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विश्व ऊर्जा परिदृश्य 2024

  • 17 Oct 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व ऊर्जा परिदृश्य 2024, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, नवीकरणीय ऊर्जा, आपूर्ति शृंखला के मुद्दे, जलवायु परिवर्तन, शुद्ध शून्य उत्सर्जन

मेन्स:

विश्व ऊर्जा परिदृश्य, 2024 में चुनौतियाँ, भारत के ऊर्जा क्षेत्र में चुनौतियाँ

स्रोत: हिदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा जारी विश्व ऊर्जा परिदृश्य (वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक) 2024, वैश्विक ऊर्जा प्रवृत्तियों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन, बढ़ती ऊर्जा मांग और भू-राजनीतिक संघर्षों के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 

  • यह रिपोर्ट भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग, कोयले पर निर्भरता और वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षा पर केंद्रित है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) क्या है?

  • परिचय:
    • IEA की स्थापना वर्ष 1974 में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के सदस्य देशों द्वारा वर्ष 1973-1974 के तेल संकट से निपटने में औद्योगिक देशों की सहायता हेतु की गई थी।
      • तब से इसका कार्य ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और स्वच्छ ऊर्जा तक विस्तारित हो गया है।
    • IEA एक स्वायत्त मंच है जो देशों को सुरक्षित और सतत् ऊर्जा उपलब्ध कराने में मदद करने के लिये विश्लेषण, डेटा और नीति सिफारिशें प्रदान करता है।
    • IEA के चार मुख्य क्षेत्र ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास, पर्यावरण जागरूकता और विश्वव्यापी सहभागिता हैं।
    • इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है।
  • सदस्य:
    • IEA में 31 सदस्य देश, भारत सहित 13 सहयोगी देश और 4 परिग्रहण देश शामिल हैं।
    • IEA हेतु उम्मीदवार देश को OECD का सदस्य देश होना चाहिये।
  • प्रमुख रिपोर्ट:

विश्व ऊर्जा परिदृश्य 2024 रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक तनाव और ऊर्जा सुरक्षा: रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में चल रहे संघर्ष वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के लिये खतरा बने हुए हैं। 
  • स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन में तेज़ी: स्वच्छ ऊर्जा में निवेश (विशेष रूप से सौर और पवन ऊर्जा में) रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है।
    • अकेले वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर 560 गीगावाट (GW) से अधिक नवीकरणीय क्षमता को शामिल किया गया जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

  • वैश्विक विद्युत मिश्रण परिवर्तन: वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा कोयला, तेल और गैस को पीछे छोड़ते हुए बिजली का प्रमुख स्रोत बन जाने की उम्मीद है।
    • सौर फोटोवोल्टिक और पवन ऊर्जा इस बदलाव को आगे बढ़ा रहे हैं तथा अनुमान है कि परमाणु ऊर्जा सहित कम उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोतों से इस दशक के अंत तक विश्व की 50% से अधिक बिजली पैदा होगी।

  • तेल और गैस बाज़ार अधिशेष की स्थिति में: वर्ष 2020 की दूसरी छमाही में तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस आपूर्ति में अधिशेष से कीमतों पर दबाव देखने को मिला। 
  • बढ़ती विद्युत गतिशीलता और तेल मांग में बदलाव: वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक नई कारों की बिक्री में  इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 50% होगी। 
  • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्द्धा: रिपोर्ट में सौर पी.वी. और बैटरी भंडारण जैसी स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के आपूर्तिकर्त्ताओं के बीच तीव्र प्रतिस्पर्द्धा पर प्रकाश डाला गया है।
  • ऊर्जा प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव (जैसे चरम मौसमी घटनाएँ) वैश्विक ऊर्जा प्रणालियों के लिये नई चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहे हैं। 
  • ऊर्जा दक्षता की भूमिका: उत्सर्जन में कटौती के लिये ऊर्जा दक्षता में सुधार महत्त्वपूर्ण है, लेकिन रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्तमान नीतियों के साथ वर्ष 2030 तक दक्षता को दोगुना करने का वैश्विक लक्ष्य पूरा होना संभव नहीं है।

भारत से संबंधित मुख्य बातें क्या हैं?

  • भारत की आर्थिक और जनसंख्या वृद्धि: वर्ष 2023 में भारत 7.8% की वृद्धि दर के साथ सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था थी। वर्ष 2028 तक यह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिये तैयार है। 
    • वर्ष 2023 में भारत प्रतिस्थापन स्तर से नीचे प्रजनन दर होने के बावजूद, सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा।
  • बढ़ती ऊर्जा मांग: भारत में अगले दशक में वैश्विक स्तर पर ऊर्जा मांग में सबसे अधिक वृद्धि होने की संभावना है, जो तीव्र आर्थिक विकास और शहरीकरण से प्रेरित है। 
    • वर्ष 2035 तक कुल ऊर्जा मांग में लगभग 35% की वृद्धि होने की उम्मीद है जिसमें परिवहन, निर्माण और विनिर्माण जैसे क्षेत्र महत्त्वपूर्ण होंगे।
  • कोयले पर अधिक निर्भरता: अपने महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के बावजूद कोयला, भारत के ऊर्जा मिश्रण का प्रमुख हिस्सा बना हुआ है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देश में कोयला आधारित ऊर्जा क्षमता में लगभग 60 गीगावाट की वृद्धि हो जाएगी तथा कोयले से भारत की 30% से अधिक विद्युत् का उत्पादन जारी रहेगा, जबकि सौर प्रतिष्ठानों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है।
  • औद्योगिक विस्तार: भारत का औद्योगिक क्षेत्र वर्ष 2035 तक बड़ी वृद्धि के लिये तैयार है।
  • शीतलन के लिये बिजली की मांग: भारत में एयर कंडीशनरों की मांग वर्ष 2035 तक 4.5 गुना से अधिक बढ़ने का अनुमान है, जिससे शीतलन के लिये बिजली की मांग बढ़ जाएगी।
    • वर्ष 2035 में अकेले एयर कंडीशनिंग के लिये आवश्यक ऊर्जा, उस वर्ष मेक्सिको की कुल अनुमानित बिजली खपत से अधिक होगी।
  • नवीकरणीय ऊर्जा विकास और भंडारण क्षमता: भारत अपने नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो के विस्तार में काफी प्रगति कर रहा है।
    • देश वर्ष 2035 तक अपनी बिजली उत्पादन क्षमता को लगभग तीन गुना बढ़ाकर 1,400 गीगावाट करने की राह पर है। 
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 2030 तक भारत में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी स्थापित बैटरी भंडारण क्षमता होगी, जो सौर और पवन जैसी परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य: वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का भारत का लक्ष्य इसकी ऊर्जा रणनीति का एक प्रमुख घटक है। 
    • इस राह में स्वच्छ विद्युत उत्पादन वर्ष 2035 तक वर्तमान नीतिगत अनुमानों से 20% अधिक होने की उम्मीद है।
    • उद्योगों में इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन का उपयोग कोयले और तेल की खपत को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा भारत का CO2 उत्सर्जन वर्ष 2035 तक निर्धारित नीतिगत परिदृश्य (STEPS) की तुलना में 25% कम होने का अनुमान है।
  • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और तेल की मांग में वृद्धि: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को तेज़ी से अपनाए जाने से वर्ष 2030 तक तेल की मांग में वृद्धि होगी। 
    • जैसे-जैसे अधिक इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर होंगे, परिवहन के लिये तेल की मांग में कमी आएगी। हालांकि पेट्रोकेमिकल्स जैसे अन्य क्षेत्रों में तेल का उपयोग बढ़ता रहेगा।
  • सरकारी नीतिगत समर्थन: भारत की स्वच्छ ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं को कृषि में सौर ऊर्जा के लिये पीएम-कुसुम योजना, राष्ट्रीय सौर मिशन और सौर पीवी मॉड्यूल के विनिर्माण के लिये उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी मज़बूत सरकारी पहलों का समर्थन प्राप्त है।

रिपोर्ट में किन चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है?

  • भू-राजनीतिक जोखिम: यूक्रेन में युद्ध जैसे संघर्ष ऊर्जा सुरक्षा के लिये खतरा पैदा करते हैं और वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को बाधित करते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला के मुद्दे: सौर पैनल और बैटरी जैसी अधिकांश स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ कुछ ही देशों में बनाई जाती हैं। यदि आपूर्ति बाधित होती है तो यह संकेंद्रण जोखिम पैदा करता है।
  • उच्च वित्तपोषण लागत: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तपोषित करना अधिक महंगा (विशेष रूप से विकासशील देशों में) होता जा रहा है।
  • ग्रिड अवसंरचना में देरी: कई देशों में तेज़ी से बढ़ती नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति के लिये ग्रिड क्षमता का अभाव है, जिसके कारण सौर और पवन ऊर्जा का कम उपयोग हो रहा है।
  • ऊर्जा दक्षता में धीमी प्रगति: ऊर्जा दक्षता में सुधार के प्रयास वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद कोयला, तेल और गैस अभी भी ऊर्जा उपयोग में प्रमुख हैं, जिससे स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव धीमा हो रहा है।
  • विकासशील देशों के लिये चुनौतियाँ: कई गरीब देशों को स्वच्छ ऊर्जा के लिये आवश्यक निवेश प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है, जिससे ऊर्जा तक पहुँच में अंतराल बढ़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: चरम मौसमी घटनाएँ (जैसे हीट वेव और बाढ़ से ऊर्जा प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है, जिसके अनुकूलन की आवश्यकता बढ़ रही है।

आगे की राह

  • स्वच्छ ऊर्जा निवेश में वृद्धि: सरकारों को भविष्य की ऊर्जा मांगों और जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रिड बुनियादी ढाँचे के लिये वित्तपोषण देना चाहिये।
    • सरकारों द्वारा लालफीताशाही को कम करके और प्रोत्साहन देकर व्यवसायों के लिये स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करना आसान बनाना चाहिये।
  • आपूर्ति शृंखला में विविधता लाना: देशों को अधिक स्थानीय विनिर्माण क्षमता का निर्माण करके स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये कुछ देशों पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • विकासशील देशों के लिये वित्तपोषण में सुधार: विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों को विकसित करने हेतु किफायती वित्तपोषण तक आसान पहुँच आवश्यक है।
  • ग्रिड अवसंरचना का विस्तार और आधुनिकीकरण: अधिक स्मार्ट, बड़े ग्रिड और ऊर्जा भंडारण में निवेश से यह सुनिश्चित होगा कि नवीकरणीय ऊर्जा को पूरी तरह से एकीकृत किया जा सके और उसका कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सके।
  • ऊर्जा दक्षता प्रयासों में तेज़ी लाना: ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये मज़बूत नीतियों की आवश्यकता है, जिससे उत्सर्जन और ऊर्जा मांग में काफी कमी आ सकती है।
  • जलवायु लचीलापन बढ़ाना: ऊर्जा प्रणालियों के लचीलेपन और अनुकूलनशीलता में सुधार करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों (जैसे चरम मौसमी घटनाओं) से निपटने के लिये तैयार रहना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक ऊर्जा संक्रमण के संबंध में विश्व ऊर्जा परिदृश्य 2024 में बताई गई प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में किया गया था।
  2.  वर्तमान में, कोयला खंडों का आबंटन लॉटरी के आधार पर किया जाता है।
  3.  भारत हाल के समय तक घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये कोयले का आयात करता था, किंतु अब भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013)

  1. उच्च भस्म अंश
  2.  निम्न सल्फर अंश
  3.  निम्न भस्म संगलन तापमान

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स

Q. “पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन अभी भी विकास के लिये अपरिहार्य है”। चर्चा कीजिये। (2017)

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