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भारत का तकनीकी विनियामक परिदृश्य

  • 25 Nov 2024
  • 30 min read

यह संपादकीय 22/11/2024 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “Big Tech’s excesses” पर आधारित है। यह लेख मेटा पर CCI के ऐतिहासिक दंड को सामने लाता है, गोपनीयता और प्रतिस्पर्द्धा कानून के प्रतिच्छेदन पर बल देता है, जबकि उपयोगकर्त्ता अधिकारों में कमज़ोरियों को दूर करने के लिये एक व्यापक डेटा सुरक्षा फ्रेमवर्क की भारत की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम- 2000, IT नियम- 2021, RBI के डेटा स्थानीयकरण मानदंड, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, ई-कॉमर्स नियम- 2020, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 

मेन्स के लिये:

भारत में प्रौद्योगिकी विनियमन की वर्तमान स्थिति, भारत के तकनीकी परिदृश्य में प्रमुख चुनौतियाँ

मेटा पर भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का हालिया ज़ुर्माना तकनीकी विनियमन में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है, जो गोपनीयता और प्रतिस्पर्द्धा कानून के प्रतिच्छेदन को उजागर करता है। व्हाट्सएप की वर्ष 2021 की विवादास्पद गोपनीयता नीति से प्रेरित CCI का निर्णय, तकनीकी दिग्गजों की ज़बरदस्ती डेटा-साझाकरण प्रथाओं और बाज़ार प्रभुत्व के उनके दुरुपयोग को चुनौती देता है। यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन के विपरीत, जिसने व्हाट्सएप को यूरोप में इसी तरह की नीतियों को लागू करने से रोका, भारत द्वारा व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून के विलंबित कार्यान्वयन ने उपयोगकर्त्ताओं को डेटा शोषण के प्रति संवेदनशील बना दिया है।

भारत में प्रौद्योगिकी विनियमन की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • प्रतिस्पर्द्धा विधिक संरचना 
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) को डिजिटल बाज़ारों सहित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं की जाँच और विनियमन करने का अधिकार देता है।
      • प्रमुख संशोधन (वर्ष 2023): उच्च-मूल्य अधिग्रहणों को प्रबंधित करने के लिये सौदा/लेन-देन मूल्य सीमा जोड़ी गई।
    • उल्लेखनीय प्रवर्तन: बाज़ार प्रभुत्व के दुरुपयोग के लिये गूगल और मेटा जैसी प्रमुख तकनीकी कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई।
  •  डिजिटल अवसंरचना विनियम
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम- 2000: डिजिटल लेन-देन, साइबर सुरक्षा और साइबर अपराध को नियंत्रित करने के लिये प्राथमिक कानून के रूप में कार्य करता है।
    • IT नियम- 2021: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, OTT सेवाओं और डिजिटल समाचार मीडिया को लक्षित करने वाले व्यापक नियम:
      • सुदृढ़ शिकायत निवारण तंत्र को अनिवार्य बनाता है।
      • कंटेंट मॉडरेशन, टेकडाउन और यूज़र वेरिफिकेशन के लिये दायित्व लागू करता है।
  • डेटा सुरक्षा संरचना 
    • IT अधिनियम की धारा 43A और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत कार्य करता है। 
  • क्षेत्र-विशिष्ट विनियम
    • बैंकिंग और वित्त: फिनटेक कंपनियों और डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्मों के लिये RBI के दिशा-निर्देश।
    • दूरसंचार और OTT: ओवर-द-टॉप संचार सेवाओं के लिये ट्राई के नियम।
      • यह डिजिटल अवसंरचना और इंटरनेट सेवाओं के लिये दूरसंचार मानदंड भी निर्धारित करता है।
    • वित्तीय बाज़ार: स्वचालित व्यापार के लिये SEBI के दिशा-निर्देश।
  • उपभोक्ता संरक्षण तंत्र
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: समर्पित ई-कॉमर्स दिशा-निर्देश शामिल करता है।
    • ई-कॉमर्स नियम- 2020: डिजिटल बाज़ारों में अनुचित व्यापार प्रथाओं, धोखाधड़ी गतिविधियों और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की कार्रवाई करने पर केंद्रित है।
  • प्रस्तावित कानून और नीतियाँ
    • डिजिटल इंडिया अधिनियम: IT अधिनियम, 2000 का प्रतिस्थापन।
    • राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क (ड्राफ्ट): डेटा संप्रभुता और डिजिटल गवर्नेंस पर केंद्रित है।

भारत के तकनीकी परिदृश्य में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • डिजिटल डिवाइड और अवसंरचना अंतराल: भारत का डिजिटल परिवर्तन शहरी-ग्रामीण अवसंरचना असमानता के कारण गंभीर रूप से बाधित है, ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता दोनों का अभाव है। 
    • यह विभाजन विशेष रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों को प्रभावित करता है, जिससे दो-स्तरीय डिजिटल नागरिकता का निर्माण होता है जो समावेशी विकास के लिये खतरा उत्पन्न करता है। 
    • ट्राई की अक्तूबर- 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, जबकि शहरी टेलीघनत्व 132.94% है, ग्रामीण टेलीघनत्व केवल 59.05% पर बना हुआ है, जो स्पष्ट विभाजन को उजागर करता है।
  • खंडित विनियमन: भारत का प्रौद्योगिकी क्षेत्र कई एजेंसियों के क्षेत्राधिकारों के अतिव्यापन के कारण विनियामक अक्षमताओं का सामना कर रहा है, जिससे व्यवसायों के लिये अनुपालन संबंधी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है। 
    • उदाहरण के लिये, डेटा संरक्षण, डिजिटल कंटेंट और साइबर कानून एकीकृत फ्रेमवर्क के बिना विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा शासित होते हैं।
    • यह खंडित दृष्टिकोण परिचालन जटिलता को बढ़ाता है और नवाचार को बाधित करता है। 
    • इसके अतिरिक्त, वैश्विक स्तर पर परिचालन करने वाले व्यवसायों को भारत के डेटा स्थानीयकरण आदेशों को यूरोपीय संघ के GDPR जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे निर्बाध डेटा प्रवाह और अंतर-संचालन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। 
  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा कमज़ोरियाँ: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के कार्यान्वयन की कमी ने भारतीय नागरिकों को डेटा उल्लंघनों और गोपनीयता के उल्लंघन के प्रति संवेदनशील बना दिया है, जो विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा एवं वित्त जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। 
    • प्रौद्योगिकी कंपनियाँ पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना आक्रामक डेटा संग्रहण प्रथाओं को लागू करके इस नियामक शून्यता का लाभ उठाना जारी रखे हुए हैं।
    • CERT-In ने वर्ष 2022 में 13.91 लाख साइबर हमले की घटनाओं की सूचना दी, जो इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करती है। 
  • प्लेटफॉर्म एकाधिकार और बाज़ार विकृति: भारतीय डिजिटल बाज़ारों में बड़ी तकनीकी कंपनियों के प्रभुत्व ने स्थानीय प्रतिस्पर्द्धियों के लिये प्रवेश में बाधाएँ उत्पन्न कर दी हैं, जिससे नवाचार और उपभोक्ता की पसंद पर असर पड़ रहा है। 
    • इन एकाधिकारवादी तकनीकों में बाज़ार पर प्रभुत्व के अलावा पारिस्थितिकी तंत्र में अवरोध और डेटा नियंत्रण भी शामिल है।
    • सत्ता का संकेंद्रण इन प्लेटफॉर्मों को व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये शर्तें तय करने की अनुमति देता है। 
    • CCI ने व्हाट्सएप पर मेटा के साथ डेटा साझा करने पर पाँच वर्ष का प्रतिबंध लगाया है और भारत में अविश्वास उल्लंघन के लिये 213.14 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया है, जो बाज़ार एकाग्रता पर बढ़ती चिंता का उदाहरण है।
  • AI शासन और नैतिकता: भारत द्वारा उचित नैतिक संरचना और नियामक निगरानी के बिना AI प्रौद्योगिकियों को तेज़ी से अपनाने से एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह तथा गोपनीयता के उल्लंघन का जोखिम उत्पन्न होता है। 
    • AI प्रणालियों के लिये मानकीकृत परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रियाओं का अभाव नागरिकों को स्वचालित निर्णय-निर्माण पूर्वाग्रहों के प्रति संवेदनशील बना देता है। 
    • भारत में वर्तमान में जनरेटिव AI , डीपफेक और AI से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये विशिष्ट कानूनों का अभाव है, जो लगातार बढ़ रहे हैं।
    • हाल ही में भारत के बंगलूरू में दो व्यक्तियों से धोखेबाज़ों द्वारा बिज़नेस लीडर एन.आर. नारायण मूर्ति और मुकेश अंबानी के डीपफेक वीडियो का प्रयोग करके लगभग 1 करोड़ रुपए की ठगी की गई।
      • पीड़ितों को इन हेरफेर किये गए वीडियो के माध्यम से प्रचारित नकली ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म में निवेश करने के लिये लुभाया गया, जिससे वित्तीय धोखाधड़ी में डीपफेक के बढ़ते खतरे पर प्रकाश डाला गया।
  • डिजिटल कौशल का बेमेल होना: प्रौद्योगिकी क्षेत्र को गंभीर प्रतिभा संकट का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पारंपरिक शिक्षा तेज़ी से विकसित हो रही उद्योग की ज़रूरतों के साथ तालमेल रखने में विफल रही है। 
    • कौशल अंतर विशेष रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों को प्रभावित करता है, जिससे भारत की डिजिटल परिवर्तन यात्रा में बाधा उत्पन्न होती है। 
    • शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच असंतुलन के कारण बेरोज़गारी तथा रिक्त पद दोनों उत्पन्न होते हैं। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत के केवल 51.25% स्नातक ही रोज़गार योग्य हैं तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
  • सीमा पार डेटा प्रवाह प्रतिबंध भारत की डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताएँ, हालाँकि संप्रभुता के उद्देश्य से हैं, लेकिन परिचालन अक्षमताओं और वैश्विक डिजिटल सेवाओं की लागत में वृद्धि का कारण बनती हैं। 
    • इन प्रतिबंधों से वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति प्रभावित होगी तथा भारतीय उपयोगकर्त्ताओं के लिये सेवा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। 
    • अनुपालन का बोझ विशेष रूप से छोटी कंपनियों और वैश्विक स्तर पर परिचालन करने की इच्छुक स्टार्टअप्स को प्रभावित करता है। 
    • फिनटेक कंपनियाँ आमतौर पर अपने परिचालन लागत का लगभग 6-10% अनुपालन पर खर्च करती हैं। 
  • सामग्री विनियमन संतुलन: डिजिटल सामग्री पर टेकडाउन अनुरोधों और प्लेटफॉर्म विनियमनों के माध्यम से बढ़ते सरकारी नियंत्रण से डिजिटल स्पेस में स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं नवाचार को खतरा है। 
    • सामग्री मॉडरेशन दिशा-निर्देशों में अस्पष्टता प्लेटफॉर्मों और कंटेंट निर्माताओं के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करती है। 
    • नियामक संरचना प्रायः जीवंत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने की तुलना में नियंत्रण को प्राथमिकता देता है। 
    • भारत सरकार ने वर्ष 2022 की दूसरी छमाही (जुलाई से दिसंबर तक) में सोशल मीडिया दिग्गज मेटा को उपयोगकर्त्ता डेटा के लिये 63,852 अनुरोध प्रस्तुत किये जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • इसके अतिरिक्त, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाली गंभीर संवैधानिक चिंताओं का हवाला देते हुए, केंद्र सरकार द्वारा जारी तथ्य-जाँच इकाई (FCU) नियमों के कार्यान्वयन को तब तक के लिये रोक दिया है जब तक कि बॉम्बे हाईकोर्ट आईटी नियम संशोधन, 2023 को चुनौती देने वाले मामलों पर फैसला नहीं ले लेता।

तकनीकी विनियमन के संदर्भ में भारत अन्य देशों से क्या सीख सकता है?

  • यूरोपीय संघ (EU): ईयू ने अपने नियामक संरचना, जैसे कि सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) के माध्यम से महत्त्वपूर्ण वैश्विक प्रभाव स्थापित किया है। 
    • इन विनियमों ने न केवल यूरोपीय संघ आधारित कंपनियों को प्रभावित किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डाला है, कई अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने अपने परिचालन में यूरोपीय संघ के मानकों को अपनाया है, जिसे “ब्रुसेल्स इफेक्ट’ के नाम से जाना जाता है। 
  • ऑस्ट्रेलिया-समाचार मीडिया सौदाकारी संहिता: प्लेटफॉर्म-मीडिया संबंधों के प्रति ऑस्ट्रेलिया के अभिनव दृष्टिकोण ने तकनीकी दिग्गजों को समाचार संगठनों के साथ उचित मुआवज़े पर समझौता करने के लिये मजबूर किया। 
  • दक्षिण कोरिया - प्लेटफॉर्म विनियमन: कोरिया का अग्रणी ऐप स्टोर विनियमन (वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों को अनिवार्य करने वाला पहला) और सुदृढ़ डेटा संरक्षण संरचना मूल्यवान सीख प्रदान करती है। 
  • एस्टोनिया - डिजिटल सरकार: एस्टोनिया का व्यापक ई-गवर्नेंस संरचना, जिसमें 99% सार्वजनिक सेवाएँ ऑनलाइन हैं, प्रभावी डिजिटल परिवर्तन को दर्शाता है। 
  • जापान - डिजिटल प्लेटफॉर्म पारदर्शिता: जापान का पारदर्शिता अधिनियम प्रमुख डिजिटल प्लेटफॉर्मों के लिये निष्पक्ष व्यावसायिक प्रथाओं और प्रकटीकरण आवश्यकताओं पर केंद्रित है। 

भारत के तकनीकी नियामक संरचना को बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • एकीकृत डिजिटल विनियामक प्राधिकरण: एक केंद्रीकृत विनियामक निकाय के निर्माण से डिजिटल सेवाओं और प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्मों की वर्तमान खंडित निगरानी सुव्यवस्थित हो सकेगी। 
    • इस प्राधिकरण को डिजिटल डोमेन में सुसंगत विनियमन प्रदान करने के लिये CCI, TRAI, CERT-In और अन्य प्रासंगिक निकायों की विशेषज्ञता को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • UDRA तकनीकी कंपनियों के लिये एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली स्थापित कर सकता है, जिससे अनुपालन बोझ कम होगा तथा न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों के आधार पर व्यापक निगरानी सुनिश्चित होगी। 
    • प्राधिकरण को RBI के समान स्वायत्त दर्जा दिया जाना चाहिये जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ AI, डेटा संरक्षण, प्लेटफॉर्म गवर्नेंस और साइबर सुरक्षा के लिये विशेष प्रभागों का नेतृत्व करेंगे।
  • स्तरीकृत अनुपालन संरचना: आकार-आधारित विनियामक दृष्टिकोण, जहाँ प्लेटफॉर्म पैमाने और बाज़ार प्रभाव के साथ दायित्वों में वृद्धि होती है, नवाचार को निरीक्षण के साथ संतुलित करेगा। 
    • स्टार्ट-अप्स और छोटे प्लेटफॉर्मों को न्यूनतम अनुपालन आवश्यकताओं का सामना करना पड़ेगा, जबकि महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्मों को अनिवार्य ऑडिट एवं पारदर्शिता रिपोर्ट सहित बढ़ी हुई ज़िम्मेदारियाँ दी जाएंगी। 
    • इस संरचना में उपयोगकर्त्ता आधार, राजस्व और बाज़ार प्रभाव के आधार पर स्पष्ट सीमाएँ शामिल होनी चाहिये तथा प्रत्येक स्तर पर विशिष्ट अनुपालन आवश्यकताएँ होनी चाहिये। 
  • अनिवार्य अंतर-संचालनीयता मानक: डिजिटल प्लेटफॉर्मों के लिये अंतर-संचालनीयता मानकों को विकसित करने और लागू करने से एकाधिकार नियंत्रण कम होगा और प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी।
    • मैसेजिंग, सोशल मीडिया और डिजिटल भुगतान जैसी प्रमुख सेवाओं को डेटा पोर्टेबिलिटी तथा क्रॉस-प्लेटफॉर्म कार्यक्षमता का समर्थन करना आवश्यक होना चाहिये। 
    • मानकों को बहु-हितधारक परामर्श के माध्यम से विकसित किया जाना चाहिये जिसमें स्पष्ट कार्यान्वयन समयसीमा और तकनीकी विनिर्देश शामिल हों। इसमें डेटा एक्सचेंज के लिये अनिवार्य API और क्रॉस-प्लेटफॉर्म संचार के लिये सामान्य प्रोटोकॉल शामिल होंगे।
  • क्षेत्रीय डिजिटल नवाचार क्षेत्र: सरलीकृत विनियमों और बुनियादी अवसंरचना के समर्थन के साथ टियर-2 व टियर-3 शहरों में विशेष प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की स्थापना की जानी चाहिये, ताकि समान डिजिटल विकास सुनिश्चित करने के लिये ज़िला विकास योजनाओं से जुड़े विकेंद्रीकृत नवाचार क्षेत्र बनाए जा सकें।
    • इन क्षेत्रों को कर प्रोत्साहन, उच्च गति कनेक्टिविटी और नई प्रौद्योगिकियों और व्यापार मॉडलों के परीक्षण के लिये नियामक सैंडबॉक्स प्रदान करना चाहिये।
    • ये क्षेत्र AI, IoT या ब्लॉकचेन जैसे विशिष्ट तकनीकी डोमेन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिससे क्षेत्रों में विशेष पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो सकता है। उद्योग-अकादमिक अंतर को कम करने के लिये स्थानीय विश्वविद्यालयों को इन क्षेत्रों में एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • डिजिटल साक्षरता और कौशल विकास संरचना: मानकीकृत प्रमाणन और उद्योग मान्यता के साथ एक राष्ट्रव्यापी डिजिटल कौशल कार्यक्रम बनाने से प्रौद्योगिकी प्रतिभा अंतर को दूर किया जा सकेगा। 
    • इस संरचना में उद्योग जगत के अग्रणी लोगों के साथ साझेदारी में ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्मों को व्यावहारिक प्रशिक्षण केंद्रों के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
    • अनिवार्य डिजिटल साक्षरता मॉड्यूल को स्कूल पाठ्यक्रम और वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों में एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • उभरती हुई प्रौद्योगिकियों और उद्योग की ज़रूरतों के आधार पर नियमित पाठ्यक्रम अपडेट पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। रूपरेखा में ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित समुदायों के लिये लक्षित कार्यक्रम शामिल होने चाहिये।
  • डेटा संरक्षण कार्यान्वयन कार्य बल: डेटा संरक्षण विनियमों के कार्यान्वयन की देखरेख के लिये एक समर्पित कार्य बल की स्थापना से प्रभावी प्रवर्तन और अनुपालन सहायता सुनिश्चित होगी। 
    • व्यावहारिक कार्यान्वयन दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिये टास्क फोर्स में तकनीकी विशेषज्ञ, कानूनी पेशेवर और उद्योग प्रतिनिधि शामिल होने चाहिये।
    • बहुत बड़ी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा का प्रबंधन करने वाले संगठनों के लिये नियमित ऑडिट और अनुपालन रिपोर्ट अनिवार्य होनी चाहिये।
    • टास्क फोर्स को डेटा संरक्षण अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम भी संचालित करना चाहिये तथा प्रामाणित पेशेवरों की एक सार्वजनिक रजिस्ट्री भी बनाए रखनी चाहिये।
    • वित्त मंत्रालय और RBI द्वारा वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया डेटा सशक्तीकरण तथा संरक्षण आर्किटेक्चर (DEPA) तीसरे पक्ष के सहमति प्रबंधकों के माध्यम से सुरक्षित, सहमति-आधारित डेटा साझाकरण को सक्षम बनाता है, जिससे डेटा शासन को बढ़ाया जा सकता है और यह एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है। 
  • AI गवर्नेंस फ्रेमवर्क: AI प्रणालियों के विकास, परीक्षण और तैनाती के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ एक व्यापक AI गवर्नेंस संरचना विकसित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • इस संरचना में उच्च जोखिम वाले AI अनुप्रयोगों के लिये अनिवार्य प्रभाव आकलन और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रयुक्त AI प्रणालियों के लिये प्रमाणन आवश्यकताएँ स्थापित की जानी चाहिये।
    • पक्षपात और निष्पक्षता के लिये AI सिस्टम का नियमित ऑडिट अनिवार्य होना चाहिये जिसके परिणामों की सार्वजनिक रिपोर्टिंग होनी चाहिये। संरचना में AI से संबंधित घटनाओं के लिये स्पष्ट उत्तरदायित्व प्रावधान और उच्च जोखिम वाले अनुप्रयोगों के लिये अनिवार्य बीमा आवश्यकताएँ शामिल होनी चाहिये।
  • सीमा पार डेटा प्रवाह को सुसंगत बनाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय डेटा अंतरण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल स्थापित करने से वैश्विक डिजिटल व्यापार को सुविधाजनक बनाया जा सकेगा। 
    • प्रोटोकॉल में मानकीकृत डेटा वर्गीकरण प्रणालियाँ और विभिन्न डेटा श्रेणियों के लिये विशिष्ट आवश्यकताएँ शामिल होनी चाहिये।
    • डेटा सुरक्षा मानकों की पारस्परिक मान्यता के लिये द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों को आगे बढ़ाया जाना चाहिये। प्रोटोकॉल में सीमा पार डेटा उल्लंघनों तथा विवादों का समाधान करने के लिये आपातकालीन तंत्र शामिल होना चाहिये।
  • प्लेटफॉर्म प्रतिस्पर्द्धा संवर्द्धन: अनिवार्य ऐप स्टोर विकल्पों और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) जैसे भुगतान प्रणाली विकल्पों के माध्यम से डिजिटल बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के उपायों को लागू करना चाहिये, जिसने अंतर-संचालन को बढ़ावा देकर तथा फिनटेक कंपनियों के लिये प्रवेश बाधाओं को कम करके भारत में डिजिटल भुगतान में क्रांति ला दी है।
    • छोटे व्यवसायों की सुरक्षा के लिये प्लेटफॉर्म मूल्य निर्धारण और राजस्व साझेदारी के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित किये जाने चाहिये।
    • उपायों में रैंकिंग एल्गोरिदम का अनिवार्य प्रकटीकरण और व्यावसायिक उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्पष्ट अपील तंत्र शामिल होना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत का तकनीकी परिदृश्य संभावनाओं से भरपूर होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण विनियामक चुनौतियों का सामना कर रहा है। उपभोक्ता संरक्षण और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के साथ नवाचार को संतुलित करने के लिये एक व्यापक तथा अनुकूल विनियामक संरचना आवश्यक है। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखकर और भारतीय संदर्भ की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करके, भारत एक सुदृढ़ डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र बना सकता है जो नागरिकों को सशक्त बनाता है, नवाचार को बढ़ावा देता है तथा आर्थिक विकास को गति देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के प्रौद्योगिकी विनियमन में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं तथा यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन जैसे वैश्विक मॉडल भारत के नियामक संरचना को किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018) 

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध

उत्तर: (c)


प्रश्न 3. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/विशेषाधिकार के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य की जाँच करने के लिये नमूने लेने का अधिकार है।
  2. उपभोक्ता यदि उपभोक्ता मंच में अपनी शिकायत दर्ज करता है, तो उसे इसके लिये कोई फीस नहीं देनी होती।
  3. उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर, उसका वैधानिक उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कर सकता है।

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)

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