सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहतर करने का उपाय | 03 Mar 2023
यह एडिटोरियल 27/02/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Govt schools need urgent fixing” लेख पर आधारित है। इसमें सरकारी स्कूलों के से संबद्ध समस्याओं और इसे संबोधित करने के उपायों पर चर्चा की गई है।
संदर्भ
शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER), 2022 के अनुसार, सरकारी स्कूलों में 16 वर्षों में पहली बार नामांकन में तीव्र वृद्धि देखी गई, जबकि बच्चों की बुनियादी साक्षरता के स्तर में बड़ी गिरावट आई है जहाँ उनकी पढ़ने की क्षमता (reading ability) अंकीय कौशल की तुलना में बहुत तेज़ी से बिगड़ रही है और वर्ष 2012 के पूर्व के स्तर तक गिर रही है।
- कई राज्यों के सरकारी स्कूलों में मुख्य रूप से कमज़ोर सामाजिक समूहों के बच्चे पढ़ते हैं और बालिकाओं की शिक्षा को प्रायः आगे उनके विवाह के लिये उपयोगी एक औपचारिकता की तरह देखा जाता है। वित्तपोषण संबंधी बाधाओं को दूर करने के अलावा, स्कूलों के प्रशासन में सुधार लाने और कोविड-19 लॉकडाउन के कारण जीर्ण-शीर्ण हुई सुविधाओं का नवीनीकरण करने की आवश्यकता है।
- जैसा कि ASER 2022 पुष्टि करता है, प्राथमिक विद्यालय जाने की आयु के सभी बालक और बालिकाएँ पुनः स्कूल जाने लगी हैं, लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली उन्हें विफल कर रही है। कुछ प्रयासों की ज़रूरत है जिससे बच्चों के लिये सीखने (लर्निंग) को आकर्षक बनाया जा सकता है।
- जबकि सर्व शिक्षा अभियान एवं अन्य उत्तरवर्ती प्रयासों के साथ आपूर्ति पक्ष में स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये बहुत कुछ किया गया है, स्कूलों में लर्निंग की पुनर्कल्पना और जीवंतता की आवश्यकता है।
सरकारी स्कूलों के कार्यकरण से संबंधित प्रमुख समस्याएँ
- बदतर अवसंरचना:
- कई सरकारी स्कूलों में उपयुक्त कक्षा-भवनों, स्वच्छ पेयजल, शौचालय, पुस्तकालय और खेल के मैदान जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यह छात्रों को प्रदान की जाने वाली शिक्षा की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
- प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी:
- सरकारी स्कूलों की एक बड़ी संख्या ऐसी है जहाँ सुप्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों का अभाव है। इसका परिणाम शिक्षण की खराब गुणवत्ता और छात्रों में उत्साह की कमी के रूप में सामने आता है।
- पुराना पड़ चुका पाठ्यक्रम:
- कई सरकारी स्कूलों द्वारा प्रयुक्त पाठ्यक्रम पुराना पड़ चुका है और वर्तमान रोज़गार बाज़ार में प्रासंगिक कौशल प्रदान नहीं करता है। इससे विद्यार्थियों के लिये आगे रोज़गार की कमी की स्थिति बनती है।
- अपर्याप्त वित्तपोषण:
- कई सरकारी स्कूल अपर्याप्त वित्तपोषण से पीड़ित हैं, जो बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने और सुयोग्य शिक्षकों को आकर्षित करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।
- उत्तरदायित्व की कमी:
- सरकारी स्कूलों में स्कूल प्रशासकों और शिक्षकों के बीच प्रायः उत्तरदायित्व की कमी देखी जाती है। यह शिक्षा की खराब गुणवत्ता और छात्रों में प्रेरणा की कमी जैसे परिणाम उत्पन्न करता है।
- असंगत शिक्षक-छात्र अनुपात:
- सरकारी स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात प्रायः निम्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक छात्र पर समान रूप से ध्यान नहीं दिया जाता है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 1.2 लाख स्कूल ऐसे हैं जिनमें से प्रत्येक में मात्र एक शिक्षक उपलब्ध है।
- निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम , 2009 अपनी अनुसूची में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों तरह के स्कूलों के लिये छात्र शिक्षक अनुपात (PTR) को निर्धारित करता है।
- इसके अनुसार, प्राथमिक स्तर पर PTR 30:1 और उच्च प्राथमिक स्तर पर 35:1 होना चाहिये।
- सरकारी स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात प्रायः निम्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक छात्र पर समान रूप से ध्यान नहीं दिया जाता है।
भारत में शिक्षा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान और विधियाँ
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के भाग IV में शामिल राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP) के अनुच्छेद 39 (f) और 45 में राज्य द्वारा वित्तपोषण के साथ-साथ समान एवं सुलभ शिक्षा का प्रावधान मौजूद है।
- वर्ष 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के माध्यम से शिक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।
- केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियाँ एक व्यापक दिशा प्रदान करती हैं और राज्य सरकारों से इसके अनुपालन की अपेक्षा की जाती है। लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। उदाहरण के लिये, तमिलनाडु वर्ष 1968 में पहली शिक्षा नीति द्वारा निर्धारित त्रि-भाषा फार्मूले का पालन नहीं करता है।
- वर्ष 2002 में 86वें संशोधन ने शिक्षा को अनुच्छेद 21-A के तहत एक प्रवर्तनीय अधिकार बना दिया।
- संविधान का अनुच्छेद 21A राज्यों के लिये 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने को बाध्यकारी बनाता है।
- संबंधित विधियाँ:
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष आयु के सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करना और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है।
- यह समाज के वंचित वर्गों के लिये 25% आरक्षण का भी निर्देश देता है।
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष आयु के सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करना और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है।
- सरकारी पहलें:
- सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना, प्रौद्योगिकी वर्धित शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme on Technology Enhanced Learning), प्रज्ञाता, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, पीएम श्री स्कूल आदि प्रमुख सरकारी पहलें हैं।
आगे की राह
- धन के साथ स्थानीय सरकार को उत्तरदायी बनाना:
- स्थानीय सरकारों और महिला समूहों को धन एवं कार्यकारियों के साथ प्राथमिक विद्यालयों की ज़िम्मेदारी सौंपी जानी चाहिये।
- उन्हें किसी भी रिक्ति को युक्तिसंगत तरीके से भरने या शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सामुदायिक स्वयंसेवक को नियुक्त कर सकने के लिये अधिकृत किया जाना चाहिये।
- बुनियादी लर्निंग और समर्थन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये हस्तांतरित धन पर्याप्त होना चाहिये। स्कूल एक सरकारी संस्था होने के बजाय एक सामुदायिक संस्थान में परिणत हो, जो स्वैच्छिकता/दान को आकर्षित कर सकता है और स्वस्थ सीखने के प्रतिफलों (learning outcomes) को सुनिश्चित करने के लिये गैजेट्स की सहायता ले सकता है।
- शिक्षक प्रशिक्षण:
- सभी शिक्षकों और शिक्षक प्रशिक्षकों (ब्लॉक एवं क्लस्टर समन्वयक, राज्य/ज़िला रिसोर्स पर्सन) को गैजेट्स एवं पाठ्यक्रम सामग्री के उपयोग में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये जो लर्निंग को सुगम बना सके।
- ऑनलाइन पाठ प्रदान करने के लिये प्रत्येक कक्षा में एक बड़ा टीवी और एक अच्छा साउंड सिस्टम होना चाहिये जो कक्षा शिक्षण को पूरकता प्रदान करेगा।
- स्व-सहायता समूहों का उपयोग करना:
- मध्याह्न भोजन की ज़िम्मेदारी ग्राम स्तर के स्व-सहायता समूह (SHG) की महिलाओं को सौंपी जानी चाहिये ।
- पंचायत और स्कूल प्रबंधन समिति इस स्व-सहायता समूह की पर्यवेक्षक होगी।
- मध्याह्न भोजन योजना में शिक्षकों की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिये और शिक्षण कार्य तक सीमित हों।
- सार्वजनिक पुस्तकालयों का विकास करना:
- सार्वजनिक पुस्तकालयों को विकसित किया जाना चाहिये जहाँ गाँव के युवा अध्ययन कर सकें और नौकरी एवं अच्छे संस्थानों में प्रवेश के लिये तैयारी कर सकें।
- ऐसे सामुदायिक संस्थान स्वयंसेवकों को भी आकर्षित करेंगे।
- कर्नाटक ने अपने सार्वजनिक पुस्तकालयों को सबल करने की दिशा में उत्कृष्ट कार्य किया है और इससे स्कूल लर्निंग आउटकम के लाभ भी प्राप्त हुए हैं।
- नवोन्मेषी विधियों का उपयोग करना:
- लर्निंग के लिये साउंड बॉक्स, वीडियो फिल्म, प्ले-वे लर्निंग आइटम, इनडोर एवं आउटडोर खेल, सांस्कृतिक गतिविधियों आदि का भी उपयोग किया जा सकता है।
- एकीकृत बाल विकास सेवाओं के समर्थन से आरंभिक बाल्यावस्था में खिलौनों पर आधारित शिक्षा भी शुरू की जा सकती है।
- नई शिक्षा नीति 2022 जीवन में इस महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक शुरुआत को सुनिश्चित करने के लिये 3 से 8 वर्ष की आयु तक निरंतरता को अनिवार्य करती है।
- स्वास्थ सेवा प्रबंधन:
- स्कूल नेतृत्व को पोषण चुनौती के लिये भी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि समितियों की अधिक संख्या ठोस प्रयासों को कमज़ोर भी कर सकती हैं।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि बच्चों के हित का उत्तरदायित्व आंगनबाड़ी सेविका, आशा, ANMS और पंचायत सचिवों जैसे क्षेत्र कार्यकारियों को सौंपा जाए।
- प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन और सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने के लिये स्थानीय सरकार के साथ सहयोग करना महत्त्वपूर्ण है।
- सामुदायिक अभियानों को बढ़ावा देना:
- सामुदायिक अभियानों और माता-पिता के साथ नियमित स्कूल स्तरीय संवादों का आयोजन किया जाना चाहिये।
- बच्चों की देखभाल और लर्निंग को सुनिश्चित करने के लिये शिक्षकों को हर घर के साथ संबंध का निर्माण करना चाहिये।
- वाचिक एवं लिखित साक्षरता एवं अंक ज्ञान सुनिश्चित करने के लिये ‘निपुण भारत मिशन’ को संपूर्ण साक्षरता अभियान की तरह एक जन आंदोलन बनाया जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में सरकारी स्कूलों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण करें और भारत में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता में सुधार के उपायों के सुझाव दें।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाप्र. संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में से भारत का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है? (वर्ष 2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) मुख्य परीक्षाQ1. भारत में डिजिटल पहल ने देश में शिक्षा प्रणाली के कामकाज में कैसे योगदान दिया है? व्याख्या कीजिये। (वर्ष 2020) Q2. जनसंख्या शिक्षा (Population education) के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (वर्ष 2021) |