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भारतीय अर्थव्यवस्था

ई-कॉमर्स निर्यात

  • 30 Jun 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 26/06/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Policy for e-commerce exports’’ लेख पर आधारित है। इसमें ई-कॉमर्स निर्यात नीति और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

ई-कॉमर्स, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, उपभोक्ता संरक्षण, डेटा गोपनीयता, बौद्धिक संपदा, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति, GST, समतुल्य लेवी

मेन्स के लिये:

ई-कॉमर्स निर्यात नीति की आवश्यकता, भारतीय ई-कॉमर्स निर्यात नीति की अन्य देशों से तुलना

भारत में अपने ई-कॉमर्स निर्यात की वृद्धि करने की व्यापक क्षमता मौजूद है जो वर्तमान में मात्र 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की है (वर्ष 2022-23 में भारत के कुल निर्यात 447.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 0.5 प्रतिशत से भी कम)। वर्ष 2025 तक वैश्विक ई-कॉमर्स निर्यात के 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है और भारत वर्ष 2030 तक 200-250 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य रखते हुए इस अवसर का लाभ उठा सकता है।

इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत को एक ई-कॉमर्स निर्यात नीति (e-Commerce Export policy) का निर्माण करने की आवश्यकता है जो लघु एवं मध्यम उद्यम (Small and Medium enterprises- SMEs) से संबद्ध निर्यातकों के समक्ष मौजूद चुनौतियों का समाधान करे।

ई-कॉमर्स निर्यात में SMEs के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ 

  • शिपिंग और क्लीयरेंस लागत:
    • SMEs को अपने उत्पादों के परिवहन के लिये उच्च शिपिंग लागत और कस्टम क्लीयरेंस का वहन करना पड़ता है, जो उनके लाभ मार्जिन और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकता है।
  • भुगतान संग्रहण एवं नियमितीकरण :
    • SMEs को विदेशी ग्राहकों से बिक्री प्राप्ति (sales realisation) के संग्रह के लिये पेमेंट गेटवे या एग्रीगेटर्स को उच्च शुल्क चुकाना पड़ता है
    • उन्हें अपने निर्यात बिल के नियमितीकरण (regularisation) के लिये अधिकृत डीलर बैंकों में भौतिक दस्तावेज भी जमा करना पड़ता है, जो बोझिल और लागतपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
  • व्यापार बाधाएँ और नियामक बाधाएँ:
    • SMEs को विदेशी बाज़ारों में विभिन्न व्यापार बाधाओं (Trade Barriers) और नियामक बाधाओं (Regulatory Hurdles) का सामना करना पड़ता है, जैसे टैरिफ, कोटा, मानक, प्रमाणन, लाइसेंस इत्यादि।
    • इससे निर्यात के समय और लागत में वृद्धि हो सकती है तथा उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा प्रभावित हो सकती है
  • ज्ञान और वित्त संबंधी अंतराल:
    • SMEs के पास प्रायः अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच एवं प्रतिस्पर्द्धा के मामले में आवश्यक ज्ञान और वित्तपोषण की कमी होती है।
    • उनके पास बाज़ार अवसरों, ग्राहक प्राथमिकताओं, सांस्कृतिक अंतरों, विधिक आवश्यकताओं आदि के बारे में पर्याप्त सूचना के अभाव की स्थिति हो सकती है।
    • उन्हें अपनी निर्यात गतिविधियों के समर्थन हेतु ऋण, बीमा या अन्य वित्तीय सेवाएँ प्राप्त करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • ई-कॉमर्स अंगीकरण से संबद्ध मुद्दे:
    • SMEs को ई-कॉमर्स अंगीकरण से संबंधित विभिन्न मुद्दों का भी सामना करना पड़ सकता है, जैसे तकनीकी अवसंरचना, ऑनलाइन भुगतान सुरक्षा, साइबर घोटाले, ग्राहक सेवा आदि।
    • उन्हें अपने उत्पादों या सेवाओं को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और वैश्विक बाज़ार के अनुरूप अनुकूलित करने की भी आवश्यकता पड़ सकती है।

व्यापक ई-कॉमर्स नीति की आवश्यकता क्यों है?

  • एकसमान अवसर प्रदान करना:
  • WTO में और अन्य क्षेत्रीय व्यापार समझौतों पर वार्ता को सुविधाजनक बनाना:
    • इसमें सीमा-पार डेटा प्रवाह, डिजिटल व्यापार सुविधा, डिजिटल कराधान आदि ई-कॉमर्स मुद्दों पर भारत के हितों और इसके रुख को स्पष्ट करना शामिल है ताकि भारत को ई-कॉमर्स पर वैश्विक नियमों एवं रूपरेखाओं में भागीदारी करने और लाभ उठाने में सक्षम बनाया जा सके।
  • भविष्य की प्रगतियों और नवाचारों के लिये नीतिगत अवसर बनाए रखना:
    • एक लचीला और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना जो डिजिटल अर्थव्यवस्था की बदलती गतिशीलता और रुझानों के अनुरूप ई-कॉमर्स क्षेत्र को विकास एवं नवोन्मेष को अवसर देने के लिये सुविधा और विनियमन के उद्देश्यों को संतुलित करे।
  • ई-कॉमर्स निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समावेशिता को बढ़ावा देना:
    • ई-कॉमर्स निर्यातकों, विशेष रूप से SMEs को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच बनाने और प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाने के लिये वित्तीय, तकनीकी एवं विधिक सहायता प्रदान करना, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाना, मानकों एवं प्रमाणन में सामंजस्य बनाना आदि।
  • भारत की डेटा संप्रभुता एवं सुरक्षा की रक्षा करना:
    • एक डेटा संरक्षण कानून को अपनाना जो भारतीय नागरिकों और व्यवसायों की गोपनीयता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ई-कॉमर्स संस्थाओं द्वारा व्यक्तिगत डेटा के संग्रहण, प्रसंस्करण, भंडारण, स्थानांतरण, प्रकटीकरण और विलोपन को नियंत्रित करे।

भारत में ई-कॉमर्स के लिये नियामक ढाँचा 

  • भारत में ऐसा कोई विशिष्ट कानून या विनियमन नहीं है जो विशेष रूप से ई-कॉमर्स गतिविधियों को नियंत्रित करता हो।
    • इसके बजाय, भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय और विभाग ई-कॉमर्स के विभिन्न पहलुओं, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता संरक्षण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, कराधान, प्रतिस्पर्द्धा, डेटा गोपनीयता, बौद्धिक संपदा आदि से स्वयं निपटते हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000)  और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021):
    • ये इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध, साइबर सुरक्षा, साइबर अपराध, मध्यस्थ दायित्व आदि के लिये कानूनी मान्यता एवं ढाँचा प्रदान करते हैं
    • ये ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म सहित डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के कंटेंट और आचरण को भी विनियमित करते हैं।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (Consumer Protection Act, 2019) और उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 (Consumer Protection (E-Commerce) Rules, 2020):
    • इनका उद्देश्य ई-कॉमर्स लेनदेन, जैसे निष्पक्ष व्यापार अभ्यास, सूचना का खुलासा, शिकायत निवारण आदि में उपभोक्ताओं के अधिकारों और हितों की रक्षा करना है।
    • वे ई-कॉमर्स संस्थाओं को पंजीकरण, सत्यापन, रिफंड नीति जैसे दायित्व और देयता भी सौंपते हैं।
  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (Foreign Exchange Management Act, 1999) और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति (Foreign Direct Investment Policy):
    • ये भारत में विदेशी मुद्रा और विदेशी निवेश के प्रवाह एवं बहिर्वाह को नियंत्रित करते हैं।
    • ये ई-कॉमर्स गतिविधियों, जैसे इन्वेंट्री-बेस्ड मॉडल, मार्केटप्लेस मॉडल, सिंगल-ब्रांड खुदरा व्यापार, मल्टी-ब्रांड खुदरा व्यापार आदि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये क्षेत्र-विशिष्ट दिशा-निर्देश और नियंत्रण भी निर्धारित करते हैं।
  • अन्य देशों से तुलना:
    • ई-कॉमर्स का दायरा और परिभाषा:
      • भारत में ई-कॉमर्स की कोई स्पष्ट और सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है तथा विभिन्न प्रकार की ई-कॉमर्स गतिविधियों, जैसे B2B, B2C, C2C, इन्वेंट्री-बेस्ड, मार्केटप्लेस-बेस्ड आदि पर अलग-अलग कानून और नियम लागू हो सकते हैं।
        • अन्य देशों, जैसे अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन आदि ने ई-कॉमर्स की अधिक व्यापक एवं सुसंगत परिभाषाओं को अपनाया है जो ऑनलाइन लेनदेन के विभिन्न पहलुओं और रूपों को कवर करते हैं।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:
      • भारत ने ई-कॉमर्स गतिविधियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर कई नियंत्रण और शर्तें आरोपित कर रखी हैं, जैसे केवल मार्केटप्लेस-बेस्ड मॉडल की अनुमति (इन्वेंट्री-बेस्ड मॉडल की नहीं), विशेष सौदों एवं प्रीडेटरी मूल्य निर्धारण पर रोक, लोकल सोर्सिंग एवं डेटा स्टोरेज को अनिवार्य करना आदि।
        • संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अन्य देशों में ई-कॉमर्स गतिविधियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर अधिक उदार और लचीली नीतियाँ कार्यान्वित हैं, जो इन्वेंट्री-बेस्ड एवं मार्केटप्लेस-बेस्ड मॉडल दोनों की अनुमति देती हैं, नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करती हैं और डेटा सुरक्षा एवं  गोपनीयता कानूनों को अपनाती हैं।
    • उपभोक्ता संरक्षण:
      • भारत ने ई-कॉमर्स लेनदेन में उपभोक्ताओं के अधिकारों एवं हितों की रक्षा के लिये हाल ही में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 लागू किया है।
      • ये कानून और नियम ई-कॉमर्स संस्थाओं पर विभिन्न दायित्वों एवं देयताओं, जैसे पंजीकरण, सत्यापन, सूचना का खुलासा, शिकायत निवारण , रिफंड नीति आदि को लागू करते हैं।
        • चीन जैसे कुछ अन्य देशों ने भी ई-कॉमर्स लेनदेन में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिये ऐसे ही कानून और नियम लागू किये हैं।
    • ई-कॉमर्स का कराधान:
      • यूरोपीय संघ जैसे अन्य समूह/देशों ने भी ई-कॉमर्स लेनदेन पर विभिन्न कर लगाए हैं, जैसे डिजिटल सेवा कर (DST) आदि।
      • भारत ने ई-कॉमर्स लेनदेन में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) अधिरोपित किया है।
        • इसने विदेशी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा भारतीय ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर समतुल्य लेवी (equalization levy) भी लगाया है
      • हालाँकि ई-कॉमर्स लेनदेन के कराधान पर कोई वैश्विक सहमति या समन्वय मौजूद नहीं है।

एक व्यापक ई-कॉमर्स निर्यात नीति के लिये अनुशंसाएँ 

  • एक राष्ट्रीय व्यापार पारितंत्र का विकास करना:
    • सरलीकृत दस्तावेज़ीकरण और कस्टम क्लीयरेंस प्रक्रियाओं के साथ ई-कॉमर्स निर्यात के लिये एकल खिड़की प्रणाली प्रदान करने हेतु RBI, कस्टम, DGFT, GSTN (GST नेटवर्क), इंडिया पोस्ट, कूरियर, ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म और निर्यातकों जैसे विभिन्न हितधारकों को एकीकृत करना।
  • वित्तीय, तकनीकी और विधिक सहायता प्रदान करना:
    • ई-कॉमर्स निर्यातकों, विशेष रूप से SMEs को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच बनाने और प्रतिस्पर्द्धी बन सकने में मदद करने के लिये सब्सिडी, अनुदान, ऋण, बीमा, प्रशिक्षण, परामर्श आदि की पेशकश करना।
  • मानकों और प्रमाणन का सामंजस्य:
    • ई-कॉमर्स निर्यात के लिये मानकों और प्रमाणन को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों एवं सर्वोत्तम अभ्यासों के साथ संरेखित करके उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • विदेशी खरीदारों के साथ व्यापार करना आसान बनाकर सीमा-पार ई-व्यापार को बढ़ावा देना।
  • कराधान व्यवस्था को सुव्यवस्थित करना:
    • सभी प्रकार के ई-कॉमर्स लेनदेन के लिये सार्वभौमिक GST दर को अपनाना और ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिये कर प्रोत्साहन एवं छूट प्रदान करना।
  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा की रक्षा करना:
    • एक डेटा सुरक्षा कानून को अपनाना जो ई-कॉमर्स संस्थाओं द्वारा व्यक्तिगत डेटा के संग्रहण, प्रसंस्करण, भंडारण, स्थानांतरण, प्रकटीकरण और विलोपन को नियंत्रित करे।
    • SMEs को घोटालों की पहचान करने और उनसे बचने के बारे में सूचना प्रदान करना, साथ ही उन्हें साइबर हमलों से उबरने में मदद करने के लिये संसाधन प्रदान करना।
  • नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना:
    • ई-कॉमर्स क्षेत्र में डिजिटल उद्यमिता और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये इनक्यूबेटर, एक्सेलेरेटर, हब, नेटवर्क आदि का सृजन करना।
    • निर्यात सुविधा सेल (Export Facilitation Cells- EFCs) स्थापित करने के लिये ज़िला उद्योग केंद्रों (DICs) के साथ संलग्न होना, जो SMEs को उन उत्पादों और बाज़ारों की पहचान करने में मदद करेगा जिनकी विदेशों में मांग है।
  • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं संवाद को सशक्त करना:
    • सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी, डेटा का आदान-प्रदान करने, मानकों में सामंजस्य स्थापित करने, विवादों को हल करने और ई-कॉमर्स निर्यात नीतियों के प्रति भरोसे के निर्माण के लिये विभिन्न मंचों, समझौतों, वार्ताओं आदि से संलग्न होना।
    • ई-कॉमर्स निर्यात नीति को कस्टम, DGFT और RBI द्वारा संयुक्त रूप से अपने नियमों में आवश्यक परिवर्तनों के साथ तैयार किया जाना चाहिये, जिसमें विक्रेता उत्तरदायित्वों को पुनर्परिभाषित करना और भुगतान सुविधा, खातों एवं प्रक्रियाओं को सरल बनाना शामिल है।

अभ्यास प्रश्न: ई-कॉमर्स निर्यात भारतीय MSMEs के लिये विकास और रोज़गार के संभावित स्रोत के रूप में उभरा है। ई-कॉमर्स निर्यात की चुनौतियों एवं अवसरों की चर्चा कीजिये और उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं बाज़ार पहुँच को बढ़ाने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 18. अप्रवासी सत्त्वों द्वारा दी जा रही ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर भारत द्वारा 6% समकरण कर लगाए जाने के निर्णय के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?(2018)

  1. यह आय कर अधिनियम के भाग के रूप में लागू किया गया है।
  2.  भारत में विज्ञापन सेवाएँ देने वाले अप्रवासी सत्त्व अपने गृह देश में ‘‘दोहरे कराधान से बचाव समझौते’’ के अन्तर्गत टैक्स क्रेडिट का दावा कर सकते हैं।

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1   
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनाें   
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर:(d)

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