भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण | 19 Jul 2022
यह एडिटोरियल 15/07/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “The population question” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
- 4 बिलियन आबादी के साथ भारत में विश्व की आबादी के लगभग 17.5 प्रतिशत का वास है। पृथ्वी पर प्रत्येक 6 में से 1 व्यक्ति भारत में रहता है।
- संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या परिप्रेक्ष्य (World Population Prospects- WPP), 2022 में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2023 में भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत वर्तमान में युवा आबादी के एक बड़े प्रतिशत के साथ जनसांख्यिकीय संक्रमण के चरण से गुज़र रहा है।
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने ‘यूथ इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट जारी की है, जिससे पता चलता है कि देश में युवाओं की जनसंख्या में गिरावट शुरू हो रही है जबकि वर्ष 2021-2036 की अवधि में कुल जनसंख्या में वृद्धों की हिस्सेदारी बढ़ने की उम्मीद है।
- कुल जनसंख्या में वृद्ध जनसंख्या का अनुपात वर्ष 1991 में 6.8% से बढ़कर वर्ष 2016 में 9.2% हो गया और वर्ष 2036 में इसके 14.9% तक पहुँचने का अनुमान है। इसके विपरीत, 15-29 आयु वर्ग के युवाओं की संख्या वर्ष 2021 में 27.2% थी जो वर्ष 2036 तक घटकर 22.7 रह जाएगी।
- कार्य भागीदारी और निर्भरता अनुपात पर युवा आबादी के प्रभाव को देखते हुए इनकी बड़ी संख्या को देश की वृद्धि और विकास के संदर्भ में ‘अवसर की खिड़की’ माना जाता है। यह ऐसा अवसर है जिसका इस खिड़की के बंद होने से पहले लाभ उठा लेना आवश्यक और विवेकपूर्ण होगा।
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ उस आर्थिक विकास संभावना या क्षमता से है जो जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन के परिणामस्वरूप साकार हो सकता है।
- मुख्य रूप से जब कार्यशील आयु (15-64 वर्ष) की आबादी की कुल जनसंख्या में हिस्सेदारी गैर-कार्यशील आयु (14 वर्ष एवं उससे कम और 65 वर्ष एवं उससे अधिक) की हिस्सेदारी से अधिक हो।
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ उस आर्थिक विकास संभावना या क्षमता से है जो जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन के परिणामस्वरूप साकार हो सकता है।
- मध्यम/औसत आयु:
- चीन एवं अमेरिका में 38, पश्चिमी यूरोप में 43 और जापान में 48 की तुलना में भारत की औसत आयु 28 वर्ष है।
- भारतीय राज्यों में विविधता:
- जबकि भारत एक युवा देश है, इसके विभिन्न राज्यों में जनसंख्या की आयु वृद्धि की स्थिति और गति भिन्न-भिन्न है।
- दक्षिणी राज्य, जो जनसांख्यिकीय संक्रमण में उन्नत स्थिति रखते हैं, में पहले से ही वृद्ध लोगों का प्रतिशत अधिक है।
- जबकि केरल की जनसंख्या पहले से ही वृद्ध होती जा रही है, बिहार में कामकाजी आयु वर्ग के वर्ष 2051 तक बढ़ते रहने का अनुमान है।
- आयु संरचना में अंतर राज्यों के आर्थिक विकास और स्वास्थ्य में अंतर को दर्शाता है।
- जबकि भारत एक युवा देश है, इसके विभिन्न राज्यों में जनसंख्या की आयु वृद्धि की स्थिति और गति भिन्न-भिन्न है।
भारत जनसांख्यिकीय लाभांश से कैसे लाभ उठा सकता है?
- वित्तीय अवसर में वृद्धि: वित्तीय संसाधनों को बच्चों पर व्यय के बजाय आधुनिक भौतिक और मानव अवसंरचना में निवेश की ओर मोड़ा जा सकता है जिससे भारत की आर्थिक संवहनीयता में वृद्धि होगी।
- कार्यबल में वृद्धि: 65% से अधिक कामकाजी आयु आबादी के साथ भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर सकता है जो आने वाले दशकों में एशिया के आधे से अधिक संभावित कार्यबल की आपूर्ति कर सकता है।
- श्रम बल में वृद्धि अर्थव्यवस्था की उत्पादकता को बढ़ाती है।
- महिला कार्यबल में वृद्धि, जो स्वाभाविक रूप से प्रजनन दर में गिरावट लाती है, और जो विकास का एक नया स्रोत हो सकता है।
भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश से संबद्ध चुनौतियाँ
- अधूरी शैक्षिक आवश्यकताएँ: जबकि भारत के 95% से अधिक बच्चे प्राथमिक विद्यालय जाते हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी स्कूलों में बदतर अवसंरचना, कुपोषण और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी के कारण गुणवत्ताहीन लर्निंग आउटकम प्राप्त हुए हैं।
- शिक्षा में लैंगिक असमानता चिंता का विषय है जहाँ भारत में बालिकाओं की तुलना में बालकों के माध्यमिक और तृतीयक स्तर के विद्यालयों में नामांकित होने की अधिक संभावना रहती है।
- फिलीपींस, चीन और थाईलैंड में इसके विपरीत स्थिति है, जबकि जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया में लैंगिक अंतर पर्याप्त कम है।
- शिक्षा में लैंगिक असमानता चिंता का विषय है जहाँ भारत में बालिकाओं की तुलना में बालकों के माध्यमिक और तृतीयक स्तर के विद्यालयों में नामांकित होने की अधिक संभावना रहती है।
- न्यून मानव विकास मानक: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के मानव विकास सूचकांक, 2020 में भारत 131वें स्थान पर है, जो चिंताजनक है।
- इस प्रकार, भारतीय कार्यबल को सक्षम और कुशल बनाने के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा के मानकों में पर्याप्त सुधार लाने की आवश्यकता है।
- रोज़गार-विहीन विकास: इस बात की चिंता बढ़ती जा रही है कि गैर-औद्योगीकरण, वि-वैश्वीकरण और औद्योगिक क्रांति 4.0 के कारण भविष्य की वृद्धि रोज़गार-विहीन वृद्धि का परिदृश्य उत्पन्न करेगी।
- NSSO के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, 15-59 आयु वर्ग के लिये भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 53% है, यानी कामकाजी आयु आबादी का लगभग आधा बेरोज़गार है।
- अर्थव्यवस्था की अनौपचारिक प्रकृति भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण के लाभों को प्राप्त करने में एक और बाधा है।
- NSSO के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, 15-59 आयु वर्ग के लिये भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 53% है, यानी कामकाजी आयु आबादी का लगभग आधा बेरोज़गार है।
- उपयुक्त नीतियों का अभाव:
- उपयुक्त नीतियों के बिना कामकाजी आबादी में वृद्धि से बेरोज़गारी की वृद्धि हो सकती है, आर्थिक और सामाजिक जोखिम बढ़ सकते हैं।
- वृद्ध आबादी में वृद्धि: वर्तमान में युवाओं के अधिक अनुपात के परिणामस्वरूप भविष्य में जनसंख्या में वृद्धों का अनुपात अधिक होगा।
- इससे वृद्ध जनों के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं/कार्यक्रमों के विकास की मांग पैदा होगी।
- सामान्यतः अनौपचारिक रोज़गार से संलग्न लोगों के पास सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है, इससे संबंधित राज्य पर बोझ बढ़ेगा।
- इससे वृद्ध जनों के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं/कार्यक्रमों के विकास की मांग पैदा होगी।
आगे की राह
- शिक्षा मानकों का उन्नयन: ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र, सार्वजनिक विद्यालय प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रत्येक बच्चा उच्च विद्यालय की शिक्षा पूरी करे और उसे बाज़ार की मांग के अनुरूप उपयुक्त कौशल, प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाए।
- विद्यालय पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण, व्यापक ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOCS) के साथ वर्चुअल क्लासरूम स्थापित करने के लिये नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और खुले डिजिटल विश्वविद्यालयों में निवेश से उच्च शिक्षित कार्यबल प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना: स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये अधिक वित्त के साथ ही उपलब्ध धन से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है; इसके अतिरिक्त, प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को अधिकार-आधारित दृष्टिकोण पर सुलभ बनाने की आवश्यकता है।
- कार्यबल में लैंगिक अंतर को दूर करना: महिलाओं और बालिकाओं के लिये नए कौशल और अवसरों की तत्काल आवश्यकता है जो 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी के अनुकूल हो। इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- अलग-अलग आँकड़ों और नीतियों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करने के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य ‘जेंडर बजटिंग’
- बाल-देखभाल लाभ को बढ़ाना
- अंशकालिक कार्य के लिये कर प्रोत्साहन को बढ़ावा देना
- विविध राज्यों के लिये संघीय दृष्टिकोण: जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये शासन सुधारों हेतु एक नया संघीय दृष्टिकोण अपनाना होगा जो प्रवास, आयु वृद्धि, कौशल, महिला कार्यबल भागीदारी और शहरीकरण जैसे जनसंख्या संबंधी विषयों पर राज्यों के बीच नीति समन्वयन स्थापित करे।
- रणनीतिक योजना, निवेश, निगरानी और मार्ग सुधार के लिये अंतर-मंत्रालयी समन्वय इस शासन व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता होनी चाहिये।
- स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय महत्त्वपूर्ण जानकारी के प्रसार के लिये परस्पर सहयोग कर सकते हैं ताकि किशोरों को अपने स्वास्थ्य और सीखने की क्षमता की रक्षा करने में मदद मिले।
- अंतर-क्षेत्रीय सहयोग: किशोरों के भविष्य की सुरक्षा की दिशा में आगे बढ़ते हुए बेहतर अंतर- क्षेत्रीय सहयोग के लिये तंत्र स्थापित करना अनिवार्य है।
- उदाहरण के लिये, विद्यालय मध्याह्न भोजन इस बात का उदाहरण है कि कैसे बेहतर पोषण लर्निंग क्षमता को बढ़ाता है।
- विभिन्न अध्ययनों में पुष्टि हुई है कि किशोरों में पोषण और उनके संज्ञानात्मक स्कोर के बीच मज़बूत संबंध थे।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत के जनसांख्यिकी लाभांश ने देश के वृद्धि और विकास के संदर्भ में अवसर की खिड़की खोली है और इस खिड़की के बंद होने से पहले इसका लाभ उठा लेने की आवश्यकता है।’’ टिप्पणी कीजिये।