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भारत-चीन संबंधों की बदलती दिशा एवं विकास

  • 21 Apr 2025
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 21/04/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “India-China relations at 75: An uncertain thaw” पर आधारित है। इस लेख में भारत-चीन संबंधों में लगातार संरचनात्मक चुनौतियों का उल्लेख किया गया है, जिसमें LAC से जुड़े अनसुलझे विवाद और रणनीतिक अविश्वास शामिल हैं। भले ही दोनों देशों के बीच 75 वर्षों से राजनयिक संबंध बने हुए हैं, फिर भी आज भी वैश्विक परिस्थितियों में हो रहे बदलावों के बीच तनाव बना हुआ है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-चीन संबंध, यूरोपीय संघ कार्बन सीमा कर, भारत-चीन सीमा गतिरोध से संबंधित स्थान, यूरोपीय संघ कार्बन सीमा कर, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB), एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB)  

मेस के लिये:

भारत और चीन के बीच सकारात्मक विकास के प्रमुख क्षेत्र, भारत और चीन के बीच विवाद के प्रमुख क्षेत्र। 

हाल ही में कूटनीतिक गर्मजोशी के बावजूद, भारत-चीन संबंध संरचनात्मक समस्याओं से बुनियादी रूप से चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं। वर्ष 2020 के उल्लंघनों के बाद अधूरे डी-एस्केलेशन के साथ LAC पर अनसुलझे सीमा विवाद, एक फ्लैशपॉइंट बना हुआ है। अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी के संदर्भ में चीन की चिंताएँ, इसे ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को त्यागने के रूप में देखते हुए, द्विपक्षीय संबंधों को और जटिल बनाती हैं। भले ही दोनों देश अप्रैल 2025 में राजनयिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे कर रहे हों, लेकिन ये निरंतर मुद्दे यह सुनिश्चित करते हैं कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच तनाव उनके संबंधों को परिभाषित करना जारी रखेगा।

भारत और चीन के बीच सकारात्मक विकास के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • राजनयिक वार्ता की बहाली: वर्ष 2020 के बाद तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, दोनों देशों ने तनाव को प्रबंधित करने और वृद्धि को रोकने के लिये संवाद तंत्र को पुनर्जीवित किया है। 
    • विशेष प्रतिनिधि (SR) तंत्र जैसी संरचित वार्ता का पुनरुद्धार, राजनयिक सामान्य स्थिति बहाल करने में आपसी रुचि को दर्शाता है।
      • 23वीं SR बैठक (दिसंबर 2024) 5 वर्ष के अंतराल के बाद पुनः शुरू हुई।
    • रचनात्मक संलग्नता अब केवल सैन्य रुख के बजाय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित है।
  • LAC पर गश्त समझौता: भारत और चीन LAC के टकराव बिंदुओं पर विनियमित गश्त पर एक सीमित लेकिन महत्त्वपूर्ण समझौते पर पहुँचे।
    • हालाँकि पूर्ण तनाव कम होना अभी बाकी है, लेकिन यह टकराव से प्रबंधन की ओर बदलाव को दर्शाता है। यह कदम आकस्मिक संघर्ष के जोखिम को कम करने के उद्देश्य से एक सामरिक बदलाव को दर्शाता है।
      • अक्तूबर 2024 में, दोनों पक्षों ने कई फ्लैशपॉइंट्स पर गश्त प्रोटोकॉल पर सहमति व्यक्त की, जिससे गलवान (वर्ष 2020) के बाद से चार वर्ष का गतिरोध टूट गया।
      • भारतीय विदेश मंत्री ने हाल ही में दोहराया कि “सीमा पर शांति और सौहार्द पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता” और वर्ष 2020 के बाद संबंधों का पुनर्निर्माण ‘पारस्परिक हित’ में है।
  • लोगों के बीच आदान-प्रदान: वर्षों के व्यवधान के बाद, दोनों देशों ने तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने के लिये सांस्कृतिक और पारस्परिक जुड़ाव को पुनर्जीवित करने का काम किया है।
    • सामाजिक स्तर पर विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिये वीज़ा, तीर्थयात्रा वार्ता और शैक्षणिक संपर्क बहाल किये जा रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, चीन ने जनवरी-अप्रैल वर्ष 2025 के दौरान भारतीय नागरिकों को 85,000 से अधिक वीज़ा जारी किये हैं। साथ ही, कैलाश मानसरोवर यात्रा वर्ष 2025 के तौर-तरीकों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
  • तनाव के बावजूद व्यापार निरंतरता: यद्यपि भू-राजनीतिक संघर्ष कायम है, द्विपक्षीय व्यापार लचीला बना हुआ है, जो मज़बूत आर्थिक अंतरनिर्भरता दर्शाता है। 
    • भारत ने चीन से पूरी तरह अलग हुए बिना गलवान के बाद आर्थिक प्रतिक्रिया को संतुलित किया है, जो व्यावहारिकता का संकेत है। आर्थिक संबंध रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा को रोकने के लिये एक बफर के रूप में काम करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2024 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 118.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। तकनीकी आयात पर अंकुश के बावजूद चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।
  • जलवायु और वैश्विक विकास मुद्दे: दोनों राष्ट्र जलवायु न्याय, हरित वित्तपोषण और दक्षिण-दक्षिण सहयोग की आवश्यकता पर सहमत हैं।
    • पश्चिमी देशों के कार्बन टैरिफ और वैश्विक जलवायु शासन में असमानताओं के संदर्भ में साझा चिंताएँ नीतिगत अभिसरण का क्षेत्र बनाती हैं। इससे बहुपक्षीय जलवायु मंचों पर चीन के साथ भारत का नेतृत्व बढ़ता है।
    • उदाहरण के लिये, भारत और चीन ने अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और आर्थिक प्रभाव संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए COP29 में यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा कर के खिलाफ एकजुट हुए।

भारत और चीन के बीच विवाद के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं? 

  • चीन की ‘ICAD’ रणनीति (अवैध, बलपूर्वक, आक्रामक, भ्रामक): बीजिंग की संकर रणनीति— मानचित्रण आक्रामकता, जल-राजनीति और बुनियादी अवसंरचना का निर्माण, ज़मीनी तथ्यों को बदलने के लिये एक मुखर ICAD सिद्धांत को दर्शाता है। भारत इसे क्षेत्रीय संप्रभुता के लिये एक उद्देश्यपूर्ण चुनौती के रूप में देखता है।
    • उदाहरण के लिये, चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 30 स्थानों के नाम बदलकर चीनी और तिब्बती नाम रख दिये हैं, जो कि पूर्वोत्तर भारतीय राज्य पर अपना दावा जताने का उसका निरंतर प्रयास है।
      • इसके अलावा, चीन अरुणाचल सीमा के पास यारलुंग-त्सांगपो पर एक विशाल बांध बनाने की योजना बना रहा है।
  • चीन-पाकिस्तान गठजोड़ और CPEC: चीन की पाकिस्तान के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी, विशेष रूप से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से, PoK में भारत के संप्रभुता के दावों का सीधे तौर पर उल्लंघन करती है और दो मोर्चों पर सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है।
    • CPEC गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। इसके अलावा, ग्वादर बंदरगाह में चीन की मौजूदगी और पाकिस्तान को हथियारों का अंतरण भारतीय सुरक्षा हलकों के लिये चिंता का विषय बना हुआ है।
  • व्यापार असंतुलन और आर्थिक निर्भरता: भारत को चीन के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिससे आर्थिक कमज़ोरी उत्पन्न हो रही है। भू-राजनीतिक जोखिमों के बावजूद चीनी तकनीक एवं हार्डवेयर पर निर्भरता बनी हुई है।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में चीन के साथ 99.2 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा दर्ज किया है।
  • सीमा विवाद और LAC सैन्यीकरण: अनसुलझा सीमा विवाद केंद्रीय दोष बना हुआ है, LAC पर प्रोटोकॉल के बार-बार उल्लंघन से विश्वास कम हो रहा है।
    • भागों में विघटन के बावजूद, पूर्ण डी-एस्केलेशन और डी-इंडक्शन नहीं हुआ है। चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति ने टकराव के क्षेत्र का विस्तार किया है।
  • दक्षिण एशिया और समुद्री प्रतिस्पर्द्धा: BRI परियोजनाओं और बंदरगाह अवसंरचना के माध्यम से भारत के पड़ोस में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत की क्षेत्रीय प्रधानता को चुनौती देती है। इससे दक्षिण एशिया एवं IOR में सीधी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
    • चीन ने श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव में बंदरगाहों में निवेश किया है। उदाहरण के लिये, हंबनटोटा बंदरगाह का बीजिंग द्वारा पट्टा और मालदीव के साथ सैन्य समझौता बढ़ती निकटता का संकेत है।
  • रणनीतिक गठबंधन की धारणा: चीन भारत के अमेरिका और क्वाड के साथ बढ़ते संबंधों को 'रणनीतिक स्वायत्तता' से दूर जाने के रूप में देखता है। यह भारत के इंडो-पैसिफिक गठबंधन को नियंत्रण के रूप में देखता है।
    • इसके अलावा, फरवरी 2024 में भारत द्वारा ताइवान के साथ श्रम गतिशीलता समझौते पर हस्ताक्षर करने से चीन का ध्यान आकर्षित हुआ, जो इस तरह के समझौतों को संवेदनशीलता के साथ देखता है।

चीन भारत की आपूर्ति शृंखलाओं में किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है?

  • हाई-टेक हार्डवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स: भारत महत्त्वपूर्ण हार्डवेयर इनपुट के लिये चीन पर बहुत अधिक निर्भर है, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स और IT क्षेत्रों में, जो आपूर्ति शृंखला संप्रभुता को कमज़ोर करता है। यह निर्भरता बीजिंग से रणनीतिक रूप से अलग होने की भारत की क्षमता को बाधित करती है।
    • उदाहरण के लिये, अप्रैल और अगस्त 2024 के दौरान चीन से भारत में आयात लगभग 11% बढ़कर 46.6 बिलियन डॉलर हो गया, जो मुख्य रूप से कंप्यूटर, दूरसंचार उपकरण और घटकों पर आधारित है।
  • सक्रिय औषधीय अवयव (API): फार्मा हब होने के बावजूद, भारत अपनी अधिकांश थोक दवाओं और मध्यवर्ती सामग्रियों का आयात चीन से करता है, जिससे इसका स्वास्थ्य क्षेत्र भू-राजनीतिक व्यवधान के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
    • उदाहरण के लिये, भारत पिछले कई वर्षों से अपनी थोक दवाओं और औषधि मध्यवर्ती सामग्रियों की कुल आपूर्ति का औसतन 68% हिस्सा प्रतिवर्ष चीन से आयात करता रहा है।
  • अक्षय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला: भारत का हरित परिवर्तन सौर और बैटरी विनिर्माण में चीनी प्रभुत्व पर निर्भर करता है, जो इसकी स्वच्छ ऊर्जा स्वायत्तता को सीमित करता है। यह राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को भी प्रभावित करता है।
    • उदाहरण के लिये, सत्र 2023-24 में भारत ने 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सौर उपकरण आयात किये, जिसमें से 62.6% की आपूर्ति चीन द्वारा की गई।
  • भारी मशीनरी और पूंजीगत सामान: भारत के बुनियादी अवसंरचना और विनिर्माण क्षेत्र अभी भी प्रमुख पूंजीगत सामान एवं मशीनरी चीन से खरीदते हैं, जिससे 'मेक इन इंडिया' के तहत प्रयास धीमे हो रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, मशीनरी क्षेत्र में चीन का योगदान 19 बिलियन डॉलर है, जो इस क्षेत्र में भारत के आयात का 39.6% है।

चीन के साथ रणनीतिक संबंध मज़बूत करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • स्थायी सीमा स्थिरता और विश्वास-निर्माण तंत्र की स्थापना: भारत को एक समर्पित संस्थागत तंत्र का प्रस्ताव करना चाहिये जो पूरी तरह से सीमा स्थिरता के प्रबंधन और सैन्य-से-सैन्य पूर्वानुमान को बढ़ावा देने पर केंद्रित हो। 
    • यह WMCC के समानांतर कार्य कर सकता है, लेकिन इसमें एक स्थायी सचिवालय और मौसमी विवाद निवारण, रसद समन्वय एवं पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर विशेषज्ञ कार्य समूह होंगे। 
    • इस तरह की सक्रिय व्यवस्था, टकराव के समय पूर्वानुमानित संलग्नता सुनिश्चित करेगी, आकस्मिक वृद्धि के जोखिम को कम करेगी तथा संकट कूटनीति को मज़बूत करेगी।
  • तटस्थ क्षेत्रों में आपूर्ति शृंखला अवसंरचना का सह-विकास: पूरी तरह से अलग होने के बजाय, भारत तीसरे देश के आर्थिक क्षेत्रों में (विशेष रूप से अफ्रीका या दक्षिण पूर्व एशिया में) संयुक्त रूप से लॉजिस्टिक्स हब, कृषि-प्रसंस्करण इकाइयों या डिजिटल अवसंरचना का विकास करने के लिये चीन के साथ जुड़ सकता है। 
    • सहयोग का यह तटस्थ क्षेत्र दोनों शक्तियों को गैर-विवादास्पद भौगोलिक क्षेत्रों में आपसी हित बनाने की अनुमति देगा, जिससे द्विआधारी प्रतिस्पर्द्धा कम होगी। 
    • यह नियम-आधारित विकास मॉडल में भी योगदान देता है जिसे BRICS या G77 के माध्यम से बहुपक्षीय बनाया जा सकता है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता वार्ता ट्रैक को संस्थागत बनाना: भारत को चीन के साथ ट्रैक 1.5 रणनीतिक स्वायत्तता वार्ता शुरू करनी चाहिये, जो गुट-केंद्रित राजनीति से दूर, बहुध्रुवीय विश्व और बहुध्रुवीय एशिया के लिये दृष्टिकोण को संरेखित करने पर केंद्रित हो।
    • इस वार्ता से दीर्घकालिक धारणाओं, क्षेत्रीय व्यवस्था कार्यढाँचे और रणनीतिक हेजिंग मॉडलों पर विचार किया जा सकता है, जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित कर सकें। 
    • शिक्षाविदों, सेवानिवृत्त राजनयिकों और नीति सलाहकारों को इसमें शामिल करके, यह विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उद्देश्यों की पूर्व-समझ को बढ़ावा देता है।
  • द्विपक्षीय हरित संक्रमण और ऊर्जा सुरक्षा संधि का शुभारंभ: भारत विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लिये स्वच्छ ऊर्जा निवेश, बैटरी भंडारण सहयोग और जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना पर संरेखित करने के लिये एक संयुक्त हरित संक्रमण कार्यढाँचे का प्रस्ताव कर सकता है।
    • इससे रणनीतिक भागीदारी को गैर-शून्य-योग कार्यढाँचे में स्थापित किया जा सकेगा, जहाँ दोनों देश अपने-अपने बदलावों को आगे बढ़ाते हुए वैश्विक समाधानों का सह-निर्माण करेंगे। 
    • समझौते में विवाद-मुक्त प्रौद्योगिकी-साझाकरण तंत्र भी शामिल होना चाहिये तथा स्थायित्व पर सार्वजनिक-निजी सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • समन्वित हिंद-प्रशांत समुद्री वार्ता का प्रस्ताव: समुद्री असुरक्षा को कम करने के लिये, भारत द्विपक्षीय हिंद-प्रशांत समुद्री विश्वास-निर्माण वार्ता शुरू कर सकता है, जो नेविगेशन की स्वतंत्रता, अंतरराष्ट्रीय अपराध, आपदा प्रबंधन एवं समुद्री पारिस्थितिकी जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगी। 
    • यह सैन्य दृष्टीकोण से आगे बढ़कर साझा जल क्षेत्र में सह-अस्तित्व के लिये कार्यात्मक मानदंड निर्धारित करने में मदद करेगा। 
    • यह टकराव के बजाय समावेशी समुद्री प्रशासन को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्व का भी संकेत देता है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों और AI एथिक्स के लिये भारत-चीन परिषद की स्थापना: जैसे-जैसे AI, जैव प्रौद्योगिकी और क्वांटम कंप्यूटिंग विकसित हो रही है, भारत जिम्मेदार प्रौद्योगिकी शासन के लिये द्विपक्षीय परिषद बनाने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
    • यह परिषद दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों में नीतिगत सामंजस्य, नैतिक कार्यढाँचे और साइबर सुरक्षा मानदंडों को सुगम बना सकती है।
    • प्रौद्योगिकी से संबंधित सुरक्षा-व्यवस्था बनाने से गलत धारणाओं से बचने में मदद मिलेगी तथा वैश्विक दक्षिण के लिये डिजिटल मानदंडों को आकार देने में साझा नेतृत्व को प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
  • ब्लू-इकॉनमी और तटीय अनुकूलन परियोजनाओं में संयुक्त निवेश: भारत और चीन मात्स्यिकी, समुद्री संरक्षण, तटीय अनुकूलन और बंदरगाह सुरक्षा में संयुक्त परियोजनाएँ शुरू करने के लिये हिंद महासागर रिम में विशिष्ट तटीय क्षेत्रों का अभिनिर्धारण कर सकते हैं।
    • इससे संप्रभुता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ब्लू-इकॉनमी के क्षेत्र में कार्यात्मक सहयोग का निर्माण होगा।
    • साझा कमज़ोरियों (जैसे: जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक मत्स्यन) पर ध्यान केंद्रित करने से महासागरीय क्षेत्र को संघर्ष के रंगमंच से सहकारी प्रबंधन के रंगमंच में बदलने में मदद मिल सकती है।
  • वित्तीय और विकास संस्थानों में बहुपक्षीय समन्वय का विस्तार: भारत को न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) या एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) जैसे मंचों के माध्यम से दक्षिण-दक्षिण विकास पहलों के सह-वित्तपोषण में चीन को शामिल करना चाहिये। 
    • इससे संवेदनशील क्षेत्रों में स्वच्छ जल, स्वास्थ्य प्रणाली और डिजिटल बुनियादी अवसंरचना जैसे ‘संयुक्त वैश्विक वस्तुओं’ का निर्माण संभव हो सकेगा।
    • ऐसे क्षेत्रों में साझा नेतृत्व से द्विपक्षीय संघर्ष की भावना खत्म हो जाएगी तथा ध्यान साझा जिम्मेदारियों पर केंद्रित हो जाएगा।

निष्कर्ष:

यद्यपि बुनियादी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, भारत-चीन संबंध धीरे-धीरे टकराव से सतर्क जुड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं। जलवायु कार्रवाई, व्यापार व्यावहारिकता और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे अभिसरण के क्षेत्रों का लाभ उठाकर दोनों देश वृद्धिशील विश्वास का निर्माण कर सकते हैं। कूटनीतिक धैर्य, रणनीतिक स्वायत्तता और सहकारी बहुपक्षवाद महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। एक संतुलित, हित-आधारित दृष्टिकोण एशिया में एक स्थायी एवं नियम-आधारित संतुलन सुनिश्चित कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

प्रश्न. हाल ही में कूटनीतिक जुड़ाव के बावजूद, संरचनात्मक मुद्दे भारत-चीन संबंधों के सामान्यीकरण में बाधा डाल रहे हैं। विवाद के प्रमुख क्षेत्रों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये और स्थिर द्विपक्षीय संबंधों के लिये एक रणनीतिक रोडमैप सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. कभी-कभी समाचारों में आने वाला 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) किसके मामलों के संदर्भ में आता है? (2016)

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न 1. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल 'एक पट्टी एक सड़क' पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी.पी.ई.सी. का एक संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइये।  (2018)

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