विकासशील अंतरिक्ष शस्त्रीकरण के युग में भारत | 14 Apr 2025
यह एडिटोरियल 11/04/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “India has an admirable record as a global space power. But it needs to do more to close gap with China” पर आधारित है। इस लेख में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के रणनीतिक परिवर्तन— शांतिपूर्ण अन्वेषण से लेकर शस्त्रीकरण तैयारियों की तत्काल आवश्यकता तक का उल्लेख किया गया है। बढ़ते वैश्विक प्रति-अंतरिक्ष खतरों के साथ, इसमें भारत के लिये अपने रक्षा अंतरिक्ष संरचना को सुदृढ़ करने और अपनी अंतरिक्षीय संसाधन की सुरक्षा करने की तत्काल आवश्यकता पर चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:चीन की PLA सामरिक सहायता बल, मिशन शक्ति, रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन का याओगन उपग्रह, SpaceX, केसलर सिंड्रोम, बाह्य अंतरिक्ष संधि- 1967, हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल मेन्स के लिये:अंतरिक्ष युद्ध का एक नया क्षेत्र, भारत के लिये अंतरिक्ष के बढ़ते शस्त्रीकरण से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत का विकास अन्वेषण से विस्तार की ओर वैश्विक बदलाव को दर्शाता है। उपग्रह प्रक्षेपण, चंद्र मिशन और उपग्रह रोधी क्षमताओं सहित प्रभावशाली तकनीकी उपलब्धि हासिल करने के बावजूद, भारत अब एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है। जैसा कि CDS जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में ज़ोर दिया, "Warfare increasingly depends on space dominance." विरोधियों द्वारा तेज़ी से जवाबी अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करने के साथ, भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा के इस नए मोर्चे में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के लिये अपने अंतरिक्ष शस्त्रीकरण-कार्यक्रम को गति देने की आवश्यकता है।
अंतरिक्ष किस प्रकार युद्ध का नया क्षेत्र बन रहा है?
- वैश्विक शक्तियों द्वारा अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण: अंतरिक्ष अब अन्वेषण का निष्क्रिय क्षेत्र नहीं रह गया है; प्रमुख शक्तियाँ सक्रिय रूप से प्रभावशाली और रक्षात्मक अंतरिक्ष क्षमताओं का विकास कर रही हैं।
- समर्पित अंतरिक्ष बलों (जैसे: यूएस स्पेस फोर्स) का गठन अंतरिक्ष को संभावित युद्ध क्षेत्र के रूप में देखने की दिशा में बदलाव को दर्शाता है। अब देश अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को स्थलीय संघर्षों में रणनीतिक गुणक के रूप में देखते हैं।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका में अंतरिक्ष बल के बजट का 60% से अधिक, लगभग 19.2 बिलियन डॉलर, अनुसंधान, विकास, परीक्षण एवं मूल्यांकन पर खर्च किया जाता है।
- चीन की PLA स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फोर्स ने अंतरिक्ष अभियानों को शस्त्रीकरण सिद्धांत में एकीकृत कर लिया है।
- उपग्रह लक्ष्यीकरण और उपग्रह रोधी (ASAT) शस्त्र: अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण उपग्रह रोधी शस्त्रों के परीक्षण में स्पष्ट है। दुश्मन के उपग्रहों को नष्ट करने से युद्ध के दौरान नेविगेशन, संचार और निगरानी बाधित हो सकती है। यह आधुनिक युद्ध के मैदान में एक नई भेद्यता जोड़ता है।
- वर्ष 2019 में भारत के ‘मिशन शक्ति’ ने ASAT क्षमता का प्रदर्शन किया। वर्ष 2021 में, रूस के ASAT परीक्षण से 1,500 से अधिक ट्रैक करने योग्य अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े उत्पन्न हुए, जिससे अंतरिक्षीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न हो गया।
- अंतरिक्ष प्रणालियों में साइबर युद्ध: उपग्रह न केवल गतिज हमलों के प्रति संवेदनशील हैं, बल्कि साइबर अटैक के प्रति भी संवेदनशील हैं, जो कमान और नियंत्रण को बाधित कर सकते हैं।
- अंतरिक्ष संसाधनों पर साइबर अटैक प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को निष्क्रिय कर सकते हैं या डेटा में हेरफेर कर सकते हैं। यह युद्ध के कम लागत वाले, अस्वीकार्य मार्ग प्रदान करता है।
- वर्ष 2022 में, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान KA-SAT साइबर हमले ने वायासैट उपग्रह सेवाओं को बाधित कर दिया।
- दोहरे उपयोग वाले उपग्रह और जासूसी: उपग्रहों का दोहरा उपयोग होता जा रहा है, नागरिक और शस्त्रीकरण दोनों आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये, उन्हें शांतिकाल में निगरानी एवं युद्धकाल में लक्ष्य बनाने के लिये उपकरण बनाया जा रहा है। राष्ट्र नागरिक उपयोग की आड़ में सैन्य खुफिया जानकारी के लिये पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का उपयोग करते हैं।
- उदाहरण के लिये, चीन की याओगन उपग्रह शृंखला को आधिकारिक तौर पर ‘रिमोट सेंसिंग’ नाम दिये जाने के बावजूद सैन्य निगरानी के लिये जाना जाता है।
- सोवियत संघ के पतन के बाद, राष्ट्रीय टोही कार्यालय प्रणालियाँ अमेरिकी शस्त्रीकरण क्षमताओं में और अधिक एकीकृत हो गईं तथा खाड़ी युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- शस्त्रीकरण संघर्षों में निजी क्षेत्र की भागीदारी: SpaceX और प्लैनेट लैब्स जैसे निजी भागीदार वास्तविक काल में खुफिया जानकारी और इंटरनेट सेवाएँ प्रदान करके आधुनिक संघर्षों को सक्रिय रूप से आकार दे रहे हैं।
- इससे नागरिक और सैन्य पक्षों के बीच का अंतर समाप्त होता जा रहा है तथा नई कानूनी और रणनीतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती जा रही हैं।
- यूक्रेन युद्ध के दौरान, स्टारलिंक ने यूक्रेनी सेना के लिये निर्बाध संचार को सक्षम किया। प्लैनेट लैब्स ने रूसी सेना की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये वाणिज्यिक उपग्रह चित्र प्रदान किये।
- वर्ष 2022 में, जर्मनी की एनर्कॉन ने पूरे यूरोप में उपग्रह संचार में ‘बड़ी बाधा’ की सूचना दी, जिसने मध्य यूरोप में लगभग 5,800 पवन टर्बाइनों की दूरस्थ निगरानी एवं नियंत्रण को प्रभावित किया।
- अंतरिक्ष मलबा एक रणनीतिक चिंता का विषय: बढ़ते शस्त्रीकरण के साथ, अंतरिक्ष मलबे के उद्देश्यपूर्ण या आकस्मिक उत्पादन का उपयोग ऑर्बिटल एक्सेस—निष्क्रिय-आक्रामक युद्ध का एक रूप, को रोकने के लिये किया जा सकता है। परिणामस्वरूप केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष बुनियादी अवसंरचना को प्रभावहीन बना सकता है।
- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के अनुसार, वर्ष 2024 तक, पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए 10 सेमी. से बड़े अंतरिक्ष मलबे के लगभग 36,500 टुकड़े उत्पन्न हुए।
- अकेले चीन के वर्ष 2007 के ASAT परीक्षण से लगभग 3,000 मलबे के टुकड़े उत्पन्न हुए थे, जो आज भी मौजूद हैं।
- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के अनुसार, वर्ष 2024 तक, पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए 10 सेमी. से बड़े अंतरिक्ष मलबे के लगभग 36,500 टुकड़े उत्पन्न हुए।
- अंतरिक्ष संघर्षों के लिये नियामक कार्यढाँचे का अभाव: बाह्य अंतरिक्ष संधि- 1967 के अलावा बाह्य अंतरिक्ष में सैन्य व्यवहार को विनियमित करने के लिये कोई सुदृढ़ वैश्विक संधि नहीं है।
- बाध्यकारी प्रवर्तन तंत्रों का अभाव अनियंत्रित शस्त्रीकरण को बढ़ावा देता है।
- बाह्य अंतरिक्ष संधि अंतरिक्ष में सामूहिक विनाश के शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाती है, लेकिन परंपरागत शस्त्रों पर नहीं।
- अंतरिक्ष खतरों पर संयुक्त राष्ट्र के ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप (OEWG) में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण सीमित आम सहमति बनी है।
अंतरिक्ष में बढ़ते शस्त्रीकरण से भारत के लिये प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- सामरिक भेद्यता और प्रतिरोध अंतराल: चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों द्वारा अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण भारत की सामरिक जोखिम को बढ़ाता है, क्योंकि इसके पास आक्रामक या रक्षात्मक अंतरिक्ष बल का अभाव है।
- यह विषमता निवारण स्थिरता के लिये खतरा उत्पन्न करती है, विशेष रूप से अंतर-क्षेत्रीय संघर्षों की स्थिति में।
- भारत की अंतरिक्ष परिसंपत्तियाँ संचार, निगरानी और लक्ष्य निर्धारण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं; इनके नष्ट होने से पारंपरिक परिचालन बाधित हो जाएगा।
- उदाहरण के लिये, ऐसा माना जाता है कि चीन के पास कम से कम 1 और अधिकतम 3 डायरेक्ट-एसेन्ट ASAT (एंटी-सैटेलाइट) सिस्टम या DA-ASAT है, जबकि भारत के पास केवल एक ही (मिशन शक्ति, 2019) है।
- चीन की PLA ने अपने सामरिक सहायता बल के माध्यम से अंतरिक्ष क्षमताओं को एकीकृत किया है, जिससे उसे संयुक्त युद्ध में बढ़त मिली है।
- शस्त्रीकरण से अंतरिक्ष में शस्त्रों की दौड़ में तेज़ी आती है, जिससे प्रतिकूल क्षमताएँ बढ़ती हैं, जिससे गलत अनुमान और संकट अस्थिरता का खतरा बढ़ जाता है।
- भारत को गति बनाए रखने के लिये असंगत संसाधनों का आवंटन करने के लिये बाध्य होना पड़ सकता है, जिससे पारंपरिक और परमाणु स्थिति पर दबाव पड़ेगा।
- साइबर या स्थलीय जैसे किसी एक क्षेत्र में वृद्धि जल्दी ही अंतरिक्ष में फैल सकती है। उदाहरण के लिये, चीन के हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (वर्स 2021) ने प्रक्षेप पथ को छिपाने के लिये अंतरिक्ष का उपयोग किया, जिससे मिसाइल और अंतरिक्ष खतरों के बीच का अंतर कम हो गया है।
- आर्थिक एवं वाणिज्यिक व्यवधान: अंतरिक्ष शस्त्रों की दौड़ भारत की तेज़ी से बढ़ती वाणिज्यिक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, विशेषकर इसके उपग्रह प्रक्षेपण और डेटा सेवा क्षेत्रों के लिये खतरा है।
- शस्त्रीकरण से बीमा लागत बढ़ती है, विदेशी सहयोग में बाधा आती है तथा उपग्रह समूहों को खतरा होता है।
- मलबा उत्पन्न करने वाला कोई भी संघर्ष या दुर्घटना भारत के मूल्य-संवेदनशील मिशनों को असंगत रूप से प्रभावित करेगी। यह ISRO के नागरिक ध्यान को रक्षा आवश्यकताओं की ओर भी मोड़ सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक 13 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें अंतरिक्ष तकनीक क्षेत्र दो वर्षों में 235% की वृद्धि करेगा। इसमें कोई भी व्यवधान भारत की आर्थिक प्रगति में बाधा डाल सकता है।
- पर्यावरणीय और अंतरिक्षीय मलबे का खतरा: अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण से टकराव, मलबे की उत्पत्ति और दीर्घकालिक अंतरिक्षीय अस्थिरता का खतरा बढ़ जाता है, जिससे प्रमुख अंतरिक्षीय स्थानों तक भारत की पहुँच प्रभावित होती है।
- स्थलीय प्रदूषण के विपरीत, अंतरिक्ष मलबा लगभग स्थायी है और इससे कैस्केडिंग हो सकती है। भारत, LEO में 29 से अधिक परिचालन उपग्रहों के साथ (जनवरी 2024 तक), मामूली मलबे की घटनाओं के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील रहा है। संधारणीय और सुरक्षित मिशन लॉन्च करने की इसकी क्षमता अब सवालों के घेरे में है।
- एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ISRO को अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष मलबे से होने वाले नुकसान से बचाने के लिये वर्ष 2023 में 23 टकराव निवारण युद्धाभ्यास (CAM) करने पड़े, जो इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करता है।
- स्थलीय प्रदूषण के विपरीत, अंतरिक्ष मलबा लगभग स्थायी है और इससे कैस्केडिंग हो सकती है। भारत, LEO में 29 से अधिक परिचालन उपग्रहों के साथ (जनवरी 2024 तक), मामूली मलबे की घटनाओं के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील रहा है। संधारणीय और सुरक्षित मिशन लॉन्च करने की इसकी क्षमता अब सवालों के घेरे में है।
- तकनीकी पिछड़ापन और क्षमता अंतराल: भारत अंतरिक्ष आधारित लेज़र, जैमिंग-रोधी उपग्रहों या AI-संचालित SSA जैसी अत्याधुनिक काउंटर-स्पेस प्रणालियों को विकसित करने में पीछे है।
- यह अंतर भारत की शत्रुओं को रोकने तथा अपने अंतरिक्षीय संसाधनों की सक्रिय रूप से सुरक्षा करने की क्षमता को कम करता है।
- स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को समकक्ष प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कम वित्त पोषित किया जाता है और DRDO/ISRO का रक्षा-नागरिक तालमेल अभी भी विकसित हो रहा है। विदेशी घटकों पर निर्भरता साइबर-भेद्यता को भी बढ़ाती है।
- ISRO का वर्तमान वार्षिक बजट लगभग 1.6 बिलियन डॉलर है जो अन्य प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों की तुलना में काफी कम है।
- NASA 25 बिलियन डॉलर से अधिक के बजट के साथ काम करता है, और चीन की CNSA को 18 बिलियन डॉलर से अधिक मिलता है।
प्रमुख अंतरिक्ष सम्मेलन और संधियाँ क्या हैं?
- आउटर स्पेस ट्रीटी (वर्ष 1967): अंतरिक्ष में परमाणु शस्त्रों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाती है तथा बाह्य अंतरिक्ष को सभी के अन्वेषण के लिये स्वतंत्र घोषित करती है।
- रेस्क्यू अग्रीमेंट (वर्ष 1968): इसमें यह प्रावधान है कि संकट में फँसे अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित वापस लाया जाना चाहिये तथा अंतरिक्ष वस्तुओं को उनके मालिकों को लौटाने का प्रावधान है।
- लायबिलिटी कन्वेंशन (वर्ष 1972): इसमें प्रावधान है कि प्रक्षेपण करने वाला राज्य पृथ्वी की सतह पर अपने अंतरिक्ष पिंडों या वायुयानों के कारण हुई क्षति के लिये क्षतिपूर्ति देने के लिये पूर्णतया उत्तरदायी होगा, तथा अंतरिक्ष में अपने दोषों के कारण हुई क्षति के लिये भी उत्तरदायी होगा।
- मून अग्रीमेंट (वर्ष 1984): चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों को ‘मानव जाति की साझा विरासत’ घोषित करता है और उनके दोहन को प्रतिबंधित करता है (व्यापक रूप से अनुसमर्थित नहीं)।
- UN COPOUS (बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति): यह कोई संधि नहीं है, बल्कि शांतिपूर्ण अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये जिम्मेदार संयुक्त राष्ट्र निकाय है।
- आर्टेमिस अकॉर्ड्स (वर्ष 2020): जिम्मेदार चंद्र अन्वेषण के लिये अमेरिका के नेतृत्व वाली फ्रेमवर्क, पारदर्शिता, शांतिपूर्ण उपयोग, अंतरसंचालनीयता और संसाधन साझाकरण पर ज़ोर देती है।
भारत अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं और युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- एक समर्पित अंतरिक्ष कमान की स्थापना: भारत को अंतरिक्ष आधारित निगरानी, पूर्व चेतावनी और आक्रामक क्षमताओं को केंद्रीकृत करने के लिये अपने एकीकृत रक्षा कार्यढाँचे के तहत एक पूर्ण अंतरिक्ष कमान की स्थापना करनी चाहिये।
- इससे संघर्ष के दौरान वास्तविक काल में तीनों सेनाओं के बीच समन्वय, सिद्धांत विकास और संसाधन तैनाती को सुचारू बनाया जा सकेगा।
- यह अंतरिक्ष युद्ध को विशुद्ध वैज्ञानिक मिशनों से अलग करने में भी मदद करता है।
- परिचालन नियंत्रण में ज़मीनी और अंतरिक्षीय दोनों तरह के काउंटर-स्पेस उपकरण शामिल होने चाहिये। इसे साइबर और मिसाइल कमांड के साथ पूरी तरह से इंटर-ऑपरेबल होना चाहिये।
- स्वदेशी काउंटर-स्पेस तकनीक को बढ़ावा देना: भारत को सह-अंतरिक्षीय ASAT सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, निर्देशित-ऊर्जा शस्त्र और सैटेलाइट जैमर जैसी स्केलेबल काउंटर-स्पेस क्षमताओं में तत्काल निवेश करना चाहिये।
- फोकस मॉड्यूलर, लागत प्रभावी और दोहरे उपयोग की उपयोगिता वाले पुनः प्रयोज्य प्लेटफॉर्म पर होना चाहिये। मिशन-मोड प्रोग्राम के तहत DRDO, स्टार्टअप और शिक्षाविदों के साथ सहयोग करके तकनीकी अंतर को जल्दी से समाप्त किया जा सकता है।
- इन उपकरणों को केवल प्रतिक्रियात्मक रक्षा ही नहीं, बल्कि स्तरीकृत निरोधक कार्यढाँचे में भी एकीकृत किया जाना चाहिये।
- फोकस मॉड्यूलर, लागत प्रभावी और दोहरे उपयोग की उपयोगिता वाले पुनः प्रयोज्य प्लेटफॉर्म पर होना चाहिये। मिशन-मोड प्रोग्राम के तहत DRDO, स्टार्टअप और शिक्षाविदों के साथ सहयोग करके तकनीकी अंतर को जल्दी से समाप्त किया जा सकता है।
- अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता (SSA) को बढ़ाना: प्रतिकूल गतिविधियों की निगरानी, मलबे का पता लगाने और उपग्रह सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक सुदृढ़, रियल टाइम SSA नेटवर्क आवश्यक है।
- भारत को भूमि-आधारित राडार एवं अंतरिक्ष-आधारित ऑप्टिकल ट्रैकिंग प्रणाली, दोनों विकसित करनी होंगी।
- इस प्रणाली को एक एकीकृत खतरा-चेतावनी ग्रिड में शामिल किया जाना चाहिये जो रक्षा, इसरो और वाणिज्यिक ऑपरेटरों के लिये सुलभ हो।
- मित्र राष्ट्रों के साथ क्षेत्रीय SSA सहयोग स्थापित करने से कवरेज का विस्तार हो सकता है।
- राष्ट्रीय अंतरिक्ष सिद्धांत तैयार करना: भारत को लाल रेखाओं, निवारक मुद्रा, वृद्धि की सीमाओं और संलग्नता के नियमों को परिभाषित करने के लिये एक स्पष्ट, सार्वजनिक रूप से व्यक्त अंतरिक्ष सुरक्षा सिद्धांत तैयार करना चाहिये, यह भारत अंतरिक्ष नीति- 2023 का पूरक हो सकता है।
- इससे क्षमता विकास, अनुसंधान एवं विकास निवेश तथा सैन्य-औद्योगिक संरेखण को दिशा मिलेगी।
- यह सहयोगियों और विरोधियों को रणनीतिक उद्देश्य का संकेत भी देता है, जिससे गलत अनुमान लगाने से बचा जा सकता है। इस सिद्धांत को परमाणु और साइबर सिद्धांतों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये, जिससे क्रॉस-डोमेन तालमेल सुनिश्चित हो सके।
- एक मज़बूत नीतिगत आधार वित्तपोषण और संस्थागत सुधारों को वैध बनाता है।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में नागरिक-सैन्य-निजी एकीकरण को बढ़ावा देना: भारत को ISRO और IN-SPACe के भीतर रक्षा-केंद्रित वर्टिकल बनाकर नागरिक-सैन्य-निजी तालमेल को संस्थागत बनाना चाहिये जो स्टार्टअप एवं शिक्षाविदों के साथ सहयोग करते हैं।
- शस्त्र उपयोगकर्त्ताओं को मिशन की योजना और डिज़ाइन में शुरू से ही शामिल किया जाना चाहिये। निजी भागीदारों को सुरक्षित प्रोटोकॉल के तहत दोहरे उपयोग वाले प्लेटफॉर्म और लॉन्च सेवाएँ विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- एक समर्पित अंतरिक्ष नवाचार निधि, प्रौद्योगिकी अंतरण योजनाएँ और रक्षा खरीद प्रोत्साहन तीव्र क्षमता वृद्धि को उत्प्रेरित कर सकते हैं।
- अंतरिक्ष सुरक्षा में वैश्विक मानदंडों और आम सहमति निर्माण का नेतृत्व करना: भारत को शस्त्रों की दौड़ की गतिशीलता को रोकने के लिये वैश्विक मानदंडों और नियमों को आकार देने में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिये और अपने हितों की रक्षा करते हुए अंतरिक्ष परिसंपत्तियों के रचनात्मक उपयोग की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।
- जिम्मेदार ASAT परीक्षण, मलबा शमन मानदंडों और अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन को बढ़ावा देने से इसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी।
- इससे भारत को अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता में एक संतुलनकर्त्ता के रूप में स्थान मिलेगा तथा मध्यम शक्तियों के साथ रणनीतिक सहयोग का मार्ग खुलेगा।
- अंतरिक्ष सुरक्षा में कूटनीतिक नेतृत्व, केवल शक्ति पर निर्भर हुए बिना समुत्थानशीलन को बढ़ाएगा।
- अंतरिक्ष-आधारित साइबर सुरक्षा और क्वांटम संचार में निवेश: उपग्रह पर बढ़ती निर्भरता के साथ, भारत को अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा को रक्षा के मुख्य क्षेत्रक के रूप में मानना चाहिये।
- साइबर अटैक के खिलाफ ग्राउंड स्टेशनों, उपग्रह लिंक और अंतर-उपग्रह संचार को सुरक्षित करना आवश्यक है।
- अनब्रेकेबल एन्क्रिप्शन प्राप्त करने के लिये स्वदेशी क्वांटम संचार प्रयोगों को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- साइबर-अनुकूल कमांड और नियंत्रण प्रणालियों को शून्य-विश्वास आर्किटेक्चर के साथ विकसित किया जाना चाहिये।
- वास्तविक काल खतरे की निगरानी क्षमताओं के साथ संयुक्त DRDO-ISRO साइबर सेल बनाए जाने चाहिये।
निष्कर्ष:
अंतरिक्ष भू-राजनीति के अगले युद्धक्षेत्र के रूप में उभर रहा है, इसलिये भारत को निष्क्रिय पर्यवेक्षक से मुखर अंतरिक्ष शक्ति में परिवर्तित होना होगा। घरेलू काउंटर-स्पेस तकनीक को सुदृढ़ करना, एक समर्पित अंतरिक्ष कमान की स्थापना करना और बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति के आधार पर ग्लोबल स्पेस गवर्नेंस को आकार देना महत्त्वपूर्ण है। जैसे-जैसे अंतरिक्ष उपकरणों की दौड़ का जोखिम बढ़ता जा रहा है, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता अंतिम सीमांत (अर्थात् अंतरिक्ष) को सुरक्षित करने पर निर्भर होती जा रही है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "बाह्य अंतरिक्ष के बढ़ते उपकरण के साथ, अंतिम सीमांत (अर्थात् अंतरिक्ष) तेज़ी से युद्ध का नया रंगमंच बनता जा रहा है।" इस संदर्भ में, भारत के अंतरिक्ष संसाधनों की सुरक्षा में आने वाली चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न 1. भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी? (2019) प्रश्न 2. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) प्रश्न 3. भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के ‘आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र’ की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023) |