जैव विविधता और पर्यावरण
नए कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की अव्यवहार्यता
- 10 Sep 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, अक्षय ऊर्जा मेन्स के लिये:कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग हेतु उत्तरदायी कारक |
चर्चा में क्यों?
दो स्वतंत्र थिंक टैंक, ईएमबीईआर (EMBER) और क्लाइमेट रिस्क होराइज़न्स (Climate Risk Horizons) द्वारा तैयार की गई एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वित्तीय वर्ष 2030 तक बिजली की अपेक्षित वृद्धि को पूरा करने हेतु अतिरिक्त नई कोयला क्षमता (Additional New Coal Capacity) की आवश्यकता नहीं है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट की मुख्य बातें:
- वर्ष 2030 तक भारत की बिजली की चरम मांग 301 गीगावाट तक पहुंँच जाएगी, अगर यह 5% की वार्षिक वृद्धि दर (जो केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा किये गए अनुमानों के अनुरूप भी है) से बढ़ती है, तो भारत की नियोजित सौर क्षमता इसमें से अधिकांश को कवर कर सकती है।
- इसलिये नए कोयला संयंत्रों को शामिल करने के उद्देश्य से ‘ज़ोंबीयूनिट्स’ (zombie units) स्थापित की जाएँगी- जो मौजूद तो होंगी, लेकिन क्रियान्वयन में नहीं होंगी।
- इसके अलावा भारत इन अधिशेष संयंत्रों में निवेश न करके लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए बचा सकता है।
- एक बार व्यय करने के बाद यह निवेश डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) और उपभोक्ताओं को महंँगे अनुबंधों से बाँध देगा तथा सिस्टम को आवश्यकता से अधिक दक्षता से जोड़कर भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को भी खतरे में डाल सकता है।
- इसके अलावा इससे 43,219 करोड़ रुपए का वार्षिक नुकसान होगा जिसे भारत नवीकरणीय और भंडारण में निवेश कर सकता है।
- इस प्रकार रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि वित्त वर्ष 2030 तक कुल मांग वृद्धि को पूरा करने के लिये पहले से निर्माणाधीन क्षमता से अधिक कोयला क्षमता की आवश्यकता नहीं है।
- कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग हेतु उत्तरदायी कारक:
- सौर ऊर्जा आधारित उत्पादन, थर्मल आधारित ऊर्जा उत्पादन को प्रतिस्थापित कर रहा है, जिसके साथ ही सौर पैनलों की लागत में भी गिरावट आ रही है, इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव आ सकता है।
- इसके अलावा बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों जैसे नए प्रौद्योगिकी विकल्प सौर ऊर्जा को और अधिक बढ़ावा दे रहे हैं।
- दुनिया भर में पर्यावरण के मुद्दों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है और इसी के साथ सतत् विकास की अवधारणा ने विश्व स्तर पर केंद्रीय स्थान प्राप्त कर लिया है।
- कार्बन मुक्त ऊर्जा के उद्देश्य को साकार करने के लिये भारत ने मार्च 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (RE) से 175 गीगावाट की स्थापित क्षमता का लक्ष्य रखा है।
- इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भारत ने ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की स्थापना की है और ‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ का प्रस्ताव रखा है।
- सरकार द्वारा ‘पीएम कुसुम’ और ‘रूफटॉप सोलर स्कीम’ जैसी योजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रयास किये जा रहे हैं।
- सौर ऊर्जा आधारित उत्पादन, थर्मल आधारित ऊर्जा उत्पादन को प्रतिस्थापित कर रहा है, जिसके साथ ही सौर पैनलों की लागत में भी गिरावट आ रही है, इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव आ सकता है।
- कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को जारी रखने का महत्त्व:
- बीपी एनर्जी आउटलुक 2019 के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2017 के 56% से घटकर वर्ष 2040 में 48% हो जाएगी।
- हालाँकि यह अभी भी कुल ऊर्जा मिश्रण का लगभग आधा है और ऊर्जा के किसी भी अन्य स्रोत से काफी आगे है। इस प्रकार कोयले का प्रतिस्थापन करना आसान नहीं है।
- भूमि अधिग्रहण, वित्तपोषण और नीति से जुड़े मुद्दे अक्षय ऊर्जा योजनाओं के आड़े आ रहे हैं।
- बिजली क्षेत्र के अलावा स्टील और एल्यूमीनियम जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र भी कोयला आधारित बिजली पर निर्भर हैं।
- इसके अलावा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की क्षमता तात्कालिक पीक लोड को पूरा करने के लिये और नवीकरणीय ऊर्जा अनुपलब्धता की स्थिति में लोड को पूरा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- इसके अलावा भारत ने शुरू में सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने वाली फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) इकाइयों को स्थापित करने के लिये थर्मल पावर प्लांट हेतु वर्ष 2017 तक की समय-सीमा निर्धारित की थी लेकिन इसे विभिन्न क्षेत्रों हेतु वर्ष 2022 में समाप्त होने वाली अलग-अलग समय-सीमा के लिये स्थगित कर दिया गया था।
- बीपी एनर्जी आउटलुक 2019 के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2017 के 56% से घटकर वर्ष 2040 में 48% हो जाएगी।
आगे की राह
- विद्युत उत्पादन में इष्टतम ऊर्जा मिश्रण: ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों जैसे- कोयला, हाइड्रो, प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय (सौर, पवन) के माध्यम से विद्युत उत्पन्न होती है। एक इष्टतम ऊर्जा मिश्रण वह है जो इन उत्पादन स्रोतों के मिश्रण का सबसे कुशल तरीके से उपयोग करता है। यह इसलिये भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भविष्य में उत्पादन क्षमता मिश्रण लागत प्रभावी होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी होना चाहिये।
- कोयला आधारित इकाइयों के लिये नई प्रौद्योगिकियाँ: सरकार ने अधिक कुशल सुपरक्रिटिकल कोयला आधारित इकाइयों को चालू किया है और पुरानी व अक्षम कोयला आधारित इकाइयों को समाप्त किया जा रहा है। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने हेतु कई नई तकनीकों (जैसे कोयला गैसीकरण, कोयला लाभकारी आदि) का इस्तेमाल किया जा सकता है।