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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

स्थाई जमा सुविधा

  • 18 Apr 2017
  • 6 min read

संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा प्रस्तुत की गयी बहुत सी संकल्पनाओं में से एक अन्य गौण संकल्पना के विषय में इस लेख में विस्तार में चर्चा की गई है| उल्लेखनीय है कि स्थाई जमा सुविधा (Standing Deposit Facility) को रिज़र्व बैंक द्वारा प्रस्तावित किया गया है तथा केंद्र सरकार द्वारा इसके विषय में गहनता से विचार-विमर्श किया जा रहा है| वस्तुतः इसे अधिशेष तरलता (surplus liquidity) को समाप्त करने एवं बैंकिंग प्रणाली की समस्या को कम करने के एक उपकरण के तौर पर देखा जा रहा है|

  • इस संकल्पना की अनुशंसा सर्वप्रथम 2014 में उर्जित पटेल समिति द्वारा की गई थी| इस संकल्पना के शीघ्र ही तरलता को प्रबंधित करने वाले केंद्रीय बैंक के साधनों में शामिल होने की संभावना है|

स्थाई जमा सुविधा क्या है?

  • वस्तुत: स्थाई जमा सुविधा पारिश्रमिक सुविधा (remunerated facility) है जिसमें तरलता को कम करने के लिये सहायक प्रावधान की आवश्यकता नहीं होती है|
  • इसके तहत बैंक कभी भी अपने धन में कमी कर सकते हैं| जैसा की हम सभी जानते हैं कि जब बैंकों को अल्पावधि के लिये ऋण की आवश्यकता होती है तो वे बैंकों के बैंक (रिज़र्व बैंक) से उधार लेते हैं|
  • यही कारण है कि प्रत्येक मौद्रिक नीति में रिज़र्व बैंक द्वारा ‘रेपो दर’ निर्धारित की जाती है| ‘रेपो दर’ एक ऐसी दर होती है जिस पर बैंक रिज़र्व बैंक से धन उधार लेते हैं तथा इसके लिये वे अपनी सरकारी प्रतिभूतियों को रिज़र्व बैंक के पास गिरवी रखते हैं|
  • ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि उस समय क्या होता है जब बैंकों में धन की मात्रा अत्यधिक हो जाती है? ऐसी स्थिति में बैंक इस धन को ‘रिवर्स रेपो दर’ पर रिज़र्व बैंक को दे देते हैं| ‘रिवर्स रेपो दर’ रेपो दर से कम होती है| यहाँ भी सरकारी प्रतिभूतियाँ आनुषंगिक हैं|
  • विमुद्रीकरण के पश्चात् बैंकों के पास धन की अधिकता हो गई थी| इसलिये पिछले दो महीनों से रिज़र्व बैंक की रिवर्स विंडो के तहत बैंक सभी को उधार दे रहे हैं| 
  • और चूँकि रिज़र्व बैंक द्वारा अप्रैल माह की मौद्रिक नीति समीक्षा में रिवर्स रेपो दर में 25 आधार बिंदु की वृद्धि की गई है| तो अब इससे बैंक इस धन पर अधिक लाभ प्राप्त कर सकने की स्थिति में भी आ गए हैं|
  • उक्त विवरण के पश्चात् प्रश्न यह बनता है कि जब सभी लोग प्रसन्न हैं तो फिर रिज़र्व बैंक तरलता को प्रबंधित करने के लिये नई संकल्पना के विषय में विचार को क्यों प्रस्तुत कर रहा है?
  • इस समस्त प्रकरण में सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि ऐसी किसी भी स्थिति को सटीक तरीके से क्रियान्वित करने के लिये अत्यधिक सहयोग की आवश्यकता होती है| 
  • यदि कभी ऐसा हो कि रिज़र्व बैंक रिवर्स के पास रेपो विंडो के तहत तरलता को नियंत्रित करने के लिये प्रतिभूतियों की कमी हो जाए तो ऐसी स्थिति में यह सहयोग एक अवरोधी कारक भी बन सकता है| 
  • ऐसी स्थिति में स्थाई जमा सुविधा से रिज़र्व बैंक सहायकों के बिना ही बैंकों में हुई धन की अधिकता को प्राप्त कर सकता है| बैंकों को भी इससे ब्याज प्राप्त होगा (यद्यपि मौजूदा रिवर्स रेपो दर की तुलना में कम होगा)|
  • इसके परिणामस्वरूप स्थाई जमा सुविधा के कारण रिज़र्व बैंक अपनी आवश्यकतानुसार भी तरलता प्राप्त करने में सक्षम होगा| 

यह महत्वपूर्ण क्यों है?

  • ध्यातव्य है कि नीति दरों के हस्तांतरण में तरलता की मुख्य भूमिका होती है| यदि दर में कमी हो रही हो तो इससे बैंकों के पास पर्याप्त तरलता होगी तथा बैंक जमा की दरों को आसानी से कम करने में भी सक्षम हो सकेंगे|
  • तरलता की अधिकता के कारण अल्पावधिक बाज़ारों की दरें भी कम होकर रिज़र्व बैंक के रेपो दर से कम हो जाएंगी| 
  • हालाँकि यह रिज़र्व बैंक के दृष्टिकोण से उचित नहीं है क्योंकि रिज़र्व बैंक दरों पर सख्त नियंत्रण रखना चाहेगा| इसका एक कारण यह है कि रिज़र्व बैंक अपनी मुख्य रेपो दर को परिचालन दर बनाए रखना चाहता है| ताकि समस्त बैंकिंग व्यवस्थाओं एवं मुदा के संचरण पर उसका अधिकार बना रहे|

चिंता का कारण

  • रिज़र्व बैंक द्वारा दरों को प्रबंधित करने से जमाकर्ताओं की जमा की दरों और ऋणों पर प्रभाव पड़ता है| पिछले कुछ महीनों में तरलता की अधिकता में हुई अचानक कमी के कारण बैंक की जमा दरों में भी कमी देखी गई है|
  • यदि रिज़र्व बैंक तरलता की अधिकता पर नियंत्रण कर लेता है तथा अल्पकालिक दरों में विराम लगा देता है तो जमाकर्ताओं पर तो इसका सकारात्मक असर होगा| परन्तु, उधारकर्ताओं (पिछले वर्ष से उधार लेने की दर में गिरावट देखी गई है) पर इसका नकारात्मक असर होने की संभावना है| जो कि गंभीर चिंता का मुद्दा है|
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