भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी | 17 Nov 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी में कमी, इसके प्रमुख कारणों व इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
वर्ष 2020 महिला अधिकारों की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण वर्ष माना जा सकता है। गौरतलब है कि यह महिला अधिकारों और समाज के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं की भूमिका से जुड़ी दो बड़ी घटनाओं की 25वीं वर्षगाँठ का वर्ष है। इस वर्ष ‘भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति’ (CSWI) द्वारा संयुक्त राष्ट्र को ‘समानता की ओर’ या ‘टुवर्डस इक्वालिटी’ (Towards Equality) नामक रिपोर्ट को प्रस्तुत किये हुए लगभग 25 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस रिपोर्ट में भारत में महिलाओं के प्रति संवेदनशील नीति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए लैंगिक समानता पर एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करने का प्रयास किया गया। साथ ही वर्ष 2020 में ’बीजिंग प्लेटफार्म फॉर एक्शन’ की स्थापना की 25वीं वर्षगाँठ भी है, जो समाज में महिलाओं की स्थिति और सरकारों के नेतृत्त्व में उनके सशक्तीकरण के प्रयासों के विश्लेषण का एक बेंचमार्क है। पिछले दो दशकों में भारत में महिला अधिकारों की रक्षा हेतु कई बड़े प्रयास किये गए और इनके व्यापक सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं, हालाँकि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और इससे जुड़ी चुनौतियों की समीक्षा कर अपेक्षित नीतिगत सुधारों को अपनाना बहुत आवश्यक है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका:
- भारत में महिला रोज़गार संबंधी आँकड़े देश के आर्थिक विकास, कम प्रजनन दर और स्कूली शिक्षा की दर में वृद्धि जैसे संकेतकों से मेल नहीं खाती।
- वर्ष 2004 से वर्ष 2018 के बीच स्कूली शिक्षा के मामले में घटते लैंगिक अंतराल के विपरीत कार्य क्षेत्रों में भागीदारी के संदर्भ में लैंगिक अंतराल में भारी वृद्धि देखने को मिली।
- हाल ही में जारी ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), 2018-19’ के अनुसार, कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में भारी गिरावट देखने को मिली है।
- वर्ष 2011-19 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी 35.8% से घटकर 26.4% ही रह गई।
- वर्ष 2019 में ‘विश्व आर्थिक मंच’ (World Economic Forum- WEF) की ‘वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट’ में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और इसके लिये उपलब्ध अवसरों के संदर्भ में भारत को 153 देशों की सूची में 149 वें स्थान पर रखा गया था।
- गौरतलब है कि इस सर्वेक्षण में भारत एकमात्र ऐसा देश था जिसमें आर्थिक भागीदारी में लैंगिक अंतराल राजनीतिक लैंगिक अंतराल से अधिक पाया गया।
- वर्ष 2019 में जारी ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार, लिंग के आधार पर वेतन के मामले में होने वाले भेदभाव के मामले में एशिया के देश सबसे प्रमुख हैं, एशिया में समान योग्यता और पद पर कार्य करने वाली महिलाओं को 34% कम वेतन प्राप्त हुआ।
- अक्तूबर 2020 में जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर-दिसंबर 2019 में महिला बेरोज़गारी की दर 9.8% रही जो वर्ष 2019 में जुलाई-सितंबर की तिमाही के आँकड़ों से अधिक है, गौरतलब है कि COVID-19 महामारी के बाद देशभर में बेरोज़गारी के आँकड़ों में व्यापक वृद्धि देखी गई।
असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी:
- कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी लगभग 60% है परंतु इनमें से अधिकांश भूमिहीन श्रमिक हैं जिन्हें स्वास्थ्य, सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा से संबंधित कोई भी सुविधा नहीं प्राप्त होती है।
- वर्ष 2019 में मात्र 13% महिला किसानों के पास अपनी ज़मीन थी और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, यह अनुपात मात्र 12.8% था।
- इसी प्रकार विनिर्माण क्षेत्र (लगभग पूरी तरह असंगठित) में महिला श्रमिकों की भागीदारी लगभग 14% ही है।
- सेवा क्षेत्र में भी अधिकांश महिलाएँ कम आय वाली नौकरियों तक ही सीमित हैं, ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (NSS),2005’ के अनुसार, 4.75 मिलियन घरेलू कामगारों में से 60% से अधिक महिलाएँ हैं।
कारण:
- भारत में स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान और उससे पहले भी कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा महिला अधिकारों के मुद्दों को बहुत ही प्रमुखता से आगे रखा गया है।
- देश की स्वतंत्रता के बाद भी महिला अधिकारों और कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में सामाजिक तथा राजनीतिक हस्तक्षेप जारी रहे हैं परंतु देश के विकास के साथ-साथ इस दिशा में अपेक्षित सुधार देखने को नहीं मिला है।
- भारत में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में कमी के कारणों को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है।
- सामाजिक और धार्मिक पृष्ठभूमि: भारत में लगभग सभी धर्मों और वर्गों के लोगों में लंबे समय से समाज की मुख्यधारा में महिलाओं की सक्रिय भूमिका को लेकर अधिक स्वीकार्यता नहीं रही है। वर्तमान में भी देश के कई हिस्सों में महिलाओं को घरेलू कामकाज या अध्यापक अथवा नर्स आदि जैसी भूमिकाओं में ही कार्य करने को प्राथमिकता दी जाती है। सामाजिक दबाब और विरोध के भय से कुछ पारंपरिक क्षेत्रों को छोड़कर आमतौर पर अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी कम ही रही है। भारतीय समाज में व्याप्त इस भेदभाव की शुरुआत बच्चे के जन्म से ही हो जाती है, इस भेदभाव को भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में भारी असमानता [संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) के अनुमान के अनुसार, लगभग 910] के आधार पर समझा जा सकता है।
- उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों की कमी: पिछले दो दशकों में देश में प्रारंभिक शिक्षा के मामले में व्याप्त लैंगिक असमानता को दूर करने में बड़ी सफलता प्राप्त हुई है, हालाँकि उच्च शिक्षा और पेशेवर प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी में कमी अभी भी बनी हुई है। ‘अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण, 2018-19’ की रिपोर्ट [All India Survey on Higher Education (AISHE) report] के अनुसार, प्रौद्योगिकी और तकनीकी से संबंधित पाठ्यक्रमों में नामांकित पुरुष छात्रों (71.1%) की तुलना में महिला छात्रों (28.9%) की भागीदारी काफी कम रही।
- संसाधनों की कमी: कार्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी शिक्षा और रोज़गार के अवसरों की उपलब्धता के साथ आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता पर भी निर्भर करती है। देश में अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों में घर से कार्यस्थल की दूरी, 24 घंटे यातायात के सुरक्षित साधन, सार्वजनिक स्थलों पर प्रसाधन या अन्य आवश्यक संसाधनों का न होना और इनकी वहनीयता भी महिलाओं की भागीदारी में कमी का एक प्रमुख कारण है। इन संसाधनों की अनुपलब्धता का प्रभाव उनके स्वास्थ्य और कार्यक्षमता पर भी पड़ता है।
- कार्यस्थलों पर भेदभाव और शोषण: कार्यस्थलों पर होने वाला भेदभाव महिलाओं के विकास में एक बड़ी बाधा रहा है, देश में सक्रिय सार्वजनिक (सेना, पुलिस आदि) और निजी क्षेत्र के अधिकांश संस्थानों में शीर्ष निर्णायक पदों पर महिला अधिकारियों की कमी इस भेदभाव का एक स्पष्ट प्रमाण है। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भूमिका अधिक होने के बावजूद भी समाज के साथ-साथ सरकार की योजनाओं में इसकी स्वीकार्यता की कमी दिखाई देती है। कार्यस्थलों पर भेदभाव और शोषण की घटनाएँ पीड़ित व्यक्ति के साथ आकांक्षी युवाओं के मनोबल को भी कमज़ोर करती हैं, हाल ही में सोशल मीडिया पर सक्रिय ‘मी टू अभियान’ (MeToo Movement) के तहत सामने आई महिलाओं के अनुभवों ने इस क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
- नीतिगत असफलता: देश की अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करने में सरकार की नीतियाँ अधिक सफल नहीं रही हैं। इसका एक कारण भारतीय राजनीति (लगभग 13% महिला सांसद, स्वतंत्र भारत में मात्र एक महिला प्रधानमंत्री) और नीति निर्माण संबंधी अन्य महत्त्वपूर्ण पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व में कमी को माना जा सकता है।
महिला भागीदारी का प्रभाव:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत में कार्यक्षेत्र में व्याप्त लैंगिक असमानता को 25% कम कर लिया जाता है तो इससे देश की जीडीपी में 1 ट्रिलियन डॉलर तक की वृद्धि हो सकती है।
- विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि से कई सामाजिक और आर्थिक लाभ देखने को मिले हैं।
- शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में वृद्धि से महिलाओं में अपने स्वास्थ्य तथा विकास के प्रति जागरूकता के बढ़ने के साथ अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता में वृद्धि होती है। इस बदलाव का सकारात्मक प्रभाव समाज तथा देश की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलता है।
- देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करते हुए बेहतर योजनाओं के क्रियान्वयन के माध्यम से गरीबी, स्वास्थ्य और आर्थिक अस्थिरता से संबंधित चुनौतियों से निपटने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
सरकार के प्रयास:
- केंद्र सरकार द्वारा कार्यस्थल पर गर्भवती महिलाओं के हितों की रक्षा के लिये ‘मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017’ के माध्यम से मातृत्त्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है, इस अधिनियम को सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में समाहित किया गया है।
- विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महिला शोधकर्त्ताओं को शोध एवं विकास गतिविधियों के लिये प्रोत्साहित करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा ‘सर्ब-पावर’ (SERB-POWER) नामक एक योजना की शुरुआत की गई है।
- देश में ‘मी टू अभियान’ के बाद कार्यस्थलों पर बड़े पैमाने पर महिला शोषण के मामलों के सामने आने के बाद अक्तूबर 2018 में केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह (Group of Ministers- GoM) का गठन किया गया, जिसने इस समस्या के समाधान हेतु अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की।
- रेल यात्रा के दौरान महिला सुरक्षा के प्रयासों को मज़बूत करने और महिलाओं में सुरक्षा की भावना जगाने के लिये ‘रेलवे सुरक्षा बल’ (Railway Protection Force-RPF) द्वारा ‘मेरी सहेली’ (Meri Saheli) नामक एक पहल की शुरुआत की गई है।
चुनौतियाँ:
- भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र द्वारा हाल ही में जारी आँकड़ों के अनुसार, COVID-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के कारण अप्रैल और मई माह में 39% कामकाजी महिलाओं को अपनी नौकरी गँवानी पड़ी।
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के अनुसार, पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाओं को बिना भुगतान के घरेलू कार्यों में योगदान देना पड़ता है।
- COVID-19 के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई थी, साथ ही इस दौरान महिलाओं के लिये शिक्षा और रोज़गार की पहुँच बाधित हुई है जो पिछले कई वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में हुए सुधार के प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- भारत में विभिन्न सार्वजनिक (शिक्षा मित्र, आशा कार्यकर्त्ता आदि) और निजी क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं को उनके कार्य के अनुरूप अपेक्षा के अनुरूप कम भुगतान दिया जाना एक बड़ी चुनौती है।
- केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में देश के श्रम कानूनों में बड़े बदलाव किये गए हैं हालाँकि इनमें देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने, कार्यस्थलों पर महिला हितों की रक्षा आदि मुद्दों के संदर्भ में कोई विशेष सुधार नहीं किया गया है।
आगे की राह:
- वर्तमान समय में देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के साथ, कार्यस्थलों पर व्याप्त भेदभाव और महिला सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को दूर करने के लिये बहु-पक्षीय प्रयासों को अपनाया जाना चाहिये।
- सरकार को असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रही महिलाओं के लिये लक्षित योजनाओं (प्रशिक्षण, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा आदि) के साथ अर्थव्यवस्था के सभी स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी और उनके हितों की रक्षा सुनिश्चित करने से जुड़े प्रयासों पर विशेष ध्यान देना होगा।
- कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये यातायात साधनों की पहुँच में विस्तार के साथ सार्वजनिक स्थलों पर प्रसाधन केंद्रों आदि के तंत्र को मज़बूत करना बहुत ही आवश्यक है।
- उच्च शिक्षा और पेशेवर प्रशिक्षणों में शामिल होने के लिये महिलाओं को सहयोग प्रदान करने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की पहुँच को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके साथ ही नीति निर्माण और महत्त्वपूर्ण संसाधनों के शीर्ष तंत्र में महिला प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाने हेतु विशेष प्रयास किये जाने चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: ‘भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान और प्रत्यक्ष भागीदारी के बगैर देश की जीडीपी को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने के लक्ष्य को प्राप्त करना बहुत ही कठिन होगा।’ इस कथन को स्पष्ट करते हुए देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित प्रमुख चुनौतियों और इसके समाधान के विकल्पों पर चर्चा कीजिये।