भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ | 16 Aug 2023

यह एडिटोरियल 12/08/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘India needs a new economic policy’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये: जीडीपी, मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी, कोविड-19 महामारी, विश्व बैंक, चालू खाता घाटा, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विनिवेश, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, बौद्धिक संपदा अधिकार।


मेन्स के लिये: भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ 

भारत एक बड़ी और जटिल अर्थव्यवस्था है जिसके समक्ष वृद्धि और विकास की अपनी यात्रा में कई चुनौतियाँ और अवसर मौजूद हैं। देश ने अपनी चुनौतियों का समाधान करने और अवसरों का लाभ उठाने के लिये विभिन्न सुधार किये हैं। 1.3 बिलियन से अधिक की आबादी और 2.7 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की जीडीपी के साथ भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालाँकि देश के समक्ष कई आर्थिक चुनौतियों भी मौजूद हैं और उनसे निपटने के लिये कई सुधार किये गए हैं। यदि भारत अपनी आर्थिक चुनौतियों को दूर कर सके और अपने आर्थिक सुधारों को बनाये रख सके तो वह 21वीं सदी में वैश्विक नेता बनने की क्षमता रखता है।

भारत के समक्ष विद्यमान आर्थिक चुनौतियाँ: 

  • कमज़ोर मांग:

      • निम्न आय वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी और कोविड-19 महामारी के प्रभाव जैसे विभिन्न कारकों के कारण भारत में वस्तुओं और सेवाओं की मांग गतिहीन रही है या घट रही है।
      • इससे अर्थव्यवस्था में उपभोग और निवेश का स्तर प्रभावित हुआ है तथा सरकार के लिये कर राजस्व कम हो गया है।

    • तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
    • कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और बदतर कर दिया है, क्योंकि कई व्यवसाय बंद हो गए हैं या उनके परिचालन स्तर में कमी आई है, जिससे नौकरियों की हानि हुई है।
    • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, अप्रैल और जुलाई 2020 के बीच 1.8 करोड़ से अधिक वेतन भोगी नौकरियाँ चली गई।
  • अगस्त 2020 में बेरोज़गारी दर 7.4% थी, जबकि अगस्त 2019 में यह 5.4% रही थी।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-22 में 4.1% की बेरोज़गारी दर दर्ज की गई।

  • कमज़ोर अवसंरचना:

      • भारत में सड़क, रेलवे, बंदरगाह, बिजली, पानी और स्वच्छता जैसे पर्याप्त अवसंरचना का अभाव है, जो इसके आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बाधित करता है।
      • विश्व बैंक के अनुसार भारत का अवसंरचनात्मक अंतराल (infrastructure gap) लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर के होने का अनुमान है। कमज़ोर अवसंरचना लोगों के जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।

  • भुगतान संतुलन का बिगड़ना:

    • भारत चालू खाता घाटे से लगातार जूझता रहा है, जिसका अर्थ है कि इसका आयात इसके निर्यात से अधिक है।
    • यह विदेशी वस्तुओं और सेवाओं, विशेषकर तेल एवं सोने पर इसकी निर्भरता तथा इसकी निम्न निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को परिलक्षित करता है।
  • वर्ष 2022 में भारत के निर्यात और आयात में क्रमशः 6.59% और 3.63% की कमी आई।

  • निजी ऋण का उच्च स्तर:

    • आसान ऋण उपलब्धता और निम्न ब्याज दरों के कारण भारत में निजी ऋण में, विशेष रूप से कॉर्पोरेट और घरेलू क्षेत्रों में, वृद्धि देखी गई है।
    • हालाँकि इससे डिफ़ॉल्ट और वित्तीय अस्थिरता का खतरा भी उत्पन हुआ है, विशेष रूप से यदि आय वृद्धि की गति मंद हो जाए या ब्याज दरों में वृद्धि हो।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार मार्च 2020 में गैर-वित्तीय क्षेत्र का कुल ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 167% था, जो मार्च 2016 में 151% रहा था।

  • असमानता:

    • भारत में आय और धन असमानता का उच्च स्तर पाया जाता है, जिसमें समय के साथ वृद्धि हुई है।
    • ‘वर्ल्ड इंइक्वलिटी डेटाबेस’ के अनुसार, वर्ष 2019 में राष्ट्रीय आय में शीर्ष 10% आय अर्जकों की हिस्सेदारी 56% थी, जो वर्ष 1980 में 37% रही थी।
  • इसी तरह, वर्ष 2019 कुल धन में शीर्ष 10% धन-धारकों की हिस्सेदारी 77% पाई गई, जो वर्ष 2000 में 66% रही थी।
  • असमानता के उच्च स्तर से सामाजिक अशांति, राजनीतिक अस्थिरता और निम्न आर्थिक विकास जैसी स्थितियाँ बन सकती हैं।

भारत में किये गए प्रमुख आर्थिक सुधार:

    • भारत ने उदारीकरण की अपनी प्रक्रिया वर्ष 1991 में शुरू की, जब उसे भुगतान संतुलन संकट का सामना करना पड़ा और सहायता के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से सहायता लेनी पड़ी।
    • इन सुधारों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों—जैसे उद्योग, व्यापार, वित्त और विदेशी निवेश में सरकारी हस्तक्षेप एवं विनियमन को कम करना था।
    • सुधारों में लाइसेंस-परमिट-कोटा प्रणाली को समाप्त करना भी शामिल था, जो निजी कंपनियों के प्रवेश और विस्तार को प्रतिबंधित करती थी।
  • उदारीकरण ने भारत को उच्च विकास दर प्राप्त करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत होने में मदद की है।

    • भारत ने सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSEs) का भी निजीकरण किया है।
    • निजीकरण का उद्देश्य है सार्वजनिक उपक्रमों की दक्षता, लाभप्रदता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करना; राजकोषीय बोझ कम करना; और विकास के लिये संसाधनों का सृजन करना।
  • निजीकरण के विभिन्न रूप हो सकते हैं, जैसे विनिवेश (निजी निवेशकों को शेयर बेचना), रणनीतिक बिक्री (प्रबंधन नियंत्रण निजी खरीदारों को हस्तांतरित करना) या बंद करना (घाटे में चल रही इकाइयों को बंद करना)।
  • वर्ष 1991 के बाद से भारत ने 60 से अधिक सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया है, जिससे 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक जुटाये गए हैं।

  • वैश्वीकरण (Globalization):

      • भारत ने भी वैश्वीकरण को भी अपनाया है, जिसका अर्थ है विश्व अर्थव्यवस्था के साथ अपने खुलेपन और एकीकरण को बढ़ाना।
      • वैश्वीकरण में व्यापार प्रवाह (निर्यात एवं आयात), पूंजी प्रवाह (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं पोर्टफोलियो निवेश), प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (पेटेंट एवं लाइसेंस), और प्रवासन प्रवाह (कामगारों और छात्रों के रूप में) को बढ़ाना शामिल है।
      • वैश्वीकरण नए बाज़ारों तक पहुँच, सस्ते इनपुट, विदेशी मुद्रा, प्रौद्योगिकी और कौशल जैसे लाभ ला सकता है। हालाँकि यह प्रतिस्पर्द्धा, अस्थिरता, निर्भरता और असमानता जैसी चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर सकता है।

  • नई आर्थिक नीति (New Economic Policy):

    • भारत ने कोविड-19 महामारी और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के जवाब में वर्ष 2020 में एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की।
    • इस नीति में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों और खंडों को समर्थन प्रदान करने के लिये 20 लाख करोड़ रुपए (सकल घरेलू उत्पाद के 10% के बराबर) का प्रोत्साहन पैकेज शामिल है।
    • नीति में कृषि, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, खनन, बिजली और कराधान जैसे क्षेत्रों में सुधारों की एक शृंखला भी शामिल है।
  • इस नीति का लक्ष्य भारत को पोस्ट-कोविड विश्व में आत्मनिर्भर (self-reliant) और प्रत्यास्थी (resilient) बनाना है।

    • यह कॉर्पोरेट देनदारों, वित्तीय ऋणदाताओं और परिचालन ऋणदाताओं के दिवाला एवं शोधन अक्षमता के मामलों को हल करने के लिये एक समयबद्ध एवं बाज़ार-आधारित तंत्र प्रदान करता है।
    • इसका उद्देश्य परिसंपत्तियों के मूल्य को अधिकतम करना, उद्यमशीलता को बढ़ावा देना और कारोबार सुगमता (ease of doing business) में सुधार करना है।
  • भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 तक IBC के तहत 4541 कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रियाएँ शुरू की गईं, जिनमें से 2029 मामलों का समाधान (resolution), परिसमापन (liquidation) या प्रत्याहरण (withdrawal) द्वारा सुलझा लिया गया है।

  • श्रम संहिता (Labour Codes):

      • इनमें चार कोड या संहिताएँ शामिल हैं जिनका उद्देश्य केंद्रीय श्रम कानूनों को चार व्यापक श्रेणियों में समेकित एवं सरलीकृत करना है: वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा एवं व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य
      • ये कोड नियोक्ताओं को कामगारों को नियोजित करने एवं कार्यमुक्त करने में लचीलापन प्रदान करने, व्यवसायों के लिये पंजीकरण एवं अनुपालन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने, अनौपचारिक कामगारों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने और ट्रेड यूनियनों एवं सामूहिक सौदेबाजी की भूमिका को बढ़ावा देने की मंशा रखते हैं।

  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (Production-linked Incentive- PLI) योजना:

    • भारत ने ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण एवं निर्यात को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2020 में एक PLI योजना शुरू की।
    • यह योजना पात्र विनिर्माताओं को पाँच वर्षों की अवधि में उनकी वृद्धिशील बिक्री और निवेश के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • इस योजना का कुल परिव्यय 1.46 लाख करोड़ रुपए है और इससे रोज़गार सृजन, विदेशी निवेश आकर्षित करने, प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने और आयात निर्भरता कम होने की उम्मीद है।

आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये कुछ सुझाव: 

  • उपभोग और निवेश मांग को बढ़ावा देना:

      • सरकार को अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों और खंडों को प्रत्यक्ष वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये जो महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जैसे कि MSMEs, अनौपचारिक कामगार, ग्रामीण परिवार और निम्न-आय समूह।
      • वित्तीय प्रोत्साहन का उद्देश्य उनकी आय, क्रय शक्ति और ऋण तक पहुँच को बढ़ाना होना चाहिये।
      • सरकार को सार्वजनिक अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा में भी निवेश करना चाहिये, जिससे रोज़गार सृजित हो सकते हैं, उत्पादकता में सुधार हो सकता है और मानव पूंजी की वृद्धि हो सकती है।

  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना:

      • सरकार को वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी, कर छूट और अवसंरचना समर्थन प्रदान करने के माध्यम से विनिर्माण, सेवाओं और कृषि जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को बढ़ावा देना चाहिये।
      • सरकार को नए बाज़ारों तक पहुँच बनाने और अपनी निर्यात टोकरी में विविधता लाने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और आसियान जैसे रणनीतिक भागीदारों के साथ व्यापार समझौते भी संपन्न करने चाहिये।
      • सरकार को गुणवत्ता मानक, लॉजिस्टिक्स लागत और व्यापार सुविधा के मुद्दों पर भी ध्यान देना चाहिये जो भारत के निर्यात प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं।

  • वित्तीय क्षेत्र में सुधार:

      • सरकार को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की समस्या का समाधान करके, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण, प्रशासन एवं विनियमन में सुधार और वित्तीय समावेशन एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र को सुदृढ़ करना चाहिये।
      • सरकार को बॉण्ड बाज़ार, बीमा बाज़ार और पेंशन बाज़ार का विकास भी करना चाहिये, जो अवसंरचना के लिये दीर्घकालिक वित्त और वृद्ध जनों के लिये सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।

  • व्यावसायिक माहौल में सुधार करना:

    • सरकार को लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और नीतिगत अनिश्चितता को कम करके भारत में व्यापार करने के लिये नियामक ढाँचे को सरल बनाना चाहिये।
  • सरकार को श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण कानूनों, अनुबंध प्रवर्तन कानूनों और दिवालियापन कानूनों में सुधारों को भी लागू करना चाहिये जो श्रम बाज़ार, भूमि बाज़ार, ऋण बाज़ार और कानूनी प्रणाली के लचीलेपन एवं दक्षता में सुधार कर सकते हैं।

  • नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना:

      • सरकार को अनुसंधान एवं विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्टार्टअप और इनक्यूबेटरों का समर्थन करके भारत में नवाचार एवं उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिये।
      • सरकार को एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग की सुविधा भी प्रदान करनी चाहिये जो नए विचारों, उत्पादों, प्रक्रियाओं और समाधानों का सृजन कर सके।
      • सरकार को बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा भी करनी चाहिये और पेटेंटिंग एवं लाइसेंसिंग को प्रोत्साहित करना चाहिये।

  • असमानता और गरीबी को संबोधित करना:

      • सरकार को ऐसी प्रगतिशील कराधान नीतियों को लागू करके भारत में असमानता और गरीबी को संबोधित करना चाहिये जो आय और धन को अमीरों से गरीबों की ओर पुनर्वितरित कर सके।
      • सरकार को सामाजिक कल्याण योजनाओं के कवरेज और गुणवत्ता का भी विस्तार करना चाहिये जो समाज के गरीब और कमज़ोर वर्गों को बुनियादी आय सहायता, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, शिक्षा छात्रवृत्ति, आवास सब्सिडी और कौशल विकास प्रदान कर सके।
      • सरकार को महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और हाशिये पर स्थित अन्य समूहों को उनके लिये समान अधिकार, अवसर और आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी सुनिश्चित करके सशक्त बनाना चाहिये।

  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण को कम करना:

    • सरकार को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण को कम करने के लिये हरित नीतियाँ अपनानी चाहिये जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHGs) को कम कर सकती हैं, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दे सकती हैं, ऊर्जा दक्षता बढ़ा सकती हैं, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकती हैं, जैव विविधता की रक्षा कर सकती हैं और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार कर सकती हैं।
    • सरकार को ऐसे अनुकूलन उपायों को भी लागू करना चाहिये जो बाढ़, सूखा, चक्रवात, ग्रीष्म लहर जैसे जलवायु आघातों के प्रति प्रत्यास्थता को बढ़ा सकें।



अभ्यास प्रश्न: मौजूदा आर्थिक चुनौतियों, आर्थिक सुधारों द्वारा प्रस्तुत अवसरों और उनके कार्यान्वयन से जुड़े सामंजस्य एवं जोखिमों का परीक्षण कीजिये।



यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

एक संकल्पना के रूप में मानव पूंजी निर्माण की व्याख्या उस प्रक्रिया के रूप में की जाती है , जिसके द्वारा 

  1. किसी देश के व्यक्ति अधिक पूंजी संचय कर पाते है।
  2. देश के लोगों के ज्ञान, कौशल स्तरों और क्षमताओं में वृद्धि हो पाती है।
  3. गोचर धन का संचय हो पता है। 
  4. अगोचर धन का संचय हो पाता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1.  1 और 2
  2. केवल 2
  3. 2 और 4
  4. 1, 3 और 4

उत्तर: C

मेन्स:

प्रश्न 1. भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार कैसे कम हुए? क्या बढ़ती हुई अनोपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है?

(2016)