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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 दिसंबर, 2022

  • 20 Dec 2022
  • 6 min read

अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस

प्रतिवर्ष 20 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस (International Human Solidarity Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य अनेकता में एकता का जश्न मनाना और एकजुटता के महत्त्व के बारे में जागरूक करना है। संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी घोषणा के अनुसार, एकजुटता उन मूलभूत मूल्यों में से एक है जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों हेतु आवश्यक हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसंबर, 2005 को संकल्प 60/209 द्वारा मानव एकता को एकजुटता के मौलिक और सार्वभौमिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी थी, जो इक्कीसवीं सदी में विभिन्न जनसमुदायों के बीच संबंधों को दर्शाता है और इसी कारण प्रतिवर्ष 20 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। एकजुटता को साझा हितों और उद्देश्यों के बारे में जागरूकता के रूप में परिभाषित किया गया है जो एक समाज में एकता संबंधी मनोवैज्ञानिक भावना पैदा करता है। हेल्प4ह्यूमेन रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधने की पहल की है। यह संस्था हमेशा से देश में शांति, एकता और भाईचारे की भावना के प्रसार हेतु अग्रणीय भूमिका अदा करती रही है।

मोटा अनाज खाद्य उत्सव

मोटे अनाज के महत्त्व के संबंध में जागरुकता बढ़ाने के लिये कृषि मंत्रालय 20 दिसंबर, 2022 को संसद में सदस्‍यों के लिये मोटा अनाज खाद्य उत्‍सव का आयोजन कर रहा है। विश्‍व में अभी तक जनसंख्‍या में सबसे अधिक वृद्धि को देखते हुए वैश्विक कृषि खाद्य प्रणाली को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में बड़ी आबादी के भोजन के लिये मोटे अनाज सस्‍ता और पौष्टिक विकल्‍प हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने का प्रस्‍ताव पारित किया है। केंद्रीय खाद्य और किसान कल्‍याण मंत्री ने मोटे अनाज के उत्‍पादन का अर्थव्‍यवस्‍था और पर्यावरण पर सकारात्‍मक प्रभाव का उल्‍लेख किया। अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के आयोजन एवं मोटे अनाज के उत्‍पादन को बढ़ावा देने से वर्ष 2030 के सतत् विकास के एजेंडे में भी योगदान मिलेगा। मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। कृषि-जलवायु क्षेत्र, फसलों और किस्मों की एक निश्चित श्रेणी के लिये उपयुक्त प्रमुख जलवायु के संदर्भ में भूमि की एक इकाई है। ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर (Finger) बाजरा और अन्य कुटकी (Small Millets) जैसे- कोदो (Kodo), फॉक्सटेल (Foxtail), प्रोसो (Proso) और बार्नयार्ड (Barnyard) एक साथ मोटे अनाज कहलाते हैं। ज्वार, बाजरा, मक्का और छोटे बाजरा (बार्नयार्ड बाजरा, प्रोसो बाजरा, कोदो बाजरा और फॉक्सटेल बाजरा) को पोषक-अनाज भी कहा जाता है।

पाणिनी के 2500 वर्ष पुराने संस्कृत नियम का डीकोड

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के PhD छात्र डॉ. ऋषि राजपोपत ने 2500 वर्ष पुराने अष्टाध्यायी में व्याकरण की समस्या को हल किया है। ऋषि राजपोपत ने अपनी थीसिस, जिसका शीर्षक था 'इन पाणिनि, वी ट्रस्ट: डिस्कवरिंग द एल्गोरिथम फॉर रूल कंफ्लिक्ट रेज़ोल्यूशन इन द अष्टाध्यायी’, के साथ सफलता हासिल की है। इसे छठी या पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास संस्कृत के महान विद्वान पाणिनी ने लिखा था। 4000 सूत्रों वाला अष्टाध्यायी संस्कृत के पीछे के विज्ञान की व्याख्या करता है। अष्टाध्यायी में मूल शब्दों से नया शब्द बनाने के नियम मौजूद हैं। पाणिनि एक सम्मानित संस्कृत विद्वान, भाषाविद् और वैयाकरण थे, जो भारत में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास रहते थे। उन्हें "प्रथम वर्णनात्मक भाषाविद्" माना गया है और पश्चिमी विद्वानों द्वारा "भाषा विज्ञान के जनक" के रूप में स्थापित किया गया है। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण कृतियों में अष्टाध्यायी है, एक व्याकरण जो अनिवार्य रूप से संस्कृत भाषा को परिभाषित करता है। इसे संस्कृत के हर पहलू को नियंत्रित करने वाले बीजगणितीय नियमों के साथ एक निर्देशात्मक और जनरेटिव व्याकरण माना जाता है। व्याकरण की इतनी गहनता है कि सदियों से विद्वान इसके नियमों एवं उपनियमों के सही अनुप्रयोग पर काम नहीं कर पाए हैं।

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