सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट बूस्टर | 09 Apr 2022
हाल ही में भारत ने ओडिशा तट से दूर चांदीपुर में ‘एकीकृत परीक्षण रेंज’ (ITR) में एक मिसाइल प्रणाली- ‘सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट’ (SFDR) बूस्टर का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
- रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने वर्ष 2017 में सबसे पहले SFDR विकास करना शुरू किया था और वर्ष 2018 तथा वर्ष 2019 में भी सफल परीक्षण किये थे।
‘सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट’ (SFDR):
- परिचय:
- यह भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक मिसाइल प्रणोदन तकनीक है।
- SFDR तकनीक एक मिसाइल प्रणोदन प्रणाली है, जो ‘रैमजेट इंजन’ सिद्धांत की अवधारणा पर आधारित है।
- रैमजेट इंजन, एयर ब्रीदिंग जेट इंजन का ही एक रूप है जो वाहन की अग्र गति (Forward Motion) का उपयोग कर आने वाली हवा को बिना घूर्णन संपीडक (Rotating Compressor) के दहन (combustion) के लिये संपीड़ित करता है।
- रैमजेट में वाहन की अग्र गति का उपयोग करके उच्च दबाव उत्पन्न किया जाता है। प्रणोदन प्रणाली में लाई जाने वाली बाहरी हवा कार्यशील द्रव बन जाती है।
- रैमजेट तभी कार्य करता है, जब वाहन पहले से ही चल रहा हो; जब इंजन स्थिर हो तो रैमजेट कार्य नहीं कर सकता है।
- यह सिस्टम एक ठोस ईंधन वाले रैमजेट इंजन का उपयोग करता है।
- ठोस प्रणोदक रॉकेट के विपरीत रैमजेट उड़ान के दौरान वातावरण से ऑक्सीजन लेता है। इस प्रकार यह वज़न में हल्का और अधिक ईंधन ले जा सकता है।
- SFDA को रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला, हैदराबाद द्वारा अन्य डीआरडीओ प्रयोगशालाओं जैसे- अनुसंधान केंद्र इमारत, हैदराबाद और उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला, पुणे के सहयोग से विकसित किया गया है।
- महत्त्व:
- यह मिसाइल को सुपरसोनिक गति से बहुत लंबी दूरी पर हवाई खतरों से सुरक्षित करता है।
- वर्तमान में ऐसी तकनीक विश्व के कुछ गिने-चुने देशों के पास ही उपलब्ध है।
- हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें जो SFDR तकनीक का उपयोग करती हैं, लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम होती हैं क्योंकि उन्हें ऑक्सीडाइज़र (Oxidisers) अर्थात् वायुमंडल से ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
- SFDR पर आधारित मिसाइल सुपरसोनिक गति से उड़ान भरती है और उच्च गतिशीलता को सुनिश्चित करती है ताकि लक्षित विमान मिसाइल से दूर न जा सके।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO):
- DRDO के बारे में:
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है।
- यह अत्याधुनिक और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की स्थिति हासिल करने के लिये भारत को सशक्त बनाने की दृष्टि से कार्य करता है
- DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
- एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Programme- IGMDP) को विकसित करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- DRDO द्वारा हाल ही में किये गए कुछ परीक्षण:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. अग्नि-4 प्रक्षेपास्त्र के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a)
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