कॉलेजियम द्वारा उच्च न्यायालय के उम्मीदवारों का मूल्यांकन | 25 Dec 2024
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद हेतु विचारार्थ उम्मीदवारों के साथ वार्ता की, सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम का यह कदम मानक स्क्रीनिंग प्रक्रिया से पृथक् था।
- मानक स्क्रीनिंग प्रक्रिया में न्यायिक कार्यों का मूल्यांकन, खुफिया विभाग (IB) से प्राप्त जानकारी, राज्यपाल के माध्यम से मुख्यमंत्री द्वारा व्यक्त विचार और न्याय विभाग की टिप्पणियाँ शामिल होती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने यह कदम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश द्वारा एक कार्यक्रम के दौरान धर्म पर विवादास्पद टिप्पणी के बाद उठाया, जिसकी व्यापक आलोचना की गई थी।
- यह आरोप लगाया गया कि उनकी टिप्पणियों ने वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्स्थापन (Restatement of Values of Judicial Life) का उल्लंघन किया है।
- यह न्यायिक आचार संहिता है जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका तथा निष्पक्ष न्याय प्रशासन के लिये मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है।
- इस कृत्य ने बंगलूरू प्रिंसिपल ऑफ ज्यूडीशियल कंडक्ट, 2002 का भी उल्लंघन किया, जो न्यायाधीशों हेतु नैतिक मानदंड निर्धारित करता है तथा उनके न्यायिक व्यवहार को नियंत्रित करता है।
- यह छह प्रमुख मूल्यों अर्थात् स्वतंत्रता (Independence), निष्पक्षता (Impartiality), सत्यनिष्ठ (Integrity), औचित्य (Propriety), समानता (Equality) तथा अभिक्षमता और कर्मठता (Competence and Diligence) को मान्यता देता है।
- यह आरोप लगाया गया कि उनकी टिप्पणियों ने वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्स्थापन (Restatement of Values of Judicial Life) का उल्लंघन किया है।
- संविधान के अनुच्छेद 217 में कहा गया है कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाएगी।
और पढ़ें: न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्स्थापन