भारत में आत्महत्या रोकथाम प्रयासों का सुदृढ़ीकरण | 31 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, सर्वोच्च न्यायालय , ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, आयुष्मान भारत। 

मेन्स के लिये:

भारत में आत्महत्या, राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, भारत में मानसिक स्वास्थ्य पहल

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में लैंसेट में छपे लेख में भारत में आत्महत्या रोकथाम के लिये अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, जहाँ प्रत्येक वर्ष 1 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है।

  •  इसमें वर्ष 2022 में शुरू की गई राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS) पर भी चर्चा की गई है, जिसका उद्देश्य इस मुद्दे का निवारण करना है, लेकिन इसकी शुरुआत से अब तक इसमें बहुत कम प्रगति हुई है।

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति क्या है?

  • भारत में आत्महत्या रोकथाम के लिये राष्ट्रीय रणनीति का लक्ष्य बहुक्षेत्रीय सहयोग, समावेशिता और नवाचार के माध्यम से वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर को 10% तक कम करना है।
    • यह रणनीति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रमुख हितधारकों को कार्यान्वयन, निगरानी और सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिये एक कार्यात्मक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • दृष्टिकोण: एक ऐसा समाज स्थापित करना जहाँ व्यक्ति अपने जीवन को महत्त्व देता है और कठिन समय के दौरान उन्हें आवश्यक सहायता प्राप्त होती है।
  • उद्देश्य: यह ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से पाँच वर्षों के भीतर सभी ज़िलों में मनोरोग बाह्य रोगी विभाग स्थापित करने की योजना बना रहा है।
    • यह आठ वर्षों के भीतर सभी शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम को एकीकृत करने का प्रयास करता है।
    • आत्महत्याओं की ज़िम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिये दिशा-निर्देश विकसित करता है।

भारत में आत्महत्या का परिदृश्य क्या है?

  • वार्षिक रूप से मृत्यु: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वर्ष 2022 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में वर्ष 2022 में कुल 1.7 लाख से अधिक आत्महत्याएँ हुईं, जिनमें से लगभग एक तिहाई पीड़ित दिहाड़ी मज़दूर, खेतिहर मज़दूर और किसान थे।
    • वर्ष 2019 से वर्ष 2022 तक, आत्महत्या की दर 10.2 से बढ़कर 11.3 प्रति 1,00,000 हो गई।
  • प्राथमिक प्रभावित समूह: 9.6% आत्महत्याएँ स्व-नियोजित या वेतनभोगी पेशेवरों की थीं। 9.2% आत्महत्याएँ बेरोज़गार व्यक्तियों की थीं और 12,000 से अधिक छात्रों की आत्महत्या से मृत्यु हुई।
    • आत्महत्या से मरने वाली लगभग 48,000 महिलाओं में से 52% से अधिक गृहिणी थीं, जो कुल आत्महत्याओं का लगभग 14% है।
    • महाराष्ट्र में सबसे अधिक आत्महत्याएँ (22,746) हुईं, उसके बाद तमिलनाडु (19,834), मध्य प्रदेश (15,386), कर्नाटक (13,606), केरल (10,162) और तेलंगाना (9,980) का स्थान रहा। 
  • आत्महत्या के कारण: सबसे आम कारण पारिवारिक समस्याएँ, बेरोज़गारी, किसान-संकट, वित्तीय समस्याएँ और बीमारी थी, जो सभी आत्महत्याओं में से लगभग आधी के लिये ज़िम्मेदार थी।
    • अन्य कारणों में नशीले पदार्थों का दुरुपयोग, शराब की लत और विवाह संबंधी समस्याएँ शामिल थीं, जिनमें से एक बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं ने दहेज़ संबंधी समस्याओं को इसका कारण बताया।
    • भारत में युवा महिलाओं में आत्महत्याओं की वृद्धि कई कारकों से प्रेरित है, जिसमें बढ़ती शिक्षा और कठोर सामाजिक मानदंडों के बीच असंतुलन है, जिससे सापेक्ष अभाव की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।
      • आधुनिक रिश्तों/संबंधों, जैसे कि प्रेम और अंतर-जातीय विवाह, की ओर बदलाव व्यक्तिवाद को बढ़ावा देता है, लेकिन एकाकीपन को भी बढ़ावा देता है। व्याप्त पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव के साथ ही 31% विवाहित महिलाओं को प्रभावित करने वाली घरेलू हिंसा की उच्च दर, इन चुनौतियों को और भी बढ़ा देती है।
      • सीमित सामाजिक और वित्तीय अवसर उनके संघर्षों को और भी जटिल बना देते हैं, जिससे इस जनसांख्यिकीय समूह में आत्महत्या की दर चिंताजनक हो जाती है।
    • अकादमिक प्रदर्शन के दबाव को प्रायः छात्रों की आत्महत्या का एक प्रमुख कारण बताया जाता है, जो 18-30 आयु वर्ग के विद्यार्थियों का परीक्षा में असफल होने से संबद्ध होता है।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि तीव्र प्रतिस्पर्द्धा और माता-पिता का दबा व बढ़ती आत्महत्या दरों में बहुत बड़ा योगदान देता है, जो बच्चों से संतुलित अपेक्षाओं की आवश्यकता को उजागर करता है।

भारत में आत्महत्या रोकथाम की क्या आवश्यकता है?

  • व्यक्तियों और समाज पर प्रभाव: प्रत्येक आत्महत्या की घटना परिवार और मित्रों सहित करीबी व्यक्तियों को गहराई से प्रभावित करती है, जो व्यापक सामाजिक एवं भावनात्मक परिणामों को रेखांकित करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य कलंक: मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से जुड़ा सांस्कृतिक और सामाजिक कलंक प्रायः व्यक्तियों को अपनी चुनौतियों पर खुलकर चर्चा करने या मदद मांगने से रोकता है।
    • आत्महत्या को गहन मनोवैज्ञानिक पीड़ा की अभिव्यक्ति के बजाय कायरता, अपराध या पाप के रूप में गलत तरीके से समझा जाता है, जिसके निवारक उपाय करने में बाधा आती है।
    • अकादमिक और कॅरियर उपलब्धियों, लैंगिक भूमिकाओं एवं वैवाहिक अपेक्षाओं के संदर्भ में सामाजिक मानदंड महत्त्वपूर्ण दबाव डालते हैं, जिससे कई लोगों के लिये इन मानदंडों के खिलाफ बोलना या मदद मांगना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • आर्थिक बोझ: आत्महत्या की आर्थिक लागत में स्वास्थ्य सेवा व्यय और उत्पादकता में कमी शामिल है, जो देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।

भारत में आत्महत्या रोकथाम से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?   

  • संसाधनों की कमी: भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में प्रायः पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये आवश्यक संसाधनों की कमी होती है।
  • अपर्याप्त डेटा संग्रह: अपर्याप्त रिपोर्टिंग, व्यापक स्तर पर आवश्यक अध्ययनों की कमी और आत्महत्या के प्रयासों की कम रिपोर्टिंग संकट की सीमा को समझने एवं इसमें प्रभावी हस्तक्षेपों को डिज़ाइन करने में बाधा डालती है।
  • राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी: केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अपर्याप्त प्रतिबद्धता दिखाती हैं।
    • राजनीतिक नेता प्रायः आत्महत्या की रोकथाम के प्रति भाग्यवादी रवैया दिखाते हैं, उनका मानना ​​है कि इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है।
  • मीडिया की अपर्याप्त भागीदारी: मीडिया में प्रायः आत्महत्याओं की ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग के बारे में स्वयं को शिक्षित करने की इच्छाशक्ति की कमी होती है। आत्महत्याओं की मीडिया रिपोर्टिंग के लिये उचित दिशा-निर्देश विकसित किये जाने और उनका पालन किये जाने की आवश्यकता है।

भारत में आत्महत्या की रोकथाम से संबंधित पहल क्या हैं?

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Programme- NMHP): 
    • ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) 738 ज़िलों में लागू किया गया है, जिसमें ज़िला स्तर पर बाह्य रोगी सेवाएँ, परामर्श, निरंतर देखभाल और 10 बिस्तरों वाली इनपेशेंट सुविधा प्रदान की जाती है।
  • राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम: यह स्वास्थ्य कार्यक्रम देश भर में गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल सेवाओं तक पहुँच में सुधार के लिये वर्ष 2022 में शुरू किया गया।
    • दिसंबर 2023 तक, 34 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने 46 टेली MANAS सेल स्थापित किये हैं, जो हेल्पलाइन पर 500,000 से अधिक कॉल संभालते हैं।
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "KIRAN" शुरू की है।
  • आयुष्मान आरोग्य मंदिर: 1.6 लाख से अधिक उप-स्वास्थ्य केंद्र (SHC), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (UPHC) और शहरी स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (UHWC) को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में अपग्रेड किया गया है।
    • इन केंद्रों पर व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पैकेज में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं। 
    • आयुष्मान भारत के तहत मानसिक, न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका संबंधी) और पदार्थ उपयोग विकारों (MNS) पर दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • मनोदर्पण पहल: मनोदर्पण कोविड-19 के दौरान मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिये मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने हेतु आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।

आगे की राह

  • कार्यस्थल कल्याण: कार्यस्थलों पर, विशेष रूप से उच्च-तनाव वाले क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को अनिवार्य की जानी चाहिये। गेटकीपर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम जैसी सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों की आवश्यकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में पहुँच का विस्तार किया जाना चाहिये। प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
    • किसानों, छात्रों, महिलाओं और बुज़ुर्गों जैसे उच्च जोखिम वाले समूहों के लिये लक्षित हस्तक्षेप विकसित किया जाना चाहिये। इन समूहों के लिये विशेष रूप से सहायता नेटवर्क स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • आत्महत्याओं में 20% की गिरावट से भी सालाना 40,000 लोगों की जान बच सकती है।
  • मूल कारणों को समाप्त करना: रोज़गार सृजन, असमानता और गरीबी को कम करने तथा सामाजिक सुरक्षा जाल को मज़बूत करने की आवश्यकता है। लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के साथ ही घरेलू हिंसा और दहेज़ उत्पीड़न को समाप्त किया जाना चाहिये।
    • आत्महत्या या इसका प्रयास जैसे व्यवहार को रोकने के लिये दिशा-निर्देश लागू कर मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • व्यापक मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम लागू कर खुली बातचीत और तनाव प्रबंधन तकनीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी और मानसिक स्वास्थ्य: डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का विस्तार किया जाना चाहिये। ऑनलाइन समुदायों के माध्यम से सहकर्मी सहायता की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
    • स्व-देखभाल और तनाव प्रबंधन के लिये उपयोगकर्त्ता के अनुकूल ऐप विकसित करने की आवश्यकता है। पैटर्न की पहचान करने और हस्तक्षेप को प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिये डेटा का प्रयोग किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे में सुधार की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये। इन क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय समाज में नवयुवतियों में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? स्पष्ट कीजिये। (2023)