भारतीय राजनीति
निर्विरोध चुनावी विजय
- 30 Apr 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, नोटा, नियम 49-O, भारत का निर्वाचन आयोग, सामान्य वित्तीय नियम, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दल मेन्स के लिये:'निर्विरोध निर्वाचित होने' के परिणाम, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, NOTA की प्रभावशीलता |
स्रोत : द हिंदू
चर्चा में क्यों
हाल ही में गुजरात के सूरत लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया है।
- यह अन्य उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की अस्वीकृति और अन्य उम्मीदवारों द्वारा नामांकन वापस लेने के बाद होता है।
वैध नामांकन के लिये आवश्यकताएँ क्या हैं?
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 33 में वैध नामांकन की आवश्यकताएँ शामिल हैं।
- 25 वर्ष से अधिक आयु का मतदाता भारत के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ सकता है।
- उम्मीदवार का प्रस्तावक संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक होना चाहिये जहाँ नामांकन दाखिल किया जा रहा है।
- किसी मान्यता प्राप्त दल (राष्ट्रीय या राज्य) के मामले में, उम्मीदवार के पास एक प्रस्तावक होना आवश्यक है।
- गैर-मान्यता प्राप्त दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा खड़े किये गए उम्मीदवारों के लिये दस प्रस्तावकों की सदस्यता आवश्यक है।
- एक उम्मीदवार विभिन्न प्रस्तावकों के साथ अधिकतम चार नामांकन पत्र दाखिल कर सकता है।
- यह किसी उम्मीदवार के नामांकन को स्वीकार करने में सक्षम बनाता है, भले ही नामांकन पत्रों का एक सेट क्रम में हो।
- RPA की धारा 36 रिटर्निंग ऑफिसर (RO) द्वारा नामांकन पत्रों की जाँच से संबंधित कानून निर्धारित करती है।
- इसमें यह प्रावधान है कि RO किसी ऐसे दोष के लिये किसी भी नामांकन को अस्वीकार नहीं करेगा जो पर्याप्त नहीं है। हालाँकि, यह निर्दिष्ट करता है कि उम्मीदवार या प्रस्तावक के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं पाए जाने पर अस्वीकृति का आधार है।
- RPA, 1951 की धारा 53 (3) निर्विरोध चुनावों की प्रक्रिया से संबंधित है।
- इस प्रावधान के अनुसार, यदि ऐसे उम्मीदवारों की संख्या भरी जाने वाली सीटों की संख्या से कम है, तो RO तुरंत ऐसे सभी उम्मीदवारों को निर्वाचित घोषित करेगा।
- RO की गतिविधियाँ अधिनियम की धारा 33 द्वारा शासित होती हैं, जो नामांकन पत्रों की प्रस्तुति और वैध नामांकन के लिये आवश्यकताओं से संबंधित है।
सूरत लोकसभा क्षेत्र में नामांकन अस्वीकृति का कारण क्या है?
- सूरत निर्वाचन क्षेत्र के लिये कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार ने नामांकन पत्र के तीन सेट दाखिल किये।
- BJP के एक कार्यकर्त्ता ने कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि उनके प्रस्तावकों के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं थे।
- RO को प्रस्तावकों से शपथ पत्र प्राप्त हुए जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये थे।
- चूँकि प्रस्तावकों को निर्धारित समय के भीतर RO के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सका, इसलिये नामांकन पत्रों के सभी तीन सेट खारिज़ कर दिये गए।
- कॉन्ग्रेस पार्टी के स्थानापन्न उम्मीदवार का नामांकन भी इसी कारण से खारिज़ कर दिया गया था।
- इससे BJP उम्मीदवार के निर्विरोध विजेता घोषित होना तय हुआ।
नोट
भारत में 35 उम्मीदवार ऐसे हैं जो लोकसभा के लिये निर्विरोध चुने गए हैं। उनमें से अधिकांश स्वतंत्रता के बाद पहले दो दशकों में थे और आखिरी बार वर्ष 2012 में थे
सबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं?
- RPA, 1951 के साथ पढ़े गए संविधान के अनुच्छेद 329 (b) में प्रावधान है कि संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष चुनाव याचिका के अलावा किसी भी निर्वाचन पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।
- जिन आधारों पर ऐसी चुनाव याचिका दायर की जा सकती है उनमें से एक नामांकन पत्रों की अनुचित अस्वीकृति है। इसलिये उपलब्ध कानूनी सहायता गुजरात उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर करना है।
- RP अधिनियम में यह प्रावधान है कि उच्च न्यायालय छह माह के भीतर ऐसे परीक्षणों को समाप्त करने का प्रयास करेंगे, जिसका अतीत में ज्यादातर पालन नहीं किया गया है।
- चुनाव याचिकाओं का शीघ्र निस्तारण सही दिशा में एक कदम होगा।
निर्विरोध निर्वाचन:
रिटर्निंग अधिकारियों के लिये ECI की हैंडबुक में कहा गया है कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है, तो उसे उम्मीदवारी वापस लेने की समय सीमा के तुरंत बाद निर्वाचित घोषित किया जाना चाहिये, और उस स्थिति में मतदान आवश्यक नहीं है। इसे निर्विरोध चुनाव कहा जाता है।
निर्विरोध निर्वाचन में परिणाम घोषित करने को लेकर क्या चिंताएँ हैं?
- लोकतांत्रिक निहितार्थ:
- निर्विरोध जीत प्रतिस्पर्धी निर्वाचन प्रक्रिया के बिना निर्वाचित उम्मीदवारों की घोषणा की वैधता पर प्रश्न उठाती है, जो संभावित रूप से प्रतिनिधित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमज़ोर करती है।
- प्रणाली चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का पक्ष लेती है, क्योंकि RPA पूर्ण बहिष्कार की अनुमति देता है, जिसके परिणामस्वरूप सभी उम्मीदवारों को शून्य वोट मिलते हैं।
- यह लोकतंत्र के विचार का खंडन करता है और संभावित सुधारों पर प्रश्न उठाता है जैसे जीतने वाले उम्मीदवारों के लिये वोटों का न्यूनतम प्रतिशत लागू करना या निर्विरोध सीटों को नामांकित व्यक्तियों को हस्तांतरित करना।
- मतदाता सहभागिता और विकल्प:
- निर्विरोध चुनाव मतदाताओं की भागीदारी और पसंद को सीमित कर देते हैं, जिससे मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता है।
- निर्विरोध चुनाव में विजेता तो होता है परंतु कोई "पराजित" पार्टी नहीं होती। जो लोग नियमों के अंतर्गत खारिज़ कर दिये जाते हैं या स्वेच्छा से पीछे हट जाते हैं उन्हें प्रभावी रूप से चुनाव लड़ने के अवसर से वंचित कर दिया जाता है।
- यह प्रक्रिया मतदाताओं को उपरोक्त में से कोई नहीं (NOTA) विकल्प का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देती है, जिसे मतदाताओं की धारणाओं के बारे में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को "प्रबुद्ध" करने के लिये प्रयुक्त किया गया था।
- हालाँकि, NOTA विकल्प की "दंतहीन बाघ" के रूप में आलोचना की गयी है क्योंकि पिछले पाँच वर्षों में 1.29 करोड़ से अधिक वोट प्राप्त करने के बावजूद यह चुनाव प्रक्रिया को किसी भी सार्थक तरीके से प्रभावित नहीं करता है।
- ऐसे उदाहरण हैं जहाँ राजनीतिक दलों को NOTA से भी कम वोट मिले हैं।
- हालाँकि, NOTA विकल्प की "दंतहीन बाघ" के रूप में आलोचना की गयी है क्योंकि पिछले पाँच वर्षों में 1.29 करोड़ से अधिक वोट प्राप्त करने के बावजूद यह चुनाव प्रक्रिया को किसी भी सार्थक तरीके से प्रभावित नहीं करता है।
- चुनाव आयोग का कहना यह है कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को अभी भी विजेता घोषित किया जाएगा, भले ही NOTA वोटों की संख्या कितनी भी हो।
- हालाँकि, महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों के लिये NOTA को एक काल्पनिक उम्मीदवार के रूप में माना जाता है, और यदि NOTA को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, तो ऐसी स्थिति में आयोग फिर से मतदान कराएगा।
- उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में चुनाव आयोग से उन निर्वाचन क्षेत्रों में नए सिरे से चुनाव कराने की याचिका पर जवाब देने को कहा, जहाँ NOTA को अधिकांश वोट मिले थे।
- चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-O के अंतर्गत, मतदाता वोट देने से इंकार कर सकते हैं तथा इसके लिये पीठासीन अधिकारी को रिकॉर्ड पर टिप्पणी करनी होगी।
- ऐसा विकल्प मतदाता को पार्टियों द्वारा खड़े किये जा रहे उम्मीदवारों के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने का अधिकार देता है।
- नियम 49-O का प्रयोग करने वाले मतदाता और NOTA विकल्प का प्रयोग करने वाले मतदाता के बीच अंतर है।
- पूर्व के मामले में ऐसे मतदाता द्वारा अपनी गोपनीयता से समझौता करने की संभावना अधिक है, क्योंकि मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से पालन की जाने वाली प्रक्रिया होती है। हालाँकि, बाद वाले मामले में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है।
वित्तीय नियमों और चुनावी प्रक्रिया में समानता :
- सामान्य वित्तीय नियम (GFRs) जो भारत के सार्वजनिक वित्त से संबंधित हैं, सार्वजनिक खरीद में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
- जबकि GFRs मानकीकरण या आपात स्थिति जैसे कुछ मामलों में 'एकल निविदा पूछताछ' की अनुमति देते हैं, वे यह भी कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा की कमी केवल बोली लगाने वालों की संख्या से निर्धारित नहीं होनी चाहिये।
- यदि खरीद पर्याप्त रूप से विज्ञापित की गई थी और मानदंड अत्यधिक प्रतिबंधात्मक नहीं थे, तो एक भी बोली को वैध माना जा सकता है।
- यह RPA, वर्ष 1951 के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के समान है जहाँ मतदाताओं को उपलब्ध विकल्पों में से चयन करना होता है। हालाँकि, यदि निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिये केवल एक 'एकल बोलीदाता' (अर्थात उम्मीदवार) है, तो मतदाता को प्रभावी रूप से चयन प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है।
- यह एक द्वंद्व उत्पन्न करता है, जहाँ बिना वोट वाला उम्मीदवार संसद में पूर्ण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
आगे की राह
- फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) प्रणाली में संशोधन:
- FPTP प्रणाली को साधारण बहुमत प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है। इस मतदान पद्धति में किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
- जबकि FPTP अपेक्षाकृत सरल है, यह हमेशा वास्तव में प्रतिनिधि जनादेश की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि उम्मीदवार किसी चुनाव में आधे से कम वोट प्राप्त करने के बावजूद भी जीत सकता है।
- FPTP प्रणाली को साधारण बहुमत प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है। इस मतदान पद्धति में किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
- महत्त्वपूर्ण जनादेश के बिना चुने जाने वाले उम्मीदवारों के मुद्दे को संबोधित करने के लिये जीतने वाले उम्मीदवार के लिये आवश्यक वोटों का न्यूनतम प्रतिशत शुरू करने पर विचार करना
- उम्मीदवारों की कमी को पूरा करना:
- सीट को नामांकित श्रेणी में स्थानांतरित करने की संभावना का पता लगाइए, जहाँ यदि कोई उम्मीदवार खुद को चुनाव के लिये पेश नहीं करता है तो भारत के राष्ट्रपति निर्धारित योग्यता के अनुसार किसी व्यक्ति को नामांकित कर सकते हैं।
- NOTA विकल्प को मज़बूत बनाना:
- NOTA विकल्प को अधिक प्रभावशाली बनाने के तरीकों की जाँच की जानी चाहिये, संभावित रूप से इसे एक वैध वोट के रूप में मानकर और इसे सार्थक तरीके से चुनावी प्रक्रिया में शामिल करके, यह सुनिश्चित करते हुए कि मतदाता का असंतोष चुनाव परिणामों में परिलक्षित होता है।
- चुनाव याचिकाओं का शीघ्र निपटान:
- नामांकन अस्वीकृति या चुनावी विवादों के मामलों में दायर चुनाव याचिकाओं का त्वरित समाधान सुनिश्चित कीजियेI
- उच्च न्यायालयों को समय पर न्याय वितरण और जवाबदेही को बढ़ावा देते हुए छह माह की निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत ऐसे परीक्षणों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. निर्विरोध चुनावी जीत के लोकतांत्रिक निहितार्थों का आकलन कीजिये, विशेष रूप से प्रतिनिधित्व और मतदाता भागीदारी के संदर्भ में। |
प्रश्न. भारतीय चुनाव प्रणाली में पहचानी गई चुनौतियों जैसे नामांकन अस्वीकृति, प्रतिस्पर्धा की कमी और मतदाता मोहभंग के समाधान के लिये सुधारों का प्रस्ताव रखियेI
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. आदर्श- संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये।(2022) प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |
नोट