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भारत में सौर फोटोवोल्टिक अपशिष्ट प्रबंधन हेतु चुनौतियाँ तथा समाधान

  • 07 Apr 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फोटोवोल्टिक अपशिष्ट और इसके उदाहरण, संबंधित पहलें

मेन्स के लिये:

भारत और विश्व के अन्य हिस्सों में सौर अपशिष्ट का प्रबंधन, सौर अपशिष्ट से उत्पन्न चुनौतियाँ, सुझाव और संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

भारतीय नीति निर्माताओं द्वारा चक्रीय अर्थव्यवस्था की तरफ संक्रमण के प्रयासों के बावजूद वर्तमान में सौर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic- PV) उद्योग में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु स्पष्ट निर्देशों का अभाव है।

फोटोवोल्टिक अपशिष्ट (PV Waste):

  • परिचय: 
    • फोटोवोल्टिक अपशिष्ट सौर पैनलों द्वारा छोड़े गए इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से उत्पन्न होता है। उन्हें देश में स्क्रैप के रूप में बेचा जाता है।
    • अनुमान है कि अगले दशक तक यह कम-से-कम चार-पाँच गुना बढ़ सकता है। अतः भारत को सौर अपशिष्ट से निपटने हेतु व्यापक नियमों का मसौदा तैयार करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • सौर PV की संरचना: 
    • भारत के सौर PV प्रतिष्ठानों में क्रिस्टलीय सिलिकॉन (c-Si) प्रौद्योगिकी का प्रभुत्त्व है। विशिष्ट PV पैनल c-Si मॉड्यूल (93%) और कैडमियम टेल्यूराइड थिन-फिल्म मॉड्यूल (7%) से बना होता है।
      • c-Si मॉड्यूल में मुख्य रूप से ग्लास शीट, एल्यूमीनियम फ्रेम, एन्कैप्सुलेंट, बैक शीट, ताँबे के तार और सिलिकॉन वेफर्स होते हैं। c-Si मॉड्यूल बनाने हेतु चाँदी, टिन एवं सीसा का उपयोग किया जाता है। थिन-फिल्म मॉड्यूल ग्लास, एनकैप्सुलेंट तथा कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स से बना होता है।
  • PV अपशिष्ट में भारत की स्थिति: 
    • विश्व स्तर पर भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा सौर PV स्थापित करने वाला देश है। नवंबर 2022 में स्थापित सौर क्षमता लगभग 62GW थी। इससे बड़ी मात्रा में सौर PV अपशिष्ट निकलता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2030 तक 50,000-3,25,000 टन PV अपशिष्ट और 2050 तक चार मिलियन टन से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न कर सकता है।

अपशिष्ट की पुनर्प्राप्ति या पुनर्चक्रण:

  • जब PV पैनल समाप्त होने वाला होता है, तो कुछ फ्रेम को हटा दिया जाता है और स्क्रैप के रूप में बेच दिया जाता है, साथ ही जंक्शनों एवं केबलों को ई-अपशिष्ट नियमों के अनुसार पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।
  • कांच के टुकड़े को आंशिक रूप से पुनर्नवीकृत किया जाता है, जबकि सीमेंट भट्टियों में मॉड्यूल को जलाकर सिलिकॉन और चाँदी को निष्कर्षित किया जा सकता है। हालाँकि कुल सामग्री का लगभग 50% पुनर्प्राप्त किया जा सकता है और केवल लगभग 20% अपशिष्ट सामान्य रूप से पुनर्प्राप्त किया जाता है, बाकी को अनौपचारिक रूप से उपचारित किया जाता है।  
  • PV अपशिष्टों के इस बढ़ते अनौपचारिक प्रबंधन ने भराव क्षेत्रों में अपशिष्टों को निक्षेपित कर दिया है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण बढ़ रहा है। एनकैप्सुलेंट के दहन से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड और हाइड्रोजन साइनाइड भी उत्सर्जित होता है। 

भारत में PV अपशिष्ट के प्रबंधन में चुनौतियाँ  

  • PV अपशिष्ट का अनौपचारिक प्रबंधन:  
    • PV पैनलों के कुछ हिस्सों को निष्कर्षित और पुनर्चक्रित किये जाने के बावजूद, अपशिष्ट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक रूप से संसाधित किया जाता है, जिससे भरावक्षेत्रों में अपशिष्टों का संचय होता है और आसपास के क्षेत्र प्रदूषित होते हैं। 
  • पुनर्चक्रित PV अपशिष्ट के पुन: उपयोग के लिये सीमित बाज़ार:  
    • वर्तमान में पुनर्चक्रित PV अपशिष्ट का पुन: उपयोग करने के लिये भारत में उपयुक्त प्रोत्साहनों और योजनाओं की कमी के कारण बाज़ार बहुत छोटा है जिससे निवेश में कठिनाई उत्पन्न होती हैं। 
      • अपशिष्ट संचय और उपचार में होने वाले वित्तीय नुकसान से बचने के लिये केंद्रीय बीमा या नियामक निकाय की कमी। 
  • PV अपशिष्ट उपचार के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव: 
    • केवल PV अपशिष्टों को अन्य ई-अपशिष्टों के साथ जोड़ने से भ्रम उत्पन्न हो सकता है और ई-अपशिष्ट दिशा-निर्देशों के दायरे में विशिष्ट प्रावधानों को कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। 
      • भ्रम से बचने के लिये ई-अपशिष्ट दिशा-निर्देशों के भीतर PV अपशिष्ट उपचार के लिये विशिष्ट प्रावधानों की आवश्यकता है। 
  • खतरनाक अपशिष्ट वर्गीकरण:  
    • PV मॉड्यूल और उनके घटकों से उत्पन्न अपशिष्टों को भारत में 'खतरनाक अपशिष्ट' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।  
    • PV अपशिष्टों के प्रबंधन के बारे में जागरूकता अभियान और संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करने से लोगों को खतरनाक अपशिष्टों को ठीक से प्रबंधित करने के महत्त्व को समझने में मदद मिल सकती है। यह अधिक लोगों को उचित अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान प्रथाओं में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करेगा। 
  • सीमित स्थानीय सौर PV-पैनल निर्माण:  
    • भारत को घरेलू अनुसंधान एवं विकास प्रयासों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि एकल मॉड्यूल प्रकार के आधार पर कुछ प्राकृतिक संसाधनों को समान रूप से समाप्त कर देगा और महत्त्वपूर्ण सामग्रियों के पुनर्चक्रण और उनकी पुनर्प्राप्ति हेतु स्थानीय क्षमता को अवरुद्ध कर देगा। PV अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों के घरेलू विकास को उचित अवसंरचनात्मक सुविधाओं और पर्याप्त पूंजी माध्यम से बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 

भारत द्वारा की गई पहलें: 

अन्य देशों द्वारा की गई पहलें:

  • यूरोपीय संघ: 
    • यूरोपीय संघ का अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (Waste Electrical and Electronic Equipment- WEEE) निर्देश पहली बार अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित उपकरण स्थापित करने वाले विनिर्माताओं अथवा वितरकों पर अपशिष्ट के निपटान का उत्तरदायित्त्व निर्धारित करता है।
      • WEEE के निर्देश के अनुसार, उत्पादों के जीवन चक्र में मॉड्यूल को एकत्रित करना, संभालना और निपटान करना पूरी तरह से PV उत्पादकों की ज़िम्मेदारी है।
  • ब्रिटेन: 
    • ब्रिटेन में उद्योग-प्रबंधित "टेक-बैक और रीसाइक्लिंग योजना" भी कार्यरत है, जिसमे सभी PV उत्पादकों को आवासीय सौर बाज़ार (बिज़नेस-टू-कंज्यूमर) और गैर-आवासीय बाज़ार के लिये उपयोग किये जाने वाले उत्पादों से संबंधित डेटा को पंजीकृत और एकत्रित करने की आवश्यकता होती है
  • अमेरिका: 
    • हालाँकि अमेरिका में पुनर्चक्रण के संबंध में कोई संघीय कानून अथवा नियम नहीं हैं, परंतु ऐसे कुछ राज्य हैं, जिन्होंने ‘एंड ऑफ लाइफ’ PV मॉड्यूल प्रबंधन के लिये नीति निर्माण की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं
    • वाशिंगटन और कैलिफोर्निया ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्त्व (Extended Producer Responsibility- EPR) नियम लागू किये हैं।वाशिंगटन में PV मॉड्यूल के निर्माताओं को अब उपभोक्ता लागत के बिना राज्य में बेचे गए PV मॉड्यूल के निपटान, पुन: उपयोग अथवा पुनर्चक्रण के लिये भुगतान करना होगा।
  • ऑस्ट्रेलिया: 
    • ऑस्ट्रेलिया की संघीय सरकार ने चिंता को ध्यान में रखते हुए PV प्रणाली के लिये एक उद्योग-आधारित उत्पाद प्रबंधन योजना को विकसित करने और लागू करने हेतु राष्ट्रीय उत्पाद प्रबंधन निवेश कोष के हिस्से के रूप में 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान की घोषणा की है।
  • जापान और दक्षिणी कोरिया: 
    • जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश पहले ही PV अपशिष्ट की समस्या को दूर करने के लिये समर्पित कानून लाने के लिये संकल्पित हैं।

भारत द्वारा कार्रवाई की आवश्यकता:

  • अगले 20 वर्षों में भारत में बड़ी मात्रा में PV अपशिष्ट उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2050 तक यह विश्व भर में शीर्ष पाँच प्रमुख फोटोवोल्टिक अपशिष्ट उत्पादकों में से एक बन जाएगा।
  • इसलिये भारत को इस नई चुनौती के लिये तैयार करने हेतु स्पष्ट नीति निर्देशों, अच्छी तरह से स्थापित रीसाइक्लिंग रणनीतियों तथा अधिक सहयोग को स्थापित करने की आवश्यकता है। PV अपशिष्ट प्रबंधन में अंतराल को संबोधित करके भारत सतत् विकास को बढ़ावा देते हुए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था एवं प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2018)

  1. भारत प्रकाश- वोल्टीय इकाइयों में प्रयोग में आने वाले सिलिकॉन वेफर्स का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 
  2. सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण भारतीय सौर ऊर्जा निगम के द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: D

व्याख्या:

  • सिलिकॉन वेफर्स अर्द्धचालक के पतले स्लाइस होते हैं, जैसे-क्रिस्टलीय सिलिकॉन (c-Si), एकीकृत/इंटीग्रेटेड सर्किट का निर्माण और प्रकाश- वोल्टीय सेल के निर्माण के लिये उपयोग किया जाता है। चीन अब तक सिलिकॉन का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राज़ील का स्थान है। भारत सिलिकॉन एवं सिलिकॉन वेफर्स के शीर्ष पांँच उत्पादकों में शामिल नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग द्वारा किया जाता है, न कि भारतीय सौर ऊर्जा निगम द्वारा। अतः कथन 2 सही नहीं है।

प्रश्न. पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन की तुलना में सूर्य के प्रकाश से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लाभों का वर्णन कीजिये। इस उद्देश्य के लिये हमारी सरकार द्वारा क्या पहल की गई हैं? (मुख्य परीक्षा-2015)

स्रोत: द हिंदू

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