भारत में उच्च शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव | 06 Nov 2024

यह संपादकीय 06/11/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “ Rising STEM research demands revitalized education” पर आधारित है। यह लेख भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता की चुनौतियों को उजागर करता है: जहाँ पहुँच में वृद्धि के बावजूद, शोध पर अधिक ज़ोर देने से शिक्षण गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, जिससे स्नातक तैयारियों में कमी आ रही है। विशेषज्ञ इसे संतुलित करने के लिये शिक्षण गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने और शोध व शिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की सलाह देते हैं।

प्रिलिम्स के लिये: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली, स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिये राष्ट्रीय पहल, परख (समग्र विकास के लिये ज्ञान का प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा तथा विश्लेषण) , राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, प्रतिष्ठित संस्थान (IoE) योजना, SWAYAM, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय

मेन्स के लिये: उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित भारत सरकार की हालिया पहल, भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के खराब प्रदर्शन के कारण। 

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली एक प्रमुख चुनौती का सामना कर रही है: स्नातकों के कौशल और उद्योग व अनुसंधान की आवश्यकताओं के बीच असंगति। नए संस्थानों के प्रसार के बावजूद, शिक्षा की गुणवत्ता, विशेष रूप से स्नातक कार्यक्रमों में, चिंता का विषय बनी हुई है। इस समस्या के समाधान के लिये, शैक्षणिक कौशल पर ज़ोर देने और अनुसंधान एवं शिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, जिससे एक अधिक केंद्रित दृष्टिकोण विकसित हो सके।

हालिया सुधारों के बावजूद भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली का प्रदर्शन खराब क्यों है? 

  • गुणवत्ता-पैमाने का समझौता: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के तेज़ी से विस्तार ने गुणवत्ता की तुलना में मात्रा को प्राथमिकता दी है, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षणिक मानकों में गिरावट आई है और बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त हो गया है। 
    • अधिकांश निजी संस्थान अकादमिक उत्कृष्टता के बजाय अधिकतम लाभ कमाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षण और सीखने के परिणाम निम्न स्तर पर पहुँच जाते हैं। 
    • विनियामक ढाँचा इस विस्तार के दौरान गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने में विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप बेरोज़गार स्नातकों की एक पीढ़ी तैयार हो गई।
    • भारत में उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के पोर्टल पर 1,043 विश्वविद्यालय तथा 42,343 कॉलेज सूचीबद्ध हैं, लेकिन राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) के अनुसार, देश भर में लगभग 30% विश्वविद्यालय एवं कॉलेज गैर-मान्यता प्राप्त हैं, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उल्लंघन है।
    • इसके अतिरिक्त, इंजीनियरिंग ग्रेड में गुणवत्ता में समझौता स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जहाँ केवल 45% ही उद्योग मानकों को पूरा करते हैं।
  • अनुसंधान उत्पादन और नवाचार अंतराल: भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान संस्कृति का गंभीर अभाव है तथा सार्थक अनुसंधान के लिये पर्याप्त वित्त पोषण और बुनियादी ढाँचा उपलब्ध नहीं है। 
    • प्रकाशन के दबाव के कारण गुणवत्ता की अपेक्षा मात्रा पर अधिक ध्यान दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप कई शोध-पत्र प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के बजाय शोषक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
      • शिक्षण कार्यों पर अधिक ध्यान देने के कारण संकाय के पास महत्त्वपूर्ण शोध कार्यों के लिये बहुत कम समय बचता है।
    • भारत का अनुसंधान व्यय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7% है, जबकि चीन में यह 2.4% और अमेरिका में 3.5% है। 
    • वर्ष 2023 में, भारत में 467,918 पेटेंट फाइलिंग होंगी, जो चीन के 7.7 मिलियन फाइलिंग और संयुक्त राज्य अमेरिका के 945,571 फाइलिंग से पीछे है।
  • संकाय संकट: भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली योग्य संकाय सदस्यों की गंभीर कमी का सामना कर रही है तथा कई पद वर्षों से रिक्त हैं। 
    • मौजूदा संकाय में अक्सर आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिये आवश्यक उचित प्रशिक्षण, अनुसंधान अनुभव और उद्योग अनुभव का अभाव होता है। 
    • नौकरशाही आधारित नियुक्ति प्रक्रिया और अपर्याप्त पारिश्रमिक पैकेज, प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अकादमिक कॅरियर अपनाने से हतोत्साहित करते हैं।
    • भारत भर के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 30% से अधिक शिक्षण पद रिक्त हैं।
  • उद्योग-अकादमिक संबंध: विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम अधिकांशतः सैद्धांतिक और पुराने हैं तथा समकालीन उद्योग की आवश्यकताओं और तकनीकी प्रगति को पूरा करने में विफल हैं। 
    • अधिकांश संस्थान उद्योग से अलग-थलग होकर काम करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों को व्यावहारिक अनुभव या वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने के अवसर बहुत कम मिलते हैं।
    • उद्योग जगत के बीच सहयोग की कमी के कारण स्नातकों को अपनी नौकरी में उत्पादक बनने से पहले व्यापक पुनः प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
    • ILO की वैश्विक कौशल अंतराल मापन एवं निगरानी रिपोर्ट 2023 से ज्ञात होता है कि 47% भारतीय श्रमिक, विशेषकर 62% महिलाएँ अपनी नौकरियों के लिये अयोग्य हैं।
  • वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ: उच्च शिक्षा के लिये सार्वजनिक वित्तपोषण अपर्याप्त है, जिससे संस्थान बुनियादी ढाँचे, अनुसंधान सुविधाओं और संकाय की गुणवत्ता पर समझौता करने के लिये मजबूर होते हैं। 
    • राज्य विश्वविद्यालय विशेष रूप से निरंतर कम वित्तपोषण से प्रभावित हैं, जिसके परिणामस्वरूप बुनियादी ढाँचे और शैक्षणिक मानकों में गिरावट आ रही है। फंडिंग मॉडल छात्र शुल्क पर अत्यधिक निर्भर करता है, जिससे कई लोगों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लगातार अप्राप्य होती जा रही है।
    • वर्ष 2024-25 में उच्च शिक्षा के लिये आवंटन वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान से 17% कम होने का अनुमान है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के लिये आवंटन में 61% की कमी होने का अनुमान है। 
  • उच्च शिक्षा में डिजिटल विभाजन: जबकि विशिष्ट संस्थानों ने डिजिटल परिवर्तन को अपना लिया है, अधिकांश विश्वविद्यालय बुनियादी डिजिटल अवसंरचना और साक्षरता के साथ संघर्ष कर रहे हैं। 
    • कोविड-19 महामारी ने डिजिटल अंतर को और अधिक स्पष्ट कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप दो स्तरों वाली शिक्षा प्रणाली का निर्माण हुआ है।
    • वर्ष 2021 में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में लगभग 60% स्कूली बच्चे ऑनलाइन सीखने के अवसरों तक नहीं पहुँच पाते हैं। 
      • यह देश में डिजिटल विभाजन को उजागर करता है, जहाँ बड़ी संख्या में छात्रों के पास इंटरनेट और डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक पहुँच नहीं है।
  • मानसिक स्वास्थ्य और छात्र सहायता: विश्वविद्यालय अपर्याप्त परामर्श और सहायता सेवाओं के माध्यम से छात्रों के बीच बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट को बड़े पैमाने पर नज़र-अंदाज़ करते हैं।
    • शैक्षणिक दबाव, कॅरियर की अनिश्चितता और सामाजिक अपेक्षाएँ महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक तनाव उत्पन्न करती हैं। 
    • समग्र विकास कार्यक्रमों की कमी से छात्रों का कल्याण और शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित होता है।
    • TimelyMD की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में 50% कॉलेज छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को अपने तनाव का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बताया।
  • उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र की कमज़ोरी: स्टार्टअप संस्कृति पर ज़ोर देने के बावजूद, विश्वविद्यालय पर्याप्त उद्यमशीलता सहायता और इनक्यूबेशन सुविधाएँ प्रदान करने में विफल रहते हैं।
    • वर्तमान शैक्षिक वातावरण नवाचार और जोखिम लेने की क्षमताओं को प्रोत्साहित नहीं करता है। सीमित उद्योग संपर्क के कारण छात्र उद्यमियों के लिये मेंटरशिप के अवसर भी सीमित हैं।
    • भारत में कुल प्रारंभिक चरण उद्यमिता (TEA) की दर वर्ष 2022-23 में मात्र 11.5% थी।
  • भाषा संबंधी बाधाएँ: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में भाषा संबंधी बाधाएँ विद्यार्थियों के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं, विशेषकर ग्रामीण या गैर-अंग्रेज़ी भाषी पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों के लिये। 
    • इस असमानता के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक असमान पहुँच हो सकती है, जिससे शैक्षणिक सफलता के अवसर सीमित हो सकते हैं। 
    • हाल ही में आंध्र प्रदेश के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में आदिवासी छात्रों को भाषा संबंधी बाधाओं से जूझना पड़ा, क्योंकि शिक्षक उन्हें अंग्रेज़ी या तेलुगू के बजाय हिंदी में पढ़ा रहे थे।

उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित भारत सरकार की हालिया पहल क्या हैं? 

  • स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिये राष्ट्रीय पहल (निष्ठा): यह कार्यक्रम स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों को विभिन्न शैक्षिक स्तरों पर प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल तथा शिक्षा (ECCE) के लिये विशेष प्रशिक्षण भी शामिल है। अब तक, इस पहल के तहत 32,648 से अधिक मास्टर प्रशिक्षकों को प्रामाणित किया जा चुका है।
  • PARAKH (समग्र विकास के लिये प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण): PARAKH, NEP 2020 के तहत स्थापित एक स्वायत्त निकाय है, जिसका उद्देश्य सभी भारतीय स्कूल बोर्डों में मूल्यांकन प्रक्रियाओं को मानकीकृत और उन्नत बनाना है। इसकी गतिविधियों में शामिल हैं:
    • राज्य शैक्षिक उपलब्धि सर्वेक्षण (SEAS), जो विभिन्न चरणों में छात्रों की सीखने की क्षमताओं का आकलन करता है।
    • सामाजिक-भावनात्मक और संज्ञानात्मक पहलुओं सहित छात्रों के समग्र विकास पर नज़र रखने के लिये योग्यता-आधारित मूल्यांकन तथा समग्र प्रगति कार्ड (HPC) विकसित करना।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020): NEP 2020 ने पाठ्यक्रम और शैक्षिक प्रथाओं में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये हैं। इसकी प्रमुख पहलें हैं:
    • आधारभूत चरण के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF FS) और वर्ष 2023 में कक्षा 1 एवं 2 के लिये शिक्षण सामग्री का शुभारंभ।
    • स्कूल शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) वर्ष 2023 में जारी की गई, जो समग्र और योग्यता-आधारित शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्कूल पाठ्यक्रम को NEP के साथ संरेखित करती है।
  • बजट 2024-25 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये एक लाख छात्रों को ₹10 लाख तक के ऋण की पेशकश करने वाली नई योजना की घोषणा की गई।
  • उत्कृष्ट संस्थान (IoE) योजना: शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में शुरू की गई, IoE योजना का उद्देश्य 20 संस्थानों की पहचान करना और उन्हें अकादमिक उत्कृष्टता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करना था।
  • डिजिटल पहल:
    • स्वयं (स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव-लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स): एक डिजिटल प्लेटफॉर्म जो सक्रिय शिक्षण को समर्थन देने के लिये स्कूल से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की एक शृंखला प्रस्तुत करता है।
    • भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी: यह देश भर के छात्रों और शिक्षकों को शैक्षिक संसाधनों के विशाल संग्रह तक आसान पहुँच प्रदान करती है।

भारत अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली को सशक्त करने हेतु क्या उपाय अपना सकता है?

  • उद्योग-अकादमिक एकीकरण ढाँचा: उद्योग प्रासंगिकता बनाए रखने के लिये प्रत्येक तीन साल में संकाय सदस्यों के लिये अनिवार्य उद्योग अवकाश की व्यवस्था की जाए।
    • अग्रणी कंपनियों की घूर्णनशील सदस्यता के साथ उद्योग-विशिष्ट पाठ्यक्रम सलाहकार बोर्ड की स्थापना करना।
    • अनिवार्य स्नातक आवश्यकताओं के रूप में छात्रों की उद्योग परियोजनाओं और इंटर्नशिप के लिये क्रेडिट-आधारित प्रणाली विकसित करना।
    • उद्योग भागीदारों द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में संयुक्त अनुसंधान और विकास केंद्र स्थापित किये जाएँ। इसके साथ ही, एक उद्योग पेशेवर-इन-रेजिडेंस कार्यक्रम लागू किया जाए, जिसमें विशेषज्ञ विशिष्ट पाठ्यक्रमों को पढ़ाते हैं।
  • शैक्षणिक परिवर्तन पहल: एक मानकीकृत राष्ट्रीय कार्यक्रम के माध्यम से सभी संकाय सदस्यों के लिये अनिवार्य शैक्षणिक प्रशिक्षण प्रमाणन लागू करना।
    • अनुभवात्मक और परियोजना-आधारित शिक्षण सहित आधुनिक शिक्षण पद्धतियों में संकाय को प्रशिक्षित करने के लिये प्रत्येक राज्य में शिक्षण उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना। 
    • छात्र फीडबैक, सहकर्मी समीक्षा और परिणाम विश्लेषण के माध्यम से नियमित शिक्षण प्रभावशीलता मूल्यांकन को अनिवार्य किया जाए।
  • गुणवत्ता आश्वासन सुधार: आवधिक मान्यता के स्थान पर वास्तविक समय गुणवत्ता निगरानी के साथ एक सतत् मूल्यांकन प्रणाली को लागू करना।
    • सभी हितधारकों के प्रतिनिधित्व के साथ संस्थानों के भीतर विशिष्ट गुणवत्ता मंडल बनाए  जाएँ।
    • रोज़गारपरकता और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए परिणाम-आधारित मूल्यांकन ढाँचे का विकास करना।
    • शीघ्र हस्तक्षेप के लिये संस्थागत प्रदर्शन मेट्रिक्स के AI-आधारित विश्लेषण को लागू करना।
  • छात्र सहायता और विकास: पेशेवर परामर्शदाताओं और उद्योग संपर्कों के साथ अनिवार्य कॅरियर विकास प्रकोष्ठों की स्थापना करनी चाहिये। 
    • पूर्णकालिक परामर्शदाताओं और कल्याण कार्यक्रमों के साथ  मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली बनाई जाए।
    • पाठ्यक्रम में एकीकृत सॉफ्ट स्किल्स और नेतृत्व विकास कार्यक्रम विकसित किये जाए। उद्यमशीलता पहल के लिये वित्तीय सहायता के साथ छात्र नवाचार प्रयोगशालाएँ बनाई जाएँ।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग रूपरेखा: पारस्परिक क्रेडिट मान्यता के साथ प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ संयुक्त डिग्री कार्यक्रम स्थापित करना।
    • सरलीकृत वीज़ा और वर्क परमिट प्रक्रियाओं के साथ अंतर्राष्ट्रीय संकाय विनिमय कार्यक्रम बनाए जाएँ।
    • साझा वित्तपोषण और संसाधनों के साथ वैश्विक अनुसंधान साझेदारी विकसित की जाए।
  • क्षेत्रीय भाषा एकीकरण: AI-संचालित अनुवाद उपकरणों का उपयोग करके क्षेत्रीय भाषाओं में उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षणिक सामग्री विकसित की जाए। 
    • क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली बैंकों के साथ द्विभाषी शिक्षण कार्यक्रम बनाए जाएँ।
    • अंतर्राष्ट्रीय अनुक्रमण के साथ क्षेत्रीय भाषा अनुसंधान पत्रिकाएँ स्थापित की जाएँ।
    • शैक्षणिक संसाधनों और शोध-पत्रों के लिये अनुवाद सहायता प्रणाली लागू की जाए। 
  • कौशल विकास एकीकरण: उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप मॉड्यूलर कौशल प्रमाणन कार्यक्रम बनाए जाएँ। 
    • उद्योग-मानक उपकरण और प्रशिक्षण सुविधाओं के साथ कौशल प्रयोगशालाएँ स्थापित करनी चाहिये।
    • व्यावसायिक और शैक्षणिक कार्यक्रमों के बीच क्रेडिट स्थानांतरण प्रणाली लागू करनी चाहिये।
    • छात्रों और संकाय के लिये सतत् कौशल मूल्यांकन तथा उन्नयन कार्यक्रम विकसित करने चाहिये।

भारत वैश्विक उच्च शिक्षा मॉडल से क्या सीख सकता है?

  • फिनलैंड का विश्वास-आधारित मॉडल: फिनलैंड की उच्च शिक्षा प्रणाली अपनी उच्च स्वायत्तता और विश्वास-आधारित दृष्टिकोण के लिये जानी जाती है, जो सतत् मूल्यांकन के पक्ष में मानकीकृत परीक्षण को समाप्त करती है। 
  • सिंगापुर का उद्योग-शिक्षा एकीकरण: सिंगापुर ने एक ऐसा मॉडल बनाया है जहाँ सरकार शिक्षा और उद्योग के बीच मज़बूत सहयोग को बढ़ावा देती है, जिससे दोनों क्षेत्रों को लाभ होता है। 
    • स्नातक स्तर से लेकर संस्थानों में कॉर्प लैब्स तक, इस एकीकरण ने स्नातकोत्तर रोज़गार परिणामों में सुधार किया है, कार्यबल उत्पादकता को बढ़ावा दिया है और आर्थिक विकास को समर्थन दिया है।
  • जर्मनी की दोहरी शिक्षा प्रणाली: जर्मनी अपनी दोहरी प्रणाली के माध्यम से सैद्धांतिक शिक्षा को व्यावहारिक प्रशिक्षुता के साथ जोड़ता है। 
  • इज़रायल का उद्यमशील विश्वविद्यालय मॉडल: इज़रायली विश्वविद्यालय अकादमिक अनुसंधान को व्यावसायिक नवाचारों में बदलने में उत्कृष्ट हैं। 
    • रक्षा क्षेत्र के साथ मज़बूत संबंधों के कारण, विश्वविद्यालय अंतःविषयक शिक्षा, उद्यमशीलता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यालयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। 
  • नीदरलैंड की समस्या-आधारित शिक्षा: नीदरलैंड में समस्या-आधारित शिक्षा अपनाई जाती है, जहाँ छात्र छोटे-छोटे समूहों में वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का सामना करते हैं। 
    • देश में एक "बाइनरी सिस्टम" है जो अनुसंधान विश्वविद्यालयों और अनुप्रयुक्त विज्ञानों के बीच अंतर करता है।
  • चीन का तीव्र परिवर्तन मॉडल: चीन की "डबल फर्स्ट क्लास" पहल ने अनुसंधान उत्कृष्टता और STEM शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए उच्च शिक्षा में तीव्र परिवर्तन किया है। 
    • विश्वविद्यालयों को मज़बूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से लाभ मिलता है। डिजिटल बुनियादी ढाँचे तथा स्मार्ट परिसरों में चीन अग्रणी है।

निष्कर्ष: 

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को इसकी गुणवत्ता संबंधी समस्या को दूर करने के लिये व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। शिक्षण उत्कृष्टता को प्राथमिकता देना, उद्योग-अकादमिक भागीदारी को बढ़ावा देना और अनुसंधान के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना महत्त्वपूर्ण कदम हैं। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखकर तथा अभिनव सुधारों को लागू करके, भारत एक विश्व स्तरीय उच्च शिक्षा प्रणाली बना सकता है जो अपने छात्रों को सशक्त बनाएगी एवं आर्थिक विकास को गति देगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के समक्ष वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समावेशिता को बढ़ाने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पंचम अनुसूची
  4. षष्ठ अनुसूची
  5. सप्तम अनुसूची

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर- (d)


मेन्स:

प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)