सामाजिक न्याय
भारत में सुगम्यता उपायों को सुदृढ़ बनाना
- 24 Jan 2025
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, सुगम्य भारत अभियान, भारत का सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और समान अधिकारों को बढ़ावा देने में महत्व, सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राजीव रतूड़ी बनाम भारत संघ, 2024 मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दिव्यांगजन अधिकार नियम 2017 का उपनियम 15, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के साथ असंगत/उल्लंघनकारी है।
- न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम द्वारा सरकार को सुगम्यता सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है लेकिन उपनियम 15 द्वारा इसमें विवेकाधीन दृष्टिकोण पर बल दिया गया है, जिससे वैधानिक प्रावधानों के बीच टकराव देखने को मिलता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने RPwD नियम, 2017 के उपनियम 15 को अमान्य क्यों माना?
- RPWD नियम, 2017 का उपनियम 15: RPWD नियम, 2017 का उपनियम 15, सरकारी विभागों में सुगम्यता संबंधी दिशा-निर्देशों के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे मंत्रालयों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को वैधानिक प्राधिकार मिलता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- विवेकाधीन प्रकृति: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि उपनियम 15 से RPWD अधिनियम (धारा 40, 44, 45, 46 और 89) के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन होता है क्योंकि यह मंत्रालयों को बाध्यकारी दायित्व के बिना सुगम्यता संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की अनुमति देता है।
- अनुपालन और सामाजिक लेखा परीक्षा: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में नियमित सामाजिक लेखा परीक्षा की आवश्यकता का प्रावधान है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी योजनाएँ दिव्यांगजनों पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें।
- हालाँकि, RPWD नियमों के तहत मानकीकृत दिशा-निर्देशों की कमी के कारण, इन ऑडिटों के संचालन में असंगतता रही है।
- सुगम्यता बनाम उचित समायोजन: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में सुगम्यता (जिससे सार्वजनिक अवसंरचना सुनिश्चित होती है) और उचित समायोजन (जो विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने पर केंद्रित है) के बीच अंतर किया गया है।
- संवैधानिक सिद्धांतों के तहत मौलिक समानता प्राप्त करने के लिये दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।
- नए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को 3 महीने के भीतर नए अनिवार्य सुगम्यता दिशा-निर्देश बनाने का निर्देश दिया, जिसमें 4 सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसमे सभी के लिये सार्वभौमिक डिज़ाइन, विभिन्न दिव्यांगताओं का व्यापक समावेश, स्क्रीन रीडर और सुलभ डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसी सहायक प्रौद्योगिकियों का एकीकरण, और दिव्यांग व्यक्तियों के साथ निरंतर परामर्श शामिल हैं।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD अधिनियम) क्या है?
- परिचय:
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक ऐसा कानून है जो दिव्यांगजनों को भेदभाव से बचाता है तथा उनके समान अधिकारों एवं अवसरों को बढ़ावा देता है।
- यह अधिनियम दिव्यांगनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCDPD) को प्रभावी बनाने के लिये बनाया गया था, जिसे वर्ष 2007 में भारत द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- दिव्यांगजन अधिकार नियम, RPWD अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन के लिये प्रक्रियात्मक स्पष्टता प्रदान करने तथा उसे क्रियान्वित करने के लिये तैयार किये गए थे।
- भारत में दिव्यांगजन: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 26.8 मिलियन व्यक्ति ( भारत की जनसंख्या का 2.21% ) दिव्यांग हैं।
- दिव्यांगजन: अधिनियम में दिव्यांगता को एक विकासशील और गतिशील अवधारणा के रूप में पुनर्परिभाषित किया गया है तथा दिव्यांगता की श्रेणियों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया, जिससे केंद्र सरकार को इसमें और श्रेणियाँ शामिल करने की अनुमति मिल गई।
- अधिकार:
- सरकारी ज़िम्मेदारी: उपयुक्त सरकारों का यह दायित्व है कि वे प्रभावी उपाय करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दिव्यांगजन (PwD) अन्य लोगों के साथ समान आधार पर अपने अधिकारों का प्रयोग क्र सकें।
- विशेष लाभ: बेंचमार्क दिव्यांगता और उच्च सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये प्रावधान किये गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- निःशुल्क शिक्षा: 6 से 18 वर्ष की आयु के दिव्यांगजन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार प्राप्त हैं।
- आरक्षण: बेंचमार्क दिव्यांगजता वाले व्यक्तियों को सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त उच्च शिक्षा में 5% आरक्षण तथा सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण का अधिकार है।
- "बेंचमार्क दिव्यांगजता" वाले व्यक्तियों की पहचान उन लोगों के रूप में की जाती है, जिन्हें निर्दिष्ट दिव्यांगजता का कम-से-कम 40% प्रमाणित किया गया है।
- अभिगम्यता: सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों सहित सार्वजनिक भवनों में निर्धारित समय सीमा के भीतर सुगम्यता सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया जाता है।
- विनियामक और शिकायत निवारण तंत्र: मुख्य आयुक्त दिव्यांगजन और राज्य दिव्यांगजन आयुक्तों के कार्यालयों को नियामक प्राधिकरणों और शिकायत निवारण अभिकरणों के रूप में कार्य करने के लिये सुदृढ़ बनाना।
- इन निकायों को अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी का कार्य सौंपा गया है।
नोट:
- RPWD अधिनियम, 2016 में 21 दिव्यांगताओं में दृष्टिहीनता, अल्प दृष्टि, कुष्ठ रोग उपचारित व्यक्ति, श्रवण दोष (बधिर और अल्प श्रवण क्षमता), संचलन संबंधी अक्षमता, वामनता, बौद्धिक दिव्यांगता, मानसिक रोग, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मांसपेशीय दुर्विकास, तंत्रिका संबंधी चिरकालिक रोग, विशिष्ट अधिगम संबंधी विशिष्ट दिव्यांगताएँ (डिस्लेक्सिया), मल्टीपल स्केलेरोसिस, भाषण और भाषा संबंधी दिव्यांगता, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकल सेल रोग, बधिर-दृष्टिहीनता सहित बहु दिव्यांगताएँ, एसिड अटैक पीड़ित और पार्किंसंस रोग शामिल हैं।
दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण से संबंधित अन्य पहलें कौन-सी हैं?
दिव्यांगजनों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
- दुर्गम अवसंरचना: सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और सेवाओं तक पहुँचने में अवसंरचना का अभाव।
- दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 3% भवन ही पूर्ण रूप से सुलभ थीं।
- शैक्षिक बहिष्कार: दिव्यांगजनों को समावेशी विद्यालयों, प्रशिक्षित शिक्षकों और सहायक प्रौद्योगिकियों के अभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल दिव्यांग जनसंख्या की साक्षरता दर लगभग 55% है (पुरुष- 62%, महिला- 45%) तथा केवल 5% दिव्यांगजन स्नातक और उससे आगे की शिक्षा प्राप्त हैं।
- रोजगार संबंधी चुनौतियाँ: दिव्यांगजनों को कार्यस्थल पर भेदभाव, अपर्याप्त सुविधाओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके आगे बढ़ने के मार्ग बाधित होते हैं।
- यद्यपि 1.3 करोड़ दिव्यांगजन रोज़गार योग्य हैं, परन्तु केवल 34 लाख को ही रोज़गार मिल पाया है।
- अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व: विधानमंडल के तीनों स्तरों - लोकसभा, राज्य विधानमंडल और स्थानीय निकायों में दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व कम है, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व सीमित हो गया है।
आगे की राह
- सुगम्य अवसंरचना: रैंप, स्पर्शनीय पथ, सार्वजनिक परिवहन और अनुकूली प्रौद्योगिकियों सहित दिव्यांगता-अनुकूल सार्वजनिक अवसंरचना में सुधार करना।
- स्कूलों, अस्पतालों और डिजिटल सेवाओं के लिये सुलभता मानकों को लागू करना।
- कृत्रिम अंगों के अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: कृत्रिम अंगों के अनुसंधान के लिये वित्तपोषण बढ़ाना तथा कृत्रिम अंगों में नवाचार के लिये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करना, जिससे दिव्यांगजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
- पहचान और सत्यापन प्रणाली: सटीक दिव्यांग पहचान और प्रमाणीकरण सुनिश्चित करने के लिये बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और नियमित ऑडिट के साथ एक केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस को लागू करना।
- गिग इकोनॉमी समावेशन: दिव्यांगजनों के लिये लचीले, कौशल-समरूप नौकरी के अवसर प्रदान करने के लिये गिग इकॉनमी ऐप्स के भीतर समर्पित प्लेटफॉर्म बनाना।
- सुगम्यता बढ़ाने के लिये सांकेतिक भाषा समर्थन और AI-सहायता प्राप्त कार्य मिलान को शामिल करना।
- राजनीतिक आरक्षण: राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे विधानमंडलों में दिव्यांगजनों के लिये आरक्षण प्रणाली का प्रावधान होना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सुगम्यता सुनिश्चित करने में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की भूमिका और इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: क्या विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन हेतु प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017) |