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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

MIRV प्रौद्योगिकी को अपनाना

  • 20 Mar 2024
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 19/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The MIRV leap that fires up India’s nuclear deterrence” लेख पर आधारित है। इसमें पड़ताल की गई है कि अग्नि-5 संस्करण के साथ MIRVs का एकीकरण भारत की परमाणु निवारक प्रभावशीलता को किस प्रकार उन्नत बनाता है।

प्रिलिम्स के लिये:

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), दिव्यास्त्र, अग्नि-5, मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRVs), होंगकी मुख्यालय-19, इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (IRBMS), पोस्ट बूस्ट व्हीकल (PBV), टर्मिनल बैलिस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी (TBRL), एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (ASL), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AECI)।

मेन्स के लिये:

भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में MIRV प्रौद्योगिकी का महत्त्व।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा ‘मिशन दिव्यास्त्र’ के तहत अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल का हालिया परीक्षण उल्लेखनीय रणनीतिक महत्त्व रखता है। 5,000 किलोमीटर से अधिक की मारक क्षमता वाली अग्नि-5 भारत की अब तक परीक्षण की गई सबसे लंबी दूरी की मिसाइल है। हालाँकि, इसका महत्त्व इसकी मारक क्षमता तक ही सीमित नहीं है और इसकी प्रभावशीलता भारत की परमाणु निवारक क्षमता के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षण है। MIRVs (Multiple Independently Targetable Re-entry Vehicles) के साथ इसके एकीकरण से यह प्रभावशीलता और बढ़ गई है।

मिशन दिव्यास्त्र:

  • DRDO द्वारा मिशन दिव्यास्त्र का सफल प्रक्षेपण भारत की परमाणु क्षमताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • यह 5,000 किलोमीटर की रेंज वाली घरेलू स्तर पर विकसित अग्नि-5 परमाणु मिसाइल के प्रथम उड़ान परीक्षण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें MIRV प्रौद्योगिकी शामिल थी।
    • मिशन दिव्यास्त्र नामक यह उड़ान परीक्षण ओडिशा तट के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया।
  • यह प्रौद्योगिकी मिसाइल को एक ही प्रक्षेपण में विभिन्न स्थानों या एक ही स्थान पर कई स्फोटक शीर्ष या वारहेड्स (warheads) पहुँचाने में सक्षम बनाती है, जिसमें संभावित रूप से शत्रु की बैलिस्टिक मिसाइल सुरक्षा को भ्रमित करने के लिये प्रलोभन देना भी शामिल हैं ।

MIRV प्रौद्योगिकी:

  • परिचय:
    • MIRV प्रौद्योगिकी की उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1970 में MIRVed इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) की तैनाती के साथ हुई।
    • MIRV एक मिसाइल को कई वारहेड्स (4-6) ले जाने की अनुमति देता है, जिनमें से प्रत्येक स्वतंत्र रूप से विभिन्न स्थानों को निशाना बनाने में सक्षम होते हैं।
    • MIRV प्रौद्योगिकी संलग्न हो सकने वाले संभावित लक्ष्यों की संख्या बढ़ाकर मिसाइल की प्रभावशीलता को बढ़ाती है।
    • MIRV को भूमि-आधारित प्लेटफॉर्मों और समुद्र-आधारित प्लेटफॉर्मों (जैसे कि पनडुब्बियों), दोनों से लॉन्च किया जा सकता है, जिससे उनके परिचालन लचीलेपन और सीमा (रेंज) का विस्तार होता है।
  • वैश्विक अंगीकरण और प्रसार:
    • MIRV प्रौद्योगिकी रखने वाले देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, रूस, चीन और भारत जैसी प्रमुख परमाणु शक्तियाँ शामिल हैं, जबकि पाकिस्तान ने भी वर्ष 2017 में इस प्रौद्योगिकी (अबाबील मिसाइल) का परीक्षण किया था।
    • अग्नि-5 की परीक्षण उड़ान के साथ पहली बार भारत में MIRV प्रौद्योगिकी का परीक्षण किया गया, जिसका उद्देश्य एक ही प्रक्षेपण में विभिन्न स्थानों पर कई वारहेड्स की तैनाती करना है।
    • अग्नि-5 हथियार प्रणाली स्वदेशी वैमानिकी प्रणालियों (avionics systems) और हाई-एक्यूरेसी सेंसर पैकेजों से सुसज्जित है, जिसने यह सुनिश्चित हुआ है कि री-एंट्री वाहन वांछित परिशुद्धता के भीतर लक्ष्य बिंदुओं तक पहुँचें।

MIRV प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

  • उपग्रहों को कक्षाओं में प्रक्षेपित करना:
    • MIRV प्रौद्योगिकी का परीक्षण और विकास भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वर्कहॉर्स रॉकेटों (जैसे PSLV, GSLV) पर उनके उनके वाणिज्यिक प्रक्षेपणों में किया गया,  जहाँ एकल रॉकेट के प्रक्षेपण से कई उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने का ध्येय रखा गया था।
  • हमलावर मिसाइल के लिये कई लक्ष्य विकल्प:
    • MIRV-टिप्ड मिसाइल – जैसे कि अग्नि-IV या अग्नि-V – का प्रक्षेपण कई सामरिक एवं रणनीतिक लाभ प्रदान करता है। यह हमलावर मिसाइल (Attacker) को अधिक लक्ष्य विकल्प प्रदान करता है।
    • रक्षक मिसाइल (Defender) को उन सभी का एक साथ बचाव करने के लिये विवश होना पड़ता है, जिससे उसकी मिसाइल-विरोधी सुरक्षा अधिक कार्य बोझ की शिकार होती है। MIRVed मिसाइलों लदे वारहेड्स को मिसाइल से अलग-अलग गति एवं अलग-अलग दिशाओं में छोड़ा जा सकता है।
  • वृहत परिचालनात्मक सीमा:
    • MIRV प्रौद्योगिकी से लैस अग्नि-V मिसाइल में कई हथियारों को समायोजित करने के लिये एक री-डिज़ाइन किया गया नोज़ कोन (nose cone) होता है। इनकी 5000-5500 किलोमीटर की लक्ष्य सीमा को बनाए रखने के लिये पुराने एवं भारी उप-प्रणालियों को हल्के एवं अधिक विश्वसनीय उप-प्रणालियों से (जहाँ हल्के मिश्रित सामग्रियों से बने घटक शामिल थे) प्रतिस्थापित किया गया है।
      • हाइड्रोलिक से इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्चुएटर्स (electro-mechanical actuators) की ओर आगे बढ़ने से न केवल हल्के घटकों के उपयोग के माध्यम से वजन कम होता है, बल्कि तेल भंडारण, रिसाव एवं एक संचायक (accumulator) की आवश्यकता जैसे मुद्दों का भी समाधान होता है। इसके अलावा, इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्चुएटर्स अधिक भरोसेमंद होते हैं और रखरखाव में भी आसान होते हैं।
  • बैलिस्टिक मिसाइलों से बचना:
    • MIRV से लैस मिसाइलों को एक साथ कई लक्ष्यों को वेधने की उनकी क्षमता और बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा को नाकाम करने में उनकी प्रभावशीलता के कारण आवश्यक माना जाता है।
    • चीन द्वारा HQ-19 जैसे भूमि-आधारित इंटरसेप्टर बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा के विकास से यह आवश्यकता और अधिक उजागर होती है।
      • माना जाता है कि HQ-19 में अग्नि इंटरमीडिएट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (IRBM) के पुराने संस्करणों को रोकने की क्षमता होगी, विशेष रूप यदि अग्नि को एकल हथियार ले जाने के लिये कॉन्फ़िगर किया गया हो।
      • अब जब भारत ने अग्नि-5 को कई वारहेड्स के साथ एकीकृत कर लिया है तो चीन-भारत परमाणु निवारक संबंधों में अधिक संतुलन की बहाली हुई है।

MIRV प्रौद्योगिकी के अंगीकरण से संबद्ध विभिन्न चुनौतियाँ:

  • प्रतिद्वंद्वियों द्वारा अधिक आक्रामक मुद्रा अपनाने हेतु प्रेरित होना:
    • रणनीतिक दृष्टि से यह लाभ इतना प्रकट नहीं है। रणनीतिक हलकों में इस बात के अच्छे सबूत और पर्याप्त चर्चा है कि MIRV मिसाइलों का होंना एक दोधारी तलवार जैसा है।
      • MIRVs एक ओर अधिक प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते प्रतीत होते हैं, दूसरी ओर, वे प्रतिद्वंद्वियों को अधिक आक्रामक परमाणु मुद्रा अपनाने के लिये प्रेरित करते हैं ताकि वे इस लाभ का मुकाबला कर सकें। इस प्रकार, MIRVs परमाणु संघर्ष के जोखिमों और सुरक्षा खतरों को बढ़ा सकते हैं।
  • अतिरिक्त विखंडनीय सामग्री की आवश्यकता:
    • एक अधिक समस्याग्रस्त मुद्दा अतिरिक्त विखंडनीय सामग्री (मुख्य रूप से प्लूटोनियम) से संबंधित है जो नई MIRV मिसाइलों के लिये आवश्यक होगी। भारत पहले से ही प्लूटोनियमकी कमी का सामना कर रहा है जहाँ BARC ध्रुव रिएक्टर से पर्याप्त आपूर्ति प्राप्त नहीं हो रही जबकि इसके बिजली संयंत्रों से थोड़ी मात्रा में ही अपशिष्ट प्लूटोनियम प्राप्त होता है।
  • अत्यधिक मांगपूर्ण तकनीकी मानदंड:
    • कठोर तकनीकी आवश्यकताओं के कारण MIRV-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास करना उल्लेखनीय चुनौतियाँ रखता है। इनमें परमाणु हथियारों को छोटा बनाना, हथियारों के लिये हल्के वजन वाले ‘रिसेप्टेकल्स’ को सुनिश्चित करना और पोस्ट बूस्ट व्हीकल (PBV) से री-एंट्री वाहनों का सटीक कॉन्फ़िगरेशन एवं सेपरेशन शामिल है, जो संचालन-योग्य होना चाहिये।
  • वारहेड्स की संख्या के संबंध में भ्रम:
    • MIRV मिसाइल के बारे में एक संदेह इसके द्वारा वहन किये जाने वाले वारहेड्स की संख्या को लेकर है, जिसके बारे में पूरी संभावना है कि यह सूचना ‘वर्गीकृत’ होगी। अटकलों के अनुसार, यह असंभव है कि यह तीन से अधिक वारहेड्स ले जा सकता है।
      • इसके अलावा, भारत द्वारा कम संख्या में परमाणु परीक्षण किये जाने के कारण परमाणु हथियारों की पैदावार सीमित होने की संभावना है। इसके साथ ही, यह स्पष्ट नहीं है कि अग्नि-5, विशेष रूप से मिसाइल की उड़ान के बूस्ट एवं मध्यवर्ती चरण के दौरान, डिकॉय और चाफ (decoys and chaff) ले जा सकता है या नहीं।

MIVR प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाने के लिये आवश्यक कदम:

  • भारत के परमाणु शस्त्रागार की प्रभावशीलता को बढ़ाना:
    • भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC), विशेष रूप से भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC)—जो परमाणु उपकरणों के संबंध में मुख्य अनुसंधान एवं विकास (R&D) के लिये प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार है, ने MIRV क्षमता के लिये पर्याप्त रूप से कॉम्पैक्ट परमाणु हथियार डिज़ाइन करने में अच्छा कार्य किया है। 
      • हालाँकि भारत द्वारा लंबी दूरी के सबमेरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) के परीक्षण— जिसे MIRV के साथ एकीकृत भारत की परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियाँ लॉन्च कर सकती हैं, के साथ जब भारत अपने परमाणु शस्त्रागार की क्षमता बढ़ा रहा गई, तब DRDO एवं AEC की ओर से और अधिक योगदान की ज़रूरत है।
  • MIRV मिसाइलों का मार्गदर्शन और सटीकता बनाए रखना:
    • मार्गदर्शन और सटीकता (Guidance and Accuracy) एक आवश्यकता है क्योंकि री-एंट्री वाहनों को वायुमंडलीय पुनः प्रवेश के दौरान ‘स्पिन’ को स्थिर करना पड़ता है। एक MIRV-आधारित मिसाइल केवल उन विभिन्न लक्ष्यों पर हमला कर सकती है जो इसके दायरे या भौगोलिक पदचिह्न के भीतर होंगे। भविष्य के परीक्षणों के साथ, भारत को इन मांगपूर्ण तकनीकी आवश्यकताओं को सटीक रूप से पूरा करना होगा।
      • भारत के परिदृश्य में, MIRV का विकास विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश के मिसाइल एवं परमाणु इंजीनियरों को उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। MIRV मिसाइलों में मार्गदर्शन और सटीकता का योग इसे महत्त्वपूर्ण वृद्धि प्रदान करेगा, साथ ही इसकी मारक क्षमता को 10,000 किलोमीटर तक बढ़ाएगा।
  • पर्याप्त परमाणु परीक्षण सुनिश्चित करना:
    • भारत द्वारा अपर्याप्त परमाणु परीक्षण वारहेड्स को छोटा बना सकने और कई लक्ष्यों को वेधने के लिये उन्हें MIRV से लैस करने की क्षमता को सीमित करता है।
    • पर्याप्त परीक्षण की कमी ने उस सीमा को भी कम कर दिया, जिस सीमा तक री-एंट्री वाहनों को हथियार ले जाने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता था। इसलिये, एक पूर्ण प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये पर्याप्त परमाणु परीक्षण अनिवार्य हो जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते:
    • MIRV प्रौद्योगिकी की उन्नति एवं तैनाती की निगरानी के लिये समझौतों और संधियों की स्थापना कर वैश्विक आशंकाओं का समाधान किया जाना चाहिये।
    • इसमें चीन द्वारा उत्पन्न उभरती चिंताओं और खतरों का हवाला देते हुए मित्र राष्ट्रों से विखंडनीय सामग्री प्राप्त करने के लिये मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) और ‘वासेनार अरेंजमेंट’ से परे भी विकल्प तलाशना शामिल है।

निष्कर्ष:

MIRVs से सुसज्जित अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण भारत की परमाणु निवारक क्षमताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह प्रगति भारत की रणनीतिक स्थिति को, विशेष रूप से चीन के परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रमों से उत्पन्न चुनौतियों के जवाब में, सुदृढ़ करती है। यह उपलब्धि अतीत की चुनौतियों पर काबू पाने में भारत की प्रौद्योगिकीय शक्ति एवं प्रत्यास्थता को भी रेखांकित करती है। लंबी दूरी के SLBM के संभावित विकास सहित मिसाइल प्रौद्योगिकी में भारत की निरंतर प्रगति एक विश्वसनीय परमाणु शक्ति के रूप में इसकी स्थिति को और सुदृढ़ करेगी।

  • अभ्यास प्रश्न: MIRV प्रौद्योगिकी की अवधारणा और आधुनिक युद्ध में इसके महत्त्व की चर्चा कीजिये। वैश्विक हथियार नियंत्रण एवं अप्रसार प्रयासों के लिये MIRV प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q1. कभी-कभी समाचार में उल्लिखित 'टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस (टी.एच.ए.ए.डी.)' क्या है ? (2018)

(a) इज़रायल की एक राडार प्रणाली
(b) भारत का घरेलू मिसाइल-प्रतिरोधी कार्यक्रम
(c) अमेरिकी मिसाइल-प्रतिरोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के बीच एक रक्षा सहयोग

उत्तर: (c)

प्रश्न 2. अग्नि-IV प्रक्षेपास्त्र मिसाइल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2014)

यह धरातल-से-धरातल तक मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है।

 इसमें केवल द्रव नोदक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है।

 यह एक टन नाभिकीय वारहेड को 7500 किमी. दूरी तक फेंक सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

मेन्स: 

प्रश्न. S-400 हवाई रक्षा प्रणाली विश्व में इस समय उपलब्ध अन्य किसी प्रणाली की तुलना में किस प्रकार से तकनीकी रूप से श्रेष्ठ है? (2021)

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