भारतीय राजनीति
अनुच्छेद 355 और संवैधानिक तंत्र में व्यवधान
- 25 Mar 2022
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प्रिलिम्स के लिये:संवैधानिक तंत्र में व्यवधान, राष्ट्रीय आपातकाल, संवैधानिक आपातकाल, वित्तीय आपातकाल। मेन्स के लिये:भारतीय संविधान, आपातकालीन प्रावधान, आपातकाल के प्रकार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले में चुनाव के बाद की हिंसा का हवाला देते हुए कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से संविधान के अनुच्छेद 355 को लागू करने का आग्रह किया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करे।
- याचिकाकर्त्ता द्वारा संवैधानिक तंत्र में उत्पन्न व्यवधान पर अनुच्छेद 355 लगाने की मांग की गई है।
प्रमुख बिंदु
अनुच्छेद 355:
- अनुच्छेद 355 संविधान में उस प्रावधान को संदर्भित करता है जिसमें कहा गया है कि "संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे, साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करे कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करे।"
- अनुच्छेद 355 आपातकालीन प्रावधानों का हिस्सा है जो संविधान के भाग XVIII में शामिल अनुच्छेद 352 से अनुच्छेद 360 तक में निहित है।
अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 355 के बीच संबंध:
- अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने या व्यवधान/अवरोध की स्थिति उत्पन्न होने पर राज्य सरकार के कार्यों को अपने अधीन ले लेता है।
- इसे लोकप्रिय रूप से 'राष्ट्रपति शासन' के रूप में जाना जाता है।
- 'राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार: राष्ट्रपति शासन को अनुच्छेद 356 के तहत दो आधारों पर घोषित किया जा सकता है:
- अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा जारी करने का अधिकार देता है। यदि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार चलने में सक्षम न हो तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 का उपयोग कर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।
- अनुच्छेद 365 के अनुसार, जब भी कोई राज्य केंद्र के किसी निर्देश का पालन करने या उसे लागू करने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति के लिये यह मानना वैध होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य की सरकार संविधान के प्रावधान के अनुसार नहीं चल सकती है।
- संसदीय अनुमोदन और अवधि: राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रपति शासन के परिणाम: जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है तो राष्ट्रपति को निम्नलिखित असाधारण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं:
- वह राज्य सरकार के कार्यों और राज्यपाल या राज्य में किसी अन्य कार्यकारी प्राधिकरण में निहित शक्तियों को ले सकता है।
- वह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद द्वारा किया जाना है।
- वह राज्य में किसी भी निकाय या प्राधिकरण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के निलंबन सहित अन्य सभी आवश्यक कदम उठा सकता है।
- न्यायिक समीक्षा का दायरा: वर्ष 1975 के 38वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 356 को अंतिम और निर्णायक रूप से लागू करने में राष्ट्रपति की संतुष्टि, जिसे किसी भी आधार पर किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जाएगी।
- लेकिन इस प्रावधान को बाद में 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा हटा दिया गया था, जिसका अर्थ था कि राष्ट्रपति की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है।
आपातकालीन प्रावधान:
- ये प्रावधान केंद्र सरकार को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
- भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिये गए हैं।
- हालाँकि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन वीमर (जर्मन) संविधान से लिया गया है।
- आपातकालीन प्रावधानों का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता एवं सुरक्षा, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था और संविधान की रक्षा करना है।
- संविधान तीन प्रकार की आपात स्थितियों को निर्धारित करता है:
- राष्ट्रीय आपातकाल
- संवैधानिक आपातकाल
- वित्तीय आपातकाल
राष्ट्रीय आपातकाल का अर्थ:
- राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जा सकती है। संविधान इस प्रकार की आपातस्थिति को दर्शाने हेतु 'आपातकाल की उद्घोषणा' अभिव्यक्ति का प्रयोग करता है।
- घोषणा के आधार:
- अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है, जब भारत या उसके एक हिस्से की सुरक्षा को युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो।
- राष्ट्रपति युद्ध या सशस्त्र विद्रोह या बाह्य आक्रमण की वास्तविक घटना से पहले ही राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
- जब 'युद्ध' या 'बाह्य आक्रमण' के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है, तो इसे 'बाह्य आपातकाल' के रूप में जाना जाता है।
- दूसरी ओर, जब 'सशस्त्र विद्रोह' के आधार पर आपातकाल की घोषणा की जाती है, तो इसे 'आंतरिक आपातकाल' के रूप में जाना जाता है।
- 'सशस्त्र विद्रोह' शब्द को 44वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। इस शब्द से पहले इसे ‘आंतरिक अशांति’ के रूप में जाना जाता था।
वित्तीय आपातकाल का अर्थ:
- घोषणा के आधार: अनुच्छेद 360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है यदि वह इस बात से संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसके कारण भारत या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या क्रेडिट को खतरा है।
मौलिक अधिकारों पर आपातकाल का प्रभाव:
- अनुच्छेद 358 और 359 मौलिक अधिकारों पर राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव का वर्णन करते हैं। इन दो प्रावधानों को नीचे समझाया गया है:
- अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है तो अनुच्छेद 19 के तहत सभी छह मौलिक अधिकार स्वतः निलंबित हो जाते हैं।
- अन्य मौलिक अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 359 के तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान आदेश द्वारा मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन हेतु किसी भी अदालत में जाने के अधिकार को निलंबित करने की शक्ति प्राप्त है।
- हालाँकि यह ज्ञातव्य है कि राष्ट्रपति शासन और वित्तीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं होते हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. किस पंचवर्षीय योजना के दौरान आपातकाल लगाया गया था, नए चुनाव हुए थे और जनता पार्टी चुनी गई थी? (2009) (a) तीसरी उत्तर: (c) किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के निम्नलिखित में से कौन-से परिणामों का होना आवश्यक नहीं है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |