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सामाजिक न्याय

भारत की वृद्धजन आबादी में वृद्धि

  • 01 Aug 2024
  • 27 min read

यह एडिटोरियल 31/07/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The other side of demographic dividend: Can we take care of our elderly?” लेख पर आधारित है। इसमें दक्षिण और पूर्वी एशिया में आबादी की तेज़ी से बढ़ती आयु के परिप्रेक्ष्य में अपेक्षाकृत अधिक विकसित पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में वृद्धजनों के लिये भारत की सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं पेंशन प्रणालियों की अपर्याप्तता को उजागर किया गया है। लेख में भारत में वृद्धजनों के लिये वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल में व्याप्त अंतराल को दूर करने के लिये नीति नियोजन की मांग की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

अटल वयो अभ्युदय योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, वृद्धजनों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, अटल पेंशन योजना, मॉडल बिल्डिंग बाय लॉज़, 2016, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, प्रधानमंत्री आवास योजना, डीएवाई-एनयूएलएम, गैर-संचारी रोग

मेन्स के लिये:

भारत में वृद्धजनों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ, भारत में वृद्धजनों की देखभाल को बढ़ाने के लिये अपनाए जाने वाले उपाय

भारत एक जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुज़र रहा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। जबकि देश में जनसांख्यिकी पर सार्वजनिक चर्चा मुख्यतः युवा आबादी और जनसांख्यिकीय लाभांश पर केंद्रित रही है, तेज़ी से वृद्ध हो रही आबादी पर भी उतना ही ध्यान देने की आवश्यकता है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत में वृद्धजनों का अनुपात वर्ष 2011 के 8.6% से बढ़कर 20.8% हो जाएगा। पश्चिमी देशों में लगभग एक सदी की तुलना में भारत में महज 20-30 वर्षों में घटित हो रही तीव्र वृद्धावस्था की गति वृद्धजनों के लिये पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों के विकास को पीछे छोड़ रही है।

भारत की वृद्धजन आबादी की आवश्यकताओं को पर्याप्त दृश्यता या नीतिगत प्राथमिकता नहीं प्राप्त हो रही है। भारत में कुछ पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के विपरीत सार्वभौमिक सार्वजनिक पेंशन योजना, व्यापक स्वास्थ्य बीमा या वृद्धजनों के लिये सुदृढ़ सामाजिक देखभाल प्रावधानों का अभाव है। उपलब्ध आँकड़े वृद्ध व्यक्तियों के लिये आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता, पहुँच, सामर्थ्य और स्वीकार्यता में गंभीर असमानताओं को उजागर करते हैं। ये असमानताएँ भौगोलिक अवस्थिति, वर्ग, जाति, लिंग और औपचारिक रोज़गार तक पहुँच जैसे कारकों से प्रभावित होती हैं। जैसे-जैसे भारत एक वृद्ध समाज में बदल रहा है, वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और वृद्धजनों के लिये सामाजिक देखभाल में इन अंतरालों को दूर करना एक महत्त्वपूर्ण अनिवार्यता बन गई है।

भारत में वृद्धजनों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • पेंशन की समस्या: भारत की पेंशन प्रणाली इसकी वृद्ध होती आबादी के लिये अत्यंत अपर्याप्त है।
    • कार्यबल का केवल लगभग 12% ही औपचारिक पेंशन योजनाओं के अंतर्गत आता है (विश्व बैंक के अनुसार), जिसके कारण अधिकांश लोग वृद्धावस्था में वित्तीय सुरक्षा से वंचित रह जाते हैं।
    • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) वृद्ध गरीबों को मात्र 200-500 रुपए प्रति माह प्रदान करता है, जो जीवनयापन के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बाधाएँ: गैर-संचारी रोगों (NCDs) का बोझ भारत के वृद्धजनों पर भारी पड़ रहा है।
    • लॉन्गिटूडिनल एजिंग स्टडीज ऑफ इंडिया (LASI) के अनुसार, 60 वर्ष से अधिक आयु के अधिकांश लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी रोगों जैसी गैर-संचारी बीमारियों से पीड़ित हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, स्वास्थ्य पर अत्यधिक व्यय के कारण प्रतिवर्ष 55 मिलियन भारतीय गरीबी की चपेट में आ रहे हैं और वृद्धजन इससे विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
    • वृद्धावस्था देखभाल सुविधाओं और विशेषज्ञों की कमी से यह समस्या और भी जटिल हो जाती है, जिससे कई वृद्धजनों को अपनी स्वास्थ्य आवश्यकताओं के प्रबंधन के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
      • भारत में विश्व की वृद्ध आबादी का चौथाई भाग मौजूद हैं, लेकिन यहाँ प्रति वर्ष केवल 20 वृद्धावस्था विशेषज्ञ (geriatricians) ही उपलब्ध होते हैं।
  • अकेलेपन की महामारी – ‘The Loneliness Epidemic’: तीव्र शहरीकरण और बदलती पारिवारिक संरचना ने कई वृद्ध भारतीयों को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया है।
    • पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली, जो कभी वृद्धजनों के लिये सहायता और साथ का स्रोत थी, अब एकल परिवारों से प्रतिस्थापित हो रही है।
    • इस अकेलेपन या एकाकीपन के गंभीर मानसिक स्वास्थ्य परिणाम उत्पन्न होते हैं, जहाँ वृद्धजनों में अवसाद (depression) की दर 10-20% तक होने का अनुमान है।
    • कोविड-19 महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया, जिससे वृद्धजनों के लिये समुदाय-आधारित सहायता प्रणालियों और सामाजिक संलग्नता कार्यक्रमों की आवश्यकता अनुभव की गई।
  • तकनीक-चालित विश्व में पीछे छूट जाना: जैसे-जैसे भारत तेज़ी से डिजिटलीकरण की ओर आगे बढ़ रहा है, कई वृद्धजन स्वयं को डिजिटल डिवाइड के ‘रॉंग साइड’ या नकारात्मक पक्ष में पा रहे हैं।
    • बैंकिंग सेवाओं से लेकर स्वास्थ्य देखभाल तक, आवश्यक सेवाएँ तेज़ी से ऑनलाइन होती जा रही हैं।
      • लगभग 86% वृद्धजन डिजिटल प्रौद्योगिकी या कंप्यूटर का उपयोग करना नहीं जानते हैं।
      • यह डिजिटल निरक्षरता न केवल सेवाओं तक उनकी पहुँच को सीमित करती है, बल्कि परिवार और मित्रों के साथ जुड़े रहने की उनकी क्षमता को भी बाधित करती है, जिससे उनका अलगाव एवं दूसरों पर निर्भरता और अधिक बढ़ जाती है।
  • वृद्धजनों के साथ दुर्व्यवहार (Elder Abuse): वृद्धजनों के साथ दुर्व्यवहार भारत में बढ़ती चिंता का विषय है जिस पर प्रायः सार्वजनिक चर्चा नहीं होती। एल्डर्स हेल्पलाइन 1090 और एल्डरलाइन 14567 द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकडों से पता चला है कि लॉकडाउन के बाद वृद्धजनों के साथ दुर्व्यवहार में 251% की वृद्धि हुई।
    • वित्तीय शोषण, उपेक्षा और यहाँ तक कि शारीरिक दुर्व्यवहार भी व्याप्त है।
    • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के अधिनियमन के बावजूद इसका प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है।
    • दुर्व्यवहार करने वालों पर निर्भरता, प्रतिशोध के भय या सामाजिक कलंक के कारण कई मामले रिपोर्ट नहीं किये जाते, जो सुदृढ़ सुरक्षात्मक उपायों और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • आवासन संकट: भारत में वृद्धजनों के लिये पर्याप्त और वहनीय आवासन एक गंभीर चुनौती है।
    • जबकि समृद्ध लोगों के लिये सेवानिवृत्त समुदाय (retirement communities) उभर रहे हैं, मध्यम और निम्न आय वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिये ऐसे विकल्प सीमित हैं।
    • मौजूदा आवासों में आयु-उपयुक्त डिज़ाइन सुविधाओं (जैसे कि रैम्प, ग्रैब बार) और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणालियों का अभाव, सुरक्षा जोखिम पैदा करता है।
    • वहनीय सहायतायुक्त आवास सुविधाओं की कमी नियमित देखभाल आवश्यकता रखने वाले लोगों के लिये आवास विकल्पों को और अधिक जटिल बना देती है।

भारत में प्रमुख वृद्धजन देखभाल योजनाएँ कौन-सी हैं?

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग:
    • अटल वयो अभ्युदय योजना (एक समग्र योजना)
      • वरिष्ठ नागरिकों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (IPSrC): आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन प्रदान कर वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये गृहों की स्थापना करना।
      • वरिष्ठ नागरिकों के लिये राज्य कार्ययोजना (SAPSrC): राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को वरिष्ठ नागरिक कल्याण के लिये अपनी स्वयं की कार्ययोजना बनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
      • राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY): वरिष्ठ नागरिकों को शारीरिक सहायता और सहायक उपकरण प्रदान करना।
      • आजीविका और कौशल विकास पहल: इसमें सक्षम वरिष्ठ नागरिकों के लिये गरिमापूर्ण पुनर्नियोजन (SACRED) और सामाजिक पुनर्निर्माण पर लक्षित कार्य समूह (AGRASR) शामिल हैं।
      • जागरूकता सृजन और क्षमता निर्माण: वरिष्ठ नागरिकों के लिये प्रशिक्षण, संवेदीकरण और राष्ट्रीय हेल्पलाइन (एल्डरलाइन: 14567)।
  • ग्रामीण विकास मंत्रालय:
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय:
    • वृद्धजनों के स्वास्थ्य देखभाल के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPHCE): प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर वृद्धजनों के लिये व्यापक स्वास्थ्य देखभाल।
      • प्राथमिक एवं द्वितीयक देखभाल: 713 ज़िलों में जेरिएट्रिक ओपीडी, आईपीडी, फिजियोथेरेपी और प्रयोगशाला सेवाएँ।
      • तृतीयक देखभाल: क्षेत्रीय जरा चिकित्सा केंद्र (Regional Geriatric Centres- RGCs) और 2 राष्ट्रीय वृद्धावस्था केंद्र (National Centres for Ageing)।
  • वित्त मंत्रालय:
    • अटल पेंशन योजना (APY): 18-40 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के लिये पेंशन योजना, जो 60 वर्ष की आयु में गारंटीकृत पेंशन प्रदान करती है।
  • आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय:
    • मॉडल भवन उप-नियम, 2016: भवनों और परिवहन सुविधाओं में वृद्धजनों के अनुकूल वातावरण के लिये मानक।
    • अर्बन बस स्पेसिफिकेशन-II (2013): वृद्धजनों और दिव्यांगजनों के लिये सुगम्यता हेतु लो-फ्लोर बसें।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना: वरिष्ठ नागरिकों वाले परिवारों के लिये भूतल या निचली मंज़िल पर आवास आवंटन को प्राथमिकता।
    • DAY-NULM: वृद्धजनों सहित शहरी बेघरों के लिये आश्रय।

भारत में वृद्धजनों के लिये स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में हाल की प्रगति:

भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने हाल ही में चिकित्सा बीमा पॉलिसियों की खरीद के लिये आयु सीमा हटा दी है, जिससे वरिष्ठ नागरिकों को व्यापक लाभ होगा।

IRDAI के नए निर्देश:

  • आयु संबंधी बाधा हटाना: पूर्व की आयु संबंधी बाधा हटा दी गई है, जिससे 65 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति भी अब स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीद सकते हैं।
  • विशिष्ट उत्पाद: बीमा कंपनियों को विशिष्ट जनसांख्यिकी, जैसे वरिष्ठ नागरिकों, छात्रों, बच्चों और प्रसूति के लिये उत्पाद विकसित करने का निर्देश दिया जाता है।
  • पूर्व-विद्यमान स्थितियों के लिये कवरेज: बीमा कंपनियों को भारत सरकार के राजपत्र प्रावधानों के अनुसार, कैंसर और हृदयाघात सहित सभी पूर्व-विद्यमान चिकित्सा स्थितियों के लिये कवरेज प्रदान करना होगा।
  • बीमा घनत्व और पैठ (Insurance Density and Penetration): इन उपायों से भारत में बीमा घनत्व और पैठ में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • प्रीमियम भुगतान के विकल्प: बीमा कंपनियों को प्रीमियम के लिये किश्तों में भुगतान का विकल्प उपलब्ध कराना होगा।
  • यात्रा पॉलिसी: केवल सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को ही यात्रा बीमा पॉलिसी प्रदान करने की अनुमति है।
  • आयुष उपचार: आयुष (आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) के अंतर्गत उपचार के लिये कवरेज पर कोई सीमा नहीं है।

भारत में वृद्धजनों की देखभाल को बेहतर बनाने के लिये कौन-से अतिरिक्त उपाय किये जाने चाहिये?

  • ‘सिल्वर इकोनॉमी’ को बढ़ावा देना: वरिष्ठ नागरिकों को बाल देखभाल, पारंपरिक शिल्प और मार्गदर्शन भूमिकाओं जैसे क्षेत्रों में पुनः प्रशिक्षित करने तथा रोज़गार देने के लिये एक राष्ट्रीय ‘सिल्वर स्किल्स’ (Silver Skills) कार्यक्रम लागू किया जाए।
    • 60 वर्ष से अधिक आयु के कर्मचारियों को नियुक्त करने वाली कंपनियों के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान किया जाए और वृद्धजन उद्यमियों के लिये विशेष रूप से सरकार समर्थित सूक्ष्म-वित्त योजना प्रदान की जाए।
    • उदाहरण के लिये, सिंगापुर की सफल ‘WorkPro’ योजना—जो आयु-अनुकूल अभ्यासों को क्रियान्वित करने वाली कंपनियों को अनुदान प्रदान करती है, को भारत के लिये अपनाया जा सकता है। यह दृष्टिकोण न केवल वृद्धजनों के लिये आय प्रदान करता है बल्कि उनके विशाल अनुभव का भी उपयोग करता है।
  • तकनीक-सशक्त वृद्धजन देखभाल: वृद्धजनों के बीच डिजिटल साक्षरता में सुधार लाने के लिये राष्ट्रव्यापी ‘डिजिटल दादा-दादी’ पहल शुरू की जाए (यह ध्यान में रखते हुए कि डिजिटल पहुँच को अंतिम मील तक ले जाने के सभी उपाय किये जाएँ)।
    • वरिष्ठ नागरिकों के लिये उपयोगकर्त्ता अनुकूल ऐप्स और डिवाइस विकसित करने के लिये तकनीकी कंपनियों के साथ साझेदारी की जाए, जहाँ स्वास्थ्य निगरानी, सामाजिक संपर्क और आवश्यक सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
    • निम्न आय वाले वृद्धजनों के लिये सब्सिडीयुक्त स्मार्टफोन कार्यक्रम लागू किया जाए।
    • इसके अतिरिक्त, ‘डिजिटल सहायक’ का एक नेटवर्क विकसित किया जाए। डिजिटल सहायक के रूप में युवा स्वयंसेवक अपने समुदायों में वृद्धजनों को तकनीकी सहायता प्रदान कर सकेंगे।
  • सामुदायिक देखभाल केंद्र: सभी शहरी वार्डों और ग्रामीण पंचायतों में औपचारिक ‘वरिष्ठ सेवा केंद्र’ स्थापित किये जाएँ।
    • ये केंद्र वृद्धजनों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ‘वन-स्टॉप शॉप’ के रूप में कार्य कर सकेंगे और स्वास्थ्य जाँच, कानूनी सहायता, पेंशन सेवा एवं सामाजिक गतिविधियों के लिये संपर्क या लिंक्स उपलब्ध कराएँगे।
    • जापान की सफल समुदाय-आधारित एकीकृत देखभाल प्रणाली के आधार पर स्थापित ये केंद्र घरेलू देखभाल सेवाओं का समन्वय भी करेंगे और पारिवारिक देखभालकर्ताओं के लिये राहत देखभाल प्रदान करेंगे।
    • सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये इन केंद्रों के प्रबंधन में स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों को संलग्न किया जाए।
  • जरावस्था स्वास्थ्य कोर (Geriatric Health Corps): मौजूदा आशा (ASHA - Accredited Social Health Activist) ढाँचे के भीतर ‘जरावस्था स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं’ का एक कैडर सृजित किया जाए।
    • इन कर्मियों को वृद्धजनों की देखभाल के संबंध में विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाए और उन्हें दूरस्थ निगरानी एवं बुनियादी जरावस्था आकलन के लिये डिजिटल स्वास्थ्य टूलकिट से लैस किया जाए।
    • दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँच बनाने के लिये मोबाइल जेरिएट्रिक क्लीनिक स्थापित किये जाएँ और विशेषज्ञों की कमी को दूर करने के लिये चिकित्सा एवं नर्सिंग पाठ्यक्रम में जरावस्था देखभाल मॉड्यूल को एकीकृत किया जाए।
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बेंगलुरु ने वृद्धावस्था से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अध्ययन करने और वृद्धजनों की बेहतर देखभाल के लिये हस्तक्षेप विकसित करने हेतु ‘लॉन्गविटी इंडिया’ (Longevity India) कार्यक्रम शुरू किया है, जो एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • वित्तीय सुरक्षा तंत्र में सुधार लाना: वृद्धावस्था के लिये वित्तीय योजना को प्रोत्साहित करने हेतु उच्च ब्याज दरों के साथ ‘वरिष्ठ नागरिक बचत बॉण्ड’ की शुरुआत की जाए।
    • वृद्धजनों के लिये कम प्रीमियम और व्यापक कवरेज के साथ विशेष स्वास्थ्य बीमा उत्पाद सृजित किये जाएँ, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य और घरेलू देखभाल सेवाएँ भी शामिल हों।
    • उदाहरण के लिये, जापान की दीर्घकालिक देखभाल बीमा प्रणाली, जो वृद्धों की देखभाल से जुड़ी विभिन्न सेवाओं को कवर करती है, को भारतीय संदर्भ में अनुकूलित किया जा सकता है।
  • वृद्धजन अधिकार संरक्षण: वृद्धजनों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण के मामलों के प्रबंधन के लिये पुलिस स्टेशनों में समर्पित ‘वृद्धजन संरक्षण इकाइयाँ’ स्थापित की जाएँ।
    • वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार के संभावित मामलों को चिह्नित करने के लिये स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और बैंक अधिकारियों के लिये अनिवार्य रिपोर्टिंग प्रणाली लागू करें।
    • वृद्धजनों से संबंधित मामलों के लिये फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित कर और गैर-अनुपालन के लिये दंड में वृद्धि कर ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम’ के कार्यान्वयन को सुदृढ़ किया जाए।
  • आयु-अनुकूल शहर: सुगम्य सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और सेवाओं के लिये दिशानिर्देशों के साथ एक राष्ट्रीय ‘आयु-अनुकूल शहर’ (Age-Friendly City) प्रमाणन कार्यक्रम विकसित किया जाए।
    • अतिरिक्त वित्तपोषण और मान्यता के माध्यम से इन दिशानिर्देशों को लागू करने के लिये शहरों को प्रोत्साहित करें।
    • इसकी मुख्य सुविधाओं में सुगम्य सार्वजनिक शौचालय, सार्वजनिक परिवहन में आरक्षित सीटें और व्यायाम उपकरणों के साथ वृद्धजनों के लिये अनुकूल पार्क शामिल हो सकते हैं।
  • वृद्धजन पोषण मिशन: ‘वृद्धजनों के लिये पोषण’ (Poshan for Elders) योजना शुरू की जाए, जहाँ सफल सिद्ध हुए बाल पोषण कार्यक्रम के सिद्धांतों को वृद्धजनों तक भी विस्तारित किया जाए।
    • इसमें सामुदायिक रसोई के माध्यम से पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना, देखभालकर्ताओं के लिये पोषण संबंधी शिक्षा प्रदान करना और पोषण संबंधी स्थिति पर ध्यान केंद्रित करते हुए नियमित स्वास्थ्य जाँच करना शामिल होगा।
  • ‘सिल्वर वालंटियर्स’ (Silver Volunteers): सामुदायिक सेवा भूमिकाओं में स्वस्थ वृद्धजन व्यक्तियों को शामिल करने के लिये एक राष्ट्रीय ‘वरिष्ठ स्वयंसेवक कोर’ का गठन किया जाए।
    • सक्रिय स्वयंसेवकों के लिये स्वास्थ्य बीमा कवरेज या यात्रा भत्ते जैसे प्रोत्साहन प्रदान किये जाएँ।
    • यह दृष्टिकोण न केवल समुदाय को लाभ पहुँचाता है, बल्कि वृद्धजनों में सक्रिय वृद्धावस्था एवं उद्देश्य की भावना को भी बढ़ावा देता है, जैसा कि अमेरिका में ‘सीनियर कोर’ (Senior Corps) जैसे सफल कार्यक्रमों द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की तेज़ी से बढ़ती वृद्धजन आबादी के सामाजिक एवं आर्थिक प्रणालियों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार कीजिये। स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन और सामाजिक देखभाल में मौजूदा अंतराल को देखते हुए, वृद्धजनों के लिये व्यापक सहायता सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2008)

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के 60 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु के सभी नागरिक इस योजना के पात्र हैं। 
  2. इस योजना के तहत केंद्रीय सहायता प्रति लाभार्थी 300 प्रति माह की दर से है। योजना के तहत राज्यों से समतुल्य राशि देने का आग्रह किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न: सुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। - चर्चा कीजिये। (2019)

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