विकसित भारत को पुनः परिभाषित करना | 30 Dec 2023
यह एडिटोरियल 28/12/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The quest for ‘happiness’ in the Viksit Bharat odyssey” लेख पर आधारित है। इसमें विकास के ख़ुशहाली-प्रेरित मॉडल की अवधारणा के बारे में चर्चा की गई है और तर्क दिया गया है कि केवल आर्थिक विकास प्राप्त करना ही विकास का वास्तविक अर्थ नहीं है।
प्रिलिम्स के लिये:विज़न इंडिया@2047, मानव विकास सूचकांक, विश्व बैंक का हरित सूचकांक, निर्धनता सूचकांक, लैंगिक समानता सूचकांक, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक। मेन्स के लिये:विज़न इंडिया@2047, विकसित भारत के पहलू, आर्थिक विकास से परे भारत के विकास के लिये मुख्य विचार, भारत के लिये खुशी-प्रेरित विकास मॉडल का महत्त्व, विकास के साथ खुशी-प्रेरित विकास मॉडल को शामिल करने का तरीका। |
‘विकसित भारत’ (Viksit Bharat) का औपचारिक शुभारंभ एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। भारत की स्वतंत्रता के 100वें वर्ष, यानी वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने की संभावना वास्तव में मनोरम है। देश की तीव्र प्रगति को देखते हुए इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार कर सकना संभव नज़र आता है। यह क्षण इच्छित विकास की अवधारणा (concept of intended development) का मूल्यांकन करने का भी अवसर प्रदान करता है। विकास प्राथमिकताओं और फोकस क्षेत्र का चयन जटिल और महत्त्वपूर्ण, दोनों है।
‘विकसित भारत’ के तहत आर्थिक विकास पर अत्यधिक बल दिया गया है। हालाँकि, उत्तर- विकासवादियों (post-developmentalists) का तर्क है कि यह दृष्टिकोण विकास के यूरो-केंद्रित दृष्टिकोण को दर्शाता है।
विकास का यूरो-केंद्रित दृष्टिकोण:
- ‘विकास का यूरो-केंद्रित दृष्टिकोण’ (Euro-centric View of Development) शब्दावली यूरोपीय या पश्चिमी दृष्टिकोण के आसपास केंद्रित विकास को समझने और उसका मूल्यांकन करने के दृष्टिकोण को संदर्भित करती है। यह परिप्रेक्ष्य ऐतिहासिक रूप से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास संबंधी चर्चा पर हावी रहा है, जहाँ प्रायः यूरोपीय समाजों के अनुभवों एवं उपलब्धियों को प्रगति के मानक या आदर्श के रूप में रखा जाता है।
- इसकी आलोचना होती रही है क्योंकि यह विकास के प्राथमिक मापकों के रूप में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और औद्योगीकरण जैसे पारंपरिक आर्थिक संकेतकों का उपयोग करता है।
विज़न इंडिया@2047:
- विजन इंडिया@2047 (Vision India@2047) अगले 25 वर्षों में भारत के विकास का खाका तैयार करने के लिये भारत के शीर्ष नीति थिंक टैंक नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा शुरू की गई एक परियोजना है।
- परियोजना का लक्ष्य भारत को नवाचार एवं प्रौद्योगिकी में वैश्विक अग्रणी देश, मानव विकास एवं सामाजिक कल्याण का मॉडल और पर्यावरणीय संवहनीयता का चैंपियन या उत्साही पक्ष-समर्थक बनाना है।
‘विकसित भारत’ के विभिन्न पहलू कौन-से हैं?
- संरचनात्मक रूपांतरण: यह निम्न उत्पादकता वाले क्षेत्रों (जैसे कृषि) से उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों (जैसे विनिर्माण एवं सेवाएँ) की ओर संसाधनों के संक्रमण को संदर्भित करता है। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है, रोज़गार सृजित हो सकते हैं और गरीबी कम हो सकती है।
- श्रम बाज़ारों का निर्माण: इसमें श्रम आपूर्ति की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार लाना, श्रमिकों के कौशल एवं रोज़गार योग्यता को बढ़ाना और निष्पक्ष एवं कुशल श्रम नियमों को सुनिश्चित करना शामिल है। इससे श्रम उत्पादकता बढ़ सकती है, अनौपचारिकता कम हो सकती है और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: इसमें कंपनियों की दक्षता एवं नवाचार को बढ़ाना, उत्पादों एवं सेवाओं की गुणवत्ता एवं विविधता में सुधार करना और घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों का विस्तार करना शामिल है। इससे आर्थिक गतिशीलता को बढ़ावा मिल सकता है, निर्यात बढ़ सकता है और निवेश आकर्षित हो सकता है।
- वित्तीय और सामाजिक समावेशन में सुधार: इसमें गरीबों और हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिये वित्तीय सेवाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं की पहुँच एवं सामर्थ्य का विस्तार करना शामिल है। इससे उनकी आय, बचत और उपभोग के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सशक्तीकरण में सुधार हो सकता है।
- शासन सुधार: इसमें शासन की संस्थाओं और प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करना शामिल है, जैसे विधि का शासन, जवाबदेही, पारदर्शिता और भागीदारी। इससे सार्वजनिक वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण में सुधार हो सकता है, भ्रष्टाचार कम हो सकता है और विश्वास एवं की वृद्धि हो सकती है।
- हरित क्रांति के अंतर्गत अवसरों का लाभ उठाना: इसमें नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और जलवायु प्रत्यास्थता जैसी हरित प्रौद्योगिकियों और अभ्यासों को अपनाना और उन्हें बढ़ावा देना शामिल है। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, पर्यावरणीय क्षति का शमन हो सकता है और वृद्धि एवं विकास के नए अवसर पैदा हो सकते हैं।
आर्थिक विकास से परे भारत के विकास के लिये मुख्य विचार-विषय कौन-से हैं?
- विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की चाहत भारत की सभी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकेगी। हालाँकि भौतिक विकास महत्त्वपूर्ण है, यह वर्ष 2047 तक के भारत के विभिन्न लक्ष्यों में से केवल एक है।
- विभिन्न आलोचक पारंपरिक आर्थिक विकास मॉडल पर सवाल उठाते रहे हैं, जहाँ वे प्रगति और आधुनिकता संबंधी विचारों को चुनौती देते हैं।
- यह उपयुक्त समय है कि ‘विकसित भारत’ की अवधारणा पर पुनर्विचार किया जाए और भारत के विकास के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं को भी चिंतन के दायरे में लाया जाए।
विचार योग्य अन्य पहलू कौन-से हैं?
- विकास की इस यात्रा में ख़ुशहाली (Happiness) मुख्य लक्ष्य होना चाहिये। ख़ुशहाली प्राप्त किये बिना विकास का कोई अर्थ नहीं है। विडंबना यह है कि दुनिया के कई देश विकसित तो हो गये, लेकिन लोग ख़ुश नहीं हैं।
- ‘विकसित भारत’ के बजाय ‘ख़ुशहाल भारत-विकसित भारत’ (Happy India-Developed India) का थीम अपनाया जाना चाहिये।
- समृद्ध राष्ट्र अनिवार्य रूप से ख़ुशहाल राष्ट्र नहीं हैं। समृद्ध देशों ने केवल सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय के विषय में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण संकेतकों के संदर्भ में वे बुरी तरह विफल रहे हैं।
- विकास का यह दृष्टिकोण मानसिक स्वास्थ्य और सेहत की अनदेखी करता रहा है।
- वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट (World Happiness Report) 2023 से पता चलता है कि कई विकसित देश ख़ुशहाली के संकेतक पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं।
- कुछ देशों ने दोनों ही स्थितियों को संतुलित तरीके से हासिल किया है।
- फिनलैंड, डेनमार्क, आइसलैंड और नीदरलैंड जैसे देश सबसे ख़ुशहाल देश हैं। उन्होंने सामाजिक विघटन की कीमत पर विकास प्राप्त नहीं किया है।
- इसके बजाय, उन्होंने सामाजिक संबंध और सहायता प्रणालियों का निर्माण किया है।
- भारत का मामला इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद ख़ुशहाली के मामले यह 137 देशों की सूची में 126वें स्थान पर है।
- विकास और ‘विकसित भारत’ का एजेंडा एक स्वप्न बनकर ही रह जाएगा यदि हम ख़ुशहाली सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन करने में विफल रहें।
भारत के लिये खुशहाली-प्रेरित विकास मॉडल का क्या महत्त्व है?
- भारत के लिये खुशहाली-प्रेरित विकास मॉडल (Happiness-Induced Development Model) अत्यधिक प्रासंगिक है क्योंकि हम सामाजिक संबंधों और सांस्कृतिक अनिवार्यताओं द्वारा उल्लेखनीय रूप से शासित होते हैं।
- इसके विपरीत, केवल आर्थिक विकास पर केंद्रित वर्तमान मॉडल हमारी सामाजिक व्यवस्था के लिये अत्यधिक विघटनकारी है।
- विकास का यह रूप विकारों और अपराध को जन्म देता है। इस विकास चक्र में जीवन के सभी पहलू एक साथ नहीं बदलते हैं, जिससे असंतुलन और विरोधाभास उत्पन्न होते हैं।
- ऐसी चीज़ें हमारे समाज में दिखाई दे रही हैं, जहाँ औद्योगिक एवं आर्थिक विकास चिंताजनक रूप से बदल रहे हैं, लेकिन जीवन के गुणवत्ता संबंधी पहलू पिछड़ते जा रहे हैं।
- ख़ुशहाली के मापन कई देशों में सार्वजनिक नीति के लक्ष्य बन गए हैं। खुशहाली अब कोई व्यक्तिपरक मामला नहीं रह गया है।
विकास के खुशहाली-प्रेरित मॉडल को विकास या प्रगति के साथ संलग्न करना:
- मानव विकास सूचकांक (HDI) को एकीकृत करना: संकेतकों में HDI को वेटेज या महत्त्व दिया जाए, जिसमें जीवन प्रत्याशा, शैक्षिक प्राप्ति और आय स्तर शामिल होते हैं। यह पारंपरिक आर्थिक संकेतकों से परे ‘वेल-बीइंग’ या सेहत/कल्याण का अधिक व्यापक मापन प्रदान करता है।
- सामाजिक विकास सूचकांक (SDI) का समावेशन: सामाजिक विकास के लिये संयुक्त राष्ट्र अनुसंधान संस्थान (UN Research Institute for Social Development) के सामाजिक विकास सूचकांक को संलग्न करें, जिसमें 16 मुख्य संकेतक शामिल हैं। यह विभिन्न सामाजिक पहलुओं के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, जिससे विकास की समग्र समझ में योगदान प्राप्त हो सकता है।
- ‘ग्रीन इंडेक्स’ को अपनाना: विश्व बैंक के हरित सूचकांक (Green Index) का उपयोग करें, जो उत्पादित परिसंपत्तियों, प्राकृतिक संसाधनों और मानव संसाधनों के आधार पर किसी देश की समृद्धि का मूल्यांकन करता है। यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप है और आर्थिक प्रगति एवं पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के बीच संतुलन को दर्शाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानव पीड़ा सूचकांक पर विचार करना: मानव पीड़ा से संबंधित मापदंडों के आधार पर किसी देश की सेहत का आकलन करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानव पीड़ा सूचकांक (International Human Suffering Index) को एकीकृत करें। यह जीवन की समग्र गुणवत्ता पर एक सूक्ष्म परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।
- विविध सूचकांकों को संलग्न करना: वैश्विक नवाचार सूचकांक, विधि का शासन सूचकांक, निर्धनता सूचकांक, भ्रष्टाचार बोध सूचकांक, लैंगिक समानता सूचकांक और विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जैसे विभिन्न सूचकांकों को शामिल किया जाए। इनमें से प्रत्येक सूचकांक विकास और खुशहाली के विशिष्ट पहलुओं को संबोधित करता है और एक अधिक व्यापक मूल्यांकन में योगदान देता है।
- खुशहाली और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना: एक समर्पित सूचकांक या संकेतकों का समूह स्थापित करें जो विशेष रूप से खुशहाली और कल्याण का मापन करते हो। इसमें खुशहाल भारत (Happy India) की दृष्टि के अनुरूप मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक संबंध और समग्र जीवन संतुष्टि जैसे कारक शामिल हो सकते हैं।
- नियमित निगरानी और मूल्यांकन: चुने हुए सूचकांकों की नियमित रूप से निगरानी और मूल्यांकन के लिये एक सुदृढ़ प्रणाली लागू करें। इससे सुनिश्चित होगा कि नीतियाँ और हस्तक्षेप दीर्घावधि में खुशहाली और कल्याण को बढ़ावा देने के लक्ष्य के अनुरूप हैं।
- खुशहाली के लक्ष्यों के साथ नीति संरेखण: राष्ट्रीय नीतियों और विकास रणनीतियों को खुशहाली से संबंधित चिह्नित सूचकांकों और लक्ष्यों के साथ संरेखित करें। यह सुनिश्चित करेगा कि सरकारी पहलें नागरिकों की भलाई में प्रत्यक्ष योगदान करेंगी।
- शैक्षिक एवं जागरूकता कार्यक्रम: खुशहाली और कल्याण को प्राथमिकता देने की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा देने के लिये शैक्षिक कार्यक्रम एवं जागरूकता अभियान क्रियान्वित करना चाहिये। इसमें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को कम करने, कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने तथा सामाजिक संबंधों के महत्त्व पर बल देने संबंधी पहलें शामिल हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
आर्थिक विकास के साथ-साथ खुशहाली और कल्याण को महत्त्व देने वाले समग्र दृष्टिकोण को अपनाकर भारत एक अधिक सतत एवं परिपूर्णकारी विकास प्रक्षेप प्राप्त करने की आकांक्षा पाल सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत के विकास मॉडल में एक प्रमुख संकेतक के रूप में खुशहाली (Happiness) को शामिल करने के महत्त्व की चर्चा कीजिये। खुशहाली-प्रेरित विकास मॉडल को देश के विकास दृष्टिकोण में किस प्रकार संलग्न किया जा सकता है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों वर्ष के प्रश्नप्रश्न: संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है। इसके निर्धारकों की चर्चा कीजिये। उन कारकों का भी उल्लेख कीजिये जो भारत को अपनी संभावित सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने में बाधा डालते हैं। |