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वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट 2021 : अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

  • 18 Oct 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी 

मेन्स के लिये: 

भारत में ऊर्जा उपयोग की समग्र स्थिति और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ( International Energy Agency-IEA) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (WEO) रिपोर्ट 2021 जारी की।

  • वार्षिक रूप से प्रकाशित WEO रिपोर्ट ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के अनुमानों पर महत्त्वपूर्ण विश्लेषण और अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
  • वर्ष 2021 की रिपोर्ट ने कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP26) शिखर सम्मेलन (ग्लासगो, यूके में) में  जलवायु कार्रवाई के लिये सरकारों पर अधिक दबाव का संकेत दिया।
  • इससे पूर्व अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा शुद्ध शून्य उत्सर्जन (Net Zero Emissions - NZE) हेतु  'नेट ज़ीरो बाय 2050'  (Net Zero by 2050) नाम से रोडमैप जारी किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • अक्षय ऊर्जा के योगदान को बढ़ावा:
    • अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे कि सौर, पवन, जलविद्युत और बायोएनर्जी को कोरोनावायरस महामारी के उपरांत ऊर्जा निवेश को पुनः एक बड़ा हिस्सा बनाने की आवश्यकता है।
      • विश्व भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त निवेश नहीं कर रहा है, और अनिश्चितताएँ भविष्य में एक अस्थिर अवधि के लिये मंच तैयार कर रही हैं।
    • अक्षय ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। हालाँकि वर्ष 2050 तक वैश्विक उत्सर्जन को शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु यह स्वच्छ ऊर्जा प्रगति अभी भी बहुत धीमी है, IEA का मानना ​​है कि इससे वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में मदद मिलेगी।
    • प्रारंभ में IEA ने जीवाश्म ईंधन में निरंतर निवेश का समर्थन किया। हालाँकि यह धीरे-धीरे "जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये निर्णय निर्माताओं से आग्रह करने वाले अधिक विशिष्ट मुद्दों" की ओर बढ़ गया है।
  • उत्सर्जन में कमी के उपाय:
    • अतिरिक्त निवेश करना उतना मुश्किल नहीं है जितना लगता है। आवश्यक उत्सर्जन में कमी का 40% से अधिक उन उपायों से संभव है जो स्वयं के लिये भुगतान करते हैं, जैसे:
      • दक्षता में सुधार, गैस रिसाव को सीमित करना या उन जगहों पर पवन या सौर क्षमता स्थापित करना जहाँ वे अब सबसे अधिक प्रतिस्पर्द्धी बिजली उत्पादन प्रौद्योगिकियाँ हैं।
  • विभिन्न परिदृश्य: IEA ने दो संभावित परिदृश्यों का विश्लेषण किया:
    • घोषित नीतियों का परिदृश्य (चरण):
      • यह उन उपायों और नीतियों को कवर करता है जिन्हें सरकारें पहले ही लागू कर चुकी हैं। उपायों के बावजूद दुनिया भर में वार्षिक उत्सर्जन का आँकड़ा उतना ही होगा जितना विकासशील देश अपने बुनियादी ढाँचे का निर्माण करते हैं।
      • इस परिदृश्य में वर्ष 2100 में तापमान पूर्व औद्योगिक स्तरों से 2.6 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा।
    • शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लिये प्रतिबद्धता:
      • यह शुद्ध-शून्य उत्सर्जन स्थिति प्राप्त करने के लिये सरकारों की प्रतिबद्धता का आकलन करते हुए संभावित रूप से अगले दशक हेतु उनके स्वच्छ ऊर्जा निवेश को दोगुना करता है।
      • यदि देश समय पर इन प्रतिबद्धताओं को लागू करने का प्रबंधन करते हैं, तो वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत तापमान वृद्धि लगभग 2.1 डिग्री सेल्सियस होगी, लेकिन यह सुधारात्मक प्रयास पेरिस समझौते के तहत सुनिश्चित किये गए 1.5 सेल्सियस से काफी अधिक है।

Energy-Agency

  • प्रमुख सुझाव:
    • स्वच्छ विद्युतीकरण:
      • इसके लिये घोषित प्रतिबद्धता परिदृश्यों के सापेक्ष सौर पीवी और पवन परिनियोजन को दोगुना करने की आवश्यकता है।
    • कम उत्सर्जन दर:
      • जहाँ स्वीकार्य हो वहाँ परमाणु ऊर्जा के उपयोग सहित अन्य कम-उत्सर्जन उपायों को अपनाना; बिजली के बुनियादी ढाँचे और जलविद्युत सहित सभी प्रकार की प्रणालियों में लचीलापन बढ़ाना; कोयले का चरणबद्ध उपयोग; परिवहन और हीटिंग के लिये बिजली के उपयोग को बढ़ाने हेतु एक अभियान का संचालन किया जा रहा है। 
    • ऊर्जा दक्षता:
      • उपकरण दक्षता और व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से ऊर्जा सेवा की मांग को कम करने के उपायों के साथ-साथ ऊर्जा दक्षता पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना।
    • मीथेन उत्सर्जन में कमी:
      • जीवाश्म ईंधन के उपयोग से मीथेन उत्सर्जन में कटौती करके और स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को एक बड़े योगदानकर्त्ता के रूप में बनाने हेतु एक अभियान का संचालन किया जा रहा है।
    • स्वच्छ ऊर्जा का दशक:
      • वर्ष 2020 को बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा परिनियोजन का दशक बनाने के लिये COP26 के उपायों को लागू कर विशिष्ट परिणाम प्राप्त हो सकते हैं

भारत संबंधी विशिष्ट परिणाम

  • जनसंख्या और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2020-2050:
    • भारत इस दशक में चीन की आबादी को पार कर सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा और वर्ष 2050 तक भारत की आबादी 1.6 बिलियन से अधिक हो जाएगी, जबकि चीन की आबादी में कमी आने का अनुमान है।
    • अगले तीन दशकों में भारत की जीडीपी औसतन चीन की तुलना में तेज़ी से बढ़ेगी [भारत का 5.3% बनाम चीन का 3.6%]।
  • कोयला उत्पादन:
    • भारत में वित्तीय रूप से तनावग्रस्त कोयला परिसंपत्तियों (NPA) के 50 गीगावाट से अधिक उत्सर्जन ने बैंकिंग प्रणाली में तनाव उत्पन्न कर दिया है।
    • भारत में कोयले की मांग वर्ष 2030 तक लगभग 30% बढ़ने का अनुमान है।
    • देशों की  प्रतिबद्धता के अनुसार, अनुमान है कि चीन के बाद अबाधित कोयले का अगला सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता भारत होगा, जो वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन के लिये वैश्विक उपयोग के लगभग 15% हेतु ज़िम्मेदार होगा।
  • वायु प्रदूषण:
    • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी लाने में विफलता की स्थिति तब उत्पन्न होगी जब वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों का आवागमन जारी रहेगा।
    • हाल ही में भारत में समय से पूर्व होने वाली 1.67 मिलियन मौतों का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण को माना गया है यानी वायु प्रदूषण से हर मिनट में तीन से अधिक मौतें होती हैं।
  • भारत के प्रयासों की सराहना:
    • स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं हेतु पूंजी जुटाने में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने उल्लेखनीय कार्य किया है और इसमें वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 450 GW ऊर्जा प्राप्त करने हेतु सौर फोटोवोल्टिक (pv) के तीव्र विस्तार के लिये वित्तपोषण में भारत की सफलता एक प्रमुख उदाहरण है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक हालिया सर्वेक्षण में बताया है कि भारत में खाना पकाने के ‘स्वच्छ माध्यमों’ तक पहुँच में सुधार हुआ है।
  • सिफारिशें
    • इस रिपोर्ट में भारत में ‘एयर कंडीशनर’ के लिये 24 डिग्री सेल्सियस के डिफाॅल्ट सेट पॉइंट तापमान को अनिवार्य करने एवं दक्षता में सुधार के उद्देश्य से सख्त न्यूनतम प्रदर्शन मानकों को अनिवार्य करने का आह्वान किया गया है, क्योंकि समय के साथ कूलिंग एवं बिजली की मांग बढ़ रही है।

आगे की राह

  • दुनिया भर के विभिन्न देशों को आगामी 30 वर्षों के भीतर ऊर्जा क्षेत्र को लागत प्रभावी तरीके से बदलने का एक कठिन कार्य करना है, साथ ही इस अवधि में विश्व अर्थव्यवस्था आकार में दोगुने से अधिक हो जाएगी और वैश्विक जनसंख्या में 2 अरब लोगों की वृद्धि होगी।
  • वर्ष 2050 तक दुनिया को शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने की आवश्यकता प्रमुख अंतरिम कदमों में निहित है, जिन्हें वर्ष 2030 तक उठाए जाने की आवश्यकता है, जिसमें हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा से सस्ती एवं हरित ऊर्जा को सभी के लिये सुलभ बनाना शामिल है ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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