉमन वुडश्राइक, सिरकीर मल्कोहा, नीलगाय, गोल्डन जैकल्स, चित्तीदार हिरण आदि शामिल हैं।
और पढ़ें… पादप ऊतक संवर्द्धन
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान प्रवृत्तियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |