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भारतीय राजनीति

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

  • 06 Jun 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम 1954, उत्तराधिकार अधिकार, मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955

मेन्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम के मूल प्रावधान, SMA से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा एक मुस्लिम पुरुष और एक हिंदू महिला के बीच विवाह के संबंध में दिये गए निर्णय ने, विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act- SMA) के तहत पंजीकृत होने के बावजूद, ध्यान आकर्षित किया है।

  • न्यायालय ने दंपत्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पर्सनल लॉ के साथ असंगतता का हवाला देते हुए विवाह के पंजीकरण में सुरक्षा एवं सहायता की मांग की थी।
  • SMA के तहत 'पंजीकृत विवाह' एक सिविल विवाह है, जो धार्मिक अनुष्ठानों के बिना रजिस्ट्रार कार्यालय में संपन्न होता है।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का हालिया निर्णय क्या है?

  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि, चूँकि उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने की योजना बनाई थी, इसलिये इस्लामिक निकाह समारोह अनावश्यक था और उनका इरादा हिंदू याचिकाकर्त्ता के इस्लाम में धर्मांतरण किये बिना अपने धर्म का पालन जारी रखने का था।
  • हालाँकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम कानून के अनुसार, एक मुस्लिम पुरुष का एक हिंदू महिला के साथ विवाह वैध नहीं है; यहाँ तक ​​कि अगर ऐसा विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत भी हो, तो भी इसे अनियमित माना जाएगा।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस संदर्भ में पर्सनल लॉ, विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों पर हावी हैं (Override) और उसने दंपति की याचिका खारिज कर दी।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954

  • परिचय:
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act- SMA) एक सिविल मैरिज को नियंत्रित करता है, जहाँ राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंज़ूरी देता है।
    • संहिताबद्ध धार्मिक कानून विवाह, तलाक और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत कानूनी मुद्दों को नियंत्रित करते हैं। मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 जैसे कानूनों के अनुसार, विवाह से पूर्व पति या पत्नी में से किसी एक को दूसरे के धर्म में धर्मांतरण करना आवश्यक है।
    • हालाँकि, SMA, बिना अपनी धार्मिक पहचान छोड़े या धर्मांतरण का सहारा लिये, अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय जोड़ों के बीच विवाह को सक्षम बनाता है।
    • हालाँकि SMA, अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय जोड़ों के बीच उनकी धार्मिक पहचान त्यागे बिना या धर्मांतरण का सहारा लिये बिना विवाह को सक्षम बनाता है।
  • प्रयोज्यता:
    • इस अधिनियम की प्रयोज्यता देशभर में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, जैनियों और बौद्धों सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होती है।
    • कुछ प्रथागत प्रतिबंध, जैसे कि पक्षों का निषिद्ध रिश्ते की सीमा के अंतर्गत न होना (उनके व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार), अभी भी SMA के तहत जोड़ों पर लागू होते हैं।
    • SMA के तहत विवाह करने की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिये 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष निर्धारित है।
  • प्रक्रिया:
    • अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, विवाह के पक्षकारों को उस ज़िले के "विवाह अधिकारी" को लिखित रूप में नोटिस देना आवश्यक है, जिसमें नोटिस देने से ठीक पहले कम से कम 30 दिनों तक पक्षों में से कम से कम एक पक्ष निवास करता रहा हो।
    • विवाह संपन्न होने से पूर्व पक्षकारों और तीन गवाहों को विवाह अधिकारी के समक्ष एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करना आवश्यक होता है।
      • एक बार घोषणा स्वीकार कर लिये जाने पर, पक्षों को एक “विवाह प्रमाणपत्र” प्रदान किया जाएगा जो अनिवार्य रूप से विवाह का प्रमाण होता है या “इस तथ्य का निर्णायक सबूत है कि इस अधिनियम के तहत विवाह संपन्न हो चुका है और इसमें गवाहों के हस्ताक्षर से संबंधित सभी औपचारिकताओं का पालन किया गया है”।
  • विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत “नोटिस अवधि”:
    • धारा 6 के अनुसार, पक्षों द्वारा दिये गए नोटिस की एक सत्य प्रतिलिपि "मैरिज नोटिस बुक" के अंतर्गत रखी जाएगी, जो बिना किसी शुल्क के, उचित समय पर निरीक्षण के लिये खुली रहेगी।
    • नोटिस प्राप्त होने पर, विवाह अधिकारी इसे “अपने कार्यालय में किसी प्रमुख स्थान” पर प्रकाशित करेगा, ताकि 30 दिनों के भीतर विवाह संबंधी कोई भी आपत्ति व्यक्त की जा सके।
  • SMA से जुड़ी चिंताएँ:
    • विवाह पर आपत्तियाँ: धारा 7 किसी भी व्यक्ति को नोटिस देने के 30 दिनों के भीतर विवाह पर आपत्ति प्रदर्शित करने की अनुमति देती है, यदि वह धारा 4 के तहत शर्तों का उल्लंघन करता है, जिसके तहत विवाह अधिकारी को विवाह संपन्न कराने से पूर्व आपत्ति की जाँच और समाधान करना आवश्यक होता है, जब तक कि आपत्ति वापस नहीं ले ली जाती।
      • इसका उपयोग अक्सर सहमति देने वाले जोड़ों को परेशान करने तथा उनके विवाह में देरी करने या उसे रोकने के लिये किया जा सकता है।
    • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: नोटिस प्रकाशित करने की आवश्यकता को गोपनीयता के उल्लंघन के रूप में भी देखा जा सकता है, क्योंकि इससे जोड़े की व्यक्तिगत जानकारी और उनके विवाह करने की योजना का खुलासा हो सकता है।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि SMA के तहत प्रस्तावित विवाह पर सार्वजनिक आपत्ति व्यक्त करने के लिये 30 दिन का अनिवार्य नोटिस “पितृसत्तात्मक (Patriarchal)” है और इसे “ओपन फॉर इन्वेशन बाय सोसाइटी” बनाता है। 
    • सामाजिक लांछन: भारत के कई भागों में अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह अभी भी व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किये जाते हैं और जो जोड़े SMA के तहत विवाह करने का विकल्प चुनते हैं, उन्हें अपने परिवारों एवं समुदायों से सामाजिक लांछन (Social Stigma) तथा भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।

नोट:

  • भारत का संविधान अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भी शामिल है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह से जुड़े कई मामलों पर विचार किया है। जैसे-
    • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2006 मामला: न्यायालय ने माना कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है और माता-पिता या समुदाय सहित कोई भी व्यक्ति ऐसे विवाह में हस्तक्षेप या आपत्ति नहीं कर सकता है।
    • शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ, 2018 मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि सहमति से जीवन साथी चुनना संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत गारंटीकृत उनकी पसंद की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है।

निष्कर्ष:

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय ने भारत में व्यक्तिगत कानूनों और धर्मनिरपेक्ष विवाह कानून के बीच परस्पर क्रिया से उत्पन्न जटिलताओं एवं संघर्षों को उजागर किया, भारत में अंतरधार्मिक जोड़ों के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया। आगे बढ़ते हुए विवाह से संबंधित कानूनी ढाँचों और सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता की सूक्ष्म समझ की आवश्यकता होती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह करने के इच्छुक जोड़ों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। साथ ही इन मुद्दों को हल करने के लिये संभावित सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में, 1884 का रखमाबाई मुकदमा किस पर केंद्रित था? (2020)

  1. महिलाओं का शिक्षा पाने का अधिकार
  2. सहमति की आयु
  3. दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन

नीचे दिये गये कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न: भारत के संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के किसी व्यक्ति के अधिकार को संरक्षण देता है? (2019) 

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों और निर्णय विधियों की मदद से लैंगिक न्याय के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य की व्याख्या कीजिये। (2023)

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