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भारतीय अर्थव्यवस्था

उर्वरक सब्सिडी में कमी लाना

  • 04 Sep 2023
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 30/08/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Can PRANAM reduce fertiliser subsidy bill?’’ लेख आधारित है। इसमें हाल ही में लॉन्च की गई पीएम प्रणाम योजना के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि इस योजना को बढ़ावा देने से सरकार को सब्सिडी बिल और राजकोषीय घाटे को कम करने में किस प्रकार मदद मिलेगी।

प्रिलिम्स के लिये:

PM-PRANAM योजना, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA), जलवायु अनुरूप कृषि पर राष्ट्रीय पहल (NICRA), पीएम कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), यूट्रोफिकेशन, ब्लू बेबी सिंड्रोम, जैव-उर्वरक, एक राष्ट्र एक उर्वरक (ONOF), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS), नीम लेपित यूरिया (NCU)

मेन्स के लिये:

PM-PRANAM योजना: रासायनिक उर्वरकों को कम करने में इसकी भूमिका और वर्तमान की उर्वरक सब्सिडी व्यवस्था से संबंधित मुद्दे ।

केंद्रीय बजट 2023-24 ने रासायनिक एवं वैकल्पिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने, पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture- RA) के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये पीएम-प्रणाम (PM-PRANAM) लॉन्च किया है।

RA एक परिणाम-आधारित खाद्य उत्पादन प्रणाली है जो मृदा के स्वास्थ्य का पोषण एवं पुनर्स्थापन करती है, जलवायु, जल संसाधनों एवं जैव विविधता की रक्षा करती है और खेतों की उत्पादकता एवं लाभप्रदता को बढ़ाती है।

PM PRANAM योजना:

भारत में उर्वरक के उपयोग से संबद्ध प्रमुख समस्याएँ:

  • उर्वरक उपयोग में असंतुलन: भारत में नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटैशियम (K) उर्वरकों के लिये अनुशंसित अनुपात 4:2:1 है, लेकिन वास्तविक अनुपात नाइट्रोजन के लिये अत्यंत उच्च और फॉस्फोरस एवं पोटैशियम के लिये निम्न है। इससे पोषक तत्वों की कमी, मृदा के क्षरण और निम्न फसल पैदावार की स्थिति बनती है।
    • नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत में औसत NPK अनुपात 8:3:1 था, जो 4:2:1 के अनुशंसित अनुपात से बहुत दूर था।
  • नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग: भारत विश्व में यूरिया (एक नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक) का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। हालाँकि, यूरिया के अत्यधिक उपयोग से मृदा स्वास्थ्य, जल गुणवत्ता और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यूरिया अन्य उर्वरकों के उत्पादन को भी प्रभावित करता है, जिससे उर्वरक बाज़ार में विकृतियाँ पैदा होती हैं।
  • घरेलू उत्पादन का अभाव और आयात पर निर्भरता: भारत के पास P एवं K उर्वरकों के घरेलू संसाधन सीमित हैं और यह अन्य देशों से आयात पर अत्यधिक निर्भर है। इससे भारत वैश्विक कीमतों और इन उर्वरकों की उपलब्धता में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाता है। इसके अलावा, भारत ने 1990 के दशक के बाद से अपनी घरेलू उर्वरक उत्पादन क्षमता का विस्तार करने में कोई उल्लेखनीय निवेश नहीं किया है।
    • उर्वरक विभाग (Department of Fertilizers) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, P&K उर्वरक की भारत की घरेलू उत्पादन क्षमता 24.66 मिलियन मीट्रिक टन है, जो घरेलू मांग के केवल 50% भाग की ही पूर्ति कर पाती है।
      • शेष आवश्यकता की पूर्ति चीन, रूस, मोरक्को, जॉर्डन और सऊदी अरब जैसे देशों से आयात के माध्यम से की जाती है।
  • अकुशल वितरण और सब्सिडी प्रणाली: भारत में किसानों को उर्वरकों पर सब्सिडी देने की एक जटिल और महंगी प्रणाली मौजूद है, जिसमें कई एजेंसियाँ, मध्यस्थ और लीकेज की समस्या संलग्न है। सब्सिडी प्रणाली किसानों को उर्वरकों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने या जैविक या जैव-उर्वरक अपनाने के लिये पर्याप्त रूप से प्रोत्साहित नहीं कर पाई है।
    • केंद्रीय बजट की व्यय सूची में उर्वरक सब्सिडी एक ‘स्टिकी आइटम’ बन गई है। सरकार ने वर्ष 2023-24 के बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिये 1.75 ट्रिलियन रुपए निर्धारित किये हैं, जो लगातार चौथे वर्ष एक ट्रिलियन रुपए से अधिक है।
    • उर्वरक उत्पादन के लिये LNG पर निर्भरता भारत को उच्च और अस्थिर वैश्विक गैस कीमतों के संपर्क में लाती है और देश को बढ़ते उर्वरक सब्सिडी बिल का सामना करना पड़ता है।
      • वित्त वर्ष 2020-21 में उर्वरक क्षेत्र में एलएनजी का उपयोग कुल गैस खपत का 63% तक था।

उर्वरकों के अनुपयुक्त उपयोग के प्रभाव:

  • पर्यावरण प्रदूषण: उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है क्योंकि उनका अवशिष्ट और उनकी अप्रयुक्त मात्रा वायु, जल एवं मृदा के लिये प्रदूषक बन जाते हैं।
    • सुपोषण/यूट्रोफिकेशन (Eutrophication): उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से जल निकायों में सुपोषण की स्थिति बन सकती है, जिसमें शैवाल और अन्य जलीय पौधों की अत्यधिक वृद्धि होती है जो फिर जल में ऑक्सीजन के स्तर को कम कर देते हैं और जलीय जीवन को हानि पहुँचाते हैं।
  • मृदा क्षरण (Soil degradation): केवल नाइट्रोजन उर्वरक के लगातार उपयोग से मृदा की उर्वरता घट सकती है और अन्य मैक्रो एवं माइक्रो पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। यह मृदा के सूक्ष्म वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को भी प्रभावित कर सकता है जो मृदा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिये आवश्यक होते हैं।
  • फसल गुणवत्ता में कमी: उर्वरकों के अनुपयुक्त उपयोग के परिणामस्वरूप प्रजनन संरचनाओं (जैसे फल और अनाज) की कीमत पर पौधे के दूसरे हिस्सों (जैसे पत्तियाँ और तने) की अत्यधिक वृद्धि हो सकती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज में कमी आ सकती है।
    भूजल संदूषण: अत्यधिक उपयोग किये गए उर्वरकों से निकलने वाला नाइट्रेट भूजल को दूषित कर सकता है, जिससे उन लोगों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो सकता है जो पेयजल के लिये इन स्रोतों पर निर्भर होते हैं। पेयजल में नाइट्रेट का स्तर बढ़ने से मेथेमोग्लोबिनीमिया (methemoglobinemia) या ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ (blue baby syndrome) की स्थिति बन सकती है।
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: उर्वरकों के साथ संयोजन में प्रायः उपयोग किये जाने वाले कीटनाशक एवं शाकनाशक अनुचित या अत्यधिक मात्रा में उपयोग किये जाने पर किसानों और उपभोक्ताओं के लिये स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।
  • आर्थिक बोझ: उर्वरक का अत्यधिक उपयोग किसानों के लिये आर्थिक रूप से असंवहनीय सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इससे फसल की पैदावार में वृद्धि के बिना इनपुट लागत में वृद्धि हो सकती है। इससे छोटे और सीमांत किसानों में कर्जदारी बढ़ सकती है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: सिंथेटिक उर्वरकों का उत्पादन एवं अनुप्रयोग ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), में योगदान देता है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करने वाला एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
  • फसल द्वारा पोषक तत्व ग्रहण में असंतुलन: उर्वरक के अनुचित अनुप्रयोग के परिणामस्वरूप मृदा में पोषक तत्वों के असंतुलन की स्थिति बन सकती है, जो फसलों द्वारा पोषक तत्व ग्रहण को प्रभावित कर सकता है और आगे के फसल मौसमों में सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता पड़ सकती है।

पीएम प्रणाम कार्यक्रम की उर्वरक व्यवस्था के सुधार में भूमिका:

  • सब्सिडी बिल में कमी: पीएम प्रणाम वैकल्पिक उर्वरकों या जैव-उर्वरकों को बढ़ावा देकर सरकार के सब्सिडी बिल को कम करने में योगदान दे सकता है। इसके तहत सरकार राष्ट्र-स्तरीय सूक्ष्म-उर्वरक एवं कीटनाशक विनिर्माण नेटवर्क का निर्माण करने के साथ 10,000 बायो-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य रखती है।
    • पीएम प्रणाम इन जैव-उर्वरकों के उत्पादन और अंगीकरण का समर्थन कर रासायनिक उर्वरक सब्सिडी के मामले में सरकार पर वित्तीय बोझ को धीरे-धीरे कम करने में योगदान दे सकता है।
  • राजकोषीय घाटे का नियंत्रण: पीएम प्रणाम के प्रसार के माध्यम से सब्सिडी बिल कम करने से भारत के राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। राजकोषीय घाटा देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौती सिद्ध हो सकता है और सब्सिडी को कम करना इस समस्या के समाधान का एक उपाय है।
    उर्वरक सब्सिडी को क्रमिक रूप से समाप्त करना: पीएम प्रणाम रासायनिक उर्वरकों पर प्रदत्त सब्सिडी को क्रमिक रूप से समाप्त करने के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकता है। सरकार वैकल्पिक उर्वरकों को अपनाने के लिये समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान कर रासायनिक उर्वरक सब्सिडी के प्रति अपनी वित्तीय प्रतिबद्धता को कम कर सकती है।
  • उर्वरक सहकारी समितियों के लिये समर्थन: पीएम प्रणाम किसान उर्वरक सहकारी समितियों (Farmer Fertiliser Cooperatives) को जैव उर्वरक के उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकता है। इस समर्थन से आकारिक मितव्ययिता (economies of scale) की वृद्धि हो सकती है और वैकल्पिक उर्वरकों के लिये अधिक व्यापक वितरण नेटवर्क का निर्माण हो सकता है।
    बिक्री और वितरण नेटवर्क को प्रोत्साहित करना: बिक्री और वितरण नेटवर्क को प्रोत्साहित (incentivize) करने के लिये जैव उर्वरकों के लिये मूल्य निर्धारण और मार्जिन रणनीतियों पर कार्य करना महत्त्वपूर्ण है। पीएम प्रणाम जैव-उर्वरक उत्पादन एवं वितरण से संलग्न सहकारी समितियों और व्यवसायों को प्रोत्साहन प्रदान कर इसे सुविधाजनक बना सकता है।
  • प्रदर्शन और प्रमाणन: पीएम प्रणाम किसानों के खेतों पर वैकल्पिक उर्वरकों की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने की पहल का समर्थन कर सकते हैं। यह विश्वास-निर्माण और किसानों को इन उत्पादों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है। इन जैव-उर्वरकों का प्रमाणीकरण गुणवत्ता भी सुनिश्चित कर सकता है और किसानों या किसान संगठनों को उनकी उपज के लिये बेहतर कीमत दिलाने में मदद कर सकता है।

अन्य सरकारी पहलें:

  • एक राष्ट्र एक उर्वरक (One Nation One Fertilizer- ONOF): इस योजना को प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना (PMBJP) के रूप में भी जाना जाता है जिसे वर्ष 2022 में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। इस योजना के अंतर्गत, उर्वरक सब्सिडी योजना के तहत आने सभी उर्वरक निर्माताओं द्वारा उर्वरकों के लिये एक ही ब्रांड और लोगो का उपयोग करना आवश्यक है। ब्रांड का नाम भारत (Bharat) रखा गया है और इसमें यूरिया, DAP, NPK और MOP सहित सभी प्रकार के उर्वरक शामिल हैं।
    • इस योजना का उद्देश्य देश भर में उर्वरक ब्रांडों का मानकीकरण करना, उर्वरकों की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के बारे में किसानों के भ्रम को दूर करना, लागत को कम करना एवं उर्वरकों की उपलब्धता बढ़ाना और उर्वरकों की देश भर में आवाजाही को कम करके माल ढुलाई सब्सिडी की बचत करना है।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfer- DBT): यह प्रणाली उर्वरक विभाग द्वारा किसानों को उर्वरक खरीद हेतु सब्सिडी राशि प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2016 में शुरू की गई थी। इस प्रणाली के तहत खुदरा दुकानों पर स्थापित पॉइंट ऑफ सेल (PoS) उपकरणों के माध्यम से किसानों को उर्वरक की बिक्री के बाद उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी हस्तांतरित की जाती है।
    • इस प्रणाली का उद्देश्य उर्वरकों की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करना, सब्सिडी के विचलन एवं लीकेज को रोकना, उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना और सब्सिडी भुगतान के लिये एक पारदर्शी एवं जवाबदेह प्रणाली का निर्माण करना है।
  • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (Nutrient Based Subsidy- NBS): यह योजना वर्ष 2010 में उर्वरक विभाग द्वारा उत्पादों के बजाय पोषक तत्वों पर सब्सिडी प्रदान करने के लिये शुरू की गई थी। इस योजना के तहत नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटैशियम (K) और सल्फर (S) जैसे पोषक तत्वों
  • लिये सब्सिडी दरें सरकार द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये पहले से तय कर दी जाती हैं। निर्माता और आयातक बाज़ार की स्थितियों के आधार पर अपने उत्पादों की खुदरा कीमत तय करने के लिये स्वतंत्र हैं।
  • इस योजना का उद्देश्य जटिल उर्वरकों के उत्पादन एवं खपत को प्रोत्साहित करना, NPKS पोषक तत्वों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना, सरकार पर सब्सिडी के बोझ को कम करना और उर्वरक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रेरित करना है।
  • नीम-लेपित यूरिया (Neem Coated Urea- NCU): यह योजना सरकार द्वारा मृदा के स्वास्थ्य को संरक्षित करने और बेहतर फसल पैदा करने के लिये जैविक यूरिया के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2015 में शुरू की गई थी। इस योजना के तहत किसान बचत में लगभग 10% की कटौती करने के लिये केवल नीम लेपित जैविक यूरिया का उपयोग कर रहे हैं। जिस यूरिया को नीम के बीज के तेल से लेपित किया जाता है उसे नीम-लेपित यूरिया कहा जाता है।
    • सरकार ने सभी स्वदेशी और आयातित यूरिया को नीम-लेपित करना अनिवार्य कर दिया है ताकि मृदा में यूरिया की धीरे-धीरे रिहाई सुनिश्चित हो और गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये इसका उपयोग करना कठिन हो जाए।
    • इस योजना का उद्देश्य यूरिया के उपयोग को विनियमित करना, फसल के लिये नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ाना, उर्वरक अनुप्रयोग की लागत को कम करना, सब्सिडी की बर्बादी एवं विचलन को रोकना और यूरिया के कारण होने वाले मृदा एवं जल प्रदूषण को कम करना है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की उर्वरक सब्सिडी व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। हाल ही में लॉन्च किया गया पीएम-प्रणाम कार्यक्रम इसमें कैसे मदद कर सकता है? चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1.  वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
  2.  अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  3.  सल्फर जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये कच्चा माल है, तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत सरकार कृषि में 'नीम अलेपित यूरिया (Neem-coated Urea)' के उपयोग को क्यों प्रोत्साहित करती है? (2016)

(a) मृदा में नीम तेल के निर्मुक्त होने से मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण बढ़ाती है।
(b) नीम लेप, मृदा में यूरिया के घुलने की दर को धीमा कर देता है।
(c) नाइट्रस ऑक्साइड, जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है, फसल वाले खेतों से वायुमंडल में बिल्कुल भी विमुक्त नहीं होती है।
(d) विशेष फसलों के लिये यह एक अपतृणनाशी (वीडिसाइड) और एक उर्वरक का संयोजन है।

उत्तर: (b)

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