शहरी गरीबी एवं इसका समाधान | 11 Jul 2022
यह एडिटोरियल 08/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Welfare of the urban poor cannot be an afterthought in economic growth plans” लेख पर आधारित है। इसमें शहरी गरीबी और इसके लघु-आवधिक और मध्यावधिक समाधान के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत लगभग दो दशकों से विश्व की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहा है। भारत के इस आर्थिक विकास में इसके शहरों ने प्रमुख भूमिका निभाई है। भारत के शहर न केवल इसके आर्थिक ‘पावरहाउस’ हैं, बल्कि बेहतर जीवन की चाह रखने वाली एक बड़ी ग्रामीण आबादी के लिये चुंबक की तरह भी कार्य करते हैं।
- विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के विकास के साथ शहरों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट द्वारा वर्ष 2007 में आयोजित एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत की 40.76 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी।
- शहरी गरीबी (Urban Poverty) गरीबी का एक रूप है जो विशेष रूप से बड़े शहरों या महानगरों में दिखाई देती है और यह बदतर जीवन परिस्थितियों एवं निम्न आय के साथ-साथ जीवन के एक सभ्य स्तर के लिये आवश्यक उपयोगिताओं की कमी के रूप में परिलक्षित होती है।
- शहरी गरीबी विशेष रूप से इस आशय में अद्वितीय है कि यह विकास के कुछ तय प्रारूप या पैटर्न का अनुसरण करती है। यद्यपि पिछले दशकों में शहरी गरीबों के अनुपात में गिरावट आई है, लेकिन उनकी संख्या में वृद्धि जारी है।
- इस परिदृश्य में हमारे लिये भारत में शहरी गरीबी की वास्तविक स्थिति और संबंधित चुनौतियों पर विचार करना प्रासंगिक होगा।
शहरी गरीबी के पीछे के प्रमुख कारण
- ग्रामीण-शहरी प्रवास का वृहत स्तर:
- शहरी गरीब मुख्य रूप से ग्रामीण गरीबों के अतिप्रवाह से उत्पन्न हुए हैं जो वैकल्पिक रोज़गार एवं आजीविका की तलाश में गाँवों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचनाओं की कमी (‘पुश फैक्टर’) और शहरी क्षेत्रों में तेज़ी से औद्योगीकरण (‘पुल फैक्टर’) के कारण विषम विकास की स्थिति बनी है और इससे प्रवासन को बल मिला है।
- शहरी गरीब मुख्य रूप से ग्रामीण गरीबों के अतिप्रवाह से उत्पन्न हुए हैं जो वैकल्पिक रोज़गार एवं आजीविका की तलाश में गाँवों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
- कौशल की कमी:
- अधिकांश गरीब शहरी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उभरते रोज़गार अवसरों का लाभ उठा सकने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उनके पास ऐसा करने के लिये आवश्यक ज्ञान और कौशल का अभाव है।
- इसके कारण अकुशल या अर्द्ध-कुशल कार्यबल का सृजन होता है जिनके लिये अच्छे और उपयुक्त वेतन वाली नौकरी पाना कठिन होता है।
- अधिकांश गरीब शहरी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उभरते रोज़गार अवसरों का लाभ उठा सकने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उनके पास ऐसा करने के लिये आवश्यक ज्ञान और कौशल का अभाव है।
- ऋणग्रस्तता:
- बेरोज़गारी (Unemployment) या अल्प-रोज़गार (Underemployment) और शहरी क्षेत्रों में कार्य की आकस्मिक एवं सविराम (Intermittent) प्रकृति ऋणग्रस्तता की ओर ले जाती है, जो फिर गरीबी को पुष्ट करती है।
- बेरोज़गारी से तात्पर्य उस आर्थिक स्थिति से है जिसमें एक व्यक्ति जो सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश में हो, उसे कार्य नहीं मिल रहा हो।
- अल्प-रोज़गार एक ऐसी स्थिति है जहाँ रोज़गार के अवसरों और कर्मियों के कौशल एवं शिक्षा के स्तर के बीच असंगति हो।
- बेरोज़गारी (Unemployment) या अल्प-रोज़गार (Underemployment) और शहरी क्षेत्रों में कार्य की आकस्मिक एवं सविराम (Intermittent) प्रकृति ऋणग्रस्तता की ओर ले जाती है, जो फिर गरीबी को पुष्ट करती है।
- मुद्रास्फीति:
- खाद्यान्नों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि शहरी क्षेत्रों में निम्न-आय वर्ग के लोगों की कठिनाई और अभाव को और अधिक बढ़ा देती है।
शहरी गरीबों के सामने विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:
- अति भीड़भाड़:
- घरेलू कार्य, ऑटो/टैक्सी चलाना, मध्यम वर्ग के लोगों के लिये वाहन चलाना, निर्माण स्थल पर कार्य जैसे विभिन्न अनौपचारिक रोज़गार के लिये लाखों लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं।
- यह पहले से ही भीड़भाड़ भरे शहरी अवसंरचना में अति भीड़भाड़ (Overcrowding) की स्थिति उत्पन्न करता है।
- घरेलू कार्य, ऑटो/टैक्सी चलाना, मध्यम वर्ग के लोगों के लिये वाहन चलाना, निर्माण स्थल पर कार्य जैसे विभिन्न अनौपचारिक रोज़गार के लिये लाखों लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं।
- जल और सफ़ाई व्यवस्था:
- कोविड-19 महामारी ने मलिन बस्ती क्षेत्रों में खराब स्वच्छता मानकों का खुलासा किया। इन मलिन बस्तियों में हाथ धोने और शारीरिक दूरी का पालन करने जैसे प्रोटोकॉल का पालन किया जाना असंभव ही था।
- दिल्ली में लगभग 21.8 प्रतिशत मलिन बस्ती परिवार सार्वजनिक नल जैसे साझा जल स्रोतों पर निर्भर हैं।
- कोविड-19 महामारी ने मलिन बस्ती क्षेत्रों में खराब स्वच्छता मानकों का खुलासा किया। इन मलिन बस्तियों में हाथ धोने और शारीरिक दूरी का पालन करने जैसे प्रोटोकॉल का पालन किया जाना असंभव ही था।
- स्वास्थ्य देखभाल:
- इन समुदायों की निम्न आय का अर्थ है कि मानक चिकित्सा सहायता उनके लिये प्रायः वहनीय नहीं होती है।
- वर्ष या जलजमाव जैसी स्थिति में उनकी बस्तियाँ विभिन्न रोग परजीवियों और संक्रमणों के लिये प्रजनन स्थल बन जाती हैं और यह चक्र लगातार चलता रहता है।
- इन समुदायों की निम्न आय का अर्थ है कि मानक चिकित्सा सहायता उनके लिये प्रायः वहनीय नहीं होती है।
- शिक्षा:
- झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा विभिन्न समस्याओं से प्रभावित होती है।
- इन परिवारों के कुछ बच्चे स्कूल में नामांकित हो भी जाते हैं तो कई बार उन्हें अपने परिवार की आर्थिक रूप से सहायता कर सकने के लिये पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ती है और वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
- झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा विभिन्न समस्याओं से प्रभावित होती है।
- जबरन बेदखली का जोखिम:
- सस्ते आवास की कमी के कारण वे आधिकारिक रूप से पता-विहीन (Address-less) होते हैं। उन्हें जहाँ भी अवसर मिलता है, वहीं बस सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही अवैध रूप से बसा एक पूरा समुदाय उभर आता है जिससे फिर उनकी जबरन बेदखली का जोखिम उत्पन्न होता है।
- जबरन बेदखली (Forced eviction) को व्यक्तियों, परिवारों और/या समुदायों को उनके कब्जे के घरों और/या भूमि से उनकी इच्छा के विरुद्ध स्थायी या अस्थायी निष्कासन के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सस्ते आवास की कमी के कारण वे आधिकारिक रूप से पता-विहीन (Address-less) होते हैं। उन्हें जहाँ भी अवसर मिलता है, वहीं बस सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही अवैध रूप से बसा एक पूरा समुदाय उभर आता है जिससे फिर उनकी जबरन बेदखली का जोखिम उत्पन्न होता है।
शहरी गरीबों की स्थिति में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है?
- उचित सामाजिक सुरक्षा:
- अधिकांश राहत धनराशि और लाभ मलिन बस्ती निवासियों तक नहीं पहुँच पाते, जिसका मुख्य कारण यह है कि ये बस्तियाँ सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता-प्राप्त नहीं होती हैं।
- अनौपचारिक श्रमिकों के लिये उचित सामाजिक सुरक्षा उपायों का अभाव उभरकर सामने आया है और इसका शहरी गरीबी पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। इस प्रकार, समय की आवश्यकता है कि शहरी नियोजन (Urban Planning) और प्रभावी शासन के लिये नए दृष्टिकोण अपनाए जाएँ।
- शहरी मलिन बस्ती आबादी को रोज़गार लाभ प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों में भी मनरेगा (MNREGA) जैसी एक योजना शुरू की जा सकती है।
- अधिकांश राहत धनराशि और लाभ मलिन बस्ती निवासियों तक नहीं पहुँच पाते, जिसका मुख्य कारण यह है कि ये बस्तियाँ सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता-प्राप्त नहीं होती हैं।
- बुनियादी सुविधाओं तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करना:
- मलिन बस्ती क्षेत्रों में स्वच्छ जल, स्वच्छता और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना प्राथमिकता होनी चाहिये।
- मलिन बस्तियों के पुनर्वास और उन्नयन के साथ-साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम सूची के आधार पर पहचान चिह्न स्थापित करने की आवश्यकता है। इनमें उन वंचित परिवारों को भी दर्ज करने की आवश्यकता है जो सूची से बाहर छूट गए हैं।
- मलिन बस्ती क्षेत्रों में स्वच्छ जल, स्वच्छता और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना प्राथमिकता होनी चाहिये।
- समुदाय संपर्क अभियान:
- समाज कल्याण योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये विशेष सामुदायिक संपर्क अभियान (Community Connect Campaigns) शुरू किये जाने चाहिये।
- इस तरह के अभियानों में एलपीजी कनेक्शन, बैंक खाते, जीवन एवं दुर्घटना बीमा और कर्मचारी राज्य बीमा सुविधाओं से संबंधित योजनाओं तथा आयुष्मान भारत एवं प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) जैसे स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों को शामिल किया जाना चाहिये।
- सामुदायिक संपर्क प्रक्रिया द्वारा गरीबों की भागीदारीपूर्ण पहचान के माध्यम से NFSA के गैर-हकदार लाभार्थियों को सूची से हटाया जाना भी संभव हो सकता है।
- इस तरह के अभियानों में एलपीजी कनेक्शन, बैंक खाते, जीवन एवं दुर्घटना बीमा और कर्मचारी राज्य बीमा सुविधाओं से संबंधित योजनाओं तथा आयुष्मान भारत एवं प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) जैसे स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों को शामिल किया जाना चाहिये।
- समाज कल्याण योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये विशेष सामुदायिक संपर्क अभियान (Community Connect Campaigns) शुरू किये जाने चाहिये।
- बस्ती-स्तरीय स्वयं सहायता समूह:
- शहरी क्षेत्रों में वंचित परिवारों को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा पूर्ण कवरेज देने के प्रयास को मिशन मोड में आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- इस प्रक्रिया के साथ ही आजीविका के विविधीकरण के लिये ऋण तक पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- स्वनिधि योजना के तहत रेहड़ी-पटरी वालों (स्ट्रीट वेंडर्स) के लिये ऋण की व्यवस्था इस दिशा में बढ़ाया गया प्रशंसनीय कदम है।
- बस्ती-स्तरीय महिला समूहों के सृजन से कई कठिन चुनौतियों को संबोधित किया जा सकेगा।
- इस प्रक्रिया के साथ ही आजीविका के विविधीकरण के लिये ऋण तक पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- शहरी क्षेत्रों में वंचित परिवारों को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा पूर्ण कवरेज देने के प्रयास को मिशन मोड में आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- प्रवासन सहायता केंद्र :
- काम की तलाश में प्रवासियों के शहरों की ओर आगमन की प्रक्रिया को कम पीड़ादायी बनाना होगा। इसके लिये प्रवासन सहायता केंद्र (Migration Support Centres) स्थापित किये जा सकते हैं।
- बुनियादी शर्तों की पूर्ति करने वाले अधिवासियों के लिये किराये के आवास और संपत्ति स्वामित्व के विस्तार से ऋण तक उनकी पहुँच भी आसान बनेगी।
- बेसहारा और बेघरों के लिये सहायता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- बुनियादी शर्तों की पूर्ति करने वाले अधिवासियों के लिये किराये के आवास और संपत्ति स्वामित्व के विस्तार से ऋण तक उनकी पहुँच भी आसान बनेगी।
- काम की तलाश में प्रवासियों के शहरों की ओर आगमन की प्रक्रिया को कम पीड़ादायी बनाना होगा। इसके लिये प्रवासन सहायता केंद्र (Migration Support Centres) स्थापित किये जा सकते हैं।
- न्यूनतम मज़दूरी लागू करना:
- असंगठित क्षेत्र में संलग्न श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम या कारखाना अधिनियम जैसे कई कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता है।
- ठेकेदार प्रायः उन्हें न्यूनतम मज़दूरी से भी कम भुगतान करते हैं। इस परिदृश्य में पूरे देश के असंगठित क्षेत्र में भी सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- असंगठित क्षेत्र में संलग्न श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम या कारखाना अधिनियम जैसे कई कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता है।
शहरी गरीबों की स्थिति में सुधार के लिये सरकार की प्रमुख पहलें
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना
- अटलनवीकरण एवं शहरी परिवर्तन मिशन- अमृत मिशन (AMRUT)
- दीनदयाल अंत्योदय योजना (राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन)
- जल जीवन मिशन- शहरी
- आत्मनिर्भर भारत अभियान
- प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी।
अभ्यास प्रश्न: शहरी गरीब मुख्यतः शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास करने वाले ग्रामीण गरीबों के अतिप्रवाह से उत्पन्न हुए हैं। शहरी गरीबों के जीवन स्तर में सुधार हेतु समाधानों पर चर्चा करें।