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PMLA के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने हेतु पूर्व अनुमति

  • 11 Nov 2024
  • 6 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति को आवश्यक बताया गया था।

CrPC की धारा 197(1) क्या है?

  • इस अधिनियम के तहत सरकारी कर्मचारियों, न्यायाधीशों या मजिस्ट्रेटों पर आधिकारिक कर्त्तव्यों के दौरान किये गए कार्यों के संदर्भ में मुकदमा चलाने से पहले सरकार की पूर्व मंज़ूरी को अनिवार्य बनाया गया है। 
    • इसका उद्देश्य दुर्भावनापूर्ण अभियोजन को रोकने के साथ सद्भावनापूर्वक निर्णय की रक्षा करना है। केंद्र सरकार से जुड़े कर्मियों के लिये मंज़ूरी केंद्र सरकार से और राज्य के मामलों में राज्य सरकार से मिलनी चाहिये।
  • अपवाद: विशिष्ट अपराधों, विशेषकर भारतीय दंड संहिता, 1860 ( BNS, 2023) के तहत लिंग आधारित हिंसा एवं यौन अपराधों से जुड़े अपराधों में लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है।

PMLA और CrPC के बीच क्या संबंध है?

  • PMLA की धारा 65: इसके तहत PMLA मामलों पर CrPC के प्रावधानों को (जब तक कि वे PMLA के साथ विरोधाभासी न हों) लागू करने का प्रावधान किया गया है।
  • PMLA की धारा 71: इसके तहत प्रावधान है कि असंगतता के मामलों में PMLA प्रावधानों का अन्य विधियों पर अधिभावी प्राधिकार होगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: अपीलकर्त्ता प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने तर्क दिया था कि PMLA की धारा 71 (जो PMLA को अन्य कानूनों पर अधिभावी अधिकार देती है) से पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता को बाहर रखा जाना चाहिये। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस दावे को खारिज कर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 197(1) PMLA से असंगत नहीं है, इसलिये PMLA के तहत लोक सेवकों से संबंधित मामलों में इसका लागू होना आवश्यक है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि धारा 71 से धारा 197(1) को निरस्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करने से PMLA की धारा 65 निरर्थक हो जाएगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ: इससे PMLA मामलों में CrPC को लागू करने के संदर्भ में मानक स्थापित होने के साथ धारा 71 के तहत PMLA के अधिभावी प्राधिकार की सीमाएँ स्पष्ट हुई हैं।
    • यह निर्णय सरकार की सहमति के बिना PMLA के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने की  ED की क्षमता को सीमित करता है तथा उचित प्रक्रिया की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।  
    • सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय धन शोधन से निपटने के लिये सरकार के प्रयासों और लोक सेवकों के निष्पक्ष कानूनी प्रक्रियाओं के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।

नोट: CBI बनाम डॉ. आर.आर. किशोर केस, 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE ) अधिनियम, 1946 की धारा 6A (जिसमें संयुक्त सचिव रैंक और उससे उच्च स्तर के अधिकारियों को गिरफ्तार करने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता पर बल दिया गया) असंवैधानिक थी।   

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा कानून संविधान के अनुच्छेद 13(2) के तहत प्रारंभ से ही अमान्य है और धारा 6A वर्ष 2003 में अपने आरंभ से ही अमान्य है।

सिविल सेवकों के लिये संवैधानिक संरक्षण

  • संविधान का भाग XIV: संघ और राज्यों के अधीन सेवाओं से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 309: संसद और राज्य विधानसभाओं को सिविल सेवकों की भर्ती एवं सेवा शर्तों को विनियमित करने का अधिकार दिया गया है।
  • प्रसादपर्यंत का सिद्धांत: अनुच्छेद 310 में कहा गया है कि सिविल सेवक राष्ट्रपति या राज्यपाल की इच्छा पर पद धारण कर सकते हैं, लेकिन यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
  • अनुच्छेद 311: यह सिविल सेवकों के लिये दो प्रमुख सुरक्षा उपाय निर्धारित करता है।
    • पदच्युत या निराकरण केवल नियुक्ति प्राधिकारी या उससे उच्च पद के प्राधिकारी द्वारा ही किया जा सकता है।
    • पदच्युत या रैंक में अवनति के लिये बचाव हेतु उचित अवसर के साथ जाँच की आवश्यकता होती है।

और पढ़ें: सर्वोच्च न्यायालय ने PMLA मामलों में ED की गिरफ्तारी की शक्तियों को सीमित किया

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