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ADCs द्वारा 125वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने की मांग

  • 27 Jul 2024
  • 8 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मोजोरम और त्रिपुरा के 10 स्वायत्त ज़िला परिषदों (Autonomous District Councils- ADCs) के मुख्य कार्यकारी मजिस्ट्रेटों (Chief Executive Magistrates- CEMs) ने केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात की और 125वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने की मांग रखी।

  • इस संदर्भ में, केंद्र सरकार ने विधेयक से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिये गृह राज्य मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का निर्णय लिया।

125वें संविधान संशोधन विधेयक में प्रस्तावित संशोधन क्या हैं?

  • विधेयक का उद्देश्य संविधान की छठी अनुसूची के तहत जनजातीय स्वायत्त परिषदों को अधिक वित्तीय, कार्यकारी और प्रशासनिक शक्तियाँ प्रदान करना है।
  • ग्राम एवं नगर परिषदें:
    • प्रस्ताव में मौजूदा ज़िला और क्षेत्रीय परिषदों के साथ-साथ ग्राम एवं नगर परिषदों का गठन भी शामिल है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग गाँवों या गाँवों के समूहों के लिये ग्राम परिषदें (Village Councils) स्थापित की जाएंगी, जबकि प्रत्येक ज़िले के शहरी क्षेत्रों में नगर परिषदें स्थापित की जाएंगी।
  • ज़िला परिषदों को निम्नलिखित के संबंध में कानून बनाने का अधिकार होगा:
    • ग्राम और नगर परिषदों की संख्या एवं संरचना। 
    • इन परिषदों में चुनाव हेतु निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन। 
    • ग्राम एवं नगर परिषदों की शक्तियाँ और कार्य।
  • शक्तियों के हस्तांतरण के नियम: राज्यपाल को ग्राम एवं नगर परिषदों को शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों के हस्तांतरण हेतु नियम बनाने का अधिकार होगा।
    • इन नियमों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
      • आर्थिक विकास योजनाओं की तैयारी।
      • भूमि सुधारों का कार्यान्वयन।
      • शहरी एवं नगरीय नियोजन।
      • अन्य उत्तरदायित्वों के साथ-साथ भूमि उपयोग का विनियमन।
    • विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि राज्यपाल दल-बदल/दल -परिवर्तन (Defection) के आधार पर परिषद सदस्यों की अनर्हता संबंधी नियम भी बना सकता है।
  • राज्य वित्त आयोग:  विधेयक में  ज़िला, ग्राम और नगर परिषदों  की वित्तीय स्थिति का आकलन करने के लिये इन राज्यों में  एक वित्त आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है। आयोग निम्नलिखित के संबंध में सिफारिशें करेगा:
    • राज्य और ज़िला परिषदों के बीच करों का वितरण।
    • राज्य की  संचित निधि से ज़िला, ग्राम और नगर परिषदों को अनुदान सहायता।
  • परिषदों के चुनाव: ज़िला परिषदों, क्षेत्रीय परिषदों, ग्राम परिषदों और नगर परिषदों के चुनावों की देख-रेख राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा की जाएगी, जिसकी नियुक्ति इन चार राज्यों के लिये राज्यपाल द्वारा की जाती है। 
  • विधेयक की वर्तमान स्थिति:
    • संविधान (125वाँ  संशोधन) विधेयक 2019,  को राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया था और बाद में इसे गृह मामलों पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया गया। 
    • समिति  ने वर्ष 2020 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में विधेयक के बारे में कई चिंताएँ व्यक्त थीं और  तब से यह लंबित है।

संविधान की छठी अनुसूची क्या है?

  • क्षेत्र: इस अनुसूची के तहत जनजातीय अधिकारों के संरक्षण हेतु असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान किया गया है।
  • संवैधानिक आधार: इस अनुसूची के तहत अनुच्छेद 244 (2) (छठी अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होंगे) और अनुच्छेद 275 (1) (यह भारत की समेकित निधि से अनुदान सहायता को सुनिश्चित करता है) आते हैं।
  • स्वायत्तता: इस अनुसूची के तहत स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADCs) में शासन का प्रावधान किया गया है, जिसमें भूमि, वन, कृषि, विरासत, सीमा शुल्क और करों पर कानून का निर्माण करना शामिल है।
  • शासन: ADC विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शक्तियों के साथ छोटे राज्यों की तरह कार्य करते हैं।

स्वायत्त ज़िला परिषदें (ADCs) क्या हैं? 

  • परिचय: ADCs संविधान की छठी अनुसूची (अनुच्छेद 244) के तहत पूर्वोत्तर भारत में बनाए गए संवैधानिक साधन हैं। इनका उद्देश्य जनजातीय लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना है।
    • राज्यपाल का प्राधिकार: स्वायत्त ज़िलों को उनके क्षेत्रों और सीमाओं सहित व्यवस्थित, पुनर्गठित एवं संशोधित कर सकता है।
    • जनजातीय वितरण: यदि कई जनजातियाँ मौजूद हैं, तो राज्यपाल ज़िले के भीतर स्वायत्त क्षेत्र का गठन कर सकता है।
  • संरचना:
    • ज़िला परिषद: प्रत्येक ज़िले में 30 सदस्यों की एक परिषद होती है (4 राज्यपाल द्वारा नामित, 26 निर्वाचित), जिसका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
    • क्षेत्रीय/आंचलिक परिषद: प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र की अपनी परिषद होती है।
    • प्रशासन: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने क्षेत्राधिकार का प्रबंधन करती हैं तथा जनजातीय विवादों के लिये ग्राम परिषदें या न्यायालयों की स्थापना कर सकती हैं। अपील की सुनवाई राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट तरीके से की जाती है।
  • वर्तमान में 10 स्वायत्त परिषदें अस्तित्व में हैं - असम, मेघालय और मिज़ोरम में तीन-तीन तथा त्रिपुरा में एक।

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और पढ़ें: छठी अनुसूची एवं इनर लाइन परमिट प्रणाली

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

Q. भारत के संविधान की किस अनुसूची के अधीन जनजातीय भूमि का, खनन के लिए निजी पक्षकारों को अंतरण अकृत और शून्य घोषित किया जा सकता है?

(a) तीसरी अनुसूची
(b) पाँचवीं अनुसूची
(c) नौवीं अनुसूची
(d) बारहवीं अनुसूची

उत्तर: (b)

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