एक बहुपक्षीय ‘ग्रीन बैंक’ की आवश्यकता | 13 Sep 2019
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इसमें जलवायु परिवर्तन के शमन हेतु पर्याप्त वित्तपोषण उपलब्ध न होने तथा वित्तपोषण की आवश्कयताओं को पूरा करने हेतु ‘ग्रीन बैंक' की आवश्यकता पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन हमारे समक्ष विद्यमान सबसे गंभीर वैश्विक पर्यावरणीय संकट है। यह केवल पर्यावरणीय समस्या भर नहीं है, बल्कि वैश्विक से लेकर स्थानीय स्तर तक अपने बहुस्तरीय चरित्र में यह एक अभूतपूर्व परिदृश्य है जो कई मायनों में विभिन्न समस्याओं को जन्म देता है। वर्तमान परिदृश्य में बात करें तो जलवायु परिवर्तन के कारण ही:
- इस वर्ष यूरोप ने ग्रीष्म लहर (Heat Wave) के संकट का सामना किया जो इस भू-भाग के लिये एक नई परिघटना रही।
- लगभग इसी समय, बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित चेन्नई शहर को गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ा।
- अफ्रीकी प्रायद्वीप के एक बंदरगाह शहर केप टाउन में भी पेयजल संकट सामने आया और वहाँ जल की राशनिंग को अनिवार्य करने की आवश्यकता महसूस की गई।
- जलवायु परिवर्तन के संबंध में लंदन में हुए कड़े विरोध प्रदर्शनों के बाद ब्रिटेन की संसद ने पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन को लेकर आपातकाल घोषित कर दिया और ऐसा करने वाला वह विश्व का पहला देश बन गया।
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न इन आपदाओं के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरणीय परिवर्तनों के शमन के लिये पर्याप्त वित्तपोषण उपलब्ध नहीं है। ऐसे में पेरिस समझौते के लक्ष्यों और सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति कैसे संभव होगी।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) का मानना है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये 53 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है।
- व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन-अंकटाड (United Nations Conference on Trade and Development–UNCTAD) का अनुमान है कि सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये वर्तमान समय से वर्ष 2030 के मध्य करीब 2.5 ट्रिलियन डॉलर वार्षिक की मौजूदा कमी बनी रहेगी।
संभवतः एक समर्पित, बहुपक्षीय हरित बैंक (Green Bank) इसका एक समाधान हो सकता है। क्योंकि जहाँ एक ओर, योजनाओं या विचारों को कार्यरूप देने और जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति गंभीरता का अभाव है तो वहीं दूसरी ओर, विश्व के कई देशों, विशेष रूप से निम्न और मध्यम-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु परिवर्तन शमन उपायों को लागू करने में वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
बहुपक्षीय दृष्टिकोण
- ‘ग्रीन बैंक’ अन्य गतिविधियों के साथ ही हरित परियोजनाओं का समर्थन करने वाले मौजूदा बहुपक्षीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों को सहयोग एवं साझेदारी प्रदान करेगा। परियोजनाओं के वित्तपोषण में सहयोग हेतु ग्रीन बैंक इन संस्थानों के साथ मिलकर काम कर सकता है।
- वर्तमान में अधिकांश बहुपक्षीय और क्षेत्रीय विकास बैंकों ने स्वच्छ ऊर्जा को समर्थन देने के लिये विभिन्न पहलों की शुरुआत की है, लेकिन केवल स्वच्छ ऊर्जा को समर्थन देना ही पर्याप्त नहीं है। आँकड़े दर्शाते हैं कि छह प्रमुख वैश्विक बहुपक्षीय संस्थानों ने हरित प्रयासों के लिये प्रत्येक वर्ष औसतन 27 बिलियन डॉलर प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई है। हरित प्रयासों के लिये सहायता प्रदान कर रहे इन संस्थानों में शामिल हैं:
- विश्व बैंक (World Bank)
- अफ्रीकी विकास बैंक (African Development Bank)
- एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank-ADB)
- यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (European Bank for Reconstruction and Development-EBRD)
- यूरोपीय निवेश बैंक (European Investment Bank)
- अंतर-अमेरिकी विकास बैंक (Inter-American Development Bank)
- उल्लेखनीय है कि अधिकांश बहुपक्षीय संस्थानों में अमेरिकी भागीदारी मौजूद है। ऐसे में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका के बदले हुए दृष्टिकोण के साथ क्या अन्य देश तब तक प्रतीक्षा करेंगे जब तक कि जलवायु परिवर्तन की स्थिति बद से बदतर न हो जाए?
वित्तपोषण की आवश्यकता
- अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency- IRENA) के अनुसार, वर्ष 2017 में कुल नवीकरणीय वित्तपोषण में से 76 प्रतिशत भाग आस्ति वित्तपोषण (Asset Financing) का था, जबकि 1 प्रतिशत से भी कम वित्तपोषण निजी इक्विटी और उद्यम पूंजीपतियों के माध्यम से प्राप्त हुआ।
- वृहत वित्तपोषण आवश्यकताओं के संदर्भ में यह बेहद मामूली वित्तपोषण चिंताजनक है। अतीत की तुलना में जलवायु परिवर्तन की स्थिति आज अधिक गंभीर हो हुई है और विश्व को इसका संज्ञान लेने की आवश्यकता है।
कैसे लाभप्रद हो सकता है ग्रीन बैंक?
- ग्रीन बैंक घरेलू रूप से उपलब्ध संसाधनों की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्द्धी शर्तों पर वित्त प्रदान करेगा। यह अंतर्राष्ट्रीय बॉण्ड बाज़ारों से धन जुटाने के लिये सदस्य अर्थव्यवस्थाओं के योगदान के माध्यम से प्राप्त पूंजी का लाभ उठाएगा।
- अन्य विशेषताओं के अतिरिक्त ग्रीन बॉण्ड और ब्लू बॉण्ड जुटाने में भी यह बैंक सक्षम होगा और प्राप्त धन का उपयोग जलवायु-अनुकूल उपायों के लिये किया जा सकेगा।
- बैकस्टॉप गारंटी के माध्यम से ऋण वृद्धि की पेशकश और अन्य जोखिम शमन उपायों द्वारा तथा अन्य बैंकों या वित्तीय संस्थानों को पुनर्वित्त प्रदान करके ग्रीन बैंक मूल्यवान वित्तीय संसाधन का एक प्रमुख केंद्र बन सकता है जबकि सदस्य अर्थव्यवस्थाओं के लिये यह जलवायु वित्त की पहुँच में सुधार हेतु एक प्रमुख एजेंसी के रूप में भी कार्य कर सकता है।
- यह सामाजिक-आर्थिक जलवायु अवसंरचना में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करेगा, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुगम बनाएगा, कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के लिये अनुदान में वृद्धि करेगा, यहाँ तक कि विभिन्न प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये इक्विटी निवेश भी प्राप्त कर सकता है।
- ग्रीन बैंक भौगोलिक आधार पर ऋणदेयता की प्राथमिकता भी तय कर सकता है। उदाहरण के लिये, कई दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाएँ हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के कारण अप्रत्याशित बाढ़ की स्थिति का सामना कर रही हैं। बांग्लादेश, मालदीव, वियतनाम, पलाऊ के कुछ हिस्सों के अलावा भारत के कच्छ (मैंग्रोव) वन भी जलवायु परिवर्तन के प्रति अतिसंवेदनशील हैं और बढ़ते जल स्तर के कारण यहाँ भू-खण्डों को क्षति पहुँच रही है।
निष्कर्ष:
वर्ष 2019 वैश्विक स्तर पर मानव इतिहास में दर्ज किये गए संभवतः सबसे गर्म वर्षों में से एक होने की राह पर है। नास्त्रेदमस (Nostradamus) ने विशेष रूप से यह भविष्यवाणी तो नहीं की थी कि जलवायु परिवर्तन से विश्व का अंत हो जाएगा, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि इस विषय को तत्परता से संबोधित नहीं किया गया तो बिना किसी पूर्ववृति (Predispositions) के जलवायु परिवर्तन विकसित और विकासशील, समृद्ध एवं निर्धन, सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के पतन की गति को तीव्र कर देगा।
उभरते परिदृश्य में एक नवीन बहुपक्षीय संस्थान की आवश्यकता है जो जलवायु अनुकूलन को संबोधित करने और निम्न कार्बन-प्रत्यास्थ (Carbon-Resilient) परियोजनाओं के वित्तपोषण पर केंद्रित व समर्पित हो।
प्रश्न: जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपदाओं को देखते हुए एक एकल अंतर्राष्ट्रीय संस्था की आवश्यकता महसूस की जा रही है जो हरित प्रयासों का नेतृत्व और वित्तपोषण करे। इस प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय संस्था जलवायु परिवर्तन से निपटने में कितनी कारगर सिद्ध हो सकती है? विश्लेषण कीजिये।