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भारतीय अर्थव्यवस्था

तरलता प्रबंधन दुविधा

  • 03 Jul 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 28/06/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘RBI’s liquidity management dilemma’’ लेख पर आधारित है। इसमें विकास और मुद्रास्फीति के संतुलन से संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

मौद्रिक नीति, भारतीय रिज़र्व बैंक, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, सीमांत स्थायी सुविधा, कोविड-19 महामारी, नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात, राजकोषीय घाटा, केंद्रीय बजट, खुला बाज़ार परिचालन, स्थायी जमा सुविधा,अर्थोपाय अग्रिम

मेन्स के लिये:

तरलता प्रबंधन में आरबीआई के समक्ष चुनौतियाँ

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को कोविड-19 महामारी और उसके बाद के परिदृश्य के संदर्भ में मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने और विकास का समर्थन करने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। RBI को अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक विकास को संतुलित करने के साथ ही मुद्रास्फीति लक्ष्य को पूरा करते हुए आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है। हालाँकि, RBI के समक्ष मौद्रिक नीति के अपूर्ण प्रसार और मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण दृष्टिकोण की अंतर्निहित कमज़ोरी से संबंधित समस्याओं के रूप में कुछ चुनौतियाँ मौजूद हैं।

RBI का मौद्रिक नीति रुख (monetary policy stance) और तरलता प्रबंधन ढाँचा (liquidity management framework) इस चुनौती से निपटने के प्रमुख साधन हैं। मुद्रास्फीति-विकास की गतिशीलता को संतुलित करने के लिये तरलता का प्रबंधन और राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण करना अत्यंत आवश्यक है।

तरलता प्रबंधन दुविधा (Liquidity Management Dilemma) भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्य को जटिल बनाती है, जहाँ मुद्रास्फीति को प्रबंधित करते हुए विकास का समर्थन करने के लिये तरलता स्थितियों के बीच सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

RBI की तरलता प्रबंधन दुविधा:

भारतीय रिज़र्व बैंक की तरलता प्रबंधन दुविधा अधिशेष तरलता की स्थिति और सरकार की उधार आवश्यकताओं से निपटने के दौरान मूल्य स्थिरता, विकास और वित्तीय स्थिरता के अपने उद्देश्यों को संतुलित बनाए रखने की चुनौती है। इस दुविधा के कुछ पहलू इस प्रकार हैं:

  • मुद्रास्फीति और विकास के बीच समझौता:
    • RBI को आर्थिक रिकवरी और ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिये बैंकिंग प्रणाली में तरलता का उचित स्तर बनाए रखना होगा, साथ ही मुद्रास्फीति को अपने लक्ष्य सीमा के भीतर रखना होगा।
    • अर्थव्यवस्था में धन की लागत और उपलब्धता को प्रभावित करने के लिये RBI को अपने नीतिगत साधनों, जैसे रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, सीमांत स्थायी सुविधा (MSF), नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) का उपयोग करना होगा।
    • हालाँकि, इन साधनों का मुद्रास्फीति और विकास पर अलग-अलग प्रभाव पड़ सकता है, जो मौजूदा आर्थिक स्थितियों और अपेक्षाओं पर निर्भर करता है।
  • राजकोषीय नीति के साथ समन्वय:
    • RBI को केंद्रीय बजट में प्रावधानित उच्च पूंजीगत व्यय (GDP का 3.32%) के संदर्भ में राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण का समर्थन करना है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना और आर्थिक रिकवरी का समर्थन करना है।
    • RBI को सरकार के ऋण और नकदी शेष (cash balances) का प्रबंधन करना है, खुला बाज़ार परिचालन (OMO) का संचालन करना है और सरकारी प्रतिभूतियों के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक बाज़ारों में भाग लेना है।
    • हालाँकि, इन गतिविधियों का तरलता प्रबंधन, मौद्रिक नीति संचरण, बाज़ार स्थिरता और केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • स्थिरता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये RBI और सरकार को अपनी-अपनी नीतियों और परिचालन पर समन्वय एवं सहयोग करने की आवश्यकता है।
  •   वित्तीय बाज़ारों का विकास:
    • RBI को बैंकिंग प्रणाली से अधिशेष तरलता को अवशोषित करने के लिये बाज़ार-उन्मुख साधनों, जैसे VRRR नीलामी (variable rate reverse repo auctions), खुला बाज़ार बिक्री (open market sales) और केंद्रीय बैंक ऋण प्रतिभूतियों (central bank debt securities) का उपयोग करना होगा।
    • इन साधनों के प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये एक सुविकसित और तरल वित्तीय बाज़ार की आवश्यकता होती है।
    • हालाँकि, वित्तीय बाज़ार अविकसित, खंडित या अस्थिर हो सकते हैं, जो बाज़ार-उन्मुख साधनों के दायरे और प्रभावशीलता को सीमित कर सकते हैं।

RBI तरलता प्रबंधन दुविधा से कैसे उबर सकता है?

  • स्थायी जमा सुविधा का सक्रिय उपयोग करना:
    • RBI बैंकिंग प्रणाली से अधिशेष तरलता को अवशोषित करने के लिये स्थायी जमा सुविधा (Standing Deposit Facility- SDF) का सक्रिय रूप से उपयोग कर सकता है।
    • ऐसा कर RBI अतिरिक्त धन आपूर्ति को रोक सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
  •  साधनों का उपयोग:
    • RBI तरलता को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये विभिन्न साधनों का उपयोग कर सकता है जिसमें VRRR नीलामी, खुला बाज़ार बिक्री और स्थायी जमा सुविधा में समायोजन करना शामिल हैं।
    • इन साधनों को प्रणाली से अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने और मुद्रास्फीति एवं विकास उद्देश्यों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये नियोजित किया जा सकता है।
  • नकदी शेष की निगरानी:
    • RBI को केंद्रीय बैंक के साथ सरकार के नकदी शेष (Cash Balances) की बारीकी से निगरानी करनी चाहिये।
    • इसमें सरकारी नकदी प्रवाह, जमा, निवेश और अर्थोपाय अग्रिम (ways and means advances- WMA) के उपयोग के पैटर्न का विश्लेषण करना शामिल है।
    • RBI इन कारकों की निगरानी कर किसी भी असंतुलन की पहचान कर सकता है और तरलता को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये उचित उपाय कर सकता है।
  • नकदी प्रबंधन को सुदृढ़ बनाना:
    • सरकार को RBI के पास लंबे समय तक अधिशेष या घाटापूर्ण नकदी स्थिति से बचने के लिये अपनी नकदी प्रबंधन (Cash Management) अभ्यासों में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि WMA का उपयोग राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिये संसाधन के रूप में करने के बजाय अस्थायी नकदी प्रवाह असंगति के लिये किया जाए।
    • नकदी प्रबंधन को सुदृढ़ कर सरकार RBI के तरलता प्रबंधन और समग्र मौद्रिक प्रबंधन पर प्रभाव को कम कर सकती है।

तरलता प्रबंधन के लिये बाज़ार-उन्मुख साधनों का उपयोग करने से संबद्ध चुनौतियाँ:

  •  वित्तीय बाज़ारों की उपलब्धता और गहनता पर निर्भर:
    • VRR/VRRR नीलामी, खुला बाज़ार बिक्री और केंद्रीय बैंक ऋण प्रतिभूतियों जैसे बाज़ार-उन्मुख साधनों के प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये एक सुविकसित और तरल वित्तीय बाज़ार की आवश्यकता होती है।
  • केंद्रीय बैंक और वित्तीय संस्थानों का बाज़ार जोखिमों के अधीन होना:
    • बाज़ार-उन्मुख साधनों में वित्तीय परिसंपत्तियों के रूप में लेनदेन शामिल होते हैं जो बाज़ार की स्थितियों, जैसे ब्याज दरों, विनिमय दरों, क्रेडिट रेटिंग और बाज़ार भावनाओं में परिवर्तन के कारण मूल्य में उतार-चढ़ाव के अधीन होते हैं।
    • ये उतार-चढ़ाव परिसंपत्तियों के मूल्य एवं रिटर्न को प्रभावित कर सकते हैं और केंद्रीय बैंक एवं वित्तीय संस्थानों के लिये हानि या लाभ उत्पन्न कर सकते हैं।
  • एक मज़बूत नियामक और पर्यवेक्षी ढाँचे की आवश्यकता:
    • बाज़ार-उन्मुख साधनों को पारदर्शिता, जवाबदेही, अनुपालन और जोखिम प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये एक स्पष्ट एवं सुसंगत नियामक और पर्यवेक्षी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
    • केंद्रीय बैंक और वित्तीय संस्थानों को अपनी तरलता स्थिति और जोखिमों की निगरानी एवं प्रबंधन के लिये उपयुक्त नीतियों, प्रक्रियाओं, प्रणालियों और नियंत्रणों की आवश्यकता होगी।
    • नियमों और मानकों की निगरानी एवं कार्यान्वयन के लिये नियामकों और पर्यवेक्षकों के पास पर्याप्त शक्तियाँ, साधन एवं संसाधन होने चाहिये।

RBI का तरलता प्रबंधन:

  • परिचय:
    • वित्तीय प्रणाली के सुचारू संचालन और मौद्रिक नीति के प्रभावी संचरण को सुनिश्चित करने के लिये तरलता प्रबंधन (Liquidity management) करना भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रमुख कार्यों में से एक है।
    • तरलता प्रबंधन में तीन पहलू शामिल हैं: परिचालन ढाँचा, तरलता के चालक और तरलता का प्रबंधन।
  • परिचालन ढाँचा (Operating Framework):
    • RBI द्वारा तरलता प्रबंधन का परिचालन ढाँचा तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) कॉरिडोर द्वारा निर्देशित होता है, जो नीतिगत साधनों का एक समूह है जो मुद्रा बाज़ार में ओवरनाइट इंटरेस्ट रेट (overnight interest rates) को प्रभावित करता है।
    • LAF कॉरिडोर में तीन दरें शामिल हैं:
      • पॉलिसी रेपो रेट (PRR), जो वह प्रमुख नीति दर है जिस पर RBI बैंकों को ऋण देता है;
      • सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर, जो कि वह उच्चतम दर (ceiling rate) है जिस पर बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के बदले RBI से उधार प्राप्त कर सकते हैं; और
      • स्थायी जमा सुविधा (SDF) दर, वह न्यूनतम दर (floor rate) है जिस पर बैंक बिना किसी संपार्श्विक के RBI के पास अपनी अतिरिक्त धनराशि जमा कर सकते हैं।
  • उद्देश्य:
    • LAF कॉरिडोर का उद्देश्य भारित औसत कॉल दर (weighted average call rate- WACR)—जो RBI की मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य है, को PRR के साथ समन्वित करना है।
    • WACR वह औसत ब्याज दर है जिस पर बैंक ओवरनाइट इंटरबैंक मार्केट में एक-दूसरे को उधार देते हैं और उधार लेते हैं।
    • PRR मौद्रिक नीति के रुख का संकेत देता है और अर्थव्यवस्था में धन की लागत एवं उपलब्धता को प्रभावित करता है।
  • तरलता के चालक:
    • चलन में मौजूद मुद्रा (Currency in circulation):
      • इसका तात्पर्य बैंकों के बाहर आम लोगों द्वारा धारित नकदी की मात्रा से है। जब लोग बैंकों से नकदी निकालते हैं या कम नकदी खर्च करते हैं तो चलन में मौजूद मुद्रा की वृद्धि हो जाती है और बैंक जमा एवं भंडार में कमी आती है।
      • इससे बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी उत्पन्न होती है।
      • जब लोग बैंकों में नकदी जमा करते हैं या अधिक नकदी खर्च करते हैं, तो चलन में मौजूद मुद्रा कम हो जाती है और बैंक जमा एवं भंडार की वृद्धि हो जाती है।
      • इससे बैंकिंग प्रणाली में तरलता अधिशेष उत्पन्न होता है।
    • RBI द्वारा शुद्ध विदेशी मुद्रा खरीद/बिक्री:
      • यह विदेशी मुद्रा की शुद्ध राशि को संदर्भित करता है जिसे RBI बाज़ार से खरीदता है या बेचता है।
      • जब RBI निर्यातकों या अन्य स्रोतों से विदेशी मुद्रा खरीदता है तो वह उन्हें रुपए में भुगतान करता है और बैंक भंडार एवं तरलता की वृद्धि हो जाती है।
      • जब RBI आयातकों या अन्य स्रोतों को विदेशी मुद्रा बेचता है तो उसे रुपए प्राप्त होते हैं और बैंक भंडार एवं तरलता की कमी हो जाती है।
    • RBI के पास सरकार का नकदी शेष:
      • यह उस धनराशि को संदर्भित करता है जो सरकार ने अपने व्यय और राजस्व उद्देश्यों के लिये RBI के पास जमा की है।
      • जब सरकार करों या अन्य प्राप्तियों में एकत्र की गई राशि से अधिक खर्च करती है तो वह RBI के पास अपने नकदी शेष को कम कर देती है और बैंकिंग प्रणाली में तरलता का प्रवेश कराती है।
      • जब सरकार अपने खर्च से अधिक एकत्र करती है तो वह RBI के पास अपनी नकदी शेष की वृद्धि करती है और बैंकिंग प्रणाली से तरलता को कम कर देती है।
    • RBI के पास रखा गया अतिरिक्त भंडार:
      • यह उस धनराशि को संदर्भित करता है जो बैंक द्वारा स्वेच्छा से नकद आरक्षित अनुपात (CRR) की वैधानिक आवश्यकता से अधिक मात्रा में RBI के पास रखा जाता है। CRR जमा का वह प्रतिशत है जिसे बैंकों को विवेकपूर्ण उपाय के रूप में अनिवार्य रूप से RBI के पास रखना होता है।
      • जब बैंक RBI के पास अधिक अतिरिक्त रिज़र्व रखते हैं तो उधार देने के लिये धन की उपलब्धता कम हो जाती है और बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी उत्पन्न होती है।
      • जब बैंक RBI के पास कम अतिरिक्त रिज़र्व रखते हैं तो उधार देने के लिये धन की उपलब्धता अधिक हो जाती है और बैंकिंग प्रणाली में तरलता अधिशेष की स्थिति बनती है।

आगे की राह:

  • तरलता स्थिति और राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण की निगरानी:
    • RBI को दोतरफा परिचालन के माध्यम से तरलता के प्रबंधन में चुस्त एवं लचीला बने रहने की ज़रूरत है।
    • तरलता प्रबंधन और राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण पर कड़ी नजर रखने से मुद्रास्फीति और विकास उद्देश्यों के बीच संतुलन का निर्माण करने में मदद मिलेगी।
  • मौद्रिक-राजकोषीय इंटरफ़ेस को सशक्त बनाना:
    • RBI द्वारा तरलता स्थिति और सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण पैटर्न की सख्त निगरानी आवश्यक है।
    • अत्यधिक उधारी (over-borrowing) और अनुपयुक्त नकदी प्रबंधन के मुद्दों को संबोधित करने से मौद्रिक-राजकोषीय इंटरफ़ेस में सुधार होगा।
  •  तरलता प्रबंधन साधनों का मूल्यांकन:
    • RBI को स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये VRRR और SDF जैसे तरलता प्रबंधन साधनों की प्रभावशीलता का नियमित मूल्यांकन करना चाहिये।
  • राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के बीच समन्वय:
    • यदि सरकार वास्तव में भारत में ऋण दरों को सार्थक और निरंतर तरीके से कम करना चाहती है तो कहीं बेहतर होगा कि अपने स्वयं के राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान केंद्रित करे।
    • केंद्रीय बैंक को अधिक स्वतंत्र बनाने के लिये ऋण प्रबंधन को मौद्रिक प्रबंधन से अलग करना एक अच्छा कदम होगा।
    • RBI की तरलता प्रबंधन दुविधा अधिशेष तरलता की स्थिति से निपटने के दौरान मूल्य स्थिरता, विकास और वित्तीय स्थिरता के अपने उद्देश्यों को संतुलित बनाए रखने की चुनौती है। टिप्पणी कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा ? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना
  2. सीमान्त स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
  3. बैंक दर को घटाना तथा रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

Q. क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि स्थिर जीडीपी वृद्धि और कम मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अच्छी स्थिति में छोड़ दिया है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)

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