शासन व्यवस्था
वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर इंटरनेट की स्वतंत्रता की स्थिति
- 09 Oct 2023
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प्रिलिम्स के लिये:वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर इंटरनेट की स्वतंत्रता की स्थिति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सेंसरशिप व्यवस्था, भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन ब्यूरो (CBFC), सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 मेन्स के लिये:वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर इंटरनेट की स्वतंत्रता की स्थिति, भारत में सेंसरशिप व्यवस्था और इसके लाभ तथा सीमाएँ, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ एवं क्षमता, पारदर्शिता व जवाबदेही |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
फ्रीडम हाउस (वाशिंगटन DC स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था) द्वारा वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर इंटरनेट की स्वतंत्रता की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 13 वर्षों से इंटरनेट की स्वतंत्रता में लगातार गिरावट की एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी गई है, जिसमें 29 देशों में मानवाधिकारों के लिये ऑनलाइन पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति गंभीर पाई गई है।
- इस रिपोर्ट में जून 2022 और मई 2023 के बीच इंटरनेट की स्वतंत्रता के संदर्भ में हुए विकास को कवर किया गया है। यह विश्व भर के 88% इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की हिस्सेदारी रखने वाले 70 देशों में इंटरनेट की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करती है।
- यह रिपोर्ट देशों का मूल्यांकन करने के लिये पाँच सेंसरशिप तरीकों का उपयोग करती है, जिसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रतिबंध, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध, वेबसाइट ब्लॉक, VPN ब्लॉक और सामग्री (कंटेंट) को इंटरनेट से जबरन हटाया जाना शामिल है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- डिजिटल नियंत्रण में कृत्रिम बुद्धिमता (AI) की भूमिका:
- डिजिटल नियंत्रण में कृत्रिम बुद्धिमता (AI) की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। तेज़ी से परिष्कृत और सुलभ होते जा रहे AI-आधारित उपकरणों का उपयोग कम-से-कम 16 देशों में गलत सूचना को प्रसारित करने के लिये किया जा रहा है।
- इसके अतिरिक्त राजनीतिक, सामाजिक अथवा धार्मिक कारणों से अनुपयुक्त मानी जाने वाली सामग्री/कंटेंट को स्वचालित रूप से हटाकर, कृत्रिम बुद्धिमता 22 देशों में सेंसरशिप दक्षता व प्रभावशीलता को बढ़ाती है।
- डिजिटल नियंत्रण में कृत्रिम बुद्धिमता (AI) की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। तेज़ी से परिष्कृत और सुलभ होते जा रहे AI-आधारित उपकरणों का उपयोग कम-से-कम 16 देशों में गलत सूचना को प्रसारित करने के लिये किया जा रहा है।
- ऑनलाइन अभिव्यक्ति के कानूनी परिणाम और हिंसक घटनाएँ:
- मूल्यांकन में शामिल 70 देशों में से रिकॉर्ड 55 देशों में उपयोगकर्ताओं को ऑनलाइन अभिव्यक्ति के कानूनी परिमाण भुगतने पड़े।
- इसके अतिरिक्त 41 देशों में व्यक्तियों पर उनके ऑनलाइन बयानों के कारण हमला किया गया या फिर उनकी हत्या कर दी गई।
- राष्ट्र-विशिष्ट निष्कर्ष:
- ईरान में इंटरनेट शटडाउन, सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्मों की ब्लॉकिंग एवं सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने के लिये निगरानी व्यवस्था को और ठोस किया जाना आदि डिजिटल व इंटरनेट नियंत्रण में काफी वृद्धि को दर्शाता है।
- इंटरनेट की स्वतंत्रता के मामले में चीन का प्रदर्शन लगातार नौवें वर्ष सबसे खराब रहा, इसके बाद ऑनलाइन स्वतंत्रता के मामले में म्याँमार दूसरा सबसे दमनकारी देश रहा।
- भारत में AI-आधारित सेंसरशिप:
- भारत अपने कानूनी ढाँचे में AI-आधारित सेंसरशिप का उपयोग कर रहा है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हुई है और सत्तारूढ़ दल की आलोचना करना कठिन हो गया है।
- इस रिपोर्ट में सेंसरशिप व्यवस्था में विस्तार के कारण भारतीय लोकतंत्र पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को लेकर चेतावनी दी गई है, जिससे देश में आगामी वर्ष 2024 में पारदर्शी और निष्पक्ष आम चुनाव हो पाना भी एक चुनौती हो सकती है।
- भारत अपने कानूनी ढाँचे में AI-आधारित सेंसरशिप का उपयोग कर रहा है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हुई है और सत्तारूढ़ दल की आलोचना करना कठिन हो गया है।
सेंसरशिप:
- सेंसरशिप ऐसी जानकारी, सूचनाओं, विचारों अथवा अभिव्यक्तियों को दबाने अथवा नियंत्रित करने का कार्य है जो किसी विशेष समूह, संगठन या सरकार के लिये आपत्तिजनक, हानिकारक, संवेदनशील माना जाता है।
- इसके अंतर्गत व्यक्तियों, संस्थानों अथवा अधिकारियों द्वारा कुछ कंटेंट के प्रसार, प्रकाशन या इन तक पहुँच को प्रतिबंधित अथवा सीमित करना शामिल है।
- भारत के सेंसरशिप नियमों के दायरे में सभी प्रकार की कला, नृत्य, साहित्य, लिखित, वृत्तचित्र और मौखिक कार्यों के साथ-साथ विज्ञापन, थिएटर, फिल्में, टेलीविज़न शो, संगीत, भाषण, रिपोर्ट एवं बहस शामिल है।
भारत में सेंसरशिप की कार्यप्रणाली:
- दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C):
- Cr.P.C की धारा 95 कुछ कंटेंट/प्रकाशनों को ज़ब्त करने का प्रावधान करती है।
- यदि किसी समाचार पत्र, पुस्तक या दस्तावेज़, चाहे वह कहीं भी मुद्रित हो, में ऐसी कोई जानकारी शामिल है जिसे राज्य सरकार राज्य के लिये हानिकारक मानती है, तो इस प्रावधान के तहत जारी एक आधिकारिक अधिसूचना के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा उसे दंडित किया जाता है।
- Cr.P.C की धारा 95 कुछ कंटेंट/प्रकाशनों को ज़ब्त करने का प्रावधान करती है।
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन ब्यूरो (Central Bureau of Film Certification- CBFC):
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन ब्यूरो सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत संचालित एक वैधानिक निकाय है।
- यह सार्वजनिक डोमेन के फिल्मों की सामग्री के विनियमन का कार्य करता है।
- फिल्में CBFC द्वारा पूर्व प्रमाणन के अधीन होती हैं तथा प्रसारकों को "प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड" नियमों द्वारा प्रमाणन की आवश्यकताओं का पालन करना आवश्यक है।
- भारतीय प्रेस परिषद:
- यह प्रेस काउंसिल अधिनियम, 1978 के तहत स्थापित एक वैधानिक और अर्द्ध-न्यायिक निकाय है।
- यह प्रेस के लिये स्व-नियामक निकाय के रूप में कार्य करती है और मीडिया डोमेन में आने वाली चीज़ों को विनियमित करती है।
- यह मीडिया कर्मियों और पत्रकारों के लिये स्व-नियमन का अभ्यास करने की आवश्यकता पर ज़ोर देने के साथ ही सामान्य रूप से मीडिया सामग्री पर निगरानी रखने का कार्य करती है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि प्रकाशित-प्रसारित कंटेंट प्रेस की नैतिकता और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप है अथवा नहीं।
- केबल टेलीविज़न नेटवर्क अधिनियम, 1995:
- यह अधिनियम प्रसारित किये जा सकने वाली सामग्रियों को विनियमित करता है।
- यह अधिनियम केबल ऑपरेटरों का अनुवीक्षण करता है, इस अधिनियम के तहत केबल ऑपरेटरों के लिये पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और नए सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021:
- सोशल मीडिया के विस्तार को देखते हुए भारत में इसकी सेंसरशिप चिंता का विषय रहा है क्योंकि हाल में कुछ समय पहले तक यह क्षेत्र किसी भी सरकारी प्राधिकरण की प्रत्यक्ष निगरानी अथवा प्रत्यक्ष और विशिष्ट विनियमन के अधीन नहीं था।
- वर्तमान में सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करता है। इसके तहत विशेष रूप से धारा 67A, 67B, 67C तथा 69A में विशिष्ट नियामक खंड शामिल हैं।
- IT (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021:
- सूचना और प्रसारण मंत्रालय (I&B), भारत सरकार के दायरे में फिल्मों, ऑडियो-विज़ुअल कार्यक्रमों, समाचारों, समसामयिक मामलों के कंटेंट और अमेज़न, नेटफ्लिक्स तथा हॉटस्टार जैसे OTT (ओवर द टॉप) प्लेटफाॅर्मों सहित डिजिटल व ऑनलाइन मीडिया को लाने के लिये भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत "व्यावसायिक आवंटन नियमों" में बदलाव किया है।
सेंसरशिप के लाभ और सीमाएँ:
- लाभ:
- सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में सेंसरशिप की भूमिका: सेंसरशिप समाज में असामंजस्य को बढ़ावा देने वाले तथा सांप्रदायिक विवादों को जन्म देने वाले आपत्तिजनक सामग्रियों के प्रकटीकरण अथवा प्रसार को रोकने में मदद करती है।
- राज्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करना: इंटरनेट की सेंसरशिप सामाजिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इंटरनेट की सेंसरशिप बड़ी संख्या में अवैध गतिविधियों और इंटरनेट संबंधी अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद करते हुए सामाजिक स्थिरता में योगदान देती है।
- यह कुछ अवैध संगठनों अथवा लोगों द्वारा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राजनीति को प्रभावित करने वाली गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकती है।
- इंटरनेट की सेंसरशिप बड़ी संख्या में अवैध गतिविधियों और इंटरनेट संबंधी अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद करते हुए सामाजिक स्थिरता में योगदान देती है।
- झूठी मान्यताओं अथवा अफवाहों के प्रसार पर रोक: सरकार सेंसरशिप का उपयोग झूठी मान्यताओं या अफवाहों के प्रसार को रोकने के लिये कर सकती है और इसका उपयोग उनके सार्वजनिक प्रदर्शन आदि जैसी हानिकारक गतिविधियों को रोकने के लिये भी किया जा सकता है।
- इंटरनेट की सेंसरशिप ऑनलाइन उपलब्ध अनुचित जानकारियों को नियंत्रित करते हुए बच्चों के लिये हानिकारक- बाल अश्लीलता, यौन हिंसा और अपराध अथवा नशीली दवाओं के उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने वाले वेबसाइटों से सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
- सीमाएँ:
- मोरल पुलिसिंग के लिये उपकरण: प्रमुख सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सेंसरशिप कानून का व्यावहारिक कार्यान्वयन अन्य लोगों के जीवन को नियंत्रित करने वाले मोरल पुलिसिंग के एक उपकरण में बदल सकता है।
- नए नियमों के तहत नियामक संस्थाओं (जो नौकरशाहों से बनी हैं) को प्राप्त व्यापक शक्तियों के राजनीतिक दुरुपयोग का जोखिम भी उत्पन्न हो सकता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक प्रावधान के विरुद्ध: भारत विविधताओं वाला देश है है, ऐसे में गहन सेंसरशिप सभी भारतीय नागरिकों (कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन) के लिये गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक प्रावधान के साथ कई मामलों में संरेखित नहीं है।
- मोरल पुलिसिंग के लिये उपकरण: प्रमुख सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सेंसरशिप कानून का व्यावहारिक कार्यान्वयन अन्य लोगों के जीवन को नियंत्रित करने वाले मोरल पुलिसिंग के एक उपकरण में बदल सकता है।
आगे की राह
- डिजिटल संचार और सूचनाओं तक पहुँच के लिये ठोस विधिक एवं नियामक सुरक्षा उपायों के माध्यम से भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने की आवश्यकता है।
- AI को पर्याप्त रूप से विनियामित करते हुए इसका उपयोग इंटरनेट की स्वतंत्रता को कम करने के बजाय उसका समर्थन करने के लिये किया जाना चाहिये।