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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में वियतनाम का पहला मानद महावाणिज्य दूत

  • 13 Jul 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

लुक ईस्ट पॉलिसी, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, गलवान घाटी, आसियान, ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल 

मेन्स के लिये

भारत-वियतनाम संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वियतनाम ने वियतनाम और कर्नाटक राज्य के बीच व्यापार, निवेश, पर्यटन, शैक्षिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बंगलूरू में मानद महावाणिज्य दूत (Honorary Consul General in India) नियुक्त किया है।

  • बंगलूरू स्थित उद्योगपति एन. एस. श्रीनिवास मूर्थि को कर्नाटक के लिये वियतनाम का मानद महावाणिज्य दूत नियुक्त किया गया है।
  • यह भारत से वियतनाम के पहले मानद महावाणिज्य दूत हैं जिनकी नियुक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिये की गई है।

प्रमुख बिंदु

भारत-वियतनाम संबंध:

  • सांस्कृतिक संबंधों का इतिहास: भारत और वियतनाम के बीच सांस्कृतिक तथा आर्थिक संबंध दूसरी शताब्दी से हैं।
    • दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये वर्ष 2022 में विभिन्न स्मारक गतिविधियों हेतु सहमति व्यक्त की है।
  • साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष:
    • भारत ने वर्ष 1972 में आधिकारिक राजनयिक संबंध स्थापित होने से पहले ही अपने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वियतनाम के उपनिवेश-विरोधी संघर्ष का समर्थन किया था।
    • भारत ने शीत युद्ध (Cold War) की अवधि के दौरान वियतनाम संघर्ष (वियतनाम में अमेरिकी युद्ध) को खत्म करने के लिये हनोई के "चार बिंदुओं" (Four Point) का समर्थन किया।
    • भारत ने वर्ष 1970 के दशक के अंत में कम्पूचिया (Kampuchea) संकट (कंबोडियन-वियतनामी युद्ध) के दौरान भी वियतनाम का समर्थन किया था।
  • पूर्व की ओर देखो नीति: दोनों देशों के बीच संबंध तब और मज़बूत हुए जब भारत ने वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के साथ आर्थिक एकीकरण तथा राजनीतिक सहयोग के विशिष्ट उद्देश्य के साथ अपनी "लुक ईस्ट पॉलिसी" (Look East Policy) शुरू की।
    • वर्ष 2014 में 'लुक ईस्ट पॉलिसी' को 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' (Act East Policy) में बदल दिया गया था।
  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी: 21वीं सदी की नई सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए वर्ष 2016 में रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी (Comprehensive Strategic Partnership) तक बढ़ा दिया गया था।
  • रक्षा सहयोग:
    • वियतनाम को सैन्य उपकरणों की बिक्री: चार बड़े गश्ती जहाज़ों और कम दूरी की क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस (BrahMos) के लिये बातचीत चल रही है।
    •  वियतनाम के सशस्त्र बलों को सैन्य उपकरणों में प्रशिक्षण देना:  इसमें किलो-श्रेणी की पनडुब्बी (Kilo-class submarines) और सुखोई विमान (Sukhoi Aircraft) शामिल हैं।
    • सैन्य अभ्यास: विनबैक्स (VINBAX), (इन-वीपीएन) IN-VPN,  (बिलाती) BILAT।
  • भू-रणनीतिक अभिसरण: भारत और वियतनाम दोनों ही चीन के आक्रामक रुख को लेकर सशंकित हैं।
    • वस्तुतः चीन संपूर्ण दक्षिण चीन सागर (South China Sea) को अपना क्षेत्र घोषित करने के साथ ही हिंद महासागर में भी अपनी  दृढ़ता का दावा कर रहा है।
    • चीन ने विशेष रूप से स्प्रैटली द्वीप समूह की विवादित राजनीतिक स्थिति के आलोक में वियतनामी जल क्षेत्र में तेल की खोज को लेकर भारतीय सहयोग के बारे में अपनी आपत्ति जाहिर की गई।
    • भारत और वियतनाम इस क्षेत्र में सभी के लिये साझा सुरक्षा, समृद्धि और विकास हासिल करने हेतु  भारत की इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और इंडो-पैसिफिक पर आसियान (ASEAN’s) के आउटलुक के अनुरूप अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने पर सहमत हुए हैं।

क्षेत्रीय सहयोग:

  • भारत और वियतनाम संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व व्यापार संगठन के अलावा आसियान, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, मेकांग गंगा सहयोग (Mekong Ganga Cooperation) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय मंचों में एक-दूसरे को घनिष्ट रूप से सहयोग करते हैं।
  • वियतनाम द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने और एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग ( Asia-Pacific Economic Cooperation- APEC) में शामिल होने के भारत के प्रयास का समर्थन किया गया है।

आर्थिक सहयोग:

  • पारस्परिक लाभ हेतु व्यापार और आर्थिक संबंध, जिनमें विशेष रूप से आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (ASEAN- India Free Trade Agreement) पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद के वर्षों में काफी सुधार देखा गया है।
  • भारत अब वियतनाम के शीर्ष दस व्यापारिक भागीदारों में शामिल है।
  • भारत वियतनाम में त्वरित प्रभाव परियोजनाओं ( Quick Impact Projects- QIP), वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन, सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) तथा डिजिटल कनेक्टिविटी के माध्यम से विकास और क्षमता निर्माण में निवेश कर रहा है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग:

  • भारत और वियतनाम ने सहयोग को लेकर फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं:
    • शांतिपूर्ण उद्देश्यों, आईटी सहयोग, साइबर सुरक्षा के लिये बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग।
    • शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का उपयोग।
  • वियतनाम भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रमों के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का एक बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है।
  • आसियान-भारत सहयोग तंत्र के तहत वियतनाम में ‘सेंटर फॉर सैटेलाइट ट्रैकिंग और डेटा रिसेप्शन’ तथा एक इमेजिंग सुविधा स्थापित करने का प्रस्ताव विचाराधीन है।

आगे की राह:

  • सहयोग:
    • वैश्विक स्तर: भारत-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मुख्य रूप से चीन, भारत और वियतनाम द्वारा पेश की गई चुनौतियों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे बहुपक्षीय संस्थानों को  घनिष्ठ समन्वय के साथ काम करना चाहिये, जहाँ 2021 में भारत और वियतनाम दोनों अस्थायी सदस्य के रूप में चुने गए।
    • क्षेत्रीय स्तर: आसियान में वियतनाम की भूमिका भारत और आसियान के लिये क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर अधिक सहयोग को आसान बना सकती है।
      • आसियान के भीतर इंडोनेशिया जैसी कुछ बड़ी शक्तियों के भी दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख को देखते हुए उसके खिलाफ मज़बूत रुख अपनाने की संभावना है।
    • आर्थिक मोर्चा: दोनों देशों को चीन विरोधी भावनाओं के कारण उपलब्ध आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने की ज़रूरत है और कई निर्माण फर्मों ने चीन से हटने का फैसला किया है।
      • भारत को एक रणनीति बनानी चाहिये ताकि RCEP में शामिल न होने का भारत का रुख दोनों देशों के बीच व्यापार के विकास में बाधा न बने।
  • रक्षा सौदों में तेज़ी लाना: दोनों देशों को रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने हेतु बातचीत की प्रक्रिया में तेज़ी लानी चाहिये।
    • गलवान घाटी संघर्ष और चीन का वर्ष 1982 के समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के प्रति अनादरपूर्ण व्यवहार भारत के लिये अधिक महत्त्व रखता है।

स्रोत- द हिंदू

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