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शासन व्यवस्था

परिसीमन पर दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंता

  • 08 Feb 2023
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन, परिसीमन आयोग, लोकसभा।

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, लोकसभा में सीटों की कमी के कारण दक्षिणी राज्यों की समस्याएँ और सिफारिशें, वैधानिक निकाय, परिसीमन प्रक्रिया।

चर्चा में क्यों?

जैसा कि भारत अगली जनगणना की तैयारी कर रहा है, यह पर्यवेक्षण का विषय है कि जनसंख्या के आधार पर राज्यों की लोकसभा सीटों का परिसीमन और केंद्रीय धन का एक छोटा हिस्सा आवंटित करना उन दक्षिणी राज्यों के लिये अनुचित हो सकता है, जिन्होंने उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया है।

  • तर्क यह है कि दक्षिणी राज्यों को उनकी सफलता पर हतोत्साहित किये जाने के बजाय जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के उनके प्रयासों के लिये पहचाना और पुरस्कृत किया जाना चाहिये। हालाँकि राष्ट्रीय परिसीमन प्रक्रिया ने लोकसभा में राज्यों के असमान प्रतिनिधित्त्व के बारे में चिंता को उजागर किया है।

परिसीमन:  

  • परिचय:  
    • परिसीमन से तात्पर्य किसी देश में आबादी का प्रतिनिधित्त्व करने हेतु किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है। 
    • परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 में अधिनियमित किया गया था।
      • केंद्र सरकार अधिनियम लागू होने के बाद परिसीमन आयोग का गठन करती है।
    • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 एवं 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • पहला परिसीमन वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति द्वारा (चुनाव आयोग की मदद से) किया गया था।
  • पृष्ठिभूमि: 
    • लोकसभा की राज्यवार संरचना को बदलने वाला अंतिम परिसीमन प्रयास वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1976 में पूरा हुआ।
    • भारत का संविधान यह आदेश देता है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर होना चाहिये ताकि सभी राज्यों में सीटों का जनसंख्या से अनुपात समान हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का मूल्य लगभग समान हो, भले ही वे किसी भी राज्य में रहते हों। 
      • हालाँकि इस प्रावधान से जनसंख्या नियंत्रण में कम दिलचस्पी लेने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। 
    • इन परिणामों से बचने के लिये वर्ष 1976 में इंदिरा गांधी के आपातकालीन शासन के दौरान वर्ष 2001 तक परिसीमन को निलंबित करने हेतु संविधान में संशोधन किया गया था। एक अन्य संशोधन ने इसे वर्ष 2026 तक स्थगित कर दिया। यह आशा की गई थी कि देश इस समय तक एक समान जनसंख्या वृद्धि दर हासिल कर लेगा।
  • आवश्यकता: 
    • जनसंख्या के समान वर्गों को समान प्रतिनिधित्त्व प्रदान करना। 
    • भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन ताकि चुनाव में एक राजनीतिक दल को दूसरों की अपेक्षा लाभ न हो। 
    • "एक वोट एक मूल्य" के सिद्धांत का पालन करना।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है।
    • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission):

दक्षिणी राज्यों हेतु परिसीमन किस प्रकार अनुचित है? 

  • विकास: 
    • 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से दक्षिणी राज्यों की आर्थिक स्थिति में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है। वर्ष 1990 के दशक से पहले उत्तरी राज्य आय और गरीबी के स्तर के मामले में दक्षिणी राज्यों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे।
      • हालाँकि हाल के वर्षों में दक्षिणी राज्यों ने अपने आर्थिक प्रदर्शन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिसके कारण गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है और आय के स्तर में वृद्धि हुई है।
    • इस आर्थिक बदलाव का इस क्षेत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है तथा दक्षिणी राज्यों की वृद्धि एवं विकास में मदद मिली है। 
    • केवल तीन राज्यों- कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पूर्व के 13 राज्यों से अधिक है।  
  • शैक्षिक और स्वास्थ्य परिणाम:
    • पिछली शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) के आँकड़ों से पता चलता है कि दक्षिणी राज्यों ने स्कूलों में नामांकित बच्चों के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है और उनके उत्तरी समकक्षों की तुलना में सीखने के बेहतर परिणाम आए हैं।
    • इसके अलावा दक्षिणी राज्यों में स्नातकों का एक उच्च अनुपात कौशल के एक विशिष्ट सेट के अधिक प्रसार को इंगित करता है।  
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश की केवल 5% आबादी स्नातक थी, जबकि तमिलनाडु में लगभग 8% आबादी स्नातक थी।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान तमिलनाडु में दिसंबर 2021 तक 78.8 मिलियन की आबादी के लिये 314 परीक्षण केंद्र थे और उत्तर प्रदेश में 235 मिलियन की आबादी के लिये केवल 305 कोविड परीक्षण केंद्र थे, जो स्पष्ट रूप से अपर्याप्त थे।
  • शासन संबंधी कारक: 
    • यदि दक्षिणी राज्यों में शिक्षा और स्वास्थ्य के परिणाम बेहतर हैं, तो इसका अर्थ यह भी है कि वहाँ परखने और निर्णय लेने की क्षमता की गुणवत्ता काफी बेहतर होनी चाहिये।
    • दक्षिणी राज्यों में बेहतर सार्वजनिक सेवाओं और उच्च नागरिक सक्रियता से पता चलता है कि वहाँ के मतदाताओं की उत्तर की तुलना में बेहतर शासन के लिये मतदान करने की अधिक संभावना है।
  • उत्तरी राज्यों के लिये लाभ: 
    • जनसंख्या पैटर्न के आधार पर राज्यों में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का मौजूदा वितरण उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे आबादी वाले राज्यों के पक्ष में झुका हुआ है, जबकि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या कम है।
    • यदि परिसीमन होता है, तो अगले परिसीमन प्रक्रिया के दौरान दक्षिणी राज्यों को उत्तरी राज्यों की तुलना में उन्हें आवंटित सीटों की संख्या में कमी का सामना करना पड़ेगा।
      • इसलिये चुनावी प्रतिनिधित्त्व के दौरान यह ध्यान रखा जाना चाहिये कि लोगों की संख्या नहीं अपितु उनकी गुणवत्ता है जो निर्णायक कारक होनी चाहिये।

इस संबंध में मुद्दे:

  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्त्व: वर्ष 2019 के शोध पत्र इंडियाज़ इमर्जिंग क्राइसिस ऑफ रिप्रेज़ेंटेशन के अनुसार, यदि परिसीमन को जनगणना (2026 के बाद सबसे पहले निर्धारित) वर्ष 2031 के अनुसार किया जाता है, तो अकेले बिहार और उत्तर प्रदेश को कुल मिलाकर 21 सीटों का लाभ होगा, जबकि तमिलनाडु तथा केरल को कुल मिलाकर 16 सीटों का नुकसान होगा।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को प्रभावित करना: परिसीमन और सीटों के पुन: आवंटन से न केवल दक्षिणी राज्यों को सीटों का नुकसा न हो सकता है, बल्कि उत्तर में उनके समर्थन वाले राजनीतिक दलों के लिये सीटों में वृद्धि का कारण भी हो सकता है। यह संभावित रूप से उत्तर की ओर और दक्षिण से दूर शक्ति के बदलाव का कारण बन सकता है।
    • यह कवायद प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों के विभाजन को भी प्रभावित करेगी। 
  • अपर्याप्त धन: 15वें वित्त आयोग द्वारा वर्ष 2011 की जनगणना को अपनी सिफारिश के आधार के रूप में प्रयोग करने के बाद दक्षिणी राज्यों द्वारा संसद में धन एवं प्रतिनिधित्त्व कम होने के बारे में चिंताएँ उठाई गईं।
    • इससे पहले वर्ष 1971 की जनगणना का उपयोग राज्यों को वित्तपोषण और कर हस्तांतरण सिफारिशों के आधार के रूप में प्रयोग किया गया था। 
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: आपातकाल के दौरान वर्ष 2001 की जनगणना तक के लिये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1976 में सीटों के संशोधन को निलंबित कर दिया गया था। संविधान (84वें संशोधन) अधिनियम, 2001 के अनुसार, यह प्रतिबंध वर्ष 2001 में संसद द्वारा 2026 के बाद की दशकीय जनगणना तक बढ़ाया गया था, जो 2031 के लिये निर्धारित है।
    • यदि वर्ष 2031 के बाद लोकसभा सीटों के पुनर्वितरण का निर्णय लिया जाता है तो विधायिका और नीति निर्धारकों को पिछले 60 वर्षों के दौरान देश के जनसांख्यिकीय एवं राजनीतिक परिवर्तनों को ध्यान में रखना होगा

Population-Projection

सुझाव:

  • एक ठोस योजना का निर्माण: राजनीतिक अथवा नीतिगत चुनौतियों के कारण बिना किसी और देरी के वर्ष 2031 के बाद संसाधनों को फिर से आवंटित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता। यह वित्त और प्रतिनिधित्त्व के मामले में दक्षिणी राज्यों के लिये निश्चितता और स्थिरता प्रदान करेगा।
  • सीटों की संख्या में वृद्धि: लोकसभा में सीटों की संख्या में वृद्धि किये जाने से लाभ यह है कि संसद सदस्य (सांसद) छोटे निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व कर सकेंगे। अधिक तेज़ी से और प्रभावी ढंग से निर्णय लेने के लिये प्रशासनिक एजेंसियों पर बड़ी आबादी का बोझ नहीं पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप शासन अधिक कुशल होगा।
    • जैसा कि राजनेताओं के लिये विशेष क्षेत्रों या राज्यों में सीटों को छोड़ देने के बजाय सीटों को बढ़ाने के लिये सहमत होना आसान है, सीटों की संख्या में वृद्धि को राजनीतिक रूप से अधिक व्यवहार्य विकल्प माना जाता है।
  • मौजूदा स्थिति को बनाए रखना: संसद में सीटों की कुल संख्या बढ़ाने को लेकर यह सुनिश्चित करने के लिये विचार किया जा सकता है कि कोई भी राज्य वर्तमान में मौजूद सीटों को नहीं खोता है। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के विचाराधीन हो सकता है। 
  • पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व: खबरों के मुताबिक, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के नए लोकसभा डिज़ाइनरों को निचले सदन में कम-से-कम 888 सीटों को ध्यान में रखते हुए निर्माण करने का निर्देश दिया गया था।
    • यह सभी राज्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व की सुविधा प्रदान करेगा और किसी भी राज्य की मौजूदा सीटों की संख्या में कमी को रोकेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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