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कृषि

भारत में कृषि निर्यात संवृद्धि की स्थिरता संबंधी चिंताएँ

  • 15 Nov 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चाय, चीनी, फसल प्रतिरूप, राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना।  

मेन्स के लिये:

भारत में सतत् कृषि से संबंधित चुनौतियाँ, सतत् कृषि से संबंधित सरकारी पहल। 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के कृषि निर्यात (विशेष रूप से चाय और चीनी) में वृद्धि से भारत की आर्थिक संवृद्धि में योगदान मिला है। हालाँकि इस तीव्र वृद्धि से पर्यावरणीय प्रभाव, संसाधन प्रबंधन एवं श्रम स्थितियों के संबंध में स्थिरता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।

नोट: भारत, विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पाद निर्यातकों (जिसका निर्यात वर्ष 2022-2023 में 53.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो वर्ष 2004-2005 के 8.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी अधिक है) में से एक है, जिसमें दो दशकों से भी कम समय में छह गुना की वृद्धि हुई है।

  • यह निर्यात भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में निर्णायक है लेकिन इसमें तीव्र वृद्धि से उत्पादन, प्रसंस्करण एवं वितरण प्रणालियों की स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।

कृषि में स्थिरता का क्या तात्पर्य है?

  • आर्थिक स्थिरता: निर्यात आर्थिक रूप से लाभकारी है लेकिन इसमें स्थिरता आवश्यक है। इसमें संसाधनों को कम किये बिना दीर्घकालिक उत्पादकता बनाए रखना शामिल है।
  • पारिस्थितिकी स्थिरता: प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना, रसायनों के उपयोग को न्यूनतम करना तथा जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करना यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि कृषि प्रणालियों से पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे।
  • सामाजिक स्थिरता: श्रम अधिकार, न्यूनतम  मजदूरी और सुरक्षित कार्य स्थितियों जैसे मुद्दों को हल करना, न्यायसंगत एवं धारणीय कृषि प्रणालियों के लिये आवश्यक है।
  • समयावधि दृष्टिकोण: किसी फसल की संपूर्ण समयावधि (बुवाई पूर्व से लेकर कटाई के बाद के चरणों तक) में स्थिरता पर विचार किया जाना चाहिये, न कि केवल उत्पादन के दौरान।

चाय और चीनी उद्योग से इस स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  • चाय: 
    • निर्यात वृद्धि: भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा (जिसका निर्यात वर्ष 2022-2023 में 793.78 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा) चाय निर्यातक है। इसका निर्यात मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात, रूस, ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूनाइटेड किंगडम में हुआ।
  • चाय उत्पादन में स्थिरता संबंधी चिंताएँ:
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष: 70% चाय बागान वनों के निकट हैं जिसके कारण हाथियों जैसे वन्यजीवों के साथ अक्सर संघर्ष होने से फसलों एवं बागानों को नुकसान होता है।
    • रासायनिक उपयोग: चाय की खेती में सिंथेटिक कीटनाशकों के व्यापक उपयोग, जिसमें डाइक्लोरोडाइफेनिलट्राइक्लोरोइथेन (Dichlorodiphenyltrichloroethane- DDT) और एंडोसल्फान जैसे हानिकारक रसायन शामिल हैं, से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं और अंतिम उत्पाद में रासायनिक अवशेष बढ़ जाते हैं।
    • श्रम मुद्दे: चाय बागान श्रमिकों में आधे से अधिक महिलाएँ हैं, इसलिये कम वेतन, खतरनाक कार्य स्थितियाँ और श्रम कानूनों का अपर्याप्त प्रवर्तन महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
      • बागान श्रम अधिनियम, 1951 में श्रमिकों की सुरक्षा को अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन इसके प्रावधानों को शायद ही कभी पूरी तरह से लागू किया जाता है।
  • चीनी:
    • निर्यात वृद्धि: विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश भारत, जिसका वैश्विक उत्पादन में लगभग 20% का योगदान है। 
    • चीनी निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 1,177 मिलियन अमेरिका डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 4,600 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 64.90% की वृद्धि को दर्शाता है। यह 121 देशों को चीनी निर्यात करता है।
    • आर्थिक प्रभाव: लगभग 50 मिलियन किसानों और चीनी मिलों में 500,000 अतिरिक्त श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है। नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) के अनुसार, इस उद्योग का वार्षिक कारोबार लगभग 1 लाख करोड़ रुपए है।
  • चीनी उद्योग में स्थिरता संबंधी चिंताएँ:
    • जल प्रबंधन: गन्ने की फसल को प्रति किलोग्राम चीनी के लिये 1,500 से 2,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जो भारत के जल संसाधनों पर दबाव डालता है। फसल क्षेत्र के 25% हिस्से को कवर करने के बावजूद, गन्ना और धान 60% सिंचाई जल का उपभोग करते हैं, जिससे अन्य फसलों के लिये उपलब्धता सीमित हो जाती है।
    • जैव विविधता पर प्रभाव: कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ने की व्यापक खेती ने घास के मैदानों और सवाना के मैदानों का स्थान ले लिया है, जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुँचा है और वन्यजीवों के आवासों में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।
    • श्रम और कार्य परिस्थितियाँ: चीनी उद्योग के कर्मचारी अक्सर कर्ज के चक्र में फँस जाते हैं, उन्हें कठोर परिस्थितियों में लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है। बढ़ता तापमान उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत को और भी खराब कर देता है।

स्थिरता संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • चाय उद्योग में स्थिरता: जलवायु-प्रतिरोधी चाय किस्मों का उपयोग करना तथा जलवायु जोखिमों को कम करने के लिये कृषि वानिकी प्रथाओं को लागू करना। 
    • यह सुनिश्चित करना कि किसानों को प्रत्यक्ष बाज़ार पहुँच और प्रमाणित उत्पादों के लिये प्रीमियम के माध्यम से लाभ का उचित हिस्सा मिले।
    • बागानों के आसपास मानव-वन्यजीव संपर्क को प्रबंधित करने के लिये बेहतर तरीके अपनाए जाने चाहिये। स्वस्थ्य चाय उत्पादन के लिये अधिकतम अवशेष सीमा की सख्त निगरानी की आवश्यकता है।
    • उपज में सुधार लाने और पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम करने के लिये सटीक कृषि, कृषि वानिकी और एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) जैसी संधारणीय कृषि तकनीकों को एकीकृत करना।
  • चीनी उद्योग में स्थिरता: जल संरक्षण के लिये ड्रिप सिंचाई जैसी सतत् सिंचाई पद्धतियों को अपनाना।
    • ड्रिप सिंचाई अपनाने से पानी का उपयोग 40-50% तक कम हो सकता है, जिससे खेती अधिक संसाधन-कुशल हो जाएगी।
    • गन्ने के उप-उत्पादों जैसे खोई (जैव ऊर्जा के लिये), विनसे (उर्वरक के रूप में) और गन्ने का अवशेष (बायोमास या पशु आहार के लिये) का उपयोग करने से अपशिष्ट में कमी आती है और संसाधन दक्षता में सुधार होता है, जिससे चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
    • चीनी मीलों को बायोरिफाइनरियों में परिवर्तित कर अपशिष्ट उत्पादों का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये किया जा सकता है, जिससे उद्योग अधिक आत्मनिर्भर बन जाएंगे और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाएगी।
    • कृषि मज़दूरों और मिल श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य स्थितियाँ, उचित मजदूरी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करना।

सतत् कृषि आर्थिक विकास प्राप्त करने हेतु क्या किया जा सकता है?

  • सतत् फसल चयन को प्रोत्साहित करना: कदन्न (मिल्लेट्स) जैसी कठोर परिस्थितियोंअन में अनुकूल फसलों को बढ़ावा देना, जो घरेलू उपयोग और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक संधारणीय विकल्प हैं, मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि कर न्यूनतम इनपुट के साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करती है। 
    • भारत का कदन्न निर्यात वर्ष 2020-21 में 26.97 मिलियन अमेरिका डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 75.45 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया, जो आर्थिक विकास को समर्थन देने वाली पर्यावरण अनुकूल फसल के रूप में उनके मूल्य को रेखांकित करता है।
  • दोहरी मांग आधारित प्रबंधन: भारत का कृषि क्षेत्र एक बड़े घरेलू बाज़ार और बढ़ते निर्यात बाज़ार का समर्थन करता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव या विशिष्ट वस्तुओं पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिये घरेलू ज़रूरतों के साथ निर्यात को संतुलित करना।
  • आपूर्ति शृंखला निर्भरता को मज़बूत करना: स्थिरता को प्रभावित करने वाली आपूर्ति शृंखला निर्भरता को मज़बूत करना। शृंखला में स्थिरता लक्ष्यों को एकीकृत करने के लिये सहयोग और पारदर्शिता को बढ़ावा देना।
  • पर्यावरणीय सुरक्षा: प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त किये बिना सतत् उत्पादन स्तर बनाए रखने के लिये पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर देना।
    • पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को लागू करना, जैसे कि जल का कम उपयोग, जैविक खेती की विधियाँ और मृदा स्वास्थ्य संरक्षण।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: निर्यात-संचालित विकास की आवश्यकता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, भारत कृषि में सतत् आर्थिक विकास को किस प्रकार प्राप्त कर सकता है? 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस/कि पद्धति/यों को पारितंत्र-अनुकूली कृषि माना जाता है ? (2020)

  1. फसल विविधरूपण 
  2. शिंब आधिक्य (Legume intensification) 
  3. टेंसियोमीटर का प्रयोग 
  4. ऊर्ध्वाधर कृषि (Vertical farming)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1,2 और 3
(b) केवल 3
(c) केवल 4
(d) 1,2,3 और 4

उत्तर: (A)


मेन्स:

Q. भारत अलवणजल (फ्रैश वाटर) संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। (2015)

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