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कृषि

पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी व्यवस्था में यूरिया को शामिल करना

  • 10 Jun 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खरीफ फसलें, CACP, यूरिया, DAP, LPG सब्सिडी, NBS व्यवस्था

मेन्स के लिये:

पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी व्यवस्था में यूरिया को शामिल करना।

चर्चा में क्यों?

कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने खरीफ फसलें हेतु वर्ष 2023-2024 में अपनी गैर-मूल्य नीति की सिफारिश की है ताकि कृषि में असंतुलित पोषक तत्त्व की समस्या को दूर करने के लिये यूरिया को पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) व्यवस्था के तहत लाया जा सके।

  • वर्तमान में यूरिया को एनबीएस योजना से बाहर रखा गया है जिसके कारण असमान उपयोग और मृदा के स्वास्थ्य में गिरावट आई है।

कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP):

  • CACP वर्ष 1965 में गठित कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का एक वैधानिक निकाय है।
  • वर्तमान में आयोग में एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, एक सदस्य (सरकारी) और दो सदस्य (गैर-सरकारी) शामिल हैं।
  • गैर-आधिकारिक सदस्य कृषक समुदाय के प्रतिनिधि होते हैं और आमतौर पर कृषक समुदाय के साथ सक्रिय सहयोग रखते हैं।
  • कृषकों को आधुनिक तकनीक अपनाने तथा उत्पादकता में वृद्धि करने और समग्र अनाज उत्पादन में वृद्धि करने को प्रोत्साहित करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSPs) की सिफारिश करना अनिवार्य है।
  • CACP खरीफ और रबी मौसम के लिये कीमतों की सिफारिश करने वाली अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।

यूरिया को NBS व्यवस्था के तहत शामिल करने आवश्यकता

  • प्राकृतिक गैस की अपर्याप्त आपूर्ति: 
    • प्राकृतिक गैस की अपर्याप्त आपूर्ति के कारण भारत में यूरिया उर्वरक के उत्पादन की क्षमता सीमित है, जिससे आयात में वृद्धि हुई है। इन आयातित यूरिया उर्वरकों पर घरेलू यूरिया की तुलना में प्रति टन अधिक सब्सिडी का बोझ/बर्डन है।
    • इसके अतिरिक्त उर्वरकों के लिये कच्चे माल की उच्च वैश्विक कीमतें मध्यम अवधि में उर्वरक सब्सिडी को रोकने के सरकार के प्रयासों को और जटिल बनाती हैं।
    • नतीजतन उर्वरक सब्सिडी को नियंत्रित करने के सरकार के प्रयासों को मध्यम अवधि में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और बढ़ती मांग के कारण सब्सिडी राशि में वृद्धि होने की संभावना है।
  • असंतुलित पोषक तत्त्व का उपयोग:
    • वर्षों से कृषि में यूरिया के अत्यधिक उपयोग ने पौधों में पोषक तत्त्वों के असंतुलन में योगदान दिया है। फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे गैर-यूरिया उर्वरक NBS के अंतर्गत आते हैं, जिनमें सब्सिडी उनके पोषक तत्त्वों से जुड़ी होती है।
    • हालाँकि यूरिया इस व्यवस्था से बाहर है, जिससे सरकार को अपने अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) और सब्सिडी पर सीधा नियंत्रण बनाए रखने में मदद मिलती है।
    • मूल्य असमानता, अन्य महत्त्वपूर्ण खनिजों की अवहेलना के परिणामस्वरूप किसान यूरिया का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं, जिससे मृदा के स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पद रहा है।
  • मूल्य निर्धारण नीतियों का प्रभाव:
    • यूरिया की MRP 5,360 रुपए प्रति मीट्रिक टन (MT) पर अपरिवर्तित बनी हुई है, जबकि समय के साथ डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) जैसे अन्य उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि हुई है।  
    • गैर-यूरिया उर्वरकों के विनिर्माताओं को उचित सीमा के भीतर अधिकतम खुदरा मूल्य निर्धारित करने की स्वतंत्रता के साथ-साथ पोषक तत्त्वों की मात्रा के आधार पर तय प्रति टन सब्सिडी ने गैर-यूरिया उर्वरकों की बढ़ती कीमतों में योगदान दिया है।
    • नतीजतन, यूरिया की बिक्री अन्य उर्वरकों की तुलना में काफी अधिक रही है, जिससे कृषि में पोषक तत्त्वों का असंतुलन बढ़ गया है।

सिफारिशें

  • यूरिया को NBS व्यवस्था के तहत लाना:
    • यह सब्सिडी को यूरिया की पोषक सामग्री के साथ संयोजित करने और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने में सक्षम करेगा।
  • सब्सिडी वाले उर्वरक बैग पर सीमा निर्धारित करना:
    • सरकार को सब्सिडी के बोझ को कम करने के लिये सब्सिडी वाले LPG सिलेंडरों हेतु प्रति किसान उर्वरकों के बैगों की संख्या पर सीमा निर्धारित करनी चाहिये।
  • उत्तोलन प्रौद्योगिकी और पहचान प्रणाली:
    • CACP रिटेलर दुकानों पर स्थापित पॉइंट ऑफ सेल उपकरणों का उपयोग करके सब्सिडी वाले उर्वरकों पर प्रस्तावित सीमा को लागू करने में आसानी पर प्रकाश डालता है।
    • लाभार्थियों की पहचान अन्य पहचान विधियों के अतिरिक्त आधार कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड (KCC), मतदाता पहचान पत्र के माध्यम से की जा सकती है।

NBS व्यवस्था: 

  • परिचय: 
    • NBS व्यवस्था के तहत इन उर्वरकों में निहित पोषक तत्त्वों (N, P, K और S) के आधार पर किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक प्रदान किये जाते हैं।
    • साथ ही मोलिब्डेनम (Mo) और जिंक जैसे माध्यमिक तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्वों वाले समृद्ध उर्वरकों को अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है।
      • P और K उर्वरकों पर सब्सिडी की घोषणा सरकार द्वारा वार्षिक आधार पर प्रत्येक पोषक तत्त्व के लिये प्रति किलोग्राम के तौर पर की जाती है जो P और K उर्वरकों की अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलू कीमतों, विनिमय दर, देश में इन्वेंट्री स्तर आदि को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जाती है।
    • NBS नीति का उद्देश्य P और K उर्वरकों की खपत को बढ़ाना है ताकि NPK उर्वरीकरण का इष्टतम संतुलन (N:P: K= 4:2:1) प्राप्त किया जा सके।
  • महत्त्व: 
    • इससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार होगा और फसलों की उपज में वृद्धि होगी जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में वृद्धि होगी।
    • यह उर्वरकों का तर्कसंगत उपयोग करेगा; इससे उर्वरक सब्सिडी का बोझ भी कम होगा।

NBS संबंधी चुनौतियाँ:

  • आर्थिक और पर्यावरणीय लागत: 
    • NBS नीति सहित उर्वरक सब्सिडी अर्थव्यवस्था पर एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय बोझ डालती है। यह खाद्य सब्सिडी के बाद दूसरी सबसे बड़ी सब्सिडी के रूप में है जो वित्तीय स्वास्थ्य पर दबाव डालती है।
    • इसके अतिरिक्त मूल्य निर्धारण असमानता के कारण असंतुलित उर्वरक उपयोग के प्रतिकूल पर्यावरणीय परिणाम होते हैं जैसे कि मृदा क्षरण और पोषक तत्त्वों का अपवाह, दीर्घकालिक कृषि स्थिरता को प्रभावित करता है।
  • कालाबाज़ारी और डायवर्जन:
    • रियायती दर पर मिलने वाला यूरिया कालाबाज़ारी और डायवर्जन के प्रति अतिसंवेदनशील है। इसे कभी-कभी अवैध रूप से थोक क्रेताओं, व्यापारियों या गैर-कृषि उपयोगकर्त्ताओं जैसे- प्लाईवुड व पशु आहार निर्माताओं को बेचा जाता है। 
    • इसके अलावा बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में रियायती दर पर मिलने वाले यूरिया की तस्करी के उदाहरण हैं जिससे घरेलू कृषि उपयोग के लिये रियायती दर पर मिलने वाले उर्वरकों की हानि होती है।
  • रिसाव और दुरुपयोग:  
    • NBS पद्धति यह सुनिश्चित करने हेतु कुशल वितरण प्रणाली पर निर्भर करता है कि सब्सिडी वाले उर्वरक लक्षित लाभार्थियों यानी किसानों तक पहुँचें।
    • हालाँकि रिसाव और दुरुपयोग के मामले हो सकते हैं, जिनमें सब्सिडी वाले उर्वरक किसानों तक नहीं पहुँच पाते हैं या कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में उपयोग किये जाते हैं। यह सब्सिडी की प्रभावशीलता को कम करता है और वास्तव में किसानों को सस्ती उर्वरकों तक पहुँच से वंचित करता है।
  • क्षेत्रीय विषमताएँ:  
    • देश के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि पद्धतियाँ, मृदा की स्थिति और फसल की पोषक आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं।
    • एक समान NBS  व्यवस्था को लागू करने से विशिष्ट आवश्यकताओं और क्षेत्रीय विषमताओं को पर्याप्त रूप से उजागर नहीं किया जा सकता है, संभावित रूप से उप-इष्टतम पोषक तत्त्व अनुप्रयोग एवं उत्पादकता भिन्नताएँ हो सकती हैं।

आगे की राह 

  • सभी उर्वरकों हेतु एक समान नीति आवश्यक है, क्योंकि फसल की पैदावार और गुणवत्ता के लिये नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) एवं पोटेशियम (K) महत्त्वपूर्ण हैं।
  • लंबी अवधि में NBS को फ्लैट प्रति एकड़ नकद सब्सिडी द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है जो किसानों को किसी भी उर्वरक को खरीदने की अनुमति देता है।
  • इस सब्सिडी में मूल्य वर्द्धित और अनुकूलित उत्पाद शामिल होने चाहिये जो कुशल नाइट्रोजन वितरण एवं अन्य आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं।
  • NBS व्यवस्था के वांछित परिणामों को प्राप्त करने हेतु मूल्य नियंत्रण, सामर्थ्य और टिकाऊ पोषक तत्त्व प्रबंधन के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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