फ्रीबीज़ (Freebies): एक दोधारी तलवार | 12 Jun 2023
यह एडिटोरियल 08/06/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘The costs of poll-driven power freebies’’ लेख पर आधारित है। इसमें राजनीतिक दलों द्वारा ‘फ्रीबीज़ कल्चर’ को प्रोत्साहन देने और उसके परिणामों के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स:सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), मध्याह्न भोजन योजना, नीति आयोग, भारत निर्वाचन आयोग मेन्स:फ्रीबीज़- लाभ- हानियाँ और आगे की राह |
यह सुस्थापित तथ्य है कि प्रत्येक चुनावी मौसम में सभी राजनीतिक दल चुनावी सफलता के लिये महत्त्वाकांक्षी व्यय प्रतिबद्धता प्रकट करते हैं।
चुनाव जीतने के उद्देश्य से राजनीतिक दल बिजली, पानी और परिवहन जैसे विभिन्न फ्रीबीज़/मुफ्त वस्तुओं (Freebies) को प्रदान करने का वादा करते हैं। इनमें मुफ़्त बिजली देना सबसे लोकप्रिय वादा रहा है।
बिजली के लिये उच्च सब्सिडी न केवल राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य को खतरे में डालती है बल्कि इससे अन्य क्षेत्रों में सामाजिक कार्यक्रमों के लिये उपलब्ध धन सीमित हो जाता है।
उदाहरण के लिये, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये कर्नाटक का बजट आवंटन अन्य सभी राज्यों द्वारा इन क्षेत्रों में औसत आवंटन की तुलना में कम है।
फ्रीबीज़:
- भारतीय रिज़र्व बैंक की वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में फ्रीबीज़ को ‘‘एक लोक कल्याणकारी उपाय (जो निःशुल्क प्रदान किया जाता है)’’ के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि फ्रीबीज़ स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे व्यापक एवं दीर्घकालिक लाभ प्रदान करने वाली सार्वजनिक/ मेरिट वस्तुओं (public/merit goods) से भिन्न हैं।
‘फ्रीबीज़’ और ‘वेलफेयर’ अंतर:
फ्रीबीज़ और वेलफेयर या कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर हमेशा स्पष्ट नहीं होता है, लेकिन लाभार्थियों और समाज पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव के आलोक में उनके मध्य के अंतर को समझा जा सकता है। कल्याणकारी योजनाओं का सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है, जबकि यह निर्भरता या विकृति उत्पन्न कर सकते हैं।
- फ्रीबीज़ वे वस्तुएँ और सेवाएँ हैं जो उपयोगकर्ताओं को बिना किसी शुल्क के मुफ़्त में प्रदान की जाती हैं।
- इनको आमतौर पर अल्पावधि में लक्षित आबादी को लाभान्वित करने के उद्देश्य से प्रदान किया जाता है।
- उन्हें प्रायः मतदाताओं को लुभाने या लोकलुभावन वादों के साथ रिश्वत देने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है।
- निःशुल्क लैपटॉप, टीवी, साइकिल, बिजली, पानी आदि उपलब्ध कराना फ्रीबीज़ के कुछ उदाहरण हैं।
- दूसरी ओर, कल्याणकारी योजनाएँ सुविचारित योजनाएँ होती हैं जिनका उद्देश्य लक्षित आबादी को लाभान्वित करना और उनके जीवन स्तर के साथ संसाधनों तक पहुँच में सुधार करना होता है।
- वे सामान्यतः नागरिकों के प्रति संवैधानिक दायित्वों (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुपालन में) की पूर्ति करने का उद्देश्य रखती हैं।
- उन्हें प्रायः सामाजिक न्याय, समता और मानव विकास को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), मध्याह्न भोजन योजना आदि कल्याणकारी योजनाओं के कुछ उदाहरण हैं।
फ्रीबीज़ एक दोधारी तलवार:
- फ्रीबीज़ के लाभ:
- सार्वजनिक आउटरीच और संलग्नता: सरकार के फ्रीबीज़ सरकार के प्रति जनता के भरोसे एवं संतुष्टि की वृद्धि कर सकते हैं, क्योंकि इस प्रकार वे लोगों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही को प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा फ्रीबीज़ सरकार और नागरिकों के बीच प्रतिक्रिया एवं संवाद के अवसरों का सृजन कर सकते हैं, जिससे पारदर्शिता के साथ लोकतंत्र की संवृद्धि हो सकती है।
- ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ के एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में लैपटॉप, साइकिल एवं नकद हस्तांतरण जैसे फ्रीबीज़ का मतदाता रुझान, राजनीतिक जागरूकता और सरकार के प्रति संतुष्टि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- आर्थिक विकास: फ्रीबीज़ कार्यबल की उत्पादक क्षमता में वृद्धि करके (विशेष रूप से कम विकसित क्षेत्रों में) आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं। उदाहरण के लिये लैपटॉप, साइकिल या सिलाई मशीन जैसे फ्रीबीज़ गरीब एवं ग्रामीण आबादी के कौशल, गतिशीलता एवं आय के अवसरों को बढ़ा सकते हैं।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार और पश्चिम बंगाल में स्कूली छात्राओं को साइकिल जैसे फ्रीबीज़ प्रदान करने से उनके नामांकन में वृद्धि हुई है, स्कूल ड्रॉपआउट दर में कमी आई है और उनके अधिगम प्रतिफल (learning outcomes) में सुधार हुआ है।
- समाज कल्याण: वे समाज के गरीब और हाशिये पर स्थित वर्गों को खाद्य, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिये यूनिफ़ॉर्म, पाठ्यपुस्तक या स्वास्थ्य बीमा जैसे फ्रीबीज़ ज़रूरतमंद एवं भेद्य समूहों के बीच साक्षरता, स्वास्थ्य और जीवन गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं।
- विश्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत खाद्य सब्सिडी जैसे फ्रीबीज़ ने वर्ष 2011-12 में भारत में निर्धनता अनुपात को 7% तक कम करने में भूमिका निभाई है।
- NSSO के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) के अंतर्गत स्वास्थ्य बीमा जैसे फ्रीबीज़ ने गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों (BPL households) के लिये जेब के खर्च (out-of-pocket expenditure) और विनाशकारी स्वास्थ्य आघातों को कम करने में योगदान किया है।
- आय समानता: फ्रीबीज़ धन एवं संसाधनों को अधिक समान रूप से पुनर्वितरित करके आय असमानता एवं गरीबी को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिये ऋण माफी या नकद हस्तांतरण जैसे फ्रीबीज़ ऋणी या निम्न आय वाले परिवारों को संपत्ति, ऋण या आय समर्थन तक पहुँच प्रदान कर उन्हें सशक्त बना सकते हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक की एक रिपोर्ट में पाया गया कि ऋण माफी से ऋण बोझ से राहत मिली और संकटग्रस्त किसानों की साख क्षमता में सुधार हुआ है।
- सार्वजनिक आउटरीच और संलग्नता: सरकार के फ्रीबीज़ सरकार के प्रति जनता के भरोसे एवं संतुष्टि की वृद्धि कर सकते हैं, क्योंकि इस प्रकार वे लोगों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही को प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा फ्रीबीज़ सरकार और नागरिकों के बीच प्रतिक्रिया एवं संवाद के अवसरों का सृजन कर सकते हैं, जिससे पारदर्शिता के साथ लोकतंत्र की संवृद्धि हो सकती है।
- फ्रीबीज़ की हानियाँ:
- ‘डिपेंडेंसी सिंड्रोम’: फ्रीबीज़ प्राप्तकर्ताओं के बीच निर्भरता और पात्रता के एक नकारात्मक पैटर्न का निर्माण कर सकते हैं, जिससे यह भविष्य में और अधिक फ्रीबीज़ की उम्मीद कर सकते हैं और कठिन श्रम करने या करों का भुगतान करने के लिये कम प्रेरित हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, 1 रुपए प्रति किलो चावल या शून्य लागत पर बिजली जैसे फ्रीबीज़ लाभार्थियों की ज़िम्मेदारी एवं जवाबदेही की भावना को कम कर सकते हैं और उन्हें बाह्य सहायता पर निर्भर बना सकते हैं।
- ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के एक सर्वेक्षण से पता चला कि तमिलनाडु में 41% मतदाताओं ने मतदान के लिये फ्रीबीज़ को एक महत्त्वपूर्ण कारक माना, जबकि 59% ने कहा कि वे राज्य सरकार के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं।
- राजकोषीय बोझ: फ्रीबीज़ के राज्य या देश के राजकोषीय स्वास्थ्य एवं मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता के लिये प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं, क्योंकि इससे सार्वजनिक व्यय, सब्सिडी, घाटे, ऋण और मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिये कृषि ऋण माफी, बेरोज़गारी भत्ते या पेंशन योजनाओं जैसे फ्रीबीज़ सरकार के बजटीय संसाधनों और राजकोषीय अनुशासन पर दबाव बढ़ा सकते हैं तथा अन्य क्षेत्रों में निवेश करने या अपने दायित्वों की पूर्ति करने की इसकी क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
- RBI की एक रिपोर्ट में पाया गया कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के तहत वरिष्ठ नागरिकों के लिये पेंशन योजनाओं जैसे फ्रीबीज़ ने केंद्र और राज्य सरकारों के लिये राजकोषीय जोखिम उत्पन्न किया है, क्योंकि इन्होंने वृद्ध होती आबादी के साथ बढ़ती पेंशन देनदारी को निहित किया।
- संसाधनों का गलत आवंटन: फ्रीबीज़ अवसंरचना, कृषि, उद्योग जैसे अधिक उत्पादक एवं आवश्यक क्षेत्रों से धन को दूसरी ओर मोड़कर व्यय प्राथमिकताओं और संसाधनों के आवंटन को विकृत कर सकते हैं। उदाहरण के लिये मोबाइल फोन, लैपटॉप या एयर कंडीशनर जैसे फ्रीबीज़ पर सार्वजनिक व्यय का बड़ा हिस्सा खर्च हो सकता है जिससे सड़कों, पुलों, सिंचाई प्रणालियों या बिजली संयंत्रों जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों के लिये निवेश कम हो सकता है।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्कूल अवसंरचना, शिक्षक गुणवत्ता या अधिगम प्रतिफल में सुधार लाने जैसी अधिक आवश्यकताओं के इतर लैपटॉप प्रदान करने जैसे फ्रीबीज़ की ओर धन को खर्च करने की आलोचना की गई है।
- गुणवत्ता से समझौता: फ्रीबीज़ नवाचार एवं सुधार के लिये प्रोत्साहन को कम करके मुफ़्त में दी जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिये साइकिल या लैपटॉप जैसे फ्रीबीज़, बाज़ार में उपलब्ध या अन्य देशों द्वारा उत्पादित इन उत्पादों की तुलना में घटिया गुणवत्ता या पुरानी तकनीक के हो सकते हैं।
- ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग’ की एक रिपोर्ट ने मूल्यांकन किया कि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा प्रदत्त लैपटॉप जैसे फ्रीबीज़ पुरानी पड़ चुकी प्रौद्योगिकी एवं सॉफ़्टवेयर पर आधारित थे, जो उनकी कार्यक्षमता एवं प्रदर्शन को सीमित करते थे।
- पर्यावरण पर प्रभाव: फ्रीबीज़ द्वारा जल, बिजली या ईंधन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग एवं अपव्यय को प्रोत्साहित करने के रूप में पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये मुफ़्त बिजली, पानी या मुफ़्त गैस सिलेंडर जैसे फ्रीबीज़, इनके संरक्षण एवं कुशल उपयोग के लिये प्रोत्साहन को कम कर सकते हैं और इस तरह कार्बन फुटप्रिंट एवं प्रदूषण के स्तर को बढ़ा सकते हैं।
- कैग (CAG) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पंजाब में किसानों के लिये मुफ़्त बिजली के कारण बिजली के अत्यधिक उपयोग के साथ इसकी दक्षता प्रभावित हुई।
- ‘डिपेंडेंसी सिंड्रोम’: फ्रीबीज़ प्राप्तकर्ताओं के बीच निर्भरता और पात्रता के एक नकारात्मक पैटर्न का निर्माण कर सकते हैं, जिससे यह भविष्य में और अधिक फ्रीबीज़ की उम्मीद कर सकते हैं और कठिन श्रम करने या करों का भुगतान करने के लिये कम प्रेरित हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, 1 रुपए प्रति किलो चावल या शून्य लागत पर बिजली जैसे फ्रीबीज़ लाभार्थियों की ज़िम्मेदारी एवं जवाबदेही की भावना को कम कर सकते हैं और उन्हें बाह्य सहायता पर निर्भर बना सकते हैं।
आगे की राह:
- कल्याण कार्य और फ्रीबीज़ के बीच अंतर रखना: फ्रीबीज़ को आर्थिक नजरिये से और करदाताओं के पैसे से संबद्धता के संदर्भ में देखा जाना चाहिये।
- सब्सिडी और फ्रीबीज़ के बीच अंतर रखना भी आवश्यक है। सब्सिडी उचित हैं और विशिष्ट मांगों की पूर्ति के लिये विशेष रूप से लक्षित लाभ हैं जबकि फ्रीबीज़ मुख्यतः लोकलुभावनवाद की पुष्टि करते हैं।
- निधियों का स्पष्ट औचित्य प्रदर्शित करना: राजनीतिक दलों को फ्रीबीज़ की घोषणा करने से पहले मतदाताओं और ECI के समक्ष उनके वित्तपोषण एवं ट्रेड-ऑफ के बारे में बताना चाहिये। इसमें राजस्व के स्रोतों को निर्दिष्ट करना, राजकोषीय संतुलन पर प्रभाव, सार्वजनिक व्यय की अवसर लागत और फ्रीबीज़ की संवहनीयता के बारे में स्पष्टीकरण शामिल होना चाहिये।
- भारत निर्वाचन आयोग को सशक्त करना: चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज़ की घोषणा एवं कार्यान्वयन को विनियमित करने और इनकी निगरानी करने के लिये ECI को सशक्त किया जाना चाहिये। इसमें ECI को राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने, जुर्माना लगाने या आदर्श आचार संहिता या फ्रीबीज़ पर न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने के लिये अवमानना कार्रवाई करने की वृहत शक्तियाँ प्रदान करना शामिल होगा।
- मतदाता जागरूकता: लोकतंत्र में फ्रीबीज़ के प्रसार की अनुमति देने या इसे रोकने की शक्ति अंततः मतदाताओं के पास है। मतदाताओं को फ्रीबीज़ के आर्थिक एवं सामाजिक परिणामों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें राजनीतिक दलों से प्रदर्शन एवं जवाबदेही की मांग करने के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है। मतदाताओं को तर्कसंगत एवं नैतिक विकल्प चुनने हेतु सूचना-संपन्न और सशक्त करने में जागरूकता अभियान, मतदाता साक्षरता कार्यक्रम, नागरिक समाज पहल और मीडिया मंचों की उल्लेखनीय भूमिका होगी।
- न्यायिक हस्तक्षेप: फ्रीबीज़ पर संसद में रचनात्मक बहस एवं चर्चा कठिन है क्योंकि फ्रीबीज़ संस्कृति का हर राजनीतिक दल पर प्रभाव है, चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से हो या अप्रत्यक्ष रूप से। इस परिदृश्य में विभिन्न उपायों का प्रस्ताव करने के लिये न्यायापालिका की संलग्नता आवश्यक है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फ्रीबीज़ के मुद्दे और अर्थव्यवस्था एवं लोकतंत्र पर उनके प्रभाव पर विचार करने के लिये एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव दिया है। इस समिति में नीति आयोग, वित्त आयोग, RBI के सदस्य और अन्य हितधारक शामिल होंगे। यह समिति चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज़ की पेशकश को नियंत्रित करने के बारे में सुझाव देगी।
- समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करना:इससे गरीबी एवं असमानता के मूल कारणों को हल किया जा सकेगा जो लोगों को फ्रीबीज़ के प्रति भेद्य या संवेदनशील बनाते हैं। समावेशी विकास, आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति के लिये अधिक अनुकूल वातावरण का भी निर्माण करेगा, जो दीर्घावधि में समाज के सभी वर्गों को लाभान्वित करेगा। इस प्रकार समावेशी विकास फ्रीबीज़ का अधिक प्रभावी एवं वांछनीय विकल्प हो सकता है।
- इसे इस उद्धरण के माध्यम से अच्छी तरह समझा जा सकता है- ‘‘किसी आदमी को एक मछली दो तो तुम एक दिन के लिये उसका पेट भरोगे लेकिन अगर किसी आदमी को मछली पकड़ना सिखा दो तो तुम जीवन भर के लिये उसके पेट भरने का उपाय कर दोगे।’’ ( “Give a man a fish and you feed him for a day, teach a man to fish and you feed him for a lifetime.”)
अभ्यास प्रश्न: मतदाताओं को राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज़ देने के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।