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कृषि

मेगा फूड स्टोरेज योजना: चुनौतियाँ और आगे की राह

  • 13 Jun 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 07/06/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Pitfalls of the food storage plan’’ लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में स्वीकृत मेगा फूड स्टोरेज योजना, इससे संबद्ध चुनौतियों और इससे निपटने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स:

मेगा फूड स्टोरेज योजना, FPOs, सहकारी क्षेत्र, खाद्य सुरक्षा, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), अंतर-मंत्रालयी समिति, भारतीय खाद्य निगम

मेन्स:

मेगा फूड स्टोरेज योजना - लाभ, चुनौतियाँ और आगे की राह

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विभिन्न योजनाओं के अभिसरण द्वारा 1 लाख करोड़ रुपए परिव्यय वाली ‘‘सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी फूड स्टोरेज योजना/अनाज भंडारण योजना’’ को मंज़ूरी प्रदान की है। प्रखंड स्तर पर अतिरिक्त विकेंद्रीकृत अनाज भंडारण का सृजन करने का नवीनतम निर्णय कृषि क्षेत्र को सशक्त करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

नई पहल कृषि कानूनों के दो सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने पर केंद्रित है—पहला, बाज़ार अवसंरचना को सुदृढ़/विस्तारित करना और दूसरा, किसानों के लिये लाभकारी मूल्य (remunerative prices) सुनिश्चित करना।

हज़ारों टन अनाज को बाज़ार यार्ड में भीगते हुए और खराब होते हुए देखना दुर्भाग्यजन स्थिति है। बाज़ार यार्ड अपने परिसर में कृषि उपज को बुनियादी सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहते हैं। ये समस्याएँ उन अनाजों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिनकी हाल में कटाई की गई है और उन फसलों को भी प्रभावित करती हैं जिनकी कटाई होने वाली है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को भारी नुकसान होता है। कटाई उपरांत होने वाले नुकसान (post-harvest losses) को कम करना नई भंडारण अवसंरचना का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये।

मेगा फूड स्टोरेज योजना: 

  • यह सहकारी क्षेत्र (cooperative sector) में खाद्यान्न भंडारण क्षमता में 70 मिलियन टन की वृद्धि करेगी।
    • यह सहकारी क्षेत्र की विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना होगी।
  • यह योजना सहकारी समितियों को देश भर में विकेंद्रीकृत भंडारण सुविधाएँ स्थापित करने का अवसर देगी जो भारतीय खाद्य निगम (FCI) पर बोझ कम करने, कृषि उपज की बर्बादी में कमी लाने और किसानों को उनकी बिक्री की बेहतर योजना बनाने में मदद करेगी।
  • इस योजना में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की मौजूदा योजनाओं का अभिसरण होगा और इन योजनाओं के तहत उपलब्ध धन का उपयोग किया जाएगा।

नवीन भंडारण योजना की प्रमुख बातें:

  • योजनाओं का अभिसरण: नवीन योजना भारत में कृषि भंडारण अवसंरचना की कमी को दूर करने के लिये तीन मंत्रालयों की आठ कार्यान्वित योजनाओं का अभिसरण करने का लक्ष्य रखती है।
  • अंतर-मंत्रालयी समिति: अनाज भंडारण योजना के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक अंतर-मंत्रालयी समिति (Inter-Ministerial Committee- IMC) का गठन किया जाएगा।
    • इस समिति की अध्यक्षता सहकारिता मंत्री करेंगे और इसमें कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रभारी मंत्रियों के साथ ही विभिन्न संबंधित सचिव शामिल होंगे।
  • सहकारी समितियों को सशक्त करना: सहकारिता मंत्रालय ने सहकारी समितियों की शक्ति का लाभ उठाने और उन्हें सफल व्यावसायिक उद्यमों में बदलने के लिये अनाज भंडारण योजना विकसित की है। यह ‘‘सहकार-से-समृद्धि’’ (Cooperation for Prosperity) के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • PACS के स्तर पर कृषि-अवसंरचना का निर्माण: यह योजना प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agricultural Credit Societies- PACS) के स्तर पर कृषि-अवसंरचना (गोदामों, कस्टम हायरिंग केंद्रों और प्रसंस्करण इकाइयों सहित) के निर्माण पर लक्षित है।
    • इस विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण का उद्देश्य PACS की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाना और भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास में योगदान करना है।
  • पायलट परियोजना: सहकारिता मंत्रालय कम से कम 10 चयनित ज़िलों में अनाज भंडारण योजना की कार्यान्वयन रणनीतियों का परीक्षण एवं परिशोधन करने और इसके परिणामों का आकलन करने के लिये एक पायलट परियोजना लागू करेगा।

इस योजना के लाभ कैसे प्राप्त होंगे?

  • स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता का निर्माण कर (जिससे  खाद्यान्नों की बर्बादी और उन्हें खराब होने से रोका जा सकेगा) कटाई उपरांत होने वाले नुकसान को कम करना
  • किसानों के लिये विभिन्‍न विकल्‍प—जैसे कि राज्‍य एजेंसियों या FCI को अपनी उपज की बिक्री करना, गोदामों में अपनी उपज का भंडारण करना या साझा इकाइयों में अपनी उपज का प्रसंस्‍करण करना, उपलब्ध कर संकटपूर्ण बिक्री (distress sale) पर अंकुश लगाना।
  • PACS को अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में विविधता लाने, जैसे कि उचित मूल्य की दुकानों के रूप में सेवा देने, कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना करने आदि के लिये सक्षम बनाकर आय में वृद्धि करना।
  • उपभोक्ताओं, विशेष रूप से गरीब और कमज़ोर वर्गों के लिये खाद्यान्न की उपलब्धता एवं पहुँच में वृद्धि कर खाद्य सुरक्षा की स्थिति में सुधार लाना।
  • खरीद केंद्रों से गोदामों तक और गोदामों से उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्नों की आवाजाही को न्यूनतम कर परिवहन लागत को कम करना।

कटाई उपरांत होने वाला नुकसान (Post Harvest losses):

  • कटाई उपरांत होने वाले नुकसान किसी उत्पाद के मापनीय मात्रात्मक एवं गुणात्मक नुकसान हैं जो फसल कटाई और मानव उपभोग के बीच घटित होते हैं।
  • ये नुकसान उत्पाद के विभिन्न पहलुओं जैसे कि इसकी मात्रा, गुणवत्ता, पोषण मूल्य और विपणन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।

कटाई उपरांत होने वाले नुकसान के आँकड़े:

  • कटाई उपरांत होने वाले औसत नुकसान निम्नलिखित सीमा के बीच होते हैं:
    • प्रमुख अनाज फसलों के लिये 10-16%
    • गेहूँ के मामले में 26%
    • फलों और सब्जियों के मामले में 34%।
  • इन नुकसानों का आर्थिक मूल्य वर्ष 2014 में 926.51 बिलियन रुपए (15.19 बिलियन अमेरिकी डॉलर)आकलित किया गया।

कटाई उपरांत होने वाले नुकसान के कारण:

  • अवसंरचना की कमी: इष्टतम भंडारण क्षमता और कोल्ड चेन अवसंरचना के अभाव में गुणवत्ता में गिरावट आती है। आधुनिक प्रसंस्करण इकाइयों की कमी के परिणामस्वरूप एंजाइमेटिक ब्राउनिंग की स्थिति बनती है और उत्पादों की खराब होने की अवधि (shelf life) कम हो जाती है।
  • हैंडलिंग और पैकेजिंग संबंधी त्रुटियाँ: हैंडलिंग और अनुपयुक्त पैकेजिंग से जैविक एवं अजैविक जोखिम उत्पन्न होता है। इसके अलावा अपर्याप्त परिवहन अवसंरचना के कारण पारगमन में देरी और यांत्रिक क्षति की स्थिति बनती है।
  • बाज़ार से संपर्कहीनता: सीमित बाज़ार पहुँच और कीमतों में उतार-चढ़ाव, कटाई उपरांत होने वाले नुकसान को बढ़ाते हैं।
  • कीट और रोग का प्रकोप: अपर्याप्त कीट और रोग प्रबंधन के कारण फसल बर्बादी और संदूषण की स्थिति बनती है।
  • वित्तीय बाधाएँ: अपर्याप्त संसाधनों के साथ ऋण तक सीमित पहुँच, बेहतर सुविधाओं तथा प्रौद्योगिकियों में निवेश में बाधा उत्पन्न करती है।

कटाई उपरांत होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय:

  • उपयुक्त उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करते हुए फसल की परिपक्वता का आकलन करना और उपयुक्त अवस्था में फसल की कटाई करना।
  • जल की गुणवत्ता एवं तापमान की जाँच करना और धुलाई एवं सफाई के दौरान संदूषण या क्षति से बचना।
  • उपज बिक्री में देरी को कम करने के लिये कुशल आपूर्ति शृंखला स्थापित कर, उपयुक्त खरीदारों से संपर्क और उचित मूल्य निर्धारण तंत्र को बढ़ावा देकर किसानों के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार करना।
  • हर्मेटिक या एयर-टाइट कंटेनरों जैसे उचित भंडारण विधियों का उपयोग करना जो उपज को कीड़ों, कृंतकों, मोल्ड और नमी से खराब होने से रोक सकते हैं।
  • प्राप्त उपज के लिये गुणवत्ता मानकों एवं प्रमाणीकरण को कार्यान्वित करना ताकि उचित रखरखाव, भंडारण एवं प्रसंस्करण का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
  • सड़क नेटवर्क एवं लॉजिस्टिक्स सहित परिवहन अवसंरचना का उन्नयन करना और पारगमन के दौरान देरी एवं क्षति को कम करने के लिये प्रशीतित वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देना।

इस योजना से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • FPOs से संघर्ष: किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisation-FPOs) को बढ़ावा देने का मुख्य उद्देश्य सहकारी समितियों की व्यापक रूप से चिह्नित सीमितताओं को हल करना है और यह देश के सभी प्रखंडों को कवर करने पर लक्षित है। FPOs उपज के कटाई उपरांत प्रबंधन से भी संलग्न होते हैं जो फिर कृषि सहकारी समितियों के साथ संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • कृषि सहकारी समितियों में सक्षमता की कमी: कृषि सहकारी समितियाँ पर्याप्त सक्षम नहीं हैं लेकिन उन्हें वित्तीय उत्तरदायित्व और भंडारण अवसंरचना का कार्यान्वयन सौंप दिया गया है। 
    • कृषि सहकारी समितियों से संबद्ध समस्याओं में अभिजात वर्ग का नियंत्रण, नौकरशाही/राजनीतिक हस्तक्षेप, खराब विपणन आदि शामिल हैं।
    • नतीजतन, लघु और सीमांत किसान प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों तक पहुँच बनाने और लाभकारी मूल्य प्राप्त करने से बंचित रह जाते हैं।
  • अवसंरचना प्रबंधन और रखरखाव: अवसंरचना का निर्माण आसान है लेकिन इसे प्रबंधित करना और इसका रखरखाव एक बड़ी चुनौती है। भारत अवसंरचना के रखरखाव के संबंध में अच्छा रिकॉर्ड नहीं रखता, चाहे वह FCI भंडारण हो या पेयजल और सिंचाई से संबंधित प्रणालियाँ। पूंजीगत रखरखाव व्यय (Capital maintenance expenditure- Capex) को शायद ही कभी वार्षिक बजट में शामिल किया जाता है।
    • इसके अलावा, भारत के पास अपनी वार्षिक खराब होने योग्य उपज के मात्र आठवें भाग के भंडारण की ही क्षमता है।
  • खाद्य गुणवत्ता प्रबंधन: पोषण सुरक्षा के लिये खाद्य की गुणवत्ता बनाए रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। परंपरागत तकनीकों (FCI गोदामों) के साथ निम्न गुणवत्ता की भंडारण अवसंरचना और भंडारण की लंबी अवधि के कारण, PDS के तहत प्रायः निम्न गुणवत्ता के अनाजों का वितरण होता है।

संभावित समाधान: 

  • PPP या FPOs के माध्यम से कार्यान्वयन: खाद्य भंडारण पहल बेहतर तरीके से काम कर पाती यदि इसे FPOs की तर्ज पर निजी-सार्वजनिक-भागीदारी (PPP) पहल के तहत लागू किया जाता। यहाँ तक कि इसे FPOs के अंतर्गत लाना भी बेहतर विकल्प साबित होता।
  • मौजूदा भंडारण का आधुनिकीकरण: मौजूदा भंडारण अवसंरचना को आधुनिक बनाना प्राथमिकता होनी चाहिये। यह कदम अनाज तक ही सीमित नहीं हो बल्कि खराब होने वाली अन्य वस्तुओं (फल, सब्जियाँ, दूध, माँस, मछली आदि) के लिये भी भंडारण अवसंरचना का निर्माण किया जाना चाहिये।
  • बागवानी फसलों की अनदेखी न करना: बागवानी फसलों के बढ़ते उत्पादन के कारण पर्याप्त भंडारण सुविधाओं के निर्माण की आवश्यकता है। 
    • प्रति वर्ष बर्बाद होने वाले खाद्य (कृषि उपज, बागवानी उपज, दूध, माँस, मछली आदि) का मूल्य 1,40,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
  • खराब होने योग्य खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण पर ध्यान केंद्रित करना: खराब होने योग्य खाद्य पदार्थों के मामले में प्रसंस्करण से खाद्य की आयु तो बढ़ सकती है लेकिन इसके पोषण मूल्य में कमी आ सकती है। इस परिदृश्य में उच्च गुणवत्तापूर्ण प्रसंस्करण सुनिश्चित करने के लिये आधुनिक तकनीकों की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: हाल ही में स्वीकृत ‘सहकारी समितियों के माध्यम मेगा स्टोरेज योजना’ का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये कुछ उपाय भी सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. कृषि क्षेत्र को अल्पकालीन साख परिदान करने के संदर्भ में ‘ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs)’ ‘अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों’ एवं ‘क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों’ की तुलना में अधिक ऋण देते हैं।
  2.  डी.सी.सी.बी. (DCCBs) का एक सबसे प्रमुख कार्य ‘प्राथमिक कृषि साख समितियों’ को निधि उपलब्ध कराना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न: भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  

  1. उनका पर्यवेक्षण और विनियमन राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय बोर्डों द्वारा किया जाता है। 
  2. वे इक्विटी शेयर और वरीयता शेयर जारी कर सकते हैं। 
  3. उन्हें 1966 में एक संशोधन के माध्यम से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3   
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (b)  


मेन्स:

प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014)

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