विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI) 2023 | 04 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), ब्रिक्स राष्ट्र, PPP डॉलर, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022, मानव विकास रिपोर्ट 2021-22, वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2022, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013, न्यूनतम समर्थन मूल्य, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा एवं संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) की रिपोर्ट 'विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति' (SOFI) 2023 ने भारत को लेकर एक चिंताजनक मुद्दे पर प्रकाश डाला है।

  • यह रिपोर्ट पौष्टिक भोजन की लागत तथा भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से द्वारा सामना की जाने वाली आर्थिक स्थितियों के बीच बढ़ती असमानता को उजागर करती है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक भुखमरी: वैश्विक भुखमरी की स्थिति वर्ष 2021 और वर्ष 2022 के बीच स्थिर बनी हुई है, महामारी, जलवायु परिवर्तन तथा यूक्रेन में युद्ध सहित संघर्षों के कारण वर्ष 2019 के बाद से पूरे विश्व में भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या 122 मिलियन से अधिक बढ़ गई है।
  • पौष्टिक भोजन तक पहुँच: वर्ष 2022 में लगभग 2.4 बिलियन व्यक्तियों, मुख्य रूप से महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की पौष्टिक, सुरक्षित एवं पर्याप्त भोजन तक पहुँच में लगातार कमी देखी गई है।
  • बाल कुपोषण: बाल कुपोषण की स्थिति अभी भी चिंताजनक रूप से बनी हुई है। वर्ष 2021 में 22.3% (148.1 मिलियन) बच्चे अविकसित थे, 6.8% (45 मिलियन) कमज़ोर थे तथा 5.6% (37 मिलियन) अधिक वज़न वाले थे।
  • शहरीकरण का आहार पर प्रभाव: जैसे-जैसे शहरीकरण में तेज़ी आती है, प्रसंस्कृत तथा सुविधाजनक खाद्य पदार्थों की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ ही नगरीय, उप-नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक वज़न और मोटापे वाली जनसंख्या की दर में वृद्धि होती है।
  • वैश्विक बाज़ारों पर ग्रामीण निर्भरता: विशेष रूप से अफ्रीका एवं एशिया में आत्मनिर्भर ग्रामीण क्षेत्र, अब तेज़ी से राष्ट्रीय और वैश्विक खाद्य बाज़ारों पर निर्भर होते जा रहे हैं। 
  • क्षेत्रीय रुझान: SOFI रिपोर्ट विभिन्न क्षेत्रों में स्वस्थ आहार की लागत और सामर्थ्य में बदलाव पर भी नज़र रखती है।
    • वर्ष 2019 और 2021 के बीच एशिया में स्वस्थ आहार बनाए रखने की लागत में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, जो लगभग 9% बढ़ गई।
    • पौष्टिक आहार लेने में असमर्थ लोगों की संख्या में वृद्धि एशिया और अफ्रीका में सबसे अधिक थी, दक्षिण एशिया तथा पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका को सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • दक्षिण एशिया का संघर्ष: 1.4 अरब लोगों के साथ दक्षिण एशिया में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक (72%) दर्ज की गई।
  • अफ्रीका की चुनौती: अफ्रीका में पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका विशेष रूप से प्रभावित हुए, जहाँ 85% आबादी स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ थी। इन दो महाद्वीपों (एशिया और अफ्रीका) ने वैश्विक स्तर पर इस आँकड़े में वृद्धि में 92% योगदान दिया, जो अफ्रीकी महाद्वीप को लेकर मुद्दे की गंभीरता को रेखांकित करता है।
  • भविष्य का दृष्टिकोण: यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी का 70% शहरों में निवास करेगा। इस महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव हेतु इस नई शहरी आबादी को भुखमरी, खाद्य असुरक्षा एवं कुपोषण को पूर्ण रूप से खत्म करने के लिये खाद्य प्रणालियों की पुनर्रचना की आवश्यकता होगी।

भारत के संदर्भ में रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • भारत में स्वस्थ आहार की लागत: SOFI रिपोर्ट के अनुसार, BRICS देशों और उनके पड़ोसियों के मध्य स्वस्थ आहार की लागत भारत में सबसे कम है। वर्ष 2021 में भारत में स्वस्थ आहार की लागत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 3.066 डॉलर क्रय शक्ति समता (PPP) है, जो वास्तव में इसे वहन योग्य बनाती है।
    • यदि आहार की लागत देश की औसत आय का 52% से अधिक हो तो इसे अप्राप्य माना जाता है। अन्य देशों की तुलना में भारत की औसत आय कम है।
    • इससे आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये अनुशंसित आहार का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है।
  • मुंबई केस स्टडी: यह रिपोर्ट मुंबई के मामले में एक विशिष्ट केस स्टडी पर भी प्रकाश डालती है, जहाँ मात्र पाँच वर्षों में भोजन की लागत 65% तक बढ़ गई है। इसके विपरीत इसी अवधि के दौरान वेतन और मज़दूरी में केवल 28%-37% की वृद्धि हुई है।
    • निरंतर डेटा उपलब्धता हेतु चयनित मुंबई, भारत में शहरी आबादी के समक्ष आने वाली चुनौतियों का एक ज्वलंत उदाहरण है।
  • वैश्विक तुलना/मिलान: इस रिपोर्ट में भारत की अन्य देशों से तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में स्वस्थ आहार की लागत अपेक्षाकृत कम है लेकिन आय असमानताओं के कारण यह आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये अप्राप्य है।
    • वर्ष 2021 में 74% भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ थे, जिससे भारत को अन्य देशों की तुलना में विश्व में चौथे स्थान पर रखा गया।

भारत के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का महत्त्व:

  • जनसंख्या की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना:
    • भारत में एक बड़ी आबादी कुपोषित अथवा अल्पपोषित है, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करती है।
      • वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022 के अनुसार, भारत में अल्पपोषण की व्यापकता 16.3% है। इसके अलावा भारत में 30.9% बच्चे अविकसित हैं, 33.4% न्यून-भार वाले हैं तथा 3.8% मोटापे से ग्रस्त हैं।
  • आर्थिक विकास को समर्थन:
    • कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो भारत की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान देता है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सरकार किसानों का समर्थन कर सकती है और उनकी आय को बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक विकास को गति देने में मदद मिल सकती है।
      • भारत की 70% से अधिक आबादी कृषि संबंधी गतिविधियों में संलग्न है, यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ का निर्माण करती है।
  • निर्धनता कम करना:
    • खाद्य सुरक्षा निर्धनता के स्तर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। किफायती/वहनीय और पौष्टिक खाद्य तक पहुँच प्रदान करने से लोग अपने खर्चों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं, स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम कर सकते हैं और अपने जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना:
    • भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खाद्य सुरक्षा भी आवश्यक है। स्थिर खाद्य आपूर्ति सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता पर अंकुश लगा सकती है, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
  • जलवायु परिवर्तन का मुकाबला:
    • जलवायु परिवर्तन भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा है। सतत्/संवहनीय कृषि अभ्यासों को अपनाकर और जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों में निवेश कर, भारत बदलती जलवायु के प्रति बेहतर अनुकूलन स्थिति प्राप्त कर सकता है तथा अपनी आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
      • अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन (International Food Security Assessment, 2022-2032) इंगित करता है कि भारत की विशाल आबादी का खाद्य असुरक्षा प्रवृत्तियों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अनुमान है कि वर्ष 2022-23 के दौरान भारत में लगभग 333.5 मिलियन लोग प्रभावित होंगे।

संबंधित पहलें:

भारत में खाद्य सुरक्षा की चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा:
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण किसानों के लिये अपनी उपज को बाज़ार तक ले जाना और उसका उचित भंडारण करना मुश्किल हो जाता है। इससे अधिक क्षति होती है और किसानों को कम लाभ होता है।
  • खराब कृषि पद्धतियाँ:
    • कृषि भूमि तथा कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग एवं अनुचित सिंचाई तकनीकों जैसी खराब कृषि पद्धतियों के कारण मृदा की उर्वरता और फसल की पैदावार में कमी आई है।
  • जटिल मौसम की स्थिति:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की जटिल स्थितियों के कारण भी फसल बर्बाद होती है और खाद्यान्न की कमी हो रही है। बाढ़, सूखा और लू की घटनाएँ लगातार और तीव्र होती जा रही हैं, जिससे खाद्य उत्पादन प्रभावित होता है तथा कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • अकुशल आपूर्ति शृंखला नेटवर्क:
    • अपर्याप्त परिवहन, भंडारण और वितरण सुविधाओं सहित अकुशल आपूर्ति शृंखला नेटवर्क भी भारत में खाद्य असुरक्षा में योगदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं के लिये खाद्यान्न की कीमतें बढ़ जाती हैं और किसानों को कम लाभ प्राप्त होता है।
  • खंडित भूमि जोत:
    • खंडित भूमि जोत, जहाँ किसानों के पास ज़मीन के छोटे और बिखरे हुए भूखंड हैं, आधुनिक कृषि पद्धतियों एवं प्रौद्योगिकियों को अपनाना मुश्किल बनाते हैं। यह खाद्य उत्पादन और उपलब्धता को प्रभावित करता है।

आगे की राह 

  • कृषि उत्पादन प्रणालियों और अनुसंधान में निवेश:
    • सरकार को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये आधुनिक कृषि अनुसंधान में निवेश करना चाहिये।
  • भंडारण सुविधाओं और परिवहन नेटवर्क में सुधार:
    • सरकार को फसल के बाद होने वाले नुकसान को रोकने के लिये पर्याप्त भंडारण सुविधाएँ विकसित करनी चाहिये और आपूर्ति-मांग संतुलन सुनिश्चित करने के लिये देश भर में खाद्य उत्पादों को वितरित करने हेतु मज़बूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना चाहिये।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना:
    • सरकार को कृषि उत्पादकता और खाद्यान्न उपलब्धता में सुधार के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
  • सतत् कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना:
    • सरकार को सतत् कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिये जो मृदा की गुणवत्ता को संरक्षित करती हैं और हानिकारक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता को कम करती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विवाद निपटान के लिये संदर्भ बिंदु के रूप में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मानकों के उपयोग के संबंध में WTO निम्नलिखित में से किसके साथ सहयोग करता है? (2010)

(a) कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग
(b) इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ स्टैंडर्ड्स यूज़र्स
(c) मानकीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठन
(d) विश्व मानक सहयोग

उत्तर: (a) 

  • कोडेक्स एलिमेंटेरियस या "खाद्य कोड" कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग द्वारा अपनाए गए मानकों, दिशा-निर्देशों और अभ्यास संहिताओं का एक संग्रह है।
  • आयोग संयुक्त FAO/WHO खाद्य मानक कार्यक्रम का केंद्रीय हिस्सा है और उपभोक्ता स्वास्थ्य की रक्षा तथा खाद्य व्यापार में निष्पक्ष प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये FAO एवं WHO द्वारा स्थापित किया गया था।

प्रश्न. FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौमिक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage Systems- GIAHS)' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है?  (2016) 

1- अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए।
2- पारितंत्र-अनुकूली परंपरागत कृषि पद्धतियाँ और उनसे संबंधित परिदृश्य (लैंडस्केप), कृषि जैवविविधता तथा स्थानीय समुदायों के ज्ञानतंत्र का अभिनिर्धारण एवं संरक्षण करना।
3- इस प्रकार अभिनिर्धारित GIAHS के सभी भिन्न-भिन्न कृषि उत्पादों को भौगोलिक सूचक (जिओग्राफिकल इंडिकेशन) की हैसियत प्रदान करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3


मेन्स: 

प्रश्न.आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि भूख के मुख्य कारण के रूप में खाद्य की उपलब्धता में कमी पर फोकस, भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा देता है? (2018)