तेलंगाना में मिले इक्ष्वाकु काल के सिक्के | 25 Apr 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में तेलंगाना के पुरातत्त्व विभाग ने हैदराबाद से 110 किमी दूर स्थित प्रसिद्ध बौद्ध विरासत स्थल फणीगिरी में एक मिट्टी के बर्तन में 3,730 सीसे के सिक्कों के भंडार की खोज की।
उत्खनन के निष्कर्ष क्या हैं?
- हालिया उत्खनन:
- सबसे दक्षिणी मठ कक्ष (monastic cell) में ज़मीनी स्तर से 40 सेमी की गहराई पर 16.7 सेमी व्यास और 15 सेमी ऊँचाई का एक गोलाकार बर्तन मिला।
- घड़े का मुँह बाहर की तरफ एक उथले घड़े से और अंदर की तरफ एक टूटे हुए कटोरे के आधार से ढँका हुआ था तथा इसमें औसतन 2.3 ग्राम वज़न वाले 3730 सिक्के थे।
- पुरातत्वविदों का निष्कर्ष है कि सभी सिक्के, जो देखने में समान हैं तथा सीसे से बने हैं, जिनके अग्र भाग पर हाथी का प्रतीक और पश्च भाग पर उज्जैन का प्रतीक है, वे स्तर ग्राफिकल व टाइपोलॉज़िकल अध्ययनों के आधार पर इक्ष्वाकु काल (तीसरी-चौथी शताब्दी ईस्वी) से संबंधित हैं।
- मिलने वालीं अन्य कलाकृतियाँ:
- खुदाई के दौरान पत्थर और काँच के मोती, शंख की चूड़ियों के टुकड़े, प्लास्टर की आकृतियाँ, टूटी चूना पत्थर की मूर्तियाँ, खिलौना गाड़ी के पहिये, लोहे की कीलें व मिट्टी के बर्तन सहित कई अन्य मूल्यवान सांस्कृतिक पुरावशेष एवं संरचनात्मक अवशेष भी पाए गए।
- पूर्व उत्खनन:
- फणीगिरि में, उत्खनन क्रमानुसार सात चरणों तक किया गया।
- फणीगिरि में इन उत्खननों से एक महास्तूप, अर्द्धवृत्ताकार चैत्य गृह, मन्नत स्तूप, स्तंभों वाले मण्डली हॉल, विहार, विभिन्न स्तरों पर सीढ़ियों वाले मंच, अष्टकोणीय स्तूप चैत्य प्राप्त हुए।
- एक 24-स्तंभों वाला मंडप, एक गोलाकार चैत्य, और टेराकोटा मोती, अर्द्ध-कीमती मोती, लोहे की वस्तुएँ, शंख व चूड़ी के टुकड़े, सिक्के, महीन चूने की आकृतियाँ, ब्राह्मी लेबल शिलालेख तथा एक पवित्र ताबूत अवशेष सहित अन्य सांस्कृतिक वस्तुएँ भी मिलीं।
- सभी सांस्कृतिक वस्तुएँ पहली शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ई.पू. तक की बताई जा सकती हैं।
- फणीगिरि में, उत्खनन क्रमानुसार सात चरणों तक किया गया।
- फणीगिरी गाँव का महत्त्व:
- फणीगिरी गाँव हैदराबाद में मूसी नदी की सहायक नदी बिक्केरू नदी के बाएँ तट पर स्थित है।
- यह उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाले प्राचीन व्यापार मार्ग (दक्षिणापथ) पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित महत्त्वपूर्ण बौद्ध मठों में से एक है।
- व्युत्पत्तिशास्त्र (Etymologically) के अनुसार, फणीगिरी गाँव का नाम गाँव के उत्तरी किनारे पर स्थित एक पहाड़ी के आकार से लिया गया है, जिसका आकार साँप के फन के समान है।
- संस्कृत में फणी का अर्थ है साँप और गिरि का अर्थ है पहाड़ी।
- यह गाँव पूर्व/आद्य-ऐतिहासिक, प्रारंभिक ऐतिहासिक, प्रारंभिक मध्ययुगीन और आसफ जाही काल (वर्ष 1724-1948) के निवासियों के अधिग्रहण में था।
- इस गाँव में 1000 ईसा पूर्व से 18वीं शताब्दी के अंत तक जीवन था।
- यह आंध्र प्रदेश के विकसित बौद्धमठ अमरावती और विजयपुरी (नागार्जुनकोंडा) के मठों से भी पूर्व का है।
- फणीगिरी के प्रारंभिक ऐतिहासिक स्थल को पहली बार निज़ाम के काल के दौरान खोजा और संरक्षित किया गया था तथा इसकी खुदाई वर्ष 1941 से वर्ष 1944 तक श्री खाजा महामद अहमद द्वारा की गई थी।
- क्षेत्र में अन्य बौद्ध स्थल:
- फणीगिरि के पास कई बौद्ध स्थल हैं, जैसे वर्द्धमानुकोटा, गजुला बंदा, तिरुमलगिरि, नगरम, सिंगाराम, अरावापल्ली, अय्यावरिपल्ली, अरलागड्डागुडेम और येलेश्वरम।
सिक्कों का स्तरिक (Stratigraphical) तथा प्रतीकात्मक (Typological) अध्ययन:
ये सिक्कों के कालानुक्रमिक और सांस्कृतिक संदर्भ को समझने के लिये मुद्राशास्त्र (सिक्कों का अध्ययन) में उपयोग की जाने वाली विधियाँ हैं।
- स्तरिक अध्ययन:
- इस विधि में उस परत या स्तर का अध्ययन करना शामिल है, जिसमें पुरातात्विक उत्खनन के दौरान सिक्के पाए जाते हैं।
- इसमें स्तरों या परतों का विश्लेषण करके, शोधकर्त्ता एक ही परत में पाए गए अन्य कलाकृतियों की तुलना में सिक्कों की सापेक्ष आयु निर्धारित कर सकते हैं।
- इससे सिक्कों के कालानुक्रमिक क्रम को स्थापित करने और किसी स्थल के इतिहास को समझने में सहायता मिलती है।
- प्रतीकात्मक अध्ययन:
- प्रतीकात्मक सिक्कों का उनकी भौतिक विशेषताओं, जैसे डिज़ाइन, धातु संरचना, आकार और शिलालेखों के आधार पर वर्गीकरण है।
- इन विशेषताओं की तुलना करके, मुद्राशास्त्री सिक्कों को उनके प्रकार और उपप्रकारों में समूहित करते हैं।
- प्रतीकात्मक अध्ययन सिक्कों की उत्पत्ति, ढलाई की विशेषता और प्रचालन अवधि (Period Of Circulation) की पहचान करने में सहायक है।
इक्ष्वाकु काल के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- इक्ष्वाकु राजवंश, जिसका नाम प्रसिद्ध राजा इक्ष्वाकु के नाम पर रखा गया, तीसरी ईस्वी चौथी शताब्दी ईस्वी के बीच दक्षिण भारत में फला-फूला।
- इक्ष्वाकुओं का ज्ञान मुख्यतः शिलालेखों, सिक्कों एवं पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त होता है।
- साक्ष्यों से ज्ञात होता हैं कि राजवंश का उदय तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास विजयपुरी क्षेत्र (आधुनिक बेल्लारी ज़िला, कर्नाटक) में हुआ था।
- विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण:
- इक्ष्वाकु राजा कान्हा (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) के अधीन प्रमुखता से उभरे, जिन्होंने अपने क्षेत्र का उल्लेखनीय रूप से विस्तार किया।
- कान्हा की विस्तार क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से शामिल थे, जिससे एक दुर्जेय क्षेत्रीय शक्ति स्थापित हुई।
- सांस्कृतिक एवं आर्थिक योगदान:
- राजवंश ने सक्रिय रूप से बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, जिससे कंगनहल्ली तथा शंकरम जैसे शानदार स्तूपों एवं मठों का निर्माण हुआ।
- बौद्ध प्रतीकों एवं क्षेत्रीय देवताओं की विशेषता वाले इक्ष्वाकु सिक्के इस युग के दौरान व्यापक रूप से प्रसारित हुए थे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के इतिहास के संदर्भ में, ‘कुल्यावाप’ तथा ‘द्रोणवाप’ शब्द क्या निर्दिष्ट करते हैं? (a) भू-माप उत्तर: (a) प्रश्न. मध्यकालीन भारत में, शब्द ‘‘फणम’’ किसे निर्दिष्ट करता था? (a) पहनावा उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आप इस विचार को, कि गुप्तकालीन सिक्काशास्त्रीय कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत दर्शनीय नहीं है, किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे ? (150 शब्द) (2017) |