विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत में सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम का निर्माण
- 27 Nov 2024
- 32 min read
यह संपादकीय 26/11/2024 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “India, US semicon partnership on good wicket” पर आधारित है। इस लेख में वैश्विक सेमीकंडक्टर के तेज़ होते दौड़ तथा चीन के प्रभुत्व का सामना करने के लिये iCET जैसे यूएस-भारत सामरिक सहयोग पर प्रकाश डाला गया है। यह भारत के सेमीकंडक्टर मिशन को एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण, प्रतिभा अंतराल को कम करने और एक विश्वसनीय वैश्विक प्रौद्योगिकी भागीदार के रूप में उभरने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में रेखांकित करता है।
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग, भारत सेमीकंडक्टर मिशन, सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम, मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, MSME, क्वांटम कंप्यूटिंग, डिजिटल इंडिया RISC-V कार्यक्रम, सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा मेन्स के लिये:भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख मुद्दे। |
वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक चौराहे पर है, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत चीन के तकनीकी प्रभुत्व को चुनौती देने के लिये सामरिक साझेदारी बना रहे हैं। iCET और CHIPS जैसी पहलों के माध्यम से, दोनों देश महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, प्रतिभा विकास एवं आपूर्ति शृंखला अनुकूलता पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुदृढ़ सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिये अरबों का निवेश कर रहे हैं। भारत का सेमीकंडक्टर मिशन इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को स्वदेशी बनाने, प्रतिभा की कमी को दूर करने और उच्च तकनीक नवाचार में एक विश्वसनीय वैश्विक भागीदार के रूप में उभरने के लिये एक परिवर्तनकारी अवसर का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?
- सेमीकंडक्टर बाज़ार के क्रेता और विक्रेता:
- वर्ष 2022 में, भारतीय सेमीकंडक्टर बाज़ार का मूल्य 26.3 बिलियन डॉलर था और वर्ष 2032 तक 26.3% की CAGR से बढ़कर 271.9 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- आयात-निर्यात रुझान:
- सेमीकंडक्टर आयात निर्यात से काफी आगे है; हालाँकि निर्यात $0.21 बिलियन (वर्ष 2017) से बढ़कर $0.52 बिलियन (वर्ष 2022) हो गया है।
- महामारी ने वैश्विक व्यापार को बाधित किया, लेकिन वर्ष 2021 में मज़बूत सुधार ने सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला में खुद को स्थापित करने की दिशा में भारत के प्रयास को प्रतिबिंबित किया।
- सेमीकंडक्टर आयात निर्यात से काफी आगे है; हालाँकि निर्यात $0.21 बिलियन (वर्ष 2017) से बढ़कर $0.52 बिलियन (वर्ष 2022) हो गया है।
- सरकारी पहलें:
- भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM): इसका उद्देश्य फैब्स और डिस्प्ले इकाइयों के लिये परियोजना लागत का 50% राजकोषीय प्रोत्साहन के साथ एक सुदृढ़ सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
- सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम (वर्ष 2021): विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास में तेज़ी लाने के लिये ₹76,000 करोड़ ($9.2 बिलियन) आवंटित किये गए।
- अंतर्राष्ट्रीय समझौता ज्ञापन: आपूर्ति शृंखलाओं और पारिस्थितिकी तंत्र सहयोग को सुदृढ़ करने के लिये यूरोपीय आयोग तथा जापान के साथ साझेदारी की गई।
सेमीकंडक्टर में निवेश भारत के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- भू-राजनीति में सामरिक महत्त्व: भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और आत्मनिर्भरता की आकांक्षाएँ घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका-चीन तकनीकी युद्ध ने सेमीकंडक्टर स्वतंत्रता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
- WSTS के अनुसार, वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है और इलेक्ट्रॉनिक्स व ऑटोमोटिव क्षेत्रों द्वारा संचालित भारत की सेमीकंडक्टर खपत वर्ष 2026 तक 100 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।
- आत्मनिर्भर भारत के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का आधार है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसे भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत लक्षित किया गया है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार में 10% हिस्सेदारी प्राप्त करना है।
- स्थानीय उत्पादन से आयात पर निर्भरता कम हो सकती है, जिससे वर्तमान में भारत को सेमीकंडक्टर आयात पर सालाना 24 बिलियन डॉलर का खर्च वहन करना पड़ता है।
- विनिर्माण प्रोत्साहन के लिये 10 बिलियन डॉलर के परिव्यय के साथ सेमीकंडक्टर मिशन का उद्देश्य भारत को चिप उत्पादन के लिये वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना, मोबाइल विनिर्माण और 5G जैसे उद्योगों को समर्थन देना है।
- टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने गुजरात में भारत का पहला AI-सक्षम सेमीकंडक्टर फैब लॉन्च करने के लिये ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन (PSMC) के साथ निर्णायक समझौता पूरा कर लिया है।
- आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: सेमीकंडक्टर विनिर्माण में निवेश से भारत की GDP में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है तथा विभिन्न क्षेत्रों में लाखों रोज़गार सृजित हो सकते हैं।
- वेदांता-फॉक्सकॉन जैसे संयंत्र भारत में फैब स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, इन परियोजनाओं से आने वाले वर्षों में 1 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होने की उम्मीद है।
- एक सुदृढ़ सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा दे सकता है, विशेषकर हार्डवेयर विकास में। MSME, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 30% का योगदान करते हैं, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये किफायती चिप्स से लाभान्वित हो सकते हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
- उदाहरण के लिये, सांख्य लैब्स जैसे स्टार्टअप पहले से ही सेमीकंडक्टर क्षेत्र में नवाचार कर रहे हैं, जो स्वदेशी चिप डिज़ाइन के लिये भारत की क्षमता को प्रदर्शित कर रहे हैं।
- आपूर्ति शृंखला अनुकूलन सुनिश्चित करना: कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक चिप की कमी ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोटिव क्षेत्रों की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया।
- घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन में निवेश करके भारत अपने उद्योगों को बाहरी व्यवधानों से बचा सकता है।
- उदाहरण के लिये, चिप की कमी के कारण वर्ष 2021 में ऑटोमोटिव उद्योग को वैश्विक स्तर पर 110 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, जबकि भारतीय कार निर्माताओं को उत्पादन चक्र में विलंब का सामना करना पड़ा।
- तकनीकी संप्रभुता को सुदृढ़ करना: अर्द्धचालक AI, IoT और क्वांटम कंप्यूटिंग में तकनीकी नवाचार के लिये आवश्यक हैं, जो तकनीकी संप्रभुता बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देश चीनी आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम करने के लिये चिप उत्पादन में भारी निवेश कर रहे हैं।
- भारत ने डिजिटल इंडिया RISC-V कार्यक्रम शुरू किया है और माइक्रोन टेक्नोलॉजी जैसी संस्थाओं के साथ साझेदारी की है, जिसने गुजरात में 2.75 बिलियन डॉलर की सुविधा के लिये प्रतिबद्धता जताई है।
- हरित प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: अर्द्धचालक सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और स्मार्ट ग्रिड जैसी हरित प्रौद्योगिकियों में प्रमुख घटक हैं।
- घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को गति दे सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता प्राप्त करना है और सौर इनवर्टर एवं ईवी बैटरी के लिये चिप्स आवश्यक हैं।
- वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ारों में उपयोग किये जाने वाले विद्युत अर्द्धचालकों की संख्या में अब से वर्ष 2027 तक 8% से 10% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से वृद्धि होने की उम्मीद है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर सुरक्षा को बढ़ाना: सेमीकंडक्टर मिसाइल प्रणालियों, ड्रोन और सुरक्षित संचार नेटवर्क सहित उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- विदेशी चिप्स पर निर्भरता से जासूसी और साइबर कमज़ोरियों का जोखिम रहता है। भारत ने रणनीतिक क्षेत्रों के लिये स्वदेशी चिप्स विकसित करने के लिये DRDO के नेतृत्व में पहल शुरू की है, जिससे रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होगी।
- DRDO ने हाल ही में नेविगेशन के लिये इंडियन टाइम प्राप्त करने और प्रसारित करने हेतु स्वदेशी रिसीवर चिप विकसित करने के लिये बंगलूरू स्थित एक फर्म को नियुक्त किया है।
भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- उच्च पूंजी लागत और सीमित वित्तीय सहायता: सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिये बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, प्रत्येक फैब की लागत 10 बिलियन डॉलर से अधिक होती है, जिससे भारत के लिये बहुत बड़ी बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण के लिये, गुजरात में माइक्रोन टेक्नोलॉजी की सुविधा को 2.75 बिलियन डॉलर का वित्तपोषण प्राप्त हुआ, लेकिन परिचालन को जारी रखने के लिये अगले दशक तक लगातार वित्तीय प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
- वैश्विक स्तर पर, अमेरिका जैसे देशों ने चिप्स अधिनियम के तहत 53 बिलियन डॉलर का आवंटन किया है, जो भारत के बजट से कहीं अधिक है।
- कुशल कार्यबल का अभाव: सेमीकंडक्टर निर्माण के लिये नैनो प्रौद्योगिकी, पदार्थ विज्ञान और प्रक्रिया इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में अतिविशिष्ट विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जिसका भारत में वर्तमान में अभाव है।
- जबकि भारत में सेमीकंडक्टर डिज़ाइन के लिये सुदृढ़ कार्यबल (वैश्विक हिस्सेदारी का 20%) मौजूद है, लेकिन फैब्रिकेशन और पैकेजिंग में प्रतिभा न्यूनतम बनी हुई है।
- इसके अतिरिक्त, सेमीकंडक्टर उद्योग को वर्ष 2027 तक 250,000 से 300,000 पेशेवरों की संभावित कौशल कमी का सामना करना पड़ेगा, जो चिंता का विषय है।
- कमज़ोर बुनियादी अवसंरचना और उच्च ऊर्जा मांग: सेमीकंडक्टर फैब्स को उन्नत बुनियादी अवसंरचना की आवश्यकता होती है, जिसमें निर्बाध विद्युत ऊर्जा, जल और क्लीनरूम वातावरण शामिल हैं, जो भारत में सीमित हैं।
- एक एकल फैब प्रतिवर्ष एक छोटे शहर की खपत के बराबर बिजली तथा प्रतिदिन 10 मिलियन गैलन अतिशुद्ध जल की खपत कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, वेदांता-फॉक्सकॉन परियोजना को जल और विद्युत आपूर्ति शृंखला की अपर्याप्तता के कारण विलंब का सामना करना पड़ा।
- इसके विपरीत, ताइवान अपने सेमीकंडक्टर केंद्रों को नवीकरणीय ऊर्जा सहायता प्रदान करता है, जिससे परिचालन दक्षता सुनिश्चित होती है।
- अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र: स्वदेशी चिप प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये एक सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र की कमी के कारण भारत की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाएँ बाधित हो रही हैं।
- भारत की अधिकांश अर्द्धचालक क्षमताएँ चिप डिज़ाइन पर केंद्रित हैं, जिससे विनिर्माण और सामग्री अनुसंधान आयात पर निर्भर हैं।
- मैकिन्से रिपोर्ट (वर्ष 2023) के अनुसार, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.65% अनुसंधान एवं विकास में निवेश करता है, जबकि दक्षिण कोरिया 4.8% निवेश करता है।
- आधारभूत अनुसंधान साझेदारियों एवं विश्वविद्यालय-उद्योग सहयोग का अभाव नवाचार को और धीमा कर देता है।
- आयात पर भू-राजनीतिक निर्भरता: भारत सेमीकंडक्टर उपकरणों और सिलिकॉन वेफर्स जैसे कच्चे माल के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे इसकी आपूर्ति शृंखला वैश्विक व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
- विश्व का 75% से अधिक सेमीकंडक्टर उत्पादन पूर्वी एशिया में केंद्रित है तथा चीन कच्चे माल का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।
- वर्तमान में चल रहे अमेरिका-चीन तकनीकी युद्ध ने इन कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है, जिसके कारण भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में विलंब हो रहा है और लागत बढ़ रही है।
- वर्ष 2022 में, भारत ने 24 बिलियन डॉलर मूल्य के सेमीकंडक्टर आयात किये जो इसकी आयात निर्भरता को उजागर करता है।
- लंबी उत्पादन अवधि और कम ROI: सेमीकंडक्टर उद्योग एक लंबे उत्पादन चक्र पर कार्य करता है, जिसमें फैब्स को चालू होने में 4-5 वर्ष लगते हैं और लाभप्रदता हासिल करने में और भी अधिक समय लगता है।
- निवेशक प्रायः उच्च प्रारंभिक लागत और धीमी प्रतिलाभ के कारण हिचकिचाते हैं। उदाहरण के लिये, अमेरिका स्थित इंटेल को सरकारी सहायता के बावजूद अपने शानदार निवेश का प्रतिलाभ पाने में लगभग एक दशक लग गया।
- भारत में, स्टार्टअप्स और MSME को निरंतर सब्सिडी तथा बाज़ार गारंटी के बिना ऐसी दीर्घकालिक परियोजनाओं में निवेश करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण लगता है।
- निर्माण में निजी क्षेत्र की सीमित भूमिका: जबकि भारत का निजी क्षेत्र सॉफ्टवेयर और डिज़ाइन में सुदृढ़ है, उच्च लागत तथा तकनीकी बाधाओं के कारण सेमीकंडक्टर निर्माण में इसकी भूमिका न्यूनतम है।
- अधिकांश सेमीकंडक्टर पहल सरकार के नेतृत्व में हैं तथा फैब इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी निवेश सीमित है।
- उदाहरण के लिये, इंफोसिस और विप्रो जैसी कंपनियाँ चिप डिज़ाइन में तो हावी हैं, लेकिन निर्माण में उनकी कोई उपस्थिति नहीं है।
- इसके विपरीत, ताइवान की सेमीकंडक्टर सफलता TSMC जैसी निजी दिग्गज कंपनियों से उपजी है, जिन्होंने सरकारी समर्थन से उद्योग को आगे बढ़ाया है।
- राज्यों में विखंडित दृष्टिकोण: भारत का संघीय संरचना विखंडित नीतियों की ओर ले जाता है, जिसमें राज्य सेमीकंडक्टर निवेश पर सहयोग करने के बजाय प्रतिस्पर्द्धा करते हैं। गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य प्रतिस्पर्द्धी प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जो अन्य राज्यों को पीछे छोड़ देते हैं तथा एकीकृत सेमीकंडक्टर हब में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- इसके विपरीत, चीन राष्ट्रीय स्तर पर सेमीकंडक्टर विकास का समन्वय करता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों का निर्बाध एकीकरण सुनिश्चित होता है।
- उन्नत नोड्स पर कम ध्यान: भारत की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाएँ वर्तमान में लिगेसी एंड मैच्योर नोड्स (28nm और उससे अधिक) पर केंद्रित हैं, जो AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिये अपर्याप्त हैं।
- वैश्विक मांग 5nm और 3nm जैसे उन्नत नोड्स की ओर बढ़ रही है, जिसमें TSMC तथा सैमसंग इस बाज़ार में अग्रणी हैं।
- उन्नत नोड क्षमताओं में निवेश के बिना, भारत को सेमीकंडक्टर बाज़ार के कम मूल्य वाले खंडों तक सीमित रहने का खतरा है।
भारत अपने सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- वित्तीय प्रोत्साहन बढ़ाना और निवेश को जोखिम मुक्त करना: भारत को दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करते हुए सेमीकंडक्टर निवेशकों को आकर्षित करने के लिये कर छूट, सब्सिडी और कम ब्याज वाले ऋण जैसे उन्नत वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिये।
- एक समर्पित सेमीकंडक्टर विकास कोष, फैब्स की लंबी निर्माण अवधि से जुड़े जोखिमों को कम कर सकता है।
- अमेरिकी चिप्स अधिनियम (52 बिलियन डॉलर) एक ऐसा मॉडल है जिसका अनुकरण करके भारत भी समान स्तर की वित्तीय गारंटी प्रदान कर सकता है।
- विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से कुशल कार्यबल का निर्माण: सेमीकंडक्टर डिज़ाइन और निर्माण के लिये कुशल कार्यबल का विकास करना महत्त्वपूर्ण है। भारत ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) और सैमसंग जैसे वैश्विक अग्रणी भागीदारों के साथ मिलकर विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित कर सकता है।
- भारत सेमीकंडक्टर मिशन जैसे कार्यक्रमों का लक्ष्य 85,000 पेशेवरों को प्रशिक्षित करना है, जिनका विस्तार किया जाना चाहिये तथा उन्हें उद्योग की आवश्यकताओं से जोड़ा जाना चाहिये।
- IIT और NIT के माध्यम से नैनोटेक्नोलॉजी तथा VLSI डिज़ाइन में छात्रवृत्ति प्रदान करने से तत्काल कौशल अंतराल को दूर किया जा सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुदृढ़ करने से भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में नवाचार और पैमाने को बढ़ावा मिल सकता है।
- निजी कंपनियाँ चिप डिज़ाइन और नवाचार पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं, जबकि सरकार बड़े पैमाने पर निर्माण सुविधाओं को सँभाल सकती है।
- उदाहरण के लिये, निवेश और परिचालन को सुचारु बनाने के लिये TSMC के सार्वजनिक-निजी तालमेल के समान एक मॉडल को लागू किया जा सकता है।
- वेदांता-फॉक्सकॉन जैसे सहयोग आशाजनक हैं, लेकिन क्रियान्वयन में विलंब से बचने के लिये स्पष्ट रूपरेखा की आवश्यकता है।
- सेमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश: भारत को सामग्री, डिज़ाइन और उन्नत नोड्स में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सेमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करना चाहिये।
- शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से सेमीकंडक्टर-केंद्रित अनुसंधान केंद्र बनाने के लिये सरकारी अनुदान और निजी निधि आवंटित की जानी चाहिये।
- उदाहरण के लिये, डिजिटल इंडिया RISC-V (DIR-V) कार्यक्रम भारत के स्वदेशी चिप्स को डिज़ाइन करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
- फैब्स के लिये बुनियादी अवसंरचना में सुधार: भारत को निर्बाध बिजली आपूर्ति, अतिशुद्ध जल की उपलब्धता और फैब्स के लिये स्वच्छ वातावरण जैसी बुनियादी अवसंरचना की चुनौतियों का समाधान करना होगा।
- सेमीकंडक्टर हब के निकट औद्योगिक क्लस्टर विकसित किये जाने चाहिये, जिसमें गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्य अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।
- TSMC की सौर ऊर्जा चालित सुविधाओं के समान, फैब्स के लिये नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने से परिचालन लागत में कमी आएगी।
- सरकार समर्थित बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं, जैसे समर्पित सेमीकंडक्टर पार्कों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- कच्चे माल के लिये आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करना: भारत को सिलिकॉन वेफर्स और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसी आवश्यक अर्द्धचालक पदार्थों के लिये एक स्वदेशी आपूर्ति शृंखला विकसित करनी चाहिये।
- दुर्लभ मृदा संसाधनों के लिये ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ गठजोड़ स्थापित करने से चीन पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- सिलिकॉन वेफर्स और रसायनों के लिये स्थानीय उत्पादन सुविधाओं में निवेश करने से अनुकूलन सुदृढ़ होगा।
- उदाहरण के लिये, महत्त्वपूर्ण खनिजों पर IEA के साथ भारत का हालिया समझौता ज्ञापन विशेष रूप से अर्द्धचालक कच्चे माल पर केंद्रित हो सकता है।
- उन्नत नोड विकास को बढ़ावा देना: भारत को AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये उन्नत नोड्स (10 nm से कम) के विकास में निवेश करना चाहिये।
- सरकारी वित्तपोषण द्वारा समर्थित, छोटे नोड्स को समर्पित उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं की स्थापना, उच्च मूल्य वाले बाज़ारों में भारत का प्रवेश सुनिश्चित करेगी।
- सेमीकंडक्टर निर्यात केंद्र का निर्माण: भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति और लागत प्रभावी श्रम का लाभ उठाकर स्वयं को सेमीकंडक्टर के निर्यात केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहिये।
- चिप पैकेजिंग, परीक्षण और डिज़ाइन सुविधाएँ स्थापित करने के लिये वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने हेतु प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये।
- प्रौद्योगिकी आयात करने वाले देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता बाज़ारों तक श्रेष्ठ पहुँच सुनिश्चित कर सकता है।
- विनियामक अनुमोदन और नौकरशाही प्रक्रियाओं को सरल बनाना: वैश्विक सेमीकंडक्टर निवेश को आकर्षित करने के लिये भारत को अपने विनियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। सेमीकंडक्टर परियोजनाओं के लिये एकल-खिड़की अनुमोदन प्रणाली स्थापित करने से विलंब में कमी आएगी और निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
- उदाहरण के लिये, वेदांता-फॉक्सकॉन परियोजना को नौकरशाही की अकुशलता के कारण विलंब का सामना करना पड़ा; ऐसे मुद्दों को पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से हल किया जाना चाहिये।
- राज्य और केंद्र के प्रयासों में सामंजस्य स्थापित करने के लिये राष्ट्रीय सेमीकंडक्टर टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिये।
- घरेलू IP विकास को प्रोत्साहित करना: भारत को स्थानीय स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थानों को वित्तपोषित करके स्वदेशी अर्द्धचालक बौद्धिक संपदा (IP) के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- "चिप-टू-स्टार्टअप" कार्यक्रम जैसी पहलों को ऑटोमोटिव और IoT जैसे विशिष्ट उद्योगों के लिये IP निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के लिये विस्तारित किया जा सकता है। सब्सिडी या अनुदान के माध्यम से पेटेंट को प्रोत्साहित करने से वैश्विक सेमीकंडक्टर IP फाइलिंग में भारत की रैंक बढ़ सकती है।
- हरित और संधारणीय फैब्स को बढ़ावा देना: पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये भारत को सेमीकंडक्टर फैब्स को हरित तकनीक अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। TSMC के दृष्टिकोण के समान, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत जल पुनर्चक्रण विधियों का उपयोग करने वाले फैब्स के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
- सेमीकंडक्टर परियोजनाओं के लिये समर्पित स्थिरता लक्ष्य वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य के अनुरूप होंगे।
- राज्य और क्षेत्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना: सेमीकंडक्टर निवेश के लिये प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय, भारतीय राज्यों को एकीकृत राष्ट्रीय सेमीकंडक्टर रणनीति बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये।
- बंगलूरू-मैसूर कॉरिडोर या गुजरात-महाराष्ट्र क्लस्टर जैसे क्षेत्रीय क्लस्टर डिज़ाइन, पैकेजिंग और फैब्रिकेशन में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकते हैं।
- सेमीकंडक्टर मिशन के माध्यम से संघीय समर्थन से राज्य स्तरीय नीतियों में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है, जिससे प्रयासों की पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है।
- भारत की सॉफ्टवेयर विशेषज्ञता का लाभ उठाना: भारत सॉफ्टवेयर में अपने वैश्विक नेतृत्व को सेमीकंडक्टर हार्डवेयर विकास के साथ एकीकृत कर एक व्यापक तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र बना सकता है।
- चिप डिज़ाइन को AI और सॉफ्टवेयर समाधानों के साथ संयोजित करने से स्वदेशी सेमीकंडक्टरों की मांग बढ़ सकती है।
निष्कर्ष:
भारत के सेमीकंडक्टर मिशन में देश को वैश्विक तकनीकी केंद्र में बदलने की अपार संभावनाएँ हैं। सरकार का निरंतर समर्थन, निजी क्षेत्र के निवेश और तकनीकी नवाचार के साथ मिलकर, इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार करने में महत्त्वपूर्ण होगा। एक सफल सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम न केवल भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करेगा बल्कि वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में इसकी रणनीतिक स्थिति को भी शीर्षस्थ बनाएगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न1. भारत के आर्थिक और तकनीकी विकास के लिये सेमीकंडक्टर क्षेत्र में निवेश करना क्यों महत्त्वपूर्ण है? भारत में आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में शामिल चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:
(a) डाई लेज़र उत्तर: (c) |