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पेपर 1


भारतीय विरासत और संस्कृति

शैल चित्र (भाग- 2)

  • 26 Mar 2021
  • 18 min read

रॉक-कट वास्तुकला 

परिचय:

  • रॉक-कट वास्तुकला (Rock-Cut Architecture) शैल चित्र का एक प्रकार है जिसमें ठोस प्राकृतिक चट्टान पर नक्काशी करके एक संरचना बनाई जाती है।
  • गुफा मंदिर और मठ भारत के कई हिस्सों में पाए जाते हैं, लेकिन पश्चिमी दक्कन क्षेत्र में सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध कृत्रिम गुफाओं का निर्माण किया गया था।
  • इन गुफाओं का निर्माण सातवाहन शासकों और उनके उत्तराधिकारियों के शासन के दौरान किया गया था।

समयसीमा:

  • इस वास्तुकला के तीन निश्चित चरण थे:
    • सबसे पुराना काल-निर्धारण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक का है।
    • दूसरा 5वीं से 7वीं शताब्दी तक। 
    • अंतिम चरण 7वीं से 10वीं शताब्दी तक।

रॉक-कट का महत्त्व:

  • रॉक-कट वास्तुकला, भारतीय वास्तुकला के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि यह प्राचीन भारतीय कला का सबसे शानदार नमूना पेश करती है।
  • अधिकांश रॉक-कट संरचनाएँ विभिन्न धर्मों और धार्मिक गतिविधियों के साथ निकटता से जुड़ी हुई थीं।
  • प्रार्थना और निवास उद्देश्यों के लिये बौद्ध भिक्षुओं द्वारा कई गुफाओं का निर्माण किया गया था।
  • रॉक-कट वास्तुकला कई मायनों में पारंपरिक इमारतों से अलग है।
    • यह वास्तुकला होने के बावजूद मूर्तिकला के समान है, क्योंकि ठोस चट्टानों को काटकर इन संरचनाओं का निर्माण किया गया था।
  • वास्तुकला को रॉक-कट गुफाओं और रॉक-कट मंदिर वास्तुकला में वर्गीकृत किया गया है।

रॉक-कट गुफाएँ

  • मौर्य काल: भारत में सबसे प्रारंभिक रॉक-कट गुफाओं के निर्माण का श्रेय मौर्य काल को जाता है, मुख्य रूप से अशोक (273-232 ईसा पूर्व) और उनके पौत्र दशरथ को।
    • इस अवधि में गुफाओं का उपयोग आमतौर पर जैन और बौद्ध भिक्षुओं द्वारा विहार के रूप में किया जाता था।
      • गुफाओं का उपयोग पहले आजीवक संप्रदाय और बाद में बौद्धों द्वारा मठों के रूप में किया गया था।
    • बिहार में बराबर और नागार्जुनी गुफाएँ (Barabar caves and Nagarjuni caves) अशोक के पौत्र दशरथ के समय में बनाई गई थीं।
  • मौर्योत्तर काल : मौर्योत्तर काल में शैल गुफाओं का निर्माण जारी रहा। हालाँकि इस अवधि में विहार और चैत्य कक्ष का विकास देखा गया।
    • चैत्य कक्ष मुख्य रूप से समतल छतों वाले चतुष्कोणीय कक्ष थे और प्रार्थना कक्ष के रूप में उपयोग किये जाते थे।
    • गुफाओं में बारिश से बचने के लिये आँगन और पत्थरों के आवरण वाली दीवारें भी थीं और इन्हें मानव तथा जानवरों की आकृतियों से सजाया गया था।
    • उदाहरण : कार्ले का चैत्य हॉल, अजंता की गुफाएँ (29 गुफाएँ- 25 विहार + 4 चैत्य) आदि।
  • गुप्त काल: चौथी शताब्दी में हुए गुप्त साम्राज्य के उद्भव को अक्सर "भारतीय वास्तुकला का स्वर्णिम युग" कहा जाता है।
    • गुप्त काल के दौरान गुफाओं का स्थापत्य विकास निरंतर बना रहा।
    • हालाँकि गुफाओं की दीवारों पर भित्ति चित्रों का उपयोग इस काल की एक अतिरिक्त विशेषता के रूप में सामने आई।
  • गुप्त काल की महत्त्वपूर्ण गुफाएँ
    • उदयगिरी की गुफाएँ: यह मध्य प्रदेश में विदिशा के पास स्थित हैं। 
    • यहाँ से प्राप्त लेखों के अनुसार, इन गुफाओं का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमार गुप्त प्रथम के समय में हुआ था।
    • यहाँ कुल 20 गुफाएँ हैं। ये ब्राह्मण धर्म से संबंधित हैं।
      • प्रायः प्रत्येक गुफा में वैदिक और पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
      • गुफा संख्या 5 में भगवान विष्णु के वाराह अवतार की मूर्ति है जिसे गुप्त कला का एक सर्वाधिक उपयुक्त उदाहरण माना जाता है।
      • वाराह अवतार की कहानी भगवान विष्णु द्वारा देवी पृथ्वी को हिरण्याक्ष राक्षस से बचाने से संबंधित है। गुप्त राजाओं द्वारा उनकी भूमि (पृथ्वी) को सभी बुराइयों से बचाने के संकल्प को एक चित्र के रूप में दर्शाया गया है। इन गुफा मंदिरों को भारत में धार्मिक वास्तुकला का सबसे अच्छा और प्रारंभिक उदाहरण माना जाता है।
    • अजंता की गुफाएँ: अजंता महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद ज़िले में वाघोरा नदी के पास सह्याद्रि पर्वतमाला में शैल चित्र गुफाओं की एक शृंखला है।
    • इन गुफाओं का निर्माण चौथी शताब्दी में ज्वालामुखी चट्टानों को काटकर किया गया था।
      • इसमें 29 गुफाओं का एक समूह है, जो घोड़े की नाल के आकार में उकेरी गई हैं।
        • इनमें से 25 को विहारों या आवासीय गुफाओं के रूप में तथा 4 को चैत्य या प्रार्थना स्थलों के रूप में प्रयोग किया जाता था।
    • एलोरा की गुफाएँ: एलोरा गुफाएँ गुफा-वास्तुकला का एक और महत्त्वपूर्ण स्थल है।
      • यह स्थल अजंता की गुफाओं से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
      • यह 34 गुफाओं का एक समूह है, जिसमें से 17 ब्राह्मणी शैली, 12 बौद्ध शैली और 5 जैन शैली की गुफाएँ हैं।
      • इन गुफाओं का निर्माण 5वीं से 11वीं शताब्दी के बीच किया गया था।
    • बाघ की गुफाएँ: यह विंध्य शृंखला में नर्मदा की सहायक बाघ नदी के तट पर स्थित है। 
    • बाघ एक गाँव है, जो बाघ नदी के तट पर मांडू (मध्य प्रदेश) से लगभग 30 किमी. पश्चिम में है।
    • ये गुफाएँ लगभग छठी शताब्दी में विकसित की गई 9 बौद्ध गुफाओं का एक समूह है।
      • यह वास्तुशास्त्रीय रूप से अजंता की गुफाओं के समान ही है।
      • यहाँ उल्लेखनीय और रोचक शैल चित्र मंदिर और मठ हैं।
    • आधुनिक समय में इन गुफाओं को पहली बार वर्ष 1818 में खोजा गया था।

अन्य महत्त्वपूर्ण रॉक-कट गुफाएँ:

  • उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएँ (ओडिशा): इन गुफाओं को भुवनेश्वर के पास ईसा पूर्व पहली-दूसरी शताब्दी में कलिंग नरेश खारवेल (Kalinga King Kharavela) के शासन में बनाया गया था।
    • गुफा परिसर में मानव निर्मित और प्राकृतिक गुफाएँ हैं जो संभवतः जैन भिक्षुओं के निवास के लिये बनाई गई थीं।
    • उदयगिरि की पहाड़ी में 18 और खंडगिरि में 15 गुफाएँ हैं।
    • उदयगिरि की गुफाएँ हाथीगुंफा शिलालेख के लिये प्रसिद्ध हैं जिसे ब्राह्मी लिपि में उकेरा गया है।

सित्तनवासल गुफाएँ (अरिवार कोइल):

  • तमिलनाडु में पुदुकोट्टई शहर से 16 किमी. उत्तर पश्चिम में स्थित ये प्रसिद्ध रॉक-कट गुफाएँ जैन मंदिरों में चित्रकारी के लिये जानी जाती हैं।

जोगीमारा गुफाएँ:

  • यह छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले में स्थित एक कृत्रिम नक्काशीदार गुफा है।
  • यह लगभग 1000-300 ईसा पूर्व का है और इसमें ब्राह्मी लिपि में एक प्रेम कहानी के कुछ चित्र और शिलालेख हैं।
  • जोगीमारा भारतीय चित्रकला की निरंतरता का प्रतीक है।
  • इन गुफाओं को रंगभूमि (Amphitheatre) से लगाव के लिये जाना जाता है और कमरे को सजाने के लिये पेंटिंग बनाई गई थी।

नासिक की गुफाएँ:

  • यह 24 बौद्ध गुफाओं (हीनयान काल) का एक समूह है, जिसे "पांडव लेनि (Pandav Leni)" के नाम से भी जाना जाता है, इसे पहली शताब्दी के दौरान विकसित किया गया था।
    • ये गुफाएँ हीनयान काल की हैं। हालाँकि बाद में इन गुफाओं में महायान काल का प्रभाव भी देखा जा सकता है।
    • महायान बौद्ध धर्म के प्रभाव का प्रतिनिधित्व करने वाली इन गुफाओं के अंदर बुद्ध की मूर्तियाँ भी खुदी हुई थीं।
  • निर्माण स्थल पर पानी के प्रबंधन की एक उत्कृष्ट प्रणाली को भी दर्शाया गया है जो ठोस चट्टानों से तराशे गए पानी के टैंकों की उपस्थिति का संकेत देता है।

रॉक-कट मंदिर वास्तुकला

परिचय:

  • वर्गाकार गर्भगृह और खंभों से युक्त द्वारमंडप के विकास के साथ गुप्त काल में मंदिरों की वास्तुकला का आविर्भाव हुआ। प्रारंभिक चरणों में मंदिर सपाट छत वाले, एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए होते थे।
  • पल्लव राजवंश के वास्तुकारों ने मंदिरों के समान अखंड संरचनाएँ बनाने के लिये शैल  नक्काशी की शुरुआत की।

दक्षिण भारत में रॉक-कट मंदिर वास्तुकला:

  • दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला पल्लव शासक महेंद्रवर्मन के अधीन शुरू हुई थी।

पल्लव वंश के दौरान विकसित मंदिरों में व्यक्तिगत शासकों के शैलीगत रुचि को प्रतिबिंबित किया और उन्हें चार चरणों में कालानुक्रमिक रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • महेंद्र समूह: यह पल्लव मंदिर वास्तुकला का पहला चरण था।
    • महेंद्रवर्मन के शासन में बनाए गए मंदिर मूल रूप से रॉक-कट मंदिर थे।
    • उसके अधीन निर्मित मंदिरों को मंडप के रूप में जाना जाता था जबकि नागर शैली में मंडप का अर्थ केवल सभा-हॉल होता था।
  • नरसिंह समूह: इसे दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला के विकास का दूसरा चरण कहा जाता है।
    • रॉक-कट मंदिरों को जटिल मूर्तियों द्वारा सजाया गया था।
    • मंडप को अलग-अलग रथों में विभाजित क्या गया।
    • सबसे बड़े रथ को धर्मराज रथ कहा जाता था, जबकि सबसे छोटे रथ को द्रौपदी रथ कहा जाता था।
  • राजसिंह समूह और नंदीवर्मन समूह: इसे मंदिरों के विकास का तीसरा और चौथा चरण कहा जाता है।
    • वास्तविक संरचनात्मक मंदिरों के विकास ने रॉक-कट मंदिरों को प्रतिस्थापित किया।

महत्त्वपूर्ण रॉक-कट मंदिर :

  • कैलाश मंदिर: यह एक शैल चित्र मंदिर परिसर है, जो एलोरा गुफाओं (गुफा संख्या- 16) में भगवान शिव को समर्पित है।
    • यह राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम (8वीं शताब्दी) के संरक्षण में विकसित किया गया था और इसे एकाश्म (Monolith) चट्टान से बनाया गया है और यहाँ एक आँगन भी है।
    • कैलाश मंदिर की दीवार पर एक मूर्ति भी है जिसमें रावण को कैलाश पर्वत को हिलाते हुए दर्शाया गया है। इसे भारतीय मूर्तिकला की उत्कृष्ट कृतियों में से एक माना जाता है।
    • इसे विश्व के सबसे बड़े रॉक-कट मठ-मंदिर गुफा परिसरों में गिना जाता है और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में चिह्नित किया गया है।
    • मंदिर में रामायण और महाभारत जैसे दो मुख्य हिंदू महाकाव्यों को दर्शाते हुए उभरी हुई नक्काशी पैनलों सहित उत्कृष्ट वास्तुशिल्प कार्यों को दिखाया गया है।
    • इस गुफा मंदिर में स्थापत्य की पल्लव और चालुक्य शैलियाँ देखने को मिलती हैं जो हिंदू पुराणों में देवी-देवताओं सहित नक्काशीदार मूर्तियों से सुशोभित हैं।
  • महाबलीपुरम में वास्तुकला: तमिलनाडु में पल्लव वंश के तहत मामल्लपुरम (Mamallapuram) का प्राचीन बंदरगाह शहर कई अद्भुत वास्तुकलाओं के साथ विकसित हुआ।
    • सातवीं शताब्दी के इन पल्लव स्थलों को वर्ष 1984 में “महाबलीपुरम में स्मारकों के समूह” नाम से यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। इसमें निम्नलिखित शामिल करते हैं:
      • पाँच रथ: इसे पांडव रथ के नाम से भी जाना जाता है, ये भारत के सबसे पुराने रॉक-कट मंदिर हैं, जिनमें 7वीं शताब्दी ईस्वी के आस-पास के धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, नकुल-सहदेव रथ और द्रौपदी रथ शामिल हैं।
        • धर्मराज रथ का आकार पाँचों में सबसे बड़ा है।
      • रॉक-कट की गुफाएँ:  इसमें वाराह गुफा मंदिर, कृष्ण गुफा मंदिर, पंचपांडव गुफा मंदिर और महिषासुरमर्दिनी मंडप (देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर को मारने की बहुत कम उभरी-नक्काशी) शामिल हैं।
      • ओपन एयर रॉक रिलीफ: इसमें गंगा का अवतरण शामिल है जिसे अर्जुन की तपस्या या भागीरथ की तपस्या के रूप में भी जाना जाता है, इसमें दो विशाल शिलाखंड हैं।
        • यह भागीरथ के प्रयासों से स्वर्ग से गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की कहानी है।
      • तटीय मंदिर परिसर: इसमें दो छोटे और एक बड़ा मंदिर शामिल है, जो एक दो स्तरीय परिसर की दीवार के साथ संलग्न हैं, जो नंदी की छवियों के साथ जुड़ी हुई है, जो कि शिव का वाहन है।
        • यह मंदिर मुख्य रूप से परिसर के भीतर तीन मंदिरों में से एक है जो अनंतशयन विष्णु की एक मूर्ति के साथ भगवान शिव को समर्पित है।
  • बादामी गुफा मंदिर: बादामी (कर्नाटक) चालुक्य वंश के आरंभिक राजाओं की राजधानी थी।
    • इसमें हिंदू धर्म (3) जैन धर्म (1) पर आधारित चार गुफा मंदिर हैं।
    • यह एक रॉक-कट वास्तुकला है जो छठी शताब्दी ईस्वी की है।
    • यह दक्कन क्षेत्र में सबसे पहले ज्ञात मंदिर है।
      • गुफा संख्या 1: गुफा मंदिर के अंदर खुदी हुई एक महत्त्वपूर्ण मूर्ति भगवान शिव की नटराज के रूप में है। वहाँ हरिहर (आधा विष्णु और आधा शिव) का भी निवास है।
      • गुफा संख्या 2: मुख्य रूप से विष्णु को समर्पित सबसे बड़ी नक्काशी भगवान विष्णु की त्रिविक्रम (Trivikrama) के रूप में है। अन्य रूप जैसे वामन अवतार (बौना अवतार) और वाराह (सूअर) अवतार भी मिलते हैं।
      • गुफा संख्या 3: यह परिसर की सबसे बड़ी गुफा है और इसमें त्रिविक्रम, अनंतशयन, वासुदेव, वराह, हरिहर और नरसिम्हा की जटिल नक्काशी है।
      • गुफा संख्या 4: यह बाहुबली, पार्श्वनाथ और महावीर की जटिल संरचनाओं के साथ एक जैन गुफा है, जिसमें अन्य तीर्थंकरों का प्रतीकात्मक प्रदर्शन है।

नोट:

  • विजयनगर साम्राज्य (1335-1565 ईस्वी) के शासक कला और वास्तुकला के महान संरक्षक थे, जिनकी राजधानी हम्पी थी। विजयनगर मंदिरों की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं:
    • नक्काशी और ज्यामितीय आकृतियों के साथ अत्यधिक सजाई गई मंदिर की दीवारें।
    • गोपुरम (Gopuram) सभी दिशाओं में बनाया गया (पहले केवल सामने की तरफ बनाया गया था)।
  • एकाश्म रॉक स्तंभ
    • उदाहरणतः विट्ठलस्वामी (Vittalaswami) मंदिर, हम्पी (Hampi) में विरुपाक्ष (Virupaksha) मंदिर।
      • हम्पी के पास शेषा (नाग) पर नरसिंह की रॉक-कट मूर्ति अपने आप में एक चमत्कार है।
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