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क्षेत्रीय सुरक्षा एवं वैश्विक समुद्री व्यवस्था के लिये दक्षिण चीन सागर का महत्त्व

  • 20 Apr 2024
  • 37 min read

यह एडिटोरियल 19/04/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s nuanced approach in the South China Sea” लेख पर आधारित है। इसमें दक्षिण चीन सागर के विभिन्न पहलुओं का अवलोकन तथा विश्लेषण किया गया है कि नई दिल्ली द्वारा इसका रणनीतिक पुनर्मूल्यांकन किस प्रकार क्षेत्रीय सुरक्षा एवं वैश्विक समद्री व्यवस्था के लिये दक्षिण चीन सागर के अत्यधिक महत्त्व को चिह्नित करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर, स्प्रैटली द्वीप समूह, पैरासेल द्वीप समूह, नातुना द्वीप समूह और स्कारबोरो शोल, आसियान, संयुक्त राष्ट्र पर समुद्री कानून अभिसमय, फिलीपींस, ताइवान, लुज़ोन जलडमरूमध्य, मलक्का जलडमरूमध्य, नाइन-डैश लाइन, सेनकाकू द्वीप समूह, एजियन सागर, विशेष आर्थिक क्षेत्र, एक्ट ईस्ट पॉलिसी

मेन्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर का महत्त्व और संबंधित मुद्दे।

मार्च 2024 में भारत के विदेश मंत्री ने मनीला की अपनी यात्रा के दौरान एक संयुक्त वक्तव्य में फिलीपींस द्वारा अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता को बनाए रखने के प्रति भारत का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया। उनका यह वक्तव्य फिलीपींस और चीन के बीच जारी दक्षिण चीन या पश्चिम फिलीपीन सागर के विवाद के बीच आया। उल्लेखनीय है कि इस विवाद ने वर्ष 2023 में समुद्री क्षेत्र में निरंतर तनाव एवं राजनयिक मतभेदों के साथ अपने अस्थिर समय का सामना किया।

वर्ष 2023 में भी भारत और फिलीपींस के एक संयुक्त वक्तव्य में चीन से नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था का पालन करने और फिलीपींस के पक्ष में आए वर्ष 2016 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के निर्णय को स्वीकार करने का आह्वान किया गया था। ये दोनों वक्तव्य एक विकसित हो रहे दृष्टिकोण का अंग हैं, जो दक्षिण चीन सागर के मामले में पूर्व में भारत की अधिक सतर्क एवं तटस्थ स्थिति से प्रस्थान या विचलन का संकेत देते हैं।

हालिया वर्षों में दक्षिण चीन सागर पर भारत का रुख व्यापक रूप से बदल गया है। यह दक्षिण चीन सागर में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून, संप्रभुता एवं संप्रभु अधिकारों के प्रावधानों का समर्थन करते हुए अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त रुख के माध्यम से वैश्विक मंच पर भारत की व्यापक रणनीतिक एवं आर्थिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।

दक्षिण चीन सागर (South China Sea- SCS):

  • परिचय:
    • दक्षिण चीन सागर दक्षिण-पूर्व एशिया में पश्चिमी प्रशांत महासागर की एक शाखा है।
    • यह चीन के दक्षिण में, वियतनाम के पूर्व एवं दक्षिण में, फिलीपींस के पश्चिम में और बोर्नियो द्वीप के उत्तर में अवस्थित है।
    • सीमावर्ती राज्य और क्षेत्र (उत्तर से दक्षिण की ओर): पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान), फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम।
    • यह ताइवान जलडमरूमध्य द्वारा पूर्वी चीन सागर से और लूज़ॉन जलडमरूमध्य द्वारा फिलीपीन सागर से जुड़ा हुआ है।
    • यहाँ असंख्य शोल, रीफ, एटोल और द्वीप मौजूद हैं। इनमें पारासेल द्वीप समूह, स्प्रैटली द्वीप समूह और स्कारबोरो शोल सबसे अधिक महत्त्व रखते हैं।
  • महत्त्व:
    • दक्षिण चीन सागर अपनी अवस्थिति के कारण रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच संपर्क लिंक का निर्माण करता है।
    • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade And Development- UNCTAD) के अनुसार वैश्विक नौवहन का एक-तिहाई भाग इससे होकर गुज़रता है जिसमें भारी मात्रा में व्यापार संपन्न होता है। यह इसे एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक जल निकाय बनाता है।
    • फिलीपींस के पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के अनुसार दक्षिण चीन सागर में दुनिया की संपूर्ण समुद्री जैव विविधता का एक तिहाई भाग मौजूद है और यह एक आकर्षक मत्स्यग्रहण क्षेत्र है जो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है।
    • ऐसा भी माना जाता है कि दक्षिण चीन सागर की समुद्र तल के नीचे तेल और गैस के विशाल भंडार मौजूद हैं।
    • यह विश्व के सबसे अधिक यातायात वाले जलमार्गों में से एक है। प्रति वर्ष अनुमानित 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नौवहन वाणिज्य इस समुद्री मार्ग से होकर गुज़रता है, जिसमें अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के लिये ऊर्जा आपूर्ति नौवहन भी शामिल है।

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दक्षिण चीन सागर में चल रहे विभिन्न विवाद कौन-से हैं?

  • संप्रभुता पर विवाद:
    • दक्षिण चीन सागर के उत्तरी भाग में चीन, ताइवान और वियतनाम पारासेल द्वीप समूह की संप्रभुता पर विवाद रखते हैं जिन पर चीन ने वर्ष 1974 से कब्जा कर रखा है। प्रतास द्वीप पर चीन और ताइवान दोनों दावा करते हैं, जिस पर अभी ताइवान का नियंत्रण है।
    • सागर के दक्षिणी भाग में चीन, ताइवान और वियतनाम लगभग 200 स्प्रैटली द्वीपों में से प्रत्येक पर दावा करते हैं, जबकि ब्रुनेई, मलेशिया और फिलीपींस उनमें से कुछ पर दावा रखते हैं। वियतनाम इस द्वीप शृंखला में सबसे अधिक स्थलाकृतियों (land features) पर कब्जा रखता है, जबकि ताइवान का कब्जा इसके सबसे बड़े द्वीप पर है।
    • सागर के पूर्वी भाग में चीन, ताइवान और फिलीपींस स्कारबोरो शोल पर दावा करते हैं, जिसपर चीन ने वर्ष 2012 से नियंत्रण कर रखा है।
      • चीन की ‘नाइन-डैश लाइन’ और ताइवान की ‘इलेवन-डैश लाइन’ 200 समुद्री मील के सैद्धांतिक विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZs) के साथ ओवरलैप होती है, जिन पर पाँच दक्षिण-पूर्व एशियाई देश—ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और वियतनाम वर्ष 1994 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के तहत अपने मुख्य भूमि तटों से निकट होने के आधार पर दावा कर सकते हैं।
  • समुद्र की स्वतंत्रता पर विवाद:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और अधिकांश अन्य देश UNCLOS की व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि यह तटवर्ती राज्यों को उनके EEZs के भीतर आर्थिक गतिविधियों को विनियमित करने का अधिकार तो देता है, लेकिन सैन्य जहाज़ों एवं विमानों सहित EEZs के माध्यम से नेविगेशन एवं ओवरफ्लाइट को विनियमित करने का अधिकार नहीं देता है।
      • चीन यह अल्पमत राय रखता है कि UNCLOS उसे अपने EEZs के माध्यम से आर्थिक गतिविधि और विदेशी सेनाओं के नेविगेशन एवं ओवरफ्लाइट दोनों को विनियमित करने की अनुमति देता है।
    • UNCLOS राज्य पक्षकारों को उनके समुद्र तट के आसपास 12 समुद्री मील प्रादेशिक समुद्र और 200 समुद्री मील EEZs तथा मानव आवास को संपोषण प्रदान कर सकने वाले प्राकृतिक रूप से निर्मित स्थलाकृतियों पर दावा करने की अनुमति देता है।
      • प्राकृतिक रूप से निर्मित ऐसी स्थलाकृतियाँ जो उच्च ज्वार के समय जल के ऊपर रहती हैं, लेकिन वास योग्य नहीं हैं, 12 समुद्री मील प्रादेशिक समुद्र का अधिकार रखती हैं, लेकिन वे 200 समुद्री मील EEZs का अधिकार नहीं रखती हैं।
  • समुद्र में खतरनाक मुठभेड़:
    • अमेरिका और अन्य देशों ने चीन के सैन्य और असैन्य जहाज़ों एवं विमानों पर दक्षिण चीन सागर में और उसके ऊपर असुरक्षित युद्धाभ्यास करने का आरोप लगाया है, जिससे अन्य क्षेत्रीय अभिकर्ताओं को खतरा पहुँचता है।
    • अमेरिकी रक्षा विभाग (DOD) ने वर्ष 2021-2022 में चीन के सैन्य जहाज़ों एवं विमानों द्वारा ‘असुरक्षित एवं गैर-पेशेवर व्यवहार में तेज़ वृद्धि’ की रिपोर्टिंग की। अमेरिकी अधिकारियों का तर्क है कि इनमें से कुछ व्यवहार हवाई और समुद्री सुरक्षा के संबंध में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों (जिसमें चीन भी एक पक्षकार है) के साथ ‘असंगत’ थे।

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  • चीन और अन्य दावेदारों के बीच तनाव:
    • पिछले एक दशक में चीन और फिलीपींस के बीच सबसे अधिक तनाव रहा है। चीन और फिलीपींस के जहाज़ों के बीच संघर्ष के साथ चीन द्वारा स्कारबोरो शोल पर वास्तविक नियंत्रण हासिल कर लेने के एक वर्ष बाद 2013 में फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्रवाइयों पर UNCLOS के तहत मध्यस्थता की मांग की।
    • वर्ष 2016 में UNCLOS के एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने अन्य बातों के अलावा यह निर्णय दिया कि चीन के नाइन-डैश लाइन दावे का ‘कोई कानूनी आधार नहीं’ है और चीन ने फिलीपींस के जहाज़ों के साथ हस्तक्षेप कर, समुद्री पर्यावरण को क्षति पहुँचाकर और फिलीपींस के EEZs में एक स्थलाकृति पर पुनर्ग्रहण कार्य में संलग्न होकर फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन किया है। 
  • चीन द्वारा कृत्रिम द्वीपों का निर्माण:
    • वर्ष 2013 और 2015 के बीच चीन ने दक्षिण चीन सागर की स्प्रैटली द्वीप शृंखला में व्यापक भूमि पुनर्ग्रहण (द्वीप-निर्माण कार्य) कार्य किया। चीन द्वारा नियंत्रित सात विवादित स्थलों पर इस पुनर्ग्रहण के तहत लगभग पाँच वर्ग मील कृत्रिम भूभाग का निर्माण किया गया।
      • चीन ने सैन्य अवसंरचना का भी निर्माण किया और स्थापित सैन्य चौकियों पर उन्नत एंटी-शिप एवं एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल प्रणाली तथा अन्य सैन्य उपकरण तैनात किये। हालाँकि अन्य दावेदारों ने भी अपने नियंत्रण के क्षेत्रों में पुनर्ग्रहण एवं निर्माण कार्य किये हैं, चीन के पुनर्ग्रहण कार्य एवं सैन्यीकरण का पैमाना अन्य दावेदारों की तुलना में अत्यंत वृहत है।
  • विघटित क्षेत्रीय सहयोग:
    • चीन और 10-सदस्यीय दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) वर्ष 2002 से दक्षिण चीन सागर में पक्षकारों के लिये एक आचार संहिता पर वार्तारत हैं। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि किसी बाध्यकारी संहिता के निर्माण की संभावना नहीं दिखती और आरोप लगाया है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक कार्रवाई के उद्देश्य से जानबूझकर इस वार्ता को इतना लंबा खींच दिया है।

दक्षिण चीन सागर के संबंध में भारत का क्या रुख है?

  • भारत के रुख में परिवर्तन:
    • जुलाई 2016 में दक्षिण चीन सागर में चीन के व्यवहार एवं दावों के संबंध में फिलीपींस द्वारा लाए गए एक मामले में मध्यस्थ न्यायाधिकरण के निर्णय पर भारत ने केवल इतना कहा कि उसने निर्णय पर ध्यान दिया है। ऐसा संभवतः इधर-उधर का पक्ष लेने से बचने के लिये किया गया था, क्योंकि चीन इस निर्णय को ‘अवैध’ बताकर खारिज करता रहा है और मामले में न्यायाधिकरण के क्षेत्राधिकार को मानने से इनकार कर दिया है।
      • हालाँकि, भारत ने वर्ष 2020 में अपना रुख बदल दिया और फिलीपींस के साथ खड़े होकर विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन की आवश्यकता पर बल दिया। यह पहला अवसर था कि भारत ने न्यायाधिकरण के निर्णय का पालन करने का प्रस्ताव किया, जो दक्षिण चीन सागर विवादों पर भारत के ‘तटस्थ’ या निरपेक्ष रुख में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है।
  • संयुक्त अभ्यास का संचालन:
    • मई 2019 में भारतीय नौसेना ने पहली बार दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, जापान और फिलीपींस की नौसेनाओं के साथ संयुक्त अभ्यास में भाग लिया था। इसके एक वर्ष बाद भारतीय नौसेना ने अगस्त 2021 में वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया की नौसेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास किया। मई 2023 में भारत ने पहली बार दक्षिण चीन सागर में सात आसियान देशों की नौसेनाओं के साथ दो दिवसीय संयुक्त अभ्यास में भाग लेने के लिये अपने युद्धपोत भेजे। 
  • सैन्य बिक्री और सहायता में वृद्धि:
    • भारत ने फिलीपींस और वियतनाम को अपनी सैन्य बिक्री और सहायता में भी उल्लेखनीय वृद्धि की है। जनवरी 2022 में भारत ने 100 ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइलों के निर्यात के लिये फिलीपींस के साथ एक समझौता संपन्न किया। जून 2023 में वियतनाम पहला देश बना जिसने भारत से पूर्ण परिचालनात्मक लाइट मिसाइल फ्रिगेट प्राप्त किया।
  • भारत के साथ चीन के जटिल संबंधों के परिणाम:
    • दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख में परिवर्तन को चीन के साथ उसके जटिल संबंधों से अलग कर नहीं देखा जा सकता। दोनों देशों के बीच सीमा विवादों का एक सुदीर्घ इतिहास रहा है, जो वर्ष 2020 की गलवान घाटी की घटना के बाद से और तेज़ हो गया है। चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र में समय-समय पर घुसपैठ की घटना सामने आती रही है और अभी हाल ही में उसने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय ग्रामों के नाम बदलने के रूप में भी भारत को उकसाया है।
  • रुख में इस बदलाव के प्रमुख कारण:
    • हिंद महासागर के प्रवेश द्वार के रूप में दक्षिण-पूर्व एशिया:
      • सामरिक हित, नौवहन की स्वतंत्रता और तेल एवं गैस संसाधन दक्षिण चीन सागर में भारत की विस्तारित भागीदारी को निर्धारित करने वाले तीन कारक हैं। भौगोलिक दृष्टि से, दक्षिण-पूर्व एशिया भारत के लिये पीछे के आँगन और हिंद महासागर के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
      • दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत को चिंता है कि यह तनाव युद्ध में बदल सकता है जिससे हिंद महासागर में उसके प्रभुत्व को खतरा पहुँच सकता है। परिणामस्वरूप, भारत ने दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का प्रयास किया है।
    • ‘एक्ट-ईस्ट’ नीति को आगे बढ़ाना:
      • ‘लुक ईस्ट’ से एक्ट ईस्ट’ की ओर भारत के नीति अभिविन्यास में परिवर्तन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ अधिक रणनीतिक एवं सक्रिय संलग्नता की ओर बदलाव को चिह्नित किया है।
      • यह नीति विकास बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के प्रति भारत की स्वीकार्यता और ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के साथ अधिक सक्रिय एवं बहुआयामी विदेश नीति दृष्टिकोण की आवश्यकता को परिलक्षित करता है, जिसमें न केवल आर्थिक एकीकरण बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी और विस्तारित सुरक्षा सहयोग पर भी बल दिया गया है।
    • व्यापार सुरक्षा:
      • चूँकि भारत का लगभग आधा विदेशी व्यापार मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से संपन्न होता है, दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र एवं सुरक्षित नौवहन भारत की व्यापार सुरक्षा की कुंजी है। यह एक और कारण है कि भारत ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे में हस्तक्षेप किया है, जबकि इसका चीन या आसियान देशों के साथ कोई समुद्री विवाद नहीं है।
    • ऊर्जा संसाधनों में विविधता लाना:
      • वियतनाम के EEZs और ऐसे अन्य उपक्रमों में राज्य स्वामित्व वाले भारतीय उद्यमों (जैसे ONGC विदेश) की भागीदारी न केवल इस क्षेत्र में भारत की आर्थिक हित को दर्शाती है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कानून (विशेष रूप से UNCLOS) की सीमा के भीतर समुद्री संसाधनों की खोज एवं दोहन की स्वतंत्रता के सिद्धांत के प्रति इसके समर्थन को भी परिलक्षित करती है।
    • ‘पुल फैक्टर’ के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका:
      • संयुक्त राज्य अमेरिका एक ‘पुल फैक्टर’ है जो भारत को दक्षिण चीन सागर विवादों में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करता है। दोनों देशों के कई साझा हित हैं। दोनों क्वाड (Quad) के स्तंभ हैं, जिसका उद्देश्य नियम-आधारित विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना है। दोनों दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रभुत्व को लेकर चिंतित हैं और दक्षिण चीन सागर विवादों पर दोनों एकसमान रुख रखते हैं।
    • हिंद-प्रशांत में ज़िम्मेदार हितधारक:
      • भारत अब हिंद-प्रशांत में एक ज़िम्मेदार हितधारक के रूप में गंभीर महत्त्व के मामलों पर स्पष्ट रुख अपनाने से कतरा नहीं सकता। हिंद-प्रशांत थिएटर में इसकी केंद्रीयता का अर्थ यह है कि इसकी परिधि अब केवल हिंद महासागर नहीं है, बल्कि वह व्यापक समुद्री क्षेत्र भी है जहाँ चीन का उदय यथास्थिति को उन तरीकों से चुनौती दे रहा है जिनका पहले कभी अनुमान नहीं किया गया था।
        • भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति में आसियान की केंद्रीयता भी भारत के लिये अनिवार्य बनाती है कि वह आसियान की स्थिति को सुदृढ़ करे। हालाँकि इस क्षेत्रीय समूह के अंदर मौजूद मतभेद ऐसे प्रयासों के लिये चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं।

दक्षिण चीन सागर में भविष्य में भारत की संलग्नता किस रूप में आगे बढ़ सकती है?

निकट भविष्य में, दक्षिण चीन सागर में भारत की उपस्थिति तीन तरीकों से और विस्तारित होगी:

  • क्षेत्र में भारत के बढ़ते हित:
    • आसियान देशों के साथ तेज़ी से बढ़ते व्यापार एवं निवेश संबंधों और रक्षा सहयोग के कारण, भारत को दक्षिण चीन सागर के मुद्दे के माध्यम से अपनी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिये एक सबल प्रेरणा प्राप्त होगी। इससे दक्षिण चीन सागर का विवाद जटिल बनेगा और इसका ‘अंतर्राष्ट्रीयकरण’ हो जाएगा।
  • भारत-चीन सीमा पर चीन के लाभ की भरपाई:
    • भारत दक्षिण चीन सागर मुद्दे में संलग्नता के साथ चीन-भारत सीमा पर चीन के लाभ की स्थिति की भरपाई करना जारी रखेगा। वस्तुतः मई 2020 में गलवान घाटी में चीन के साथ हुई झड़प के बाद से ही भारत ने दक्षिण चीन सागर में अपनी भागीदारी तेज़ी से आगे बढ़ाई है। सीमा पर संवेदनशील शांति और मधुर द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए, भारत सीमा पर चीन की शक्ति पर लगाम लगाने के लिये दक्षिण चीन सागर के मुद्दे का उपयोग कर सकता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका से सहायता:
    • भारत को दक्षिण चीन सागर विवाद में हस्तक्षेप करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका से मदद प्राप्त होगी। चूँकि अगले कुछ वर्षों में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच टकराव के साथ-साथ चीन और भारत के बीच संबंधों के गतिहीन बने रहने की संभावना है, भारत वाशिंगटन से लाभ प्राप्त करने के इस अवसर को भुनाने में संकोच नहीं करेगा और इसके साथ ही दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर अमेरिका के साथ सहयोग के माध्यम से चीन के उदय को संतुलित करने का प्रयास करेगा। 

दक्षिण चीन सागर में संकट को कम करने के विभिन्न उपाय क्या हैं?

  • आर्थिक विकल्पों का लाभ उठाना:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न दावेदार देश दक्षिण चीन सागर में अवैध गतिविधियों, उत्पीड़न और मनमाने व्यवहार में शामिल चीनी कंपनियों एवं व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। यह स्पष्ट किया जाना चाहिये कि किसी भी चीनी सैन्य कदम पर अमेरिका की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया दी जाएगी, जिनमें कुछ शमन विकल्प भी शामिल होंगे।
  • अन्य देशों को चीन के विरुद्ध एकजुट होने के लिये प्रोत्साहित करना:
    • विवाद में संलग्न देश चीन की कार्रवाइयों के लिये इसकी निंदा करने के अनौपचारिक रूप से परस्पर सहयोग कर सकते हैं अथवा आसियान या संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में चीन के विरुद्ध औपचारिक घोषणाएँ और प्रस्ताव जारी कर सकते हैं। वे संयुक्त सैन्य अभ्यास भी आयोजित कर सकते हैं जहाँ कुछ समय के लिये दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्सों की घेराबंदी की जा सकती है।
  • दक्षिण चीन सागर में आचार संहिता लागू करना:
    • विवाद में शामिल देश समान विचारधारा वाले अन्य देशों के साथ मिलकर दक्षिण चीन सागर में एक आचार संहिता का क्रियान्वयन कर सकते हैं। यह आचार संहिता चीनी जहाज़ों के उत्तेजक या धमकीपूर्ण व्यवहार पर प्रतिक्रिया की रूपरेखा तैयार करेगी। इन प्रतिक्रियाओं में रैमिंग और बज़िंग या चीनी जहाज़ों पर चढ़ने और उन्हें जब्त करने जैसी पारंपरिक गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं।
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिये सुरक्षा सहयोग और सहायता बढ़ाना:
    • दक्षिण चीन सागर के अन्य दावेदारों की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने की ज़रूरत है। इसमें एक नेटवर्क संपन्न बहुराष्ट्रीय समुद्री जागरूकता केंद्र की स्थापना करना भी शामिल हो सकता है जो दक्षिण चीन सागर में गतिविधियों की निगरानी करने और संलग्नता के सहमत नियमों का उल्लंघन करने वाले देशों को दंडित करने के लिये दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के खुफिया सूचना संग्रहण एवं विश्लेषण प्रयासों को संबद्ध करेगा। 
      • वर्ष 2023 में नए द्विपक्षीय रक्षा दिशानिर्देशों ने अमेरिका-फिलीपींस पारस्परिक रक्षा संधि के तहत अमेरिकी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ किया, जिसमें कहा गया कि दक्षिण चीन सागर में ‘कहीं भी’ फिलीपींस के तटरक्षक बल, विमान या सार्वजनिक जहाज़ों सहित इसके सशस्त्र बलों के विरुद्ध कोई भी सशस्त्र थर्ड-पार्टी हमला इस संधि के तहत अमेरिका के परस्पर सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को क्रियाशील करेगा।
  • शस्त्र नियंत्रण और परस्पर कटौती के बारे में चर्चा का प्रस्ताव:
    • उदाहरण के लिये, दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के देश चीन के द्वीपीय सैन्य चौकियों से दूर अपने संचालन के लिये सहमत हो सकते हैं यदि इन द्वीपों का पूर्ण विसैन्यीकरण किया जाए। संयुक्त राज्य अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय नियमों एवं मानदंडों का पालन करने के लिये चीन पर निजी तौर पर दबाव डालते हुए क्षेत्रीय संस्थानों के भीतर मिलकर कार्य कर सकता है।
  • संवाद को बढ़ावा देना:
    • इस बात को समझा गया है कि दक्षिण चीन सागर समस्या के लिये एक राजनीतिक ढाँचे की आवश्यकता है, जिसे केवल संवाद के माध्यम से ही सृजित किया जा सकता है। आसियान के नेताओं को ‘शांत कूटनीति’ के माध्यम से एक राजनीतिक समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिये, क्योंकि कानूनी तरीकों के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने की संभावना बहुत कम है।
    • एक ‘राजनीतिक ढाँचे’ का निर्माण और कानूनी रूप से बाध्यकारी ‘आचार संहिता’ की दिशा में प्रगति करने की ज़िम्मेदारी आसियान नेताओं के कंधों पर अधिक है। यदि आसियान देश चीन को एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संदेश देना चाहते है, तो उनके बीच आपस में गहरी समझ होनी चाहिये।
  • नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यवस्था के लिये भारत की पैरोकारी:
    • नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यवस्था के लिये भारत की पैरोकारी या पक्षसमर्थन, विशेष रूप से UNCLOS पर उसका बल, क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालने वाली एकतरफा कार्रवाइयों के विरुद्ध उसके रुख को परिलक्षित करता है। यह रुख, जबकि भारत की सैद्धांतिक विदेश नीति दृष्टिकोण में निहित है, यह अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिण चीन सागर में चीन के विस्तृत क्षेत्रीय दावों एवं गतिविधियों को भी चुनौती देता है और क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध एक ज़िम्मेदार हितधारक के रूप में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करता है।
  • FONOPs जारी रखना, लेकिन विवादित स्थलाकृतियों के 12 समुद्री मील से कम दूरी पर नहीं:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य दावेदार देशों के साथ यह संकेत दे सकता है कि विवादित स्थलाकृतियों के पास नौवहन संचालन की स्वतंत्रता (Freedom Of Navigation Operations- FONOPs) के संबंध में प्रादेशिक समुद्र के समान अधिकार नहीं हैं, लेकिन इस क्रम में चीन को शर्मिंदा करने या उसे उकसाने से बचने के लिये जितना संभव हो उतनी दूरी बनाई रखी जाए। यह चीन पर समुद्र में अनियोजित मुठभेड़ों के लिये अपने तट रक्षकों पर संहिता को लागू करने के लिये दबाव डालना जारी रख सकता है।
  • समुद्री टोही और निगरानी क्षमताओं में सुधार लाना:
    • यह कदम दावेदारों की चेतावनी के समय और यथास्थिति को बदलने के चीन के प्रयासों पर समन्वित प्रतिक्रिया देने की क्षमता में सुधार कर चीन को रोकने में मदद करेगा। ऐसे उपाय अनिवार्य रूप से रक्षात्मक हैं और आक्रामक उपायों की तुलना में बीजिंग के लिये कम उत्तेजक होंगे। वे मानवीय सहायता और आपदा राहत जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा मिशनों के लिये भी वांछनीय हैं।
      • अमेरिकी सरकार दक्षिण चीन सागर में सहयोगियों और साझेदारों की समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाना चाहती है। वर्ष 2022 में आयोजित क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा संवाद ने दक्षिण चीन सागर सहित पूरे हिंद-प्रशांत में समुद्री क्षेत्र जागरुकता में सुधार का प्रयास करने की घोषणा की थी।

निष्कर्ष

भारत द्वारा विभिन्न साधनों से दक्षिण चीन सागर में अपनी भागीदारी बढ़ाने की संभावना है, जिससे चीन में कुछ चिंता उत्पन्न होगी। हालाँकि, इन विवादों में भारत के प्रभाव की अपनी सीमाएँ हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत, भारत के पास दक्षिण चीन सागर में मज़बूत गठबंधन और सैन्य उपस्थिति का अभाव है, जो आवश्यक रूप से इसकी प्रत्यक्ष भागीदारी को सीमित करेगा। इसके अलावा, भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता दक्षिण चीन सागर में चीन को प्रतिस्थापित करने के बजाय हिंद महासागर पर अपना प्रभुत्व बनाए रखना है।

अंत में, भले ही भारत दक्षिण चीन सागर के विवादों में फिलीपींस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तेज़ी से खड़ा हुआ है, लेकिन इसने अभी तक चीन को उकसाने से काफी हद तक परहेज किया है। दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर अमेरिका के साथ भारत का व्यापक सहयोग नई दिल्ली के पारंपरिक गुटनिरपेक्ष रुख और उच्च रणनीतिक स्वायत्तता द्वारा नियंत्रित रहेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: क्षेत्रीय स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए दक्षिण चीन सागर के आसपास के भू-राजनीतिक महत्त्व और क्षेत्रीय विवादों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये:(2018)

क्षेत्र जो कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित होते हैं देश
1. केटालोनिया  स्पेन
2. क्रीमिया   हंगरी
3. मिंडानाओ फिलीपींस
4. ओरोमिया  नाइजीरिया

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं?

(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2 और 4

उत्तर: c


प्रश्न. दक्षिण-पूर्व एशिया ने भू-स्थानिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में अंतरिक्ष और समय पर वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। निम्नलिखित में से कौन-सी इस वैश्विक परिप्रेक्ष्य के लिये सबसे ठोस व्याख्या है? (2011) 

(a) द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह सबसे गर्म थिएटर था।
(b) चीन और भारत की एशियाई शक्तियों के बीच इसका स्थान।
(c) यह शीत युद्ध के समय में महाशक्ति टकराव का अखाड़ा था।
(d) प्रशांत और भारतीय महासागरों तथा इसके पूर्व-प्रख्यात समुद्री चरित्र के बीच इसका स्थान। 

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2.  कनाडा
  3.  चीन
  4.  भारत
  5.  जापान 
  6.  संयुक्त राज्य अमेरिका  

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के 'मुक्त व्यापार भागीदारों' में से हैं? 

(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6 

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2009) 

  1. ब्रुनेई दारुस्सलाम 
  2. पूर्वी तिमोर
  3. लाओस

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) का सदस्य है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। (2016)

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