स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2024 | 12 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र, गैर-संचारी रोग, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, सतत् विकास लक्ष्य, कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष, सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन, 'ईट राइट’ पहल मेन्स के लिये:खाद्य सुरक्षा, कृषि खाद्य प्रणालियाँ और स्थिरता, भारत की कृषि खाद्य प्रणाली और प्रच्छन्न लागत |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (AFO) की स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2024 रिपोर्ट क्वे अनुसार, अस्वास्थ्यकर आहार (अनहेल्दी डाइट) पैटर्न और पर्यावरण क्षरण वैश्विक वैश्विक कृषि खाद्यान्न की प्रच्छन्न लागत के मुख्य कारण हैं, जो कुल मिलाकर लगभग 12 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष है।
- यह रिपोर्ट अक्सर नजरअंदाज़ किये जाने वाले उन कारकों की जाँच करती है जो इन लागतों में योगदान करते हैं, तथा वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन का आग्रह करती है।
नोट: प्रच्छन्न लागतें उन आर्थिक बोझों को संदर्भित करती हैं जो खाद्य उत्पादों के बाज़ार मूल्य में परिलक्षित नहीं होती हैं। इनमें वर्तमान कृषि खाद्य प्रणाली से उत्पन्न स्वास्थ्य लागत, पर्यावरण क्षरण और सामाजिक असमानताएँ शामिल हैं।
स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रच्छन्न लागतें: कृषि खाद्य प्रणालियों की प्रच्छन्न लागतें प्रतिवर्ष लगभग 12 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाती हैं।
- इन लागतों का 70% (8.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न और हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह जैसे गैर-संचारी रोगों (NCD) से संबंधित है।
- भारत पर अंतर्दृष्टि: भारत की प्रच्छन्न लागत, कुल 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो विश्व स्तर पर चीन (1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) और संयुक्त राज्य अमेरिका (1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) के बाद तीसरी सबसे बड़ी लागत है।
- ये लागतें कृषि-खाद्य प्रणाली से जुड़ी महत्वपूर्ण स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों को दर्शाती हैं।
- इनमें से 73% से अधिक लागत आहार संबंधी जोखिमों, जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का अधिकऔर पौधे-आधारित खाद्य पदार्थों का कम सेवन, से उत्पन्न होती हैं।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और योजकों के अत्यधिक उपभोग से भारत को प्रतिवर्ष 128 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है, जिसका मुख्य कारण हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह जैसी बीमारियाँ हैं।
- भारत में पादप-आधारित खाद्य पदार्थों और लाभकारी फैटी एसिडों के अपर्याप्त उपभोग से 846 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रच्छन्न लागत बढ़ जाती है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर और अधिक बोझ पड़ता है।
- कृषि खाद्य प्रणाली में वितरण संबंधी विफलताओं के कारण कृषि खाद्य श्रमिकों के बीच कम मज़दूरी और कम उत्पादकता और भी बदतर हो गई है, जिसके कारण भारत में गरीबी बढ़ रही है।
- कृषि खाद्य प्रणाली के अनुसार प्रच्छन्न लागतें: रिपोर्ट में कृषि खाद्य प्रणालियों को छह प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है- ये हैं दीर्घकालिक संकट, पारंपरिक, विस्तार, विविधीकरण, औपचारिकीकरण और औद्योगिक, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग प्रच्छन्न कॉस्ट प्रोफाइल है।
- अधिकांश प्रणालियों में, साबुत अनाज, फलों और सब्जियों का कम सेवन प्राथमिक आहार जोखिम है। हालाँकि, दीर्घकालिक संकट और पारंपरिक प्रणालियों जैसी प्रणालियों में, फलों और सब्जियों का कम सेवन एक बड़ी चिंता का विषय है।
- पारंपरिक से औपचारिक प्रणालियों की ओर सोडियम सेवन में वृद्धि होती है, औपचारिक प्रणालियों में यह चरम पर होता है तथा औद्योगिक प्रणालियों में घटता है।
- अधिक औद्योगिक प्रणालियों में प्रसंस्कृत और लाल माँस की खपत में लगातार वृद्धि हो रही है।
- पर्यावरणीय और सामाजिक लागत: असंवहनीय कृषि पद्धतियों, विशेषकर कृषि खाद्य प्रणालियों में विविधता लाने से महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय लागत उत्पन्न होती है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और नाइट्रोजन अपवाह जैसी लागतें 720 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाती हैं।
- लंबे समय से संकट का सामना कर रहे देशों को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 20% तक की महत्त्वपूर्ण सापेक्ष पर्यावरणीय लागत वहन करनी पड़ती है।
- पारंपरिक तथा दीर्घकालिक संकट प्रणालियों को सबसे अधिक सामाजिक लागतों का सामना करना पड़ता है, जिसमें गरीबी और अल्पपोषण शामिल हैं, जो इन क्षेत्रों में सकल घरेलू उत्पाद का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है (8% से 18%)।
- परिवर्तनकारी बदलाव के लिये सिफारिशें:
- वास्तविक लागत लेखांकन: प्रच्छन्न लागतों को बेहतर ढंग से पकड़ने और निर्णय लेने में सहायता करने के लिये वास्तविक लागत लेखांकन को लागू करना।
- स्वास्थ्यवर्धक आहार: स्वास्थ्य संबंधी प्रच्छन्न लागतों को कम करते हुए पौष्टिक भोजन को अधिक किफायती और सुलभ बनाने की नीतियाँ।
- स्थिरता प्रोत्साहन: सतत् प्रथाओं को अपनाने तथा उत्सर्जन को कम करने के लिये वित्तीय और नियामक प्रोत्साहन प्रदान करना।
- उपभोक्ता सशक्तीकरण: उपभोक्ता व्यवहार को निर्देशित करने के लिये खाद्य विकल्पों के पर्यावरणीय, सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभावों पर स्पष्ट एवं सुलभ जानकारी।
- सामूहिक कार्रवाई का महत्त्व: प्रणालीगत परिवर्तन लाने के लिये कृषि व्यवसायों, सरकारों, वित्तीय संस्थाओं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और उपभोक्ताओं के बीच सहयोग का आह्वान।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने तथा खाद्य सुरक्षा, पोषण और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन आवश्यक है।
कृषि खाद्य प्रणालियाँ
- FAO कृषि-खाद्य प्रणालियों को इस रूप में परिभाषित करता है कि इसमें कृषि उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, वितरण और अपशिष्ट प्रबंधन सहित खाद्य उपभोग तक की सभी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- ये प्रणालियाँ आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होती हैं, जो खाद्य उत्पादन, वितरण एवं उपभोग को प्रभावित करती हैं।
- तीव्र शहरीकरण और बदलती आहार संबंधी प्राथमिकताओं के कारण कृषि खाद्य प्रणालियाँ अब ऐसे दबावों का सामना कर रही हैं जो उनकी स्थिरता तथा पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने की क्षमता को चुनौती दे रहे हैं।
भारत SFS की दिशा में कैसे कार्य कर रहा है?
- FAO के अनुसार, एक सतत् खाद्य प्रणाली (SFS) भावी पीढ़ियों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आर्थिक लाभप्रदता, सामाजिक समानता और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाती है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 800 मिलियन से अधिक नागरिकों को खाद्यान्न का अधिकार प्रदान करता है, जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- SFS के लिये भारत की पहल:
SFS में भारत की चुनौतियाँ क्या हैं?
- जलवायु परिवर्तन: हाल के वर्षों में, भारत मौसम के बदलते पैटर्न, अनियमित वर्षा और चरम घटनाओं (अनावृष्टि, बाढ़ एवं हीट वेव) का सामना कर रहा है, जिससे फसल की पैदावार और खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
- पर्यावरण क्षरण: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा क्षरण, जल प्रदूषण तथा जैव विविधता को नुकसान हो सकता है।
- प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित प्रमुख चिंताओं में घटती पैदावार, मृदा उर्वरता, मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) का स्तर और जल की कमी शामिल हैं।
- असंगत घटक सीमाएँ: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में शर्करा और नमक जैसे घटकों की सीमा में भारतीय मानकों तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित मानकों के बीच असंगतता है।
- यह विसंगति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की पोषण गुणवत्ता को विनियमित करने और सुनिश्चित करने के प्रयासों को जटिल बनाती है तथा आहार-संबंधी बीमारियों को कम करने के उद्देश्य से किये गए सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को संभावित रूप से कमज़ोर करती है।
- स्वच्छता और पादप स्वच्छता मानक: भारत के कृषि-निर्यात को कभी-कभी गुणवत्ता संबंधी मुद्दों के कारण प्रमुख बाज़ारों में अस्वीकार कर दिया जाता है, जिससे मानकों में सुधार की आवश्यकता उजागर होती है।
- कम उत्पादकता और आय: भारतीय किसानों का एक बड़ा हिस्सा छोटी जोत का मालिक है, जो उनकी उत्पादकता और आय को सीमित करता है।
- कई किसान पुरानी पद्धतियों पर निर्भर रहते हैं, जिसके कारण उपज कम होती है और संसाधनों का अकुशल उपयोग होता है।
- सीमित व्यापार सहयोग: भारत के व्यापार समझौतों में SFS पर पर्याप्त चर्चा का अभाव है, जिससे मानकों पर आपसी समझौतों के माध्यम से विकास के अवसर कम हो रहे हैं।
- निर्यात रणनीति और डेटा का अभाव: SFS-संरेखित व्यापार योजना का समर्थन करने के लिये उत्पाद-विशिष्ट निर्यात रणनीतियों और व्यापक डेटा का अभाव है।
भारत में संधारणीय और समावेशी SFS के लिये क्या आवश्यक है?
- संधारणीय प्रथाएँ: संधारणीय जल उपयोग, मृदा स्वास्थ्य बहाली और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाना।
- छोटे किसानों के लिये सहायता: हाशिये पर पड़े किसानों के लिये वित्तीय सेवाओं, प्रौद्योगिकी और बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाना।
- फार्म-टू-फोर्क ट्रैसेबिलिटी को लागू करना: खाद्य आपूर्ति शृंखला में गुणवत्ता, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उत्पाद ट्रैसेबिलिटी महत्त्वपूर्ण है।
- अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग: FAO, अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और भारत सरकार कृषि सुधारों को बढ़ावा देते हैं तथा शिक्षा, प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधनों के माध्यम से छोटे किसानों को समर्थन देते हैं।
- गुणवत्ता परीक्षण और प्रमाणन को बढ़ावा देना: परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रियाओं के माध्यम से गुणवत्ता नियंत्रण को मज़बूत करने से भारतीय कृषि उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
- सामाजिक सुरक्षा जाल को मज़बूत करना: गैर-कृषि परिवारों का समर्थन करने के लिये, खाद्य वितरण प्रणालियों को वहनीयता और पहुँच सुनिश्चित करने के लिये कुशल होना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत को अपनी कृषि खाद्य प्रणाली में अस्वास्थ्यकर आहार और पर्यावरण क्षरण के कारण महत्त्वपूर्ण प्रच्छन्न लागतों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि प्रगति हुई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, निर्यात प्रतिबंध और कम उत्पादकता जैसी चुनौतियाँ प्रगति में बाधा डालती हैं। सतत् प्रथाओं, छोटे किसानों के लिये समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के साथ संरेखित अनुकूलन तथा समावेशी कृषि खाद्य प्रणाली बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की कृषि खाद्य प्रणाली का मूल्यांकन कीजिये और प्रमुख प्रच्छन्न लागतों की पहचान कीजिये। भारत सतत् खाद्य प्रणाली प्राप्त करने के लिये इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. FAO, पारम्परिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौम रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली [Globally Important Agricultural Heritage System (GIAHS)]' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (B) मेन्स:प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आइ० एफ० एस०) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019) |